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आइआइएमसी का भ्रष्टाचार और भटनागर का तबादला

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-praxis प्रतिनिधि

"...रजिस्ट्रार का कार्यभार सम्हाल रहे ओएसडी का पद व्यवहारिक रूप से आइआइएमसी में प्रशासनिक दृष्टि से सबसे प्रभावशाली है. हैरानी की बात है कि भटनागर पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में पहले से ही भ्रष्टाचार के मामलों की जांच चल रही थी, फिर भी उन्हें इतने महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त किया गया..."

'दिल्ली स्थित आइआइएमसी का मुख्य भवन'
कुछ संस्थानों की अपने गौरवशाली अतीत के चलते ऐसी ब्रांडिंग हो जाती है कि निर्विवाद रूप से सर्वोत्तम बने रहते हैं, चाहे अंदरखाने कुछ भी चल रहा हो. भारतीय जनसंचार संस्थान यानी आइआइएमसी के भी यही हाल हैं. पत्रकारिता एवं जनसंचार के लिए सर्वोत्तम माने जाने वाले इस संस्थान के अंदरूनी हालात बड़े खस्ता हैं. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का यह ‘स्वायत्त’ संस्थान, स्थाई और पढ़े-लिखे स्टाफ की कमी से तो जूझ ही रहा है साथ ही इसके प्रबंधन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगते रहे हैं. तथाकथित ‘स्वायत्त’, इस संस्थान में प्रशासनिक स्तर पर सारी प्रभावशाली नियुक्तियां राजनीतिक रूप से होती हैं. लेकिन इन सब पर यहीं से हर साल निकलने वाले सैकड़ों पत्रकार भी चुप्पी साधे रहते हैं. और जनता के पैसे से चलने वाला महत्वपूर्ण संस्थान राजनीतिक हस्तक्षेप और नौकरशाही की चपेट में अपनी अहमियत खोता जा रहा है. 
  
ताज़ा मामला आइआइएमसी के ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (ओएसडी) जयदीप भटनागर के तबादले का है. जयदीप भटनागर भारतीय सूचना सेवा के ग्रुप ‘ए’ अधिकारी हैं. उन्हें जनवरी 2008 में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से तीन साल के लिए आइआइएमसी में ओएसडी बनाकर भेजा गया था. भटनागर की यह नियुक्ति राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते आइआइएमसी के रजिस्ट्रार की नियुक्ति को दरकिनार करते हुई थी. 

जयदीप भटनागर
बीते वर्षों में भटनागर पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे हैं. लेकिन बताया जाता है कि नौकरशाही और कांग्रेस के दुलारे होने की वजह से उन पर कभी कोई कार्रवाई नहीं हो पाई. यही वजह है कि उन्हें आइआइएमसी जैसे देश के महत्वपूर्ण मीडिया संस्थान में रजिस्ट्रार की नियुक्ति को दरकिनार करते हुए पिछले 6 सालों से ओएसडी के पद पर बरकरार रखा गया. कांग्रेस के शासनकाल में संस्थान के कर्मचारियों ने प्रधानमंत्री कार्यालय तक को पत्र लिखकर भटनागर की अनियमितताओं की शिकायत की थी.    

रजिस्ट्रार का कार्यभार सम्हाल रहे ओएसडी का पद व्यवहारिक रूप से आइआइएमसी में प्रशासनिक दृष्टि से सबसे प्रभावशाली है. हैरानी की बात है कि भटनागर पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में पहले से ही भ्रष्टाचार के मामलों की जांच चल रही थी, फिर भी उन्हें इतने महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त किया गया. भटनागर के तीन साल का कार्यकाल पूरा हो जाने के बाद भी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने रजिस्ट्रार की नियुक्ति को लटका कर उनका कार्यकाल फिर से बढ़ा दिया था. और अब जब केंद्र में सरकार बदली है तो साल बाद उनका स्थानान्तरण किया गया है. सूत्रों के मुताबिक़ भटनागर का स्थानान्तरण प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) में किया जा रहा है और वे आइआइएमसी के इस प्रभावशाली और मलाईदार पद को छोड़ने के इच्छुक नहीं हैं. इसे रोकने के लिए वे अपनी भरपूर ताकत लगाए हुए हैं.

साल पहले जब स्थाई रजिस्ट्रार के बजाय भटनागर को ओएसडी बनाकर संस्थान में भेजा गया तो उन्हें संस्थान से जुड़े आर्थिक मामलों के अधिकार नहीं दिए गए थे. ऐसा इसलिए क्योंकि उनके खिलाफ संस्थान में आने से पहले ही आर्थिक अनियमितताओं को लेकर जांच चल रही थी. इसके चलते ही विभागीय पदोन्नति समिति (डीपीसी) ने उनकी वरिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड (एसईजी) की पदोन्नति को भी रोक दिया था. साथ ही इसी वजह से चयन समिति ने आइआइएस ग्रुप ए के एसईजी के एनऍफ़यू (नॉन फंक्शनल अपग्रेडेशन) की ग्रांट के लिए भी उनकी अनुशंसा नहीं की थी.

बहरहाल इस पूरे मामले में दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि सूचना प्रसारण मंत्रालय ने पूरे एशिया में पत्रकारिता और जनसंचार के सबसे अहम माने जाने वाले संस्थान आइआइएमसी को ऐसे व्यक्ति के हवाले कर दिया जिस पर वित्तीय अनियमितता के चलते पहले से ही जांच चल रही थी. यह उदाहरण आइआइएमसी की अकादमिक स्वायत्तता की भी पोल खोलने वाला है.

आइआइएमसी में भटनागर के कार्यकाल के दौरान भी उन पर संस्थानकर्मियों की ओर से ही भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे हैं. प्रैक्सिस के हाथ एक ऐसी चिट्ठी लगी है जिसे संस्थान के किसी कर्मचारी ने प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा था. इस चिट्ठी में आरोप लगाए गए कि भटनागर ने अपने पिछले ६ साल के कार्यकाल के दौरान, खुद को वित्तीय अधिकार न होने के कारण अपने मातहत कार्मचारियों को दबाव में डालकर आईआईएमसी में आर्थिक अनियमितता फैलाई है. 

पत्र में आरोप लगा गये हैं कि वे रिश्वत लेकर संस्थानकर्मियों के परिजनों को प्रूफ रीडर, क्लर्क आदि पदों पर नियुक्त करते रहे हैं. पत्र में इन संस्थानकर्मियों और उनके संबंधियों के नामों का भी जिक्र किया गया है. पत्र में कहा गया है कि इसके लिए रोजगार कार्यालय से आए आवेदन के 2800 नामों की सूची में से संस्थान की ओर से गलत पतों पर कॉल लेटर डाले गए जिससे देशभर के उम्मीदवारों को कॉल लेटर ही नहीं मिल पाया. और मनचाहे लोगों की नियुक्तियां कर दी गईं.    

पत्र में यह भी कहा गया है कि भटनागर आइआइएमसी आते वक़्त अपने साथ अपने विस्वश्त रिटायर्ड सहयोगी श्याम बिहारी लाल को भी साथ लेकर आए. माना जाता है कि लाल को एकाउंटस की जोड़तोड़ में महारत हासिल है. इसके अलावा भी भटनागर ने मनचाहे तरीके से कुछ लोगों की संस्थान में अस्थाई तौर पर नियुक्ति की है, जिनका वेतन भी हर साल मनमाने तौर पर बढ़ाया जाता रहा है.

आइआइएमसी जैसा संस्थान मीडिया के क्षेत्र में महत्वपूर्ण अकादमिक कामों के बजाय नौकरशाही, भ्रष्टाचार और राजनीतिक संरक्षणवाद के बीच झूल रहा है. यही वजह है कि दुनियाभर में मीडिया के अकादमिक अध्ययनों में इस संस्थान का कोई योगदान नहीं बन पाया है और यह सिर्फ कॉरपोरेट मीडिया के लिए सस्ते मजदूर पैदा करने तक सीमित रह गया है. 

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