‘मैं हूं या मैं नहीं हूं’ के सवाल से जूझता ‘हैदर’
-उमेश पंत हैदर कश्मीर के भूगोल को अपनी अस्मिता का सवाल बनाने की जगह कश्मीरियों के मनोविज्ञान को अपने कथानक के केन्द्र में खड़ा करती है और इसलिये उसकी यही संवेदनशीलता उसे बाकी फिल्मों से अलग पंक्ति में...
View Articleहैदर : जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले
-उमाशंकर सिंह "...अब लोग कलाकार को पक्षकार नहीं मानते, चीजों के प्रस्तोता भर में रिड्यूस कर देते हैं। विशाल याद दिलाते हैं एक फिल्मकार का अपना पक्ष होना जरूरी है। फिल्म के अलग-अलग फ्रेम फिल्मकार के...
View Article'सफाई'और स्वच्छ भारत अभियान
सुनील कुमार-सुनील कुमार"…असल में सफाई करने वालों के साथ हमारा बर्ताव क्या रहा है? सफाई कर्मियों को नियमित क्यों नहीं किया जाता? उनके कार्य स्थलों को श्रम कानून के दायरे में क्यों नहीं लाया जाता? क्या...
View Articleआंकड़ों की बाजीगरी और स्कूलों में लड़कियों के शौचालय
–संजय कुमार बलौदिया"...सवाल ये है कि जब 2012-13 में यह 31 प्रतिशत था, तो 2013-14 में घटकर 17.30 प्रतिशत कैसे हो सकता है। जबकि 2010 से 2012 के बीच सिर्फ 10 फीसदी की गिरावट आई थी। तब महज एक साल में 13.50...
View Articleफारवर्ड प्रेस पर छापा : अभिव्यक्ति पर हमला
फॉरवर्ड प्रेस के विववादित अंक का मुखपृष्ठ प्रेस विज्ञप्तिलखनऊ, 10 अक्टूबर, 2014 जर्नलिस्टस् यूनियन फाॅर सिविल सोसाईटी (जेयूसीएस) ने फॅारवर्ड प्रेस के दिल्ली कार्यालय पर दिल्ली की बसंतनगर थाना पुलिस...
View Articleतेल में गुंथी विश्व राजनीति और वर्चस्व की अमेरीकी तिकड़म
-कुंदन"...70 के दशक में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने सोने को डॉलर का आधार मानने से इंकार कर दिया। इसके साथ उन्होंने सऊदी अरब को अपना तेल व्यापार डॉलर में चलाने के लिए राजी कर लिया बदले में वहां...
View Articleअसहमति और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता
रोहित धनकर का यह आलेख, पिछले दिनों फॉरवर्ड प्रेस नाम की एक पत्रिका के दफ्तर में पुलिस के छापे, उसके कर्मियों की गिरफ्तारी, और पत्रिका के विशेषांक को जब्त कर लिए जाने से उपजे कई सवालों की परिधियों को...
View Articleऐसी ‘राजजात’ से तो तौबा.......
सहयात्रियों के साथ लेखक-केशव भट्ट "...वर्ष 2014 की राजजात यात्रा ने प्रकृति को मीठे कम खट्टे अनुभव ही ज्यादा दिए। वाण से सुतोल तक लगभग 70 किमी के हिमालयी भू-भाग को आस्था के नाम पर लोगों ने जो घाव दिए...
View Article‘मर्दाना नीतियों’ के निहितार्थ
सत्येंद्र रंजन-सत्येंद्र रंजन"...यह तो सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान और चीन- दोनों सीमाओं पर तनाव बढ़ेगा। गोली के बदले मोर्टार दागने की नीति से पाकिस्तान का सैन्य-खुफिया तंत्र विचलित होगा,...
View Articleमंगतू की आपदा,देवाधिदेव का सैर-सपाटा
इन्द्रेश मैखुरी-इन्द्रेश मैखुरी"...अब वो देवता ही क्या जिनके चेहरे पर ऐसी छोटी–मोटी मानवीय परेशानियों से शिकन आ जाए. मंगतू से कहा हमारे रहते तू चिंतित क्यूँ होता है, हमसे बड़ी कौन आफत है आखिर! तो साधो,...
