-praxisप्रतिनिधि
'जनता के जनतंत्र के लिए जनयात्रा'
"...उत्तराखंड के टिकाऊ जनपक्षीय विकास के लिए जनता की प्रोड्यूसर्स कंपनी बना कर पर्यावरण पक्षीय १ मेगावाट की छोटी परियोजना बनाई जा सकती हैं। इसमें पूरी तरह जनता की मिल्कियत होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि उलोवा कुमाऊं के पनार क्षेत्र की सरयू नदी पंर और चेतना आन्दोलन गढ़वाल क्षेत्र के छतियारा में बालगंगा नदी पर यह प्रयोग करने जा रहा है। जिसमें प्रोड्यूसर्स कंपनी एक्ट 2002 के तहत ग्रामीणों की दो प्रोड्यूसर्स कंपनियां सरयू हाईड्रो इलैक्ट्रानिक्स पावर प्रोड्यूसरर्स लिमिटेड और संगमन हाईड्रो इलैक्ट्रानिक्स पावर प्रोड्यूसरर्स लिमिटेड बना दी गई हैं। अब ग्रामीण ही कंपनी के मालिक हैं और कंपनी के मुनाफे में उनका ही हक होगा।..."
उत्तराखण्ड़ लोक वाहिनी, चेतना आन्देलन, महिला मंच और आजादी बचाओ आंदोलन द्वारा प्राकृतिक संसाधनों की लूट के खिलाफ 10 मार्च को जागेश्वर से शुरू हुई यात्रा का इग्यारहवें देहरादून में प्रेस वार्ता कर समापन किया गया। यात्रादल ने कुमांऊ और गढ़वाल के अपने पड़ावों दन्या, पनार, पिथौरागढ़, बागेश्वर, ग्वालदम, थराली, देवाल, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग, गोपेश्वर, रूद्रप्रयाग, अगस्तमुनि, श्रीनगर, घनसाली, फलिंडा, चमियाला, उत्तरकाशी, अस्सी गंगा के जलागम क्षेत्र संगमचट्टी और नई टिहरी में जनसभाओं के द्वारा यात्रा के उद्देश्यों को लोगों को बताया।
उज्जवल होटल में हुई इस प्रेसवार्ता में उत्तराखण्ड लोक वाहिनी के केन्द्रीय अध्यक्ष डा0 शमशेर सिंह बिष्ट ने कहा कि यह यात्रा उत्तराखंड को नए सिरे से समझने और संघर्ष की नई रणनीति बनाने के लिहाज से महत्वपूर्ण रही है। पूरे उत्तराखंड में सरकारों की नीतियों के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश है। बांधों से हो रही तबाही और लुट रहे प्राकृतिक संसाधनों के खिलाफ यह जनाक्रोश ही उत्तराखंड की आगामी राजनीति तय करेगा।
उन्होंनेकहा कि उत्तराखंड में हमें जल, जंगल, जमीन के प्राकृतिक संसाधनों पर जनता के हकों के लिए संघर्ष करना होगा। दलाल सरकारों और निजीकंपनियों को खुली लूट के लिए पहाड़ी नदियों को नहीं सौंपा जा सकता। उन्होंने कहा अंग्रेजों तक ने कुमांऊ वाटर रूल के तहत प्राकृतिक संसाधनों पर यहां के लोगों की मिल्कियत का अधिकार दिया था। उसके उलट देश के आजाद होने पर सरकार ने सबसे पहले लोगों को उनके प्राकृतिक अधिकारियों से वंचित करने का काम किया और उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद तो प्राकृतिक संपदा अब सरकार के हाथ में भी नहीं है। उसे सरकार ने माफियाओं के हाथ कर दिया है। इसलिए यहां बड़े स्थर पर खनन का अवैध कारोबार खूब पनप रहा है। खनन सिर्फ खडि़या का ही होता हो ऐसा नहीं है वह समूचे पहाड़ की सभ्यता और परम्परा को नष्ट कर रहा है।
उन्होंनेकहा कि उत्तराखंड के टिकाऊ जनपक्षीय विकास के लिए जनता की प्रोड्यूसर्स कंपनी बना कर पर्यावरण पक्षीय १ मेगावाट की छोटी परियोजना बनाई जा सकती हैं। इसमें पूरी तरह जनता की मिल्कियत होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि उलोवा कुमाऊं के पनार क्षेत्र की सरयू नदी पंर और चेतना आन्दोलन गढ़वाल क्षेत्र के छतियारा में बालगंगा नदी पर यह प्रयोग करने जा रहा है। जिसमें प्रोड्यूसर्स कंपनी एक्ट 2002 के तहत ग्रामीणों की दो प्रोड्यूसर्स कंपनियां सरयू हाईड्रो इलैक्ट्राॅनिक्स पावर प्रोड्यूसरर्स लिमिटेड और संगमन हाईड्रो इलैक्ट्राॅनिक्स पावर प्रोड्यूसरर्स लिमिटेड बना दी गई हैं। अब ग्रामीण ही कंपनी के मालिक हैं और कंपनी के मुनाफे में उनका ही हक होगा। ऐसी ही परियोजनाएं बनाकर पहाड़ से पलायन को रोका जा सकेगा।
उन्होंनेकहा कि आगामी २३ अप्रैल को वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के पेशावर कांड को याद करते हुए जागेश्वर में एक राष्ट्रीय कन्वेंशन किया जा रहा है। यह यात्रा उसकी प्रिप्रेशन/तैयारी यात्रा है। जिसमें कि जनता के खिलाफ बने कानूनों को ना मानने यानी सिविल ना-फरमानी का निर्णय लिया जाएगा।
महिलामंच की कमला पंत ने कहा कि उत्तराखंड बनने के बाद सपनों के उलट राज्य विकास के बजाय विनाश झेल रहा है। पहाड़ की शर्तों पर पहाड़ के विकास की अवधारणा बिल्कुल गायब है। पूरे प्रदेश में गावों के विकास के बजाय बांधों में उन्हें डुबