Quantcast
Channel: पत्रकार Praxis
Viewing all articles
Browse latest Browse all 422

नरेंद्र मोदी : पीआर फर्म के हव्वे में सवार, पीएम उम्मीदवार!

$
0
0
कृष्ण सिंह

-कृष्ण सिंह

मीडिया का एक प्रभावशाली हिस्साजो कॉरपोरेट घरानों की पूंजी से नियंत्रित और संचालित हो रहा हैइस मॉडल राज्य के मुख्यमंत्री (पढ़ें- सीईओ) नरेंद्र मोदी को भारत के नए विकास पुरुष के रूप में पेश कर रहा है। यही नहीं विविधता वाले और राजनीतिक-सामाजिक रूप से जटिल भारत जैसे विशाल देश में जिस व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे ज्यादा लोकप्रिय कहा जा रहा हो वह अपनी छवि निर्माण के लिए एक विदेशी जनसंपर्क कंपनी का सहारा ले रहा है। लोकतंत्र के साथ इससे बड़ा मजाक और प्रहसन क्या हो सकता है।

क अरब बीस करोड़ आबादी वाली भारतीय ``लोकतांत्रिक व्यवस्था`` में प्रभावशाली वर्गों की समृद्धि और प्रगति के लिए राष्ट्र के तीव्र आर्थिक विकास एवं पूंजी के तेज प्रवाह के नाम पर अवाम के व्यापक हिस्से को अपना सब कुछ दांव पर लगाना एक अहम शर्त है। इसमें भी सबसे अनिवार्य और जरूरी शर्त यह है कि जहां भी प्राकृतिक संसाधन भरपूर मात्रा में हैं वहां वंचितगरीब और पीड़ित लोगों का बड़े पैमाने पर विस्थापन होना लाजिमी है। अगर आप भारतीय लोकतंत्र के इस ``विशिष्ट स्वरूप`` पर सवाल उठाते हैं तो आप राष्ट्र की प्रगति के विरोधी माने जाएंगे। बड़े कॉरपोरेशनों ( जिनके कारोबारी किताब में राष्ट्रहित और राष्ट्रीयता का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ अधिक से अधिक मुनाफा कमाने के लिए बड़े ही शातिराना तरीके से किया जाता है)उद्योगपतियोंजनमत तैयार करने में माहिर ``विशेषज्ञों``पत्रकारों की एक अच्छी खासी प्रभावशाली फौजशहरी पेशेवरोंग्रामीण क्षेत्रों का अमीर तबकाउच्च और मध्यवर्ग ( जिसमें एक अतिमहत्वाकांक्षी नया मध्यवर्ग भी शामिल हैजिसे अपनी प्रगति के लिए किसी भी तरह के दमन से कोई आपत्ति नहीं है) को अपना एक ऐसा ``नायक`` मिल गया है जो इन वर्गों को यह भरोसा दे रहा है कि उनके रास्ते में आने वाली किसी भी तरह की बाधा को वह सफलतापूर्वक समाप्त कर देगा। 

संदेश साफ है- बड़ी पूंजी के लिए छोटी पूंजी को कुर्बान होना होगा। तीस प्रतिशत लोगों की खातिर सत्तर प्रतिशत आबादी को खामोश रहना होगा। विरोध किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इसके लिए गुजरात को एक ``मॉडल राज्य`` के बतौर पेश किया जा रहा है। मीडिया का प्रभावशाली हिस्साजो कॉरपोरेट घरानों की पूंजी से नियंत्रित और संचालित हो रहा हैइस ``मॉडल राज्य`` के मुख्यमंत्री (पढ़ें- सीईओ) नरेंद्र मोदी को भारत के नए ``विकास पुरुष`` के रूप में पेश कर रहा है। जोसेफ ग्यॉबेल्स की तरह झूठ को इतनी बार सच बनाकर पेश किया जा रहा है कि वह सच से भी ज्यादा सच लगने लगे। जोसेफ ग्यॉबेल्स नाजी जर्मनी का प्रोपेगेंडा मिनिस्टर था और हिटलर का बहुत ही विश्वासपात्र था। उसका पहला काम था किताबों को जलाना। उसने जर्मनी में सूचनाकला और मीडिया पर पूर्ण नियंत्रण के लिए पूरे दमखम के साथ काम किया था।

छवि निर्माण का अमेरिकी फार्मूला

मोदी की छवि के निर्माण के लिए नए-नए मिथक गढ़े जा रहे हैं। स्वयं मोदी अपनी छवि चमकाने के लिए सन् 2007 से एक पब्लिक रिलेशन एजेंसी की सेवाएं ले रहे हैं। मोदी को अपने इस जनसंपर्क अभियान में खासी सफलता मिली है। इस पब्लिक रिलेशन एजेंसी का नाम है एपीसीओ वर्ल्डवाइड। यह अमेरिकी कंपनी है। इसका काम गुजरात को एक निवेश स्थल के रूप में प्रचारित करने के अलावा अंतरराष्ट्रीय और घरेलू मोर्चे पर मोदी की हैसियत को बढ़ाना है। यह कंपनी अमेरिका में तंबाकू और स्वास्थ्य बीमा उद्योगों के पब्लिक रिलेशन का काम करती है। इसके अलावा इजराइल और कजाकस्तान के अलावा संयुक्त राष्ट्रविश्व बैंक और एसोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियन नेशंस के लिए भी जनसंपर्क का काम करती है। इस कंपनी की सबसे बड़ी ताकत यह है कि यह स्वास्थ्य और पर्यावरण जैसे सार्वजनिक मसलों पर अपने ग्राहकों का एजेंडा आगे बढ़ाने के लिए फर्जी नागरिक अभियान चलाती है। यह काम कृत्रिम रूप से तैयार किए जाने वाले संगठनों के जरिए करती है। यह अपने काम को विशेषतौर से सोशल मीडिया और मुख्यधारा के मीडिया में जनसंपर्क के तूफानी हमले के जरिए करती है। यह कंपनी कुछ इसी अंदाज में मोदी के लिए पिछले कई वर्षों से काम कर रही है।

विविधता वाले और राजनीतिक-सामाजिक रूप से जटिल भारत जैसे विशाल देश में जिस व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे ज्यादा लोकप्रिय कहा जा रहा हो वह अपनी छवि निर्माण के लिए एक विदेशी जनसंपर्क कंपनी का सहारा ले रहा है। लोकतंत्र के साथ इससे बड़ा मजाक और प्रहसन क्या हो सकता है। मोदी ने प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी के अभियान के लिए कुछ दिन पहले दिल्ली में फिक्की लेडीज ऑर्गेनाइजेशननेटवर्क 18 के थिंक इंडिया (नेटवर्क 18 ग्रुप में मुकेश अंबानी ने भारी निवेश किया हैअंबानी की कंपनी आरआईएल के 27 चैनलों में शेयर हैं) और कलकत्ता चैम्बर ऑफ कॉमर्स के मंचों को चुना। बड़े कॉरपोरेट घरानों का प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे पसंदीदा उम्मीदवार मोदी हैं। इसका कारण है। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार अपने नौ साल के शासनकाल में भ्रष्टाचार और बड़े-बड़े घोटालों के कारण इतनी बदनाम हो चुकी है अब उसकी साख बची नहीं है। साथ ही इन नौ सालों में इन भ्रष्टाचार और घोटालों में भारतीय कॉरपोरेट घराने भी पूरी तरह से लिप्त रहे हैं। इसके सनसनीखेज खुलासे सामने आए हैं। इसके बावजूद कॉरपोरेट घरानों के लिए लाभ की स्थिति यह रही है कि मीडिया पर उनका नियंत्रण है इसलिए सारी कालिख नेताओं के सिर पर उड़ेल दी गई। 

इसके अलावा बड़े कॉरपोरेशंस जिस तेजी से अपने पक्ष में फैसले चाह रहे हैं वे उस हद तक हो नहीं पा रहे हैं। हालांकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बड़े कॉरपोरेट घरानों के हित में काम करने में कोई गुरेज नहीं ( जितना हो सकता है बेचारे कर भी रहे हैं) लेकिन सरकार की छवि जिस तरह से गिरी है उससे इसमें बाधा आई है। इसलिए मीडिया और कॉरपोरेट घरानों ने इस सरकार के लिए एक नया शब्द गढ़ा है- पालिसी परैलिसिस। यानी नीतियों (कॉरपोरेट के हित में) के लिहाज से मनमोहन सरकार लकवाग्रस्त हो चुकी है। अब उन्हें ऐसा ``लौह पुरुष`` चाहिए जो उनके रास्ते की बाधाओं को पूरी निर्मतता से हटाए। साथ ही सत्ता में फैसले लेने का केवल एक केंद्र हो। यानी उन्हें कई दरवाजों पर न जाने पड़े। उनके इस खांचे में स्वयंसेवक नरेंद्र मोदी फिट बैठते हैं। 

इस समय भारतीय लोकतंत्र ऐसे मोड़ पर पहुंच गया है जहां भारत के राजनीतिक भविष्य का एजेंडा कॉरपोरेट घराने तय कर रहे हैं और इसमें उनके द्वारा नियंत्रित ताकतवर मीडिया भारतीय जनमानस का दिलो-दिमाग बदलने का काम कर रहा है। देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस इस खेल से बाहर नहीं रहना चाहती। इसलिए पूरे देश में चुनाव को सिर्फ दो लोगों के बीच ध्रुवित करने की कोशिश की जा रही है। नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी। लोकतंत्र को ग्लैडीएटर युद्ध में तब्दील किया जा रहा है। यहां अमेरिकी चुनावी मॉडल को भारत की धरती पर उतारने की कोशिश की जा रही है। जैसा कि सुप्रसिद्ध लेखिका अरुंधति रॉय ने अंग्रेजी पत्रिका आउटलुक (22 अप्रैल 2013) को दिए एक साक्षात्कार में कहा, `` इस चुनाव में कॉरपोरेट का उम्मीदवार वह व्यक्ति होगा जिसे इस रूप में देखा जाएगा कि वो `कुछ कर सकता है` (केन डिलिवर)...और इसमें यह भी शामिल होगा कि समय आने पर यदि जरूरत पड़ी तो वह सेना की भी सहायता लेकर झारखंडओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे स्थानों पर देशभर में लोगों के विद्रोह का दमन कर सकता है। जहां कॉरपोरेट की नजर में जंगलों और पहाड़ों में तुरंत उपलब्ध समृद्धि (कोल्डकैश) के अंबार लगे हैं।`` कॉरपोरेट की बढ़ती ताकत के बारे में राजनीतिक विज्ञानी क्रिस्टोफ जैफललॉट का कहना है- अन्य जगहों की तरह ही भारत में निजी क्षेत्र रोल मॉडल बन गया है। मध्यवर्ग के लोग सोचते हैं कि राष्ट्र-राज्य को एक कंपनी की तरह चलाया जाना चाहिए।... मजेदार बात यह है कि यह विमर्श भ्रष्टाचार के मामलों में निजी क्षेत्र की भूमिका को नजरअंदाज कर देता है। (आउटलुक 22 अप्रैल 2013)।

यह मोदी मिथक भविष्य में भारतीय लोकतंत्र को किस तरह के कंसंट्रेशन कैंप (यातना शिविर) की ओर ले जाएगाअभी साफ तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन संकेत खतरनाक जरूर हैं। मोदी सिर्फ व्यक्ति नहीं है बल्कि यह भारतीय राजनीतिसमाज और अर्थव्यवस्था की एक नई प्रवृत्ति है। इसे ग्यॉबेल्सी दुष्प्रचार के भारतीय तरीके से आगे बढ़ाया जा रहा है। गुजरात को इसके केंद्र में रखा गया है। जहां आर्थिक विकास की वास्तविक सच्चाई को ``तेज और चौंकाने वाले आर्थिक विकास`` के दुष्प्रचार से दफन कर दिया गया है।

विकास का सच

गुजरात कोई नरेंद्र मोदी के आने से समृद्ध नहीं हुआ है। गुजरात भारत का अत्यधिक औद्योगीकृत राज्य है और आर्थिक विकास के मामले में सदा से काफी आगे रहा है। आखिर मोदी जो कह रहे हैं उसमें सच्चाई कितनी है इस पर गौर करने की जरूरत है। किसी भी राज्य का विकास और उसके लोगों का जीवन स्तर किस तरह का है इसको मानव विकास सूचकांक के जरिए समझा जा सकता है। भारत के मानव विकास सूचकांक की तालिका में गुजरात 11वें स्थान पर है (वर्ष 2007-8)। सन् 1999-2000 में राज्य इस तालिका में 10वें स्थान पर था। मोदी के शासन वाला गुजरात भारत में तीसरा सबसे ज्यादा ऋणग्रस्त राज्य है। ``निजी पूंजी को दी गई छूट पहले ही राज्य की भंगुर पारिस्थितिकी और उसकी वित्तीय स्थिति को खोखला करने के लिए वापस लौट रही है।`` (सेलिंग मोदीईपीडब्ल्यू20 अप्रैल 2013)। जैसा कि वरिष्ठ पत्रकार किंगशुक नाग ने अपनी ताजा प्रकाशित पुस्तक `नमो स्टोरी : ए पॉलिटिकल लाइफ` में लिखा है - ``मोदी और उनके आर्थिक कौशल के चारों ओर फैले हुए मिथक का आधार आधा सच और आधा केवल अतिशयोक्ति है। मोदी के बढ़ाचढ़ाकर पेश किए वाइब्रेंट गुजरात प्रदर्शनउदाहरण के लिए ये प्रभाव डालते हैं कि विदेशी निवेश को आकर्षित करने में गुजरात अन्य राज्यों से आगे है। किन्तु सत्य यह है कि पिछले बारह वर्षों में भारत में गुजरात केवल पांच प्रतिशत विदेशी निवेश ही ला पाया है। महाराष्ट्र और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली उससे बहुत आगे हैं।``

पिछले दिनों नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में फिक्की लेडिज ऑर्गेनाइजेशन में महिलाओं की प्रगति और विकास को लेकर बड़ी-बड़ी बातें कीं। इस परिप्रेक्ष्य में उनके गुजरात की वास्तविक तस्वीर क्या है उसको देखना मजेदार है। गुजरात में 0 से 6 साल तक के आयु वर्ग में लिंग अनुपात की स्थिति काफी चिंताजनक है। यहां एक हजार बच्चों के मुकाबले 886 बच्चियों का अनुपात है। यह आंकड़ा 2011 की जनगणना का है। वर्ष 2001 की जनगणना में यह आंकड़ा 883 का था। जबकि बिहारआंध्र प्रदेशकेरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की स्थिति ज्यादा बेहतर है। पुरुष और महिला लिंग अनुपात में भी स्थिति बदतर है। राज्य में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रोंदोनों को मिलाकर यह अनुपात एक हजार पुरुषों पर 918 महिलाओं का है। जबकि 2001 में यह आकंड़ा 921 था। यानी यहां महिलाओं की संख्या कम हो रही है। 

अहमदाबाद वुमन एक्शन ग्रुप (एडब्ल्यूएजी) की संस्थापक अध्यक्ष डॉ. इला पाठक ने मोदी के संबोधन के बाद फिक्की की मैडमों को एक पत्र लिखा। जिसमें उन्होंने मोदी के झूठ को उजागर किया है। उन्होंने लिखा कि वर्ष 2011 में यह खबर सुनी गई थी कि सरकार ने 101 सोनोग्राफी क्लिनिक बंद किए हैं। उसके बाद 2012 में कुछ के ही बंद होने की बात सामने आई। वर्ष 2013 में अभी तक पीसीपीएनडीटी कानून के तहत कोई कार्रवाई नहीं की गई है। विवाहित महिलाओं के स्वास्थ्य के मामले में सर्वे के अनुसार 15 से 49 आयु वर्ग की 55.5 प्रतिशत महिलाएं रक्ताल्पता पीड़ित (अनीमिक) हैं। इसी आयु वर्ग की 60.8 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं कुपोषित और अनीमिक हैं। डॉ. इला पाठक ने पत्र में लिखा है कि वर्ष 1998-99 में छह माह से 35 माह आयु वर्ग के 74.5 फीसदी दलित और आदिवासी बच्चे कुपोषित थे। जबकि वर्ष 2005-2006 में यह संख्या बढ़कर 79.8 प्रतिशत हो गई। यही नहीं49.2 प्रतिशत बच्चों का सामान्य कद विकसित नहीं हुआ।

इसके अलावा 41 प्रतिशत बच्चों की वजन उतना नहीं था जितना उनकी आयु वर्ग के बच्चों का होना चाहिए। पिछले चुनाव के दौरान यह मुद्दा उठाया गया था और जिस मंत्री को इस विभाग की जिम्मेदारी थी उन्होंने यह सत्य जानने के लिए बहुत तत्परता दिखाई कि आखिर खाने के तैयार पैकेट गए कहां !  यह है गुजरात की शासन प्रणाली! राज्य में मातृ और शिशु मृत्युदर में कोई गिरावट नहीं आ रही है ;  मांएं और बच्चे गुजरात में लगातार मर रहे हैं या बहुत ही कमजोरी से ग्रस्त अवस्था में जी रहे हैं। हर समय महिलाओं को मां कहकर संबोधित करना मात्र दिखावा है। हमने देखा है कि कैसे कुपोषित युवा मांएं इलाज के अभाव में मृत्यु को प्राप्त होती हैं क्योंकि किसी भी सरकारी डिस्पेंसरीब्लॉक या जिला अस्पताल में कोई स्त्री रोग विशेषज्ञ नियुक्त नहीं किया गया हैयह सुविधा केवल बड़े शहरी अस्पतालों में ही उपलब्ध है।



मोदी ने भले ही फिक्की के मंच से कारोबार जगत की महिलाओं को संबोधित करके अपनी छवि चमकाई होलेकिन इस सवाल का उन्होंने आज तक जवाब नहीं दिया ( न ही फिक्की की ओहदेदार लेडीज उनसे यह पूछने की जुर्रत कर पाईं) कि जशोदाबेन चिमनलाल के साथ अपनी शादी को उन्होंने इतना गुप्त क्यों रखा ? इस विवाह को उन्होंने स्वीकार क्यों नहीं किया? अगर उन्होंने संन्यास लिया है तो फिर अपने परिवार से क्यों संबंध रखा है? अपनी मां के साथ उनके चित्र यदाकदा ही सही प्रकाशित तो होते ही रहते हैं। वह और उनके प्रशंसक भूल जाते हैं कि उन्होंने (मोदी) अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए एक ऐसी स्त्री को छोड़ा है जो अपने संस्कारों और मानसिकता में धर्मसंस्कृति और परंपरा के अनुसार भारतीय नारी रही है। उसने न कोई विवाह किया और न ही उसकी कोई संतान है। क्या किसी पत्नी के साथ इससे बड़ी निर्ममता बरती जा सकती है?  जशोदा बेन के साथ कानूनी तौर पर उनका तलाक भी नहीं हुआ और वह एक प्राथमिक स्कूल में मास्टरी कर अपनी जिंदगी काट रही हैं। तो यह है मोदी का महिलाओं के प्रति सम्मान।



मानव विकास सूचकांक



मानव विकास सूचकांक के आंकड़ों के मुताबिक गुजरात में 65.3 प्रतिशत स्कूलों में ही लड़कियों के लिए शौचालय की सुविधा है। इस मामले में हरियाणाकेरलपंजाबराजस्थान और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्य गुजरात से कहीं आगे हैं। शिक्षा को लेकर सार्वजनिक खर्च में भी गुजरात ( 1.7 प्रतिशत) बिहार (4.7 प्रतिशत)केरल(2.6 प्रतिशत)असम (4.1 प्रतिशत) और तमिलनाडु (10.2 प्रतिशत) सहित कई अन्य राज्यों से काफी पीछे है। खर्च का यह आंकड़ा कैग (वर्ष 2009) से लिया गया है। मजेदार बात यह है जिस गुजरात की तरक्की का इतना ढिंढोरा पीटा जा रहा है और मध्यवर्ग मोदी फोबिया से ग्रस्त हैवहां ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल ( जो एक मामले में आज आधुनिकता का पर्याय हो चुका है) के कवरेज के मामले में यह राज्य बिहारझारखंडआंध्र प्रदेशहरियाणाकेरलतमिलनाडु और दिल्ली से बहुत पीछे है। वहीं गुजरात में शहरी क्षेत्रों में महिलाओं की साक्षरता दर 79.5 प्रतिशत है। जबकि गोवा (80 प्रतिशत)असम (90 प्रतिशत)केरल (94 प्रतिशत)हिमाचल (86 प्रतिशत)मेघालय (94 प्रतिशत)मिजोरम (98 प्रतिशत)नगालैंड ( 95 प्रतिशत) और त्रिपुरा (88 प्रतिशत) सहित कई राज्य इस मामले में आगे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं की साक्षरता के मामले में गुजरात का रिकॉर्ड 56 प्रतिशत है। वहींगोवा (73 प्रतिशत)दिल्ली (72 प्रतिशत)असम(76 प्रतिशत) केरल (91.1 प्रतिशत)महाराष्ट्र (65.8 प्रतिशत)पंजाब ( 65.5 प्रतिशत) और पश्चिम बंगाल (64.7 फीसदी) के रिकॉर्ड के साथ गुजरात से कहीं आगे हैं। पेयजल और सड़कों के निर्माण के मामले में भी गुजरात देश के बहुत सारे राज्यों से पीछे है।



ये कुछ उदाहरण हैं जो गुजरात के महान विकास की सचाई को सामने लाते हैं। गुजरात का मीडिया आलोचनात्मक सवालों को उठाकर मोदी को नाराज करने का जोखिम मोल नहीं लेना चाहता है। वरिष्ठ पत्रकार निलांजन मुखोपाध्याय ने इसी साल प्रकाशित अपनी पुस्तक ` नरेंद्र मोदी : द मैन, द टाइम्स` में एक रिपोर्टर के हवाले से लिखा है- यदि आप उनके खिलाफ आलोचनात्मक रिपोर्टें लिखते हैं तो मोदी बदला लेने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। सूचना की पंक्तियों को रोका जाता हैअब चुनाव आपका है कि आप आलोचनात्मक रिपोर्टिंग बंद कर दें या फिर परेशान करने वाले बिंदुओं को इधर-उधर छूते हुए निकल जाएंलेकिन ऐसा कुछ न लिखें जो बहुत अधिक नुकसान पहुंचाता हो।`



मोदी मजमा लगाने वाले सतही वक्ता से ज्यादा कुछ नहीं हैं। यह बात उनके फिक्की के ही नहीं बल्कि दिल्ली के श्रीराम कॉलेज में दिए भाषण से भी सिद्ध होती है। उनमें न तो विचार हैन कोई स्वप्न कि वह भारत को कहां ले जाना चाहते हैं। वह हंसाते हैंगुदगुदाते हैं पर वह आप को वैचारिक स्तर पर आलोड़ित नहीं करते। समृद्धि की हड़बड़ाती उम्मीद में मध्यवर्ग ने जो नेता चुना है वह भी उनके काम नहीं आने वाला है क्योंकि वह खोखला है।  

(नोट – यह लेख 'समयांतर' पत्रिका के मई2013 अंक में भी प्रकाशित हुआ है।)
 .............................................................

 कृष्ण सिंह पत्रकार हैं. लंबे समय तक अखबारों में काम. 
 अभी पत्रकारिता के अध्यापन में.
इनसे संपर्क का पता krishansingh1507@gmail.com है.


Viewing all articles
Browse latest Browse all 422

Trending Articles