"...जिन चार-पांच गांवों में गया उनके बारे में संक्षिप्त में कहूं तो यह कहूंगा, कुछ लुट चुके हैं। कुछ लुट रहे हैं और कुछ लुटने वाले हैं। जो लुट चुके हैं वे कल किसान थे आज मजदूर हैं। जो लुटने वाले हैं और लुट रहे हैं वह आज किसान हैं कल मजदूर होंगे।..."
अमृतसर के शेरो गांव के पास बहने वाला व्यास दरिया |
करीब नौ महीने पहले जब पंजाब आया था तो बड़ा उत्साह था मन में। पंजाब के हरे-हरे खेतों में भांगड़ा करते पंजाबी मुंडे और कुड़ियां अभी तक फिल्मों में ही देखे थे। अब हकीकत में देखने की खुशी थी। पत्रिकाओं में पढ़ता था कि पंजाब एक संपन्न राज्य है। सोचा था इस संपन्नता का मैं भी लाभ उठाउंगा। अब समझता हूं कि आप जो देखते हैं वह हमेशा सच नहीं होता। पिछले दिनों जालंधर में रहते-रहते उब गया तो सोचा पास के किसी गांव में घूम आता हूं। क्योंकि सारे शहर एक जैसे होते हैं जहां भीड़ में आप बिल्कुल अकेले होते हैं। गांवों में ऐसा नहीं होता। लेकिन अपनापन देने वाले गांवों की हमेशा दुर्गत होती है चाहे वह पंजाब के हों या फिर अपने उत्तराखंड में।
जिन चार-पांच गांवों में गया उनके बारे में संक्षिप्त में कहूं तो यह कहूंगा, कुछ लुट चुके हैं। कुछ लुट रहे हैं और कुछ लुटने वाले हैं।जो लुट चुके हैं वह कल किसान थे आज मजदूर हैं। जो लुटने वाले है और लुट रहे हैं वह आज किसान हैं कल मजदूर होंगे। कपूरथला के दाउदपुर, रायपुर राइयां, चक्कोकी, भक्कूवाल के अलावा अमृतसर के शेरोनंगा और शेरो बग्घा गांव में किसानों की 2 हजार एकड़ जमीन लुट चुकी है।
पिछले सात साल से यह सिलसिला जारी है। 500 करोड़ रुपए कि इस जमीन को किसी आदमी ने लूटा होता तो किसान कोर्ट जाते लेकिन लूटने वाले व्यास दरिया के खिलाफ कोई कानून लागू नहीं होता? पंजाब सरकार ने पिछले दिनों विशेषज्ञों के दल महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश भेजे ताकि वहां से सीख लेकर पंजाब में किसानों की खुदकुशी के मामले रोक जा सकें। लेकिन इन गांवों में सरकार का कोई नुमाइंदा नहीं आया। जबकि खुदकुशी के हालात यहां बन रहे हैं। इसी तरह की परिस्थतियों से जूझते हुए पिछले बीस साल में पंजाब में करीब सवा लाख किसान-मजदूर आत्महत्या कर चुके हैं।
खुदकुशी करने वालों में किसी को साहूकार ने लूटा, किसी को सरकार ने लूटा, किसी को जमींदार ने लूटा तो किसी को दरिया ने लूटा है। सात साल पहले अमृतसर के शेरो गांव के पास बहने वाला व्यास दरिया आज अपनी मूल जगह छोड़ करीब तीन किलोमीटर दूर बह रहा है। सात सालों में दरिया ने इस दायरे में आने वाली किसानों की करीब दो हजार एकड़ जमीन काट दी है। एक एकड़ जमीन की कीमत करीब 25 लाख रुपए है। हालांकि आज दरिया के डर से इसे खरीदने वाला कोई नहीं। कितनी फसल बर्बाद हुई किसान इसकी परवाह नहीं करते। दरिया के रास्ता बदलने से कितने किसान उजड़े सरकार के पास इसका हिसाब नहीं होगा। लेकिन रायपुर राइयां के लोगों को मुंह जुबानी याद है कि अब तक कितने परिवार इस दरिया ने पूरी तरह उजाड़े हैं। ऐसे ही उजड़े लोगों में रायापुर राइयां के चरणजीत सिंह से मेरी मुलाकात हुई।
75 साल के चरणजीत सिंह अपनी जमीन के खातिर फौज छोड़कर आए थे। सात साल पहले करीब 20 एकड़ जमीन थी उनके पास। तीन बेटे लखन सिंह, हरप्रीत सिंह और जोगा सिंह के साथ मिलकर इस जमीन पर खेती करते थे। खेतों के पास ही पूरा परिवार रहता था। लेकिन दरिया के बहाव के साथ सब बिखर गया। चरणजीत ने जिन खेतों को हरभरा करने में पूरी जवानी लगा दी वह रोज-रोज, धीरे-धीरे उनके सामने बहते रहे।
