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क्राइम हटे तो क्रिकेट बचे!

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सत्येंद्र रंजन
-सत्येंद्र रंजन

"...चुनौती साफ है। आईपीएल जिस रूप में अब तक चला है, उस रूप में वह जारी नहीं रह सकता। या कहा जाए कि उस रूप में उसके चलने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। मगर असली सवाल यही है कि ये कैसे होगा?..."

इंडियनप्रीमियर लीग (आईपीएल) को कभी एक अनूठा आविष्कार माना गया था। क्रिकेट की बाइबिल कही जानी पत्रिका विज्डन ने अपने 150 वर्ष पूरे होने पर इस अवधि के उन दस अवसरों का चयन किया जिन्होंने क्रिकेट को पूरी तरह बदल दिया, तो उसमें आईपीएल की शुरुआत को भी शामिल किया गया। लेकिन उसके छठे संस्करण में हुए खुलासों ने अगर आईपीएल के सामने अस्तित्व का प्रश्न खड़ा नहीं किया है, तो कम से कम- अगर बाजार की भाषा में कहें तो- एक हॉट प्रोपर्टी के रूप में उसके भविष्य को अवश्य अनिश्चित बना दिया है। इसकी धूमिल छवि की बेहतर अभिव्यक्ति एक ट्विटर संदेश में हुई, जिसमें कहा गया कि क्या ये उचित नहीं होगा कि अगले सीजन से मीडिया घराने आईपीएल को कवर करने के लिए खेल संवाददाता के बजाय क्राइम रिपोर्टर को भेजें, क्योंकि इस टूर्नामेंट में जो कुछ हो रहा है उसकी खबर देने में क्रिकेट संवाददाता खुद को अक्षम पा सकते हैं!

आईपीएलके इस हाल तक पहुंचने के पीछे घटनाओं का पूरा सिलसिला है। ललिता मोदी प्रकरण में टीमों के गठन से लेकर वेबकास्टिंग अधिकार बेचने में गड़बड़ी और पक्षपात, कोच्चि और पुणे की टीम फ्रेंचाइजी से जुड़े विवाद, चेन्नई की टीम के साथ भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष एन श्रीनिवासन के कॉन्फिलिक्ट ऑफ इंटेरेस्ट का मुद्दा, पिछले साल एक टीवी न्यूज चैनल के स्टिंग ऑपरेशन से खिलाड़ियों के स्पॉट फिक्सिंग के लिए तैयार रहने का खुलासा, इसी स्टिंग ऑपरेशन से इस आरोप का सामने आना कि फ्रेंचाइजी टीमें खिलाड़ियों को तय फीस से ज्यादा रकम का भुगतान काले धन से करती हैं- इस सिलसिले की कड़ियां हैं। इस वर्ष 16 मई को राजस्थान रॉयल्स टीम के तीन खिलाड़ियों- शांताकुमारन श्रीशांत, अजित चंडिला और अंकित चव्हाण- की गिरफ्तारी के साथ फिक्सिंग और टूर्नामेंट पर सट्टेबाजों के दबदबे की गहराती धारणाओं की जैसे पुष्टि हो गई। श्रीनिवासन के दामाद गुरुनाथ मयिप्पन की गिरफ्तारी ने ऐसे आरोपों को आधार दे दिया कि आईपीएल संगठित सट्टेबाजी का अड्डा बन गई है, जिसमें दोषी सिर्फ कुछ खिलाड़ी ही नहीं, बल्कि टीमों के मालिक भी हैं। मयिप्पन चेन्नई सुपरकिंग्स के प्रिंसिपल और सीईओ के रूप में जाने जाते थे, लेकिन उनकी गिरफ्तारी के बाद इस टीम की मालिक कंपनी इंडिया सिमेंट्स ने दावा किया कि वे टीम मैनेजमेंट के सिर्फ एक मानद सदस्य हैं।   

भारतमें क्रिकेट का जो महत्त्व है, उसे देखते हुए इसमें कोई हैरत नहीं है कि इस घटनाक्रम से देश में हलचल मची हुई है। श्रीनिवासन इसे अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए मीडिया की होड़ का परिणाम बता कर सिर्फ खुद को धोखे में रख सकते हैं। रविवार को आईपीएल फाइनल मैच के लिए कोलकाता के इडेन गार्डेन स्टेडियम की सारी टिकटें बिक जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि देश के लोगों ने बीसीसीआई और आईपीएल को कठघरे में खड़ा करने की कोशिशों को स्वीकार नहीं किया है। हालांकि उसके अगले दिन आई इस खबर से उन्हें जरूर निराशा हुई होगी कि स्पॉट फिक्सिंग के खुलासे का आईपीएल मैचों की टीआरपी पर साफ फर्क पड़ा। 18 मई तक के उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक 16 को तीन खिलाड़ियों की गिरफ्तारी के बाद हुए रात वाले चार मैचों का औसत टीवीआर (टेलीविजन रेटिंग) 3.13 रहा, जबकि उसके पहले तमाम मैचों का औसत अखिल भारतीय टीवीआर 3.65 रहा था। इसी तरह हिंदी भाषी बाजार में जहां पहले औसत टीवीआर 3.72 था, रात वाले अगले चार मैचों का टीवीआर 3.2 पर आ गया।

