भगत सिंह की नजर में नेहरु और बोस
-भगत सिंहआज़ादी की लड़ाई के दौरान भगत सिंह महज एक रूमानी नौज़वान नहीं थे. जो 'हँसते हँसते सूली पर चढ़ गया'. वे तत्कालीन देश-दुनिया की राजनीतिक गतिविधियों से गहरे से वाकिफ़ एक राजनीतिक कार्यकर्ता थे....
View Articleपुराने नेताओं की नई पार्टी का ख़याल
सत्येंद्र रंजनसत्येंद्र रंजन"...इन नेताओं में (कथित रूप से) बनी इस सहमति का भी जिक्र हुआ कि ‘मंडलवादी राजनीति’ की सीमाएं साफ हो गई हैं, अतः प्रस्तावित नई पार्टी जन-समर्थन जुटाने के लिए दूसरे मुद्दों की...
View Articleआइआइएमसी का भ्रष्टाचार और भटनागर का तबादला
-praxis प्रतिनिधि"...रजिस्ट्रार का कार्यभार सम्हाल रहे ओएसडी का पद व्यवहारिक रूप से आइआइएमसी में प्रशासनिक दृष्टि से सबसे प्रभावशाली है. हैरानी की बात है कि भटनागर पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में...
View Articleस्टूडेंट-वर्कर्स काउंसिल की दिशा में...(पहली क़िस्त)
लिंगदोह कमिटी की सिफारिशों के लागू होने के बाद जिस तरह पूरे देशभर में छात्र राजनीति की कमर टूट गई है, इससे पता चलता है कि यह सिफारिशें साकार हुई हैं. यह साकार इस संदर्भ में नहीं हुई हैं कि इसने छात्र...
View Articleस्टूडेंट-वर्कर्स काउंसिल की दिशा में...(पहली क़िस्त)
लिंगदोह कमिटी की सिफारिशों के लागू होने के बाद जिस तरह पूरे देशभर में छात्र राजनीति की कमर टूट गई है, इससे पता चलता है कि यह सिफारिशें साकार हुई हैं. यह साकार इस संदर्भ में नहीं हुई हैं कि इसने छात्र...
View Articleतराई के बांग्ला विस्थापितों के प्रश्न
भास्कर उप्रेती -भास्कर उप्रेती"...असल समस्या 71 के बाद आए बंगालियों की रही. पहला उन्हें यहाँ आने के बाद किसी तरह की (रजिस्टर्ड या लीज) जमीन नहीं मिली. दूसरा उन्हें भारत की नागरिकता भी नहीं मिली....
View Articleविवेक पर हमले का दौर
-सत्येंद्र रंजन इस दौर में वैज्ञानिक सोच की बात करना एक दुस्साहस महसूस हो सकता है। जब देश के प्रधानमंत्री डॉक्टरों के सामने कथित भारतीय अतीत का महिमामंडन यह करते हुए यह कहते हों कि प्राचीन काल में...
View Articleनेहरू, विज्ञान और मोदी युग
-आशुतोष उपाध्याय"...आज नेहरू को खारिज करने की मुहिम चल रही है. चालू मीडिया विमर्श लगभग समवेत स्वर में उन्हें गांधी और पटेल से जुदाकर देश की मौजूदा तमाम बीमारियों का जनक बता रहे हैं. इस आश्वासन के साथ...
View Articleजो लुट चुके हैं वे किसान थे
-राजीव पांडे"...जिन चार-पांच गांवों में गया उनके बारे में संक्षिप्त में कहूं तो यह कहूंगा, कुछ लुट चुके हैं। कुछ लुट रहे हैं और कुछ लुटने वाले हैं। जो लुट चुके हैं वे कल किसान थे आज मजदूर हैं। जो लुटने...
View Articleकिसकी घर वापसी?
सुनील कुमार-सुनील कुमारपिछले दिनों आगरा में हिन्दूवादी संगठनों ने जो 'घर वापसी'का कार्यक्रम किया इस पर खूब बबाल मचा और कई सवाल भी उठे. प्रैक्सिस के सहयोगी सुनील कुमार दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में उसी...
