कितना ‘दोषपूर्ण’ अपना लोकतंत्र?
सत्येंद्र रंजन-सत्येंद्र रंजन"...ऐसे में ईआईयू जैसी इकाई का लोकतंत्र का सूचकांक एवं श्रेणी तैयार करना एक विडंबना ही है। इसे सहजता से नजरअंदाज कर दिया जाता, अगर इस परिघटना के अन्य पक्ष नहीं होते। लेकिन...
View Articleमुलायम का आग से खिलवाड़?
सत्येंद्र रंजन-सत्येंद्र रंजन"...सपा के साल भर के शासनकाल में उत्तर प्रदेश में संप्रदायिक दंगों का दौर लौटता दिखा है। आम मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक बेहतरी के कोई कदम उठाए गए, कहना कठिन है। इससे...
View Articleईको-सेंसटिव जोन का जिन्न
इन्द्रेश मैखुरी- इन्द्रेश मैखुरी"...हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय के वकील मुख्यमंत्री के राज में यह आलम है कि राज्य से जुड़े एक बेहद संवेदनशील मसले पर भारत सरकार ने राजाज्ञा जारी कर...
View Articleबॉम्बे टॉकीज और उठते-गिरते सिनेमा के सौ साल
अंकित फ्रांसिस-अंकित फ्रांसिस"...अनुराग की कहानी ख़त्म होने पर फिल्म भी शायद ख़त्म हो जाती है और बॉलीवुड के सौ साल पर आधारित एक लम्बा, बोझिल और बेसिरपैर का गाना आपको दिखाई पड़ता है. आपको चार कहानियों...
View Articleपाकिस्तान चुनाव : स्पष्ट बहुमत की नाउम्मिदी
पीयूष पन्त -पीयूष पन्त "...इस नाउम्मीदी के बावजूद ११ मई को पाकिस्तान में होने वाले आम चुनाव को 'ऐतिहासिक' बताया जा रहा...
View Articleसरबजीत और सनाउल्लाह के दौर में मंटो का टोबा टेक सिंह
सआदत हसन मंटोजैसा कि आजकल हो ही रहा है, फेसबुक ही बताता है कि आपके किसी करीबी का जन्मदिन है. फेसबुक ने ही बताया की आज सहादत हसन मंटो साहब का जन्मदिन है. नहीं-नहीं ऐसा नहीं है कि वो हमारे फेसबुक फ्रेंड...
View Articleमहिलाओं की अनदेखी करता है आकाशवाणी
संजय कुमार-संजय कुमार"...मीडिया स्टडीज ग्रुप के इस सर्वे में रेडियो के सर्वाधिक प्रसार और सुने जाने वाले चैनल आकाशवाणी के राष्ट्रीय प्रसारण केंद्र से एक वर्ष के दौरान प्रसारित हुए 527 कार्यक्रम और...
View Articleरीमेक फिल्में : गुणवत्ता का गिरता ग्राफ
उमाशंकर सिंह-उमाशंकर सिंह"...असल में कुछ रसोइये किसी भी चीज की चटनी बना सकते हैं और इसे उनका गुण ही माना जाना चाहिए, वैसे ही कुछ फिल्मकार किसी भी चीज की चटनी बना सकते हैं और इसे उनके अवगुण और फिल्मबोध...
View Articleमुक्तिबोध लोकतंत्र के अंधेरे की शिनाख्त करने वाले कवि हैं
लोकतंत्र के ‘अंधेरे में’ आधी सदी पर विचारगोष्ठी संपन्न-सुधीर सुमनमुक्तिबोध की मशहूर कविता के प्रकाशन के पचास वर्ष के मौके पर जन संस्कृति मंच के कविता समूह की ओर से गांधी शांति प्रतिष्ठान में लोकतंत्र...
View Articleलालू का जादू या नीतीश के खिलाफ गुस्सा?