ब्रिटिशपत्रिका द इकॉनोमिस्ट ने अपने ताजा अंक में भारत में क्रिकेट के कुप्रबंधन पर लिखे संपादकीय में ध्यान दिलाया है कि क्रिकेट भारत में एक मजहब की तरह है और इस विशाल एवं विभिन्नतापूर्ण देश को कोई और चीज उस तरह एकजुट नहीं करती, जैसा ये खेल करता है। फिर सट्टेबाजी और फिक्सिंग के आरोपों में हुई गिरफ्तारियों का जिक्र करते हुए पत्रिका ने कहा है- अगर ये (जांचकर्ताओं के आरोप) सही हैंतो उसका मतलब है कि साल 2000 में तिकड़मबाजोंसट्टेबाजों और लालची क्रिकेटरों के आपसी संबंधों का जो खुलासा हुआवह आज भी जारी है। इससे किसी को आश्चर्य नहीं होगा क्योंकि सरकार और क्रिकेट के संचालकों ने इस गिरोह को खत्म करने के लिए लगभग कुछ नहीं किया है। अंत में अपनी खास शैली सलाह देते हुए संपादकीय में कहा गया है- कानून के शासन की रक्षा और भ्रष्टाचार से संघर्ष की भारत की क्षमता में अंतरराष्ट्रीय भरोसा इस समय इतिहास के सबसे निचले स्तर पर है। देश की प्रतिष्ठा में सुधार के लिए शासकों को शुरुआत को अपने देश के सबसे प्रिय खेल को स्वच्छ बनाते हुए करनी चाहिए।

चुनौती साफ है। आईपीएल जिस रूप में अब तक चला है, उस रूप में वह जारी नहीं रह सकता। या कहा जाए कि उस रूप में उसके चलने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। मगर असली सवाल यही है कि ये कैसे होगा? अभी आईपीएल बीसीसीआई की संपत्ति है। आईपीएल की संचालन परिषद बीसीसीआई को रिपोर्ट करती है। इस परिषद और बीसीसीआई के पदाधिकारियों के अधिकार एवं कार्य क्षेत्र में इतना गड्ड्मड्ड है कि उनके बीच जवाबदेही की सीमारेखा या दायरे को देख या समझ पाना मुश्किल है। खुद बीसीसीआई की कार्यप्रणाली इतनी अपारदर्शी है कि उसका कोई सार्वजनिक उत्तरदायित्व तय करना कठिन है। क्या खेल संस्था की स्वायत्तता के नाम पर किसी ऐसी संस्था को इस तरह नियंत्रणहीन छोड़ा जा सकता है? क्या क्रिकेट में भ्रष्टाचार और आईपीएल में घुस गई आपराधिक गतिविधियां इसी नियंत्रणहीनता का परिणाम नहीं हैं? इस संदर्भ में द इकनोमिस्ट की यह टिप्पणी उल्लेखनीय है- “(भारतीय) क्रिकेट बोर्ड का अधिक सख्ती से विनियमन होना चाहिए, क्योंकि अब यह एक कारोबारी संस्था हैस्वयंसेवी संस्था नहीं- जैसा वो दावा करता है। उसे ये समझना चाहिए कि भ्रष्टाचार को दूर करने में वह जितनी देर करेगाउस पर उतना सख्त नियंत्रण कसेगा। उसे कथित धोखेबाजों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए शुरुआत करनी चाहिए- पहले की तरह नहीं जब शोर थम जाने पर धोखाधड़ी करने वालों को बरी कर दिया गया था।

क्या बोर्ड ऐसा करेगा? और क्या सरकार एवं संसद बोर्ड के विनियमन की दिशा में कदम उठाएंगी? अगर भारतीय क्रिकेट और आईपीएल को सचमुच स्वच्छ बनाना है, तो उसका यही एक रास्ता है। यहां ये बात हमें जरूर ध्यान में रखनी चाहिए कि समस्या टी-20 क्रिकेट नहीं है, ना ही अपने-आप में आईपीएल कोई बुरा प्रयोग है। ये दोनों नई सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थितियों के साथ क्रिकेट के विकासक्रम का परिणाम हैं। इसी तरह मुद्दा यह नहीं है कि श्रीनिवासन रहें या जाएं। सवाल यह है कि इस तरह के वैधानिक प्रावधान कैसे किए जाएं जिससे बीसीसीआई का जो भी अध्यक्ष या पदाधिकारी हों उनकी सामाजिक जिम्मेदारी तय हो, बीसीसीआई की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता आए, कॉन्फिलिक्ट ऑफ इंटेरेस्ट की गुंजाइश ना रहे, आईपीएल की टीमों में निवेश का ढांचा सार्वजनिक जानकारी में हो, टीमों की आमदनी और खर्च का ब्योरा सबको पता रहे और एक समयसीमा के बाद इन टीमों को उतना ही खर्च करने की अनुमति हो जितना वे बाजार से कमा सकें। दूसरी प्रमुख चुनौती काले धन के प्रभाव से क्रिकेट को मुक्त करने की है। ऐसा हुआ तो क्रिकेट की भावना को अवश्य बचाया जा सकता है, जो अभी ग्लैमर, स्टेटस सिंबल, धन और पतनशील पार्टी संस्कृति के बोझ तले दब गई है।
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सत्येंद्र रंजन वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं. 
satyendra.ranjan@gmail.com पर इनसे संपर्क किया जा सकता है.


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