View Articleबट, 'पीके'इज नाट भेस्ट ऑफ़ टाइम
-उमेश पंत हाल ही में आई फिल्म ऐक्शन-जैक्शन या फिर सिंघम सरीखी फिल्मों से तुलना करेंगे तो फिल्म निसंदेह अलग दर्जे़ की है। फिल्म जो सन्देश देती है वो पेशावर सरीखी घटनाओं के बाद तो एकदम ज़रुरी लगने लगता...
View Articleमोदी लहर पर विराम
सत्येंद्र रंजन-सत्येंद्र रंजन"...संकेत यह है कि मोदी सुनामी से उबर कर अब भारतीय राजनीति फिर से अपने समान धरातल पर लौट रही है। लोकसभा चुनाव में जो जनादेश आया, उसे गढ़ने में “मोदी मैजिक” और अमित शाह के...
View Articleईसाईयों के बिना क्रिसमस का मौसम
-संजय श्रीवास्तव'द हिन्दू' से आशुतोष उपाध्याय द्वारा साभार अनूदित"...भारत में क्रिसमस की लोकप्रियता से धार्मिक भिन्नताओं का आदर करने की वृत्ति को बढ़ावा नहीं मिला. बल्कि यहां कुछ उल्टा ही नज़ारा दिखाई...
View Articleसुसाइड नोट: कागजों में दफन किसानों की मौत
भारत --मेरे सम्मान का सबसे महान शब्दजहाँ कहीं भी प्रयोग किया जाएबाक़ी सभी शब्द अर्थहीन हो जाते हैइस शब्द के अर्थखेतों के उन बेटों में हैजो आज भी वृक्षों की परछाइओं सेवक़्त मापते है उनके पास, सिवाय पेट...
View Articleदलितों, मुसलमानों के लिए उच्च शिक्षा का सवाल
-एस. वी. नरायणनएक लोकतान्त्रिक समाज से धर्म, जाति और लिंग आधारित सामाजिक विभेदों से निपटने के जिम्मेदार तरीके खोज निकालने की अपेक्षा की जाती है। लेकिन, कोई समाज गैर-बराबरी और भेदभाव से निपटने में लम्बे...
View Article'दलित साहित्य : एक अन्तर्यात्रा'का लोकार्पण
प्रिय मित्रो,नवारुण प्रकाशन की पहली किताब 'दलित साहित्य : एक अन्तर्यात्रा' ( लेखक : बजरंग बिहारी तिवारी) के लोकार्पण के मौके पर आप सादर आमंत्रित है.इस मौके पर आयोजित चर्चा में प्रो अब्दुल बिस्मिल्लाह,...
View Articleपाकिस्तान आंदोलन पर नई रोशनी
-Satyendra Ranjanक्या 1947 में भारत के बंटवारे को रोका जा सकता था? अथवा, इसके लिए प्राथमिक रूप से कौन दोषी था? ये ऐसे सवाल हैं, जिन परपिछले 68 वर्षों में अनगिनत समझ, नजरिया, विचार और राय पेश किए गए...
View Articleवीरेनदा का जाना और एक अमानवीय कविता की मुक्ति
वीरेन डंगवाल यानी हमारी पीढी में सबके लिए वीरेनदा नहीं रहे। आज सुबह वे बरेली में गुज़र गए। शाम तक वहीं अंत्येष्टि हो जाएगी। हम उसमें नहीं होंगे। अभी हाल में उनके ऊपर जन संस्कृति मंच ने दिल्ली के...
View Articleनेपाल में हस्तक्षेप बंद करो
भारत के 100 से अधिक प्रमुख लोगों ने एक वक्तव्य जारी कर नेपाल के आंतरिक मामलों में भारत सरकार के हस्तक्षेप का विरोध किया है।वक्तव्य में इस बात पर प्रसन्नता जाहिर की गयी है कि 20 सितंबर को नेपाल के नये...
View Articleजनवाणी उत्तराखंड में पेनडाउन स्ट्राइक
-Sanjay Rawat प्रबंधन की उपेक्षा से आहत कर्मचारियों ने उठाया कदमदेहरादून।उत्तराखंड में जनसरोकारों की पत्रकारिता का पर्याय बना जनवाणी अखबार प्रबंधन की मनमानी की भेंट चढ़ गया है। प्रबंधन के अनैतिक दबाव...
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