View Articleनागपुर सेन्ट्रल जेल से हेम मिश्रा का पत्र
न्याय अपने आप में एक जटिल विषय है। इतिहास में न्याय को हमेशा सत्ताशाली वर्गों ने अपने अनुसार परिभाषित किया है। आज देश-भर की जेलों में हजारों लोग फर्जी मुकदमों और बिना ट्रायल के बंद हैं। इनमें कई...
View Articleअवैध धनः सरकार से कुछ सवाल
अवैध धन के मुद्दे पर एनडीए सरकार इसलिए घिरी है, क्योंकि उसने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा कि वह उन नामों को नहीं बता सकती, जिनके पास विदेशी बैंकों में खाता होने की जानकारी उसके पास आई है। इसके...
View Articleसमाज में निहित है ‘हेट स्पीच’
-राजीव यादवचुनाव आए और गए पर सवाल उन विवादास्पद सवालों का है जिनसे ‘हेट स्पीच’ के नाम से हम परिचित होते हैं। हेट स्पीच से हमारा वास्ता सिर्फ चुनावों में ही नहीं होता पर यह जरुर है कि चुनावों के दरम्यान...
View Article'कड़वी'दवाओं की और कितनी ख़ुराक?
विनय सुल्तान-विनय सुल्तान"...इस मामले को समझने के लिए हमें फ़ोर्ब्स पत्रिका के 16 सितम्बर को छपे लेख ‘India's War On Intellectual Property Rights May Bring With It A Body Count’ के तर्कों को समझना...
View Articleकुंठाओं के बंद गलियारे में : The piano teacher
-उमेश पंतद पियानो टीचर को देखना उस मनोवैज्ञानिक जुगुप्सा से भरी दुनिया से रुबरु होना है जहां आप अपनी इच्छा से जाना पसंद नहीं करते और जब लौटते हैं तो एक अजीब सी वितृष्णा के साथ लौटते हैं। उस पूरी यात्रा...
View Article‘कविता: 16 मई के बाद’ का दूसरा आयोजन लखनऊ में
16 मई के बाद केन्द्र में अच्छे दिनों का वादा कर आई नई सरकार ने जिस तरह से सांप्रदायिकता और काॅरपोरेट लूट को संस्थाबद्ध करके पूरे देश में अपने पक्ष में जनमत बनाने की आक्रामक कोशिश शुरु कर दी है उसके...
View Articleबवाना में साम्प्रदायिक ताकतों की हार
-सुनील कुमारजे.जे. कॉलोनी वालों ने अपनी एकता के बल पर दंगाईयों के मुंह पर एक तमाचा जड़ा और अपने को सभ्य कहलाने वाले सामाज को जता दिया कि बस्ती में रहने वाले मेहनतकश कौम गंदी नहीं होती है। गंदे हैं सफेद...
View Articleमिथक, विज्ञान, समाज और मोदी
-विक्रम सोनी और रोमिला थापरअनुवाद - आशुतोष उपाध्यायपिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक 'निजी'अस्पताल के उद्घाटन कार्यक्रम में अपनी बुनियादी राजनीतिक लाइन के आधार पर ही प्राचीन भारत में विज्ञान...
View Articleविकास का गुजरात मॉडल और हाशिये के लोग
सत्येंद्र रंजन-सत्येंद्र रंजनइन तबकों को शिकायत थी राइट्स बेस्ड एप्रोच के जरिए राजकोष का धन गरीबों पर लुटाया जा रहा है और उन्हें “निकम्मा” बनाया जा रहा है। मनरेगा जैसे कानूनों से ग्रामीण क्षेत्रों में...
View Articleबाल मन को पहचानिए
-अंजुम शर्मा बाल दिवस विशेषअंजुम शर्मा "…उनकी सुन्दरता हम अपने दृष्टिकोण से देखना चाहते है. जबकि हक़ीक़त में बच्चों की सुन्दरता उनकी सरलता में निहित है. उनकी कल्पनाशीलता का कोई जवाब नहीं. एक बार उनके साथ...
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