इन्द्रेश मैखुरी |
-इन्द्रेश मैखुरी
"...अब वो देवता ही क्या जिनके चेहरे पर ऐसी छोटी–मोटी मानवीय परेशानियों से शिकन आ जाए. मंगतू से कहा हमारे रहते तू चिंतित क्यूँ होता है, हमसे बड़ी कौन आफत है आखिर! तो साधो, मंगतू का संकट हरने के लिए देवाधिदेव ने तय किया कि वे अपने सब देवगणों को लेकर मंगतू की पुन्ग्ड़ो के ढूले हुए पगार देखने जायेंगे. परामर्शियों ने परामर्श दिया- हुजूर चार पुन्ग्ड़ो की खातिर आप क्यूँ अपनी कोमल काया को कष्ट देते हैं, फिर इस पर खर्चा भी तो बहुत होगा. पर देवाधिदेव अडिग, सारा खजाना खाली हो जाए पर हम पुन्ग्ड़ो को देखने हर हाल में जायेंगे..."
बरसने से याद आया, पिछली बरसात में बेचारे मंगतू के चार पुन्ग्ड़ो के पगार ढूल गए. मंगतू बेचारा आफ़त का मारा. उसने सरकार से गुहार लगाई- हे दयानिधान, कृपा करो, विपदा आन पड़ी है. अब वो देवता ही क्या जिनके चेहरे पर ऐसी छोटी–मोटी मानवीय परेशानियों से शिकन आ जाए. मंगतू से कहा हमारे रहते तू चिंतित क्यूँ होता है, हमसे बड़ी कौन आफत है आखिर! तो साधो, मंगतू का संकट हरने के लिए देवाधिदेव ने तय किया कि वे अपने सब देवगणों को लेकर मंगतू की पुन्ग्ड़ो के ढूले हुए पगार देखने जायेंगे. परामर्शियों ने परामर्श दिया- हुजूर चार पुन्ग्ड़ो की खातिर आप क्यूँ अपनी कोमल काया को कष्ट देते हैं, फिर इस पर खर्चा भी तो बहुत होगा. पर देवाधिदेव अडिग, सारा खजाना खाली हो जाए पर हम पुन्ग्ड़ो को देखने हर हाल में जायेंगे. विपक्षियों ने शोर मचाया तो देवाधिदेव ने कहा कि तुम भी सरकारी उड़नखटोले में बैठना चाहो तो बैठो, पर हमें ना रोको.
सो तय तिथि पर देवाधिदेव और उनके देवगण, मंत्री-संतरी, बाबु-चपरासी, फौजदार, रौबदार, फर्राटेदार, झन्नाटेदार सब मंगतू के पुन्ग्ड़ो को देखने मुंह उठाये चल दिए. मंगतू चाहे नमक-रोटी में गुजारा करता हो या मांड पीकर, देवाधिदेव और विभिन्न दैवीय कृत्यों के लिए ख्यातिलब्ध देवगण आयेंगे तो छत्तीस व्यंजन, छ्पप्न पकवान के बिना तो नहीं जीमेंगे. पहाड़ी देवगण हैं सो कचमोली भी जरुरी है. पेय के रूप में सोमरस भी बहेगा ही बहेगा. उसूलों के पक्के देवगण, जिन कुछ चीजों से कतई समझौता नहीं करते, खाना और पीना भी उनमें से एक है. मौका चाहे बारात का हो या वारदात का, देवगण इस दस्तूर में कोई हील हुज्जत बर्दाश्त नहीं करते. भाई मुंह का जायका ठीक रहेगा तभी तो कोमल वचन फूल सामान झरेंगे. सो मंगतू के पुन्ग्ड़ो के निरिक्षण में भी जमकर पकवान जीमे गए, कचमोली भकोसी गयी और देवताओं का प्रिय पेय सोमरस बहा. इस सब के पश्चात देवाधिदेव ने अपनी उजली दमकती काया से कमल रुपी कर, उजड़ा चमन हो चुके मंगतू के कंधे पर रख कर उवाचा- देवगणों ने तुम्हारा प्रकृति की सुरम्य वादियों में बसा आशियाना देख लिया है. सुविधाओं का यहाँ जो अकाल है, वह जल्द दूर होगा. हम यहाँ हेलीपैड बनायेंगे ताकि हमारे उड़नखटोले यहाँ उतर सकें. उड़नखटोले उतरेंगे तो देशी-विदेशी तिजोरीवान भी यहाँ उतर सकेंगे.
मंगतू गिडगिडाया-पर दयानिधान मेरे पुन्ग्ड़ो की ढूले हुए पगार ..........? देवाधिदेव किंचित क्रोधित हुए- नादान मनुष्य हम देश- दुनिया के तिजोरीवानों को यहाँ लाने की सोच रहे हैं और तू अपने पुन्ग्ड़ो की ढूले हुए पगार में ही अटका पड़ा है. अरे तुच्छ मनुष्य जब दुनिया भर के तिजोरीवान यहाँ पहुँच जायेंगे तो ये पुन्ग्ड़े तब भी क्या तेरे रह पायेंगे और जब पुन्ग्ड़े तेरे नहीं रहेंगे तो फिर उनके पगार ढूलने का ख़तरा तेरे सिर पर कहाँ रहा? देख,हमने देखने भर से तुझे सब संकटों से तार दिया है, तेरा बेड़ा पार कर दिया है.
देवगण, मंत्री-संतरी, बाबु-चपरासी, फौजदार, रौबदार, फर्राटेदार, झन्नाटेदार सब ने जयकारा बुलंद किया-देवाधिदेव की ज......................य .
(गढ़वाली में पुन्ग्ड़े यानि खेत. पगार-पहाड़ में सीढीनुमा खेतों में जहां पर भूमि स्खलन होता है, वहां पर पत्थरों की चिनाई से उसे दुरुस्त किया जाता है,उसे पगार कहते हैं. ढूळना-खेत की मिट्टी या पगार के गिरने को कहते हैं)