कमलेश-कमलेश"...हाल के दिनों में नीतीश कुमार के खिलाफ यह चौथी रैली थी। पहली रैली भाकपा ने अपने कांग्रेस के मौके पर की, दूसरी रैली भाकपा माले ने की और तीसरी रैली नीतीश से अलग होने वाले उपेन्द्र कुशवाहा...
View ArticleUttarakhand : The new Africa of India Inc.
-Capt. Mohit JoshiCapt. Mohit JoshiFor any industry to thrive in a new territory all it requires is ample natural resources, favourable (read gullible) human capital, a couple of cloud representatives...
View Articleफिर एक कमजोर फिल्म : शूट आउट एट वडाला
विनय सुल्तान -विनय सुल्तान "...शूट आउट एट वडाला संजय गुप्ता की हालिया फिल्म है. ये महाशय पहले भी जिंदा, प्लान, कांटे, मुसाफिर जैसी वाहियात फिल्म दे चुके हैं. इनसे इस फिल्म में भी ऐसी ही आशा की गई थी और...
View Articleसमाचार, विज्ञापन और चिट-फंड की नैतिकता
भूपेन सिंह-भूपेन सिंहएक गुलाम और नागरिक के बीच का फ़र्क यही है कि गुलाम मालिक के मातहत होता है और नागरिक कानून के. हो सकता है कि मालिक बहुत विनम्र हो और कानून बहुत सख्त, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता है....
View Articleविवेक पर मीडिया का प्रहार
सत्येंद्र रंजन-सत्येंद्र रंजन"...टीवी के एंकर और वहां जुटाए गए कथित विशेषज्ञ इतनी जोर-जोर से चीन या पाकिस्तान की “शैतानियों” की चर्चा करते हैं कि उनके बीच यह कहना भी राष्ट्रद्रोह जैसा लगने लगता है कि...
View Articleक्या थी एक डायन?
-अरविंद शेषअरविंद शेषपिछले साल मई में सरकार ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि 2008 से 2010 के बीच डायन के संदेह में पांच सौ अट्ठाईस महिलाओं की हत्या कर दी गई। इसमें मारपीट और यातना देने के...
View Articleनरेंद्र मोदी : पीआर फर्म के हव्वे में सवार, पीएम उम्मीदवार!
कृष्ण सिंह-कृष्ण सिंहमीडिया का एक प्रभावशाली हिस्सा, जो कॉरपोरेट घरानों की पूंजी से नियंत्रित और संचालित हो रहा है, इस ‘मॉडल राज्य’ के मुख्यमंत्री (पढ़ें- सीईओ) नरेंद्र मोदी को भारत के नए ‘विकास पुरुष’...
View ArticleWho creates War hysteria?
Satyendra Ranjan(This article is based on writings of some serious watchers of Indo-China relationship. It was written in 2010, but the context in which it was prepared has not changed even today.) By...
View Articleसपनों के लिए जनयात्रा
रोहित जोशी-रोहित जोशी"...यात्रादल द्वारा रखा गया यह विकल्प असल अर्थों में पहाड़, देश और दुनिया के समूचे विकास मॉडल के लिए चुनौती भरा है। इसके केंद्र में मुनाफे के बजाय असल अर्थों में उस जनता का विकास...
View Articleक्राइम हटे तो क्रिकेट बचे!
सत्येंद्र रंजन-सत्येंद्र रंजन"...चुनौती साफ है। आईपीएल जिस रूप में अब तक चला है, उस रूप में वह जारी नहीं रह सकता। या कहा जाए कि उस रूप में उसके चलने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। मगर असली सवाल यही है कि...
View Articleमाओवाद का हव्वा बनाती उत्तराखण्ड पुलिस
-प्रेक्सिस प्रतिनिधि वक्ताओं ने कहा कि मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद एक वैज्ञानिक दर्शन है, एक वैज्ञानिक विचारधारा है जो वर्तमान शोषण व दमन पर टिकी व्यवस्था के बजाय जनवादी व समानता पर आधारित वैज्ञानिक...
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