आज चरणजीत सिंह के पास केवल आधा एकड़ जमीन है। सात सालों में उनकी खेतीबाड़ी ही नहीं उजड़ी एक तरीके से परिवार भी उजड़ गया। चरणजीत सिंह को अपने छोटे बेटे के साथ पास के ही गांव भक्कूवाल में शिफ्ट होना पड़ा। बड़ा बेटे लखन सिंह को घर छोड़कर पास के ही गांव चक्कोकी में बसना पड़ा। परिवार पालने के लिए लखन और जोगा आज मजदूरी करते हैं।
मझले बेटे को चरणजीत सिंह ने किसी तरह कर्ज लेकर विदेश भेज दिया है। पूरे देश को खाना खिलाने वाले पंजाब के किसान चरणजीत सिंह जैसे रायपुर राइयां में कई हैं। अमरीक सिंह सात साल पहले 30 एकड़ जमीन के मालिक थे। आज छह एकड़ जमीन बची है। यह भी कितने दिन रहेगी कहा नहीं जा सकता। क्योंकि व्यास दरिया धीरे-धीरे अपना दायरा बढ़ा रहा है। सर्बजीत सिंह के पास 25 में से आठ एकड़ जमीन रह गई है। सुलखन सिंह की पूरी पांच एकड़ जमीन व्यास दरिया निगल चुका है।
अब सुलखन मजदूरी करते हैं। यही कहानी दाउदपुर के निर्मल सिंह की है। निर्मल के पास कभी 13 एकड़ जमीन हुआ करती थी आज महज सात एकड़ बची है। इन दिनों दरिया निर्मल की ही जमीन काट रहा है। चक्कोकी के जितेंदर और लवजोत सिंह इस इलाके के बड़े किसानों में गिने जाते थे। जो धीरे-धीरे छोटे हो रहे हैं। जितेंदर के पास 50 में से करीब 20 तो लवजोत के पास 60 में से 30 एकड़ ही जमीन बची है। यह लुट चुके लोगों की कहानी है।
कई किसान अभी लुटने वाले हैं। रायपुर राइयां के भगवान सिंह के पास 24 एकड़ जमीन है। इस जमीन से दरिया की दूरी महज 100 फुट रह गई है। भगवान सिंह कहते हैं कि आज नहीं तो कल उनकी जमीन भी उड़ जाएगी। इसलिए उन्होंने अपने एक बेटे मनप्रीत सिंह को विदेश भेज दिया है। ताकि कल उसे चरणजीत के बेटों की तरह मजदूरी न करनी पड़े। हालांकि उनके साथ किसानी कर रहे दो बेटों गुरप्रीत सिंह और लखवीर सिंह के सामने न कोई विकल्प है न भगवान सिंह के पास इतने पैसे हैं कि उन्हें कहीं भेज सकें।
भगवान सिंह के बाद हरबंश सिंह हैं। हरबंश के पास तीन एकड़ जमीन है और दरिया महज 150 फुट की दूरी पर है। हरबंश कहते हैं दूसरों की जमीन कटते हुए रोज देखता हूं। रात में व्यास के साथ जमीन के गिरने की आवाज बड़ी डरावनी लगती है। हर दिन मेरी जमीन और दरिया के बीच की दूरी कम हो रही है। लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकता। सरकार के नुमाइंदे भले ही यहां न आए हों लेकिन अपनी जमीन के खातिर इन किसानों से चंडीगढ़ से लेकर दिल्ली तक के चक्कर लगाए लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई। जिन लोगों को इन्होंने चुनकर संसद और विधानसभा भेजा था वह लोग कहते हैं नदी को कैसे रोका जा सकता है। संसद में बैठकर नदियों को जोड़ने का स्वांग रचते हैं।
पंजाब क्या मेरे ख्याल से कपूरथला जिले के बाहर भी इन गांवों का नाम बहुत लोग नहीं जानते होंगे। जबकि खुदकुशी के लिए बहते दरिया पर यहां जमीन तैयार हो रही है। अभी मीडिया के लोग भी नहीं पहुंचे क्योंकि मीडिया भी किसानों की समस्याओं से ज्यादा उनकी खुदकुशी में रूचि लेता है। खुदकुशी की टीआरपी ज्यादा होती है। क्योंकि यह माना जाता है कि किसान न अखबार पढ़ता है न टीबी देखता है फिर उसकी खबर क्यों छापी जाए या क्यों दिखाई जाए। लेकिन किसान मरता है तो फिर वह अन्नदाता हो जाता है पूरे देश का। क्योंकि फिर कम से कम एक घंटे का कार्यक्रम बनता है। गंभीरता का मुखौटा लगाए हुए।
राजीव पांडे पत्रकार हैं.
अभी जालंधर में एक दैनिक अखबार में कार्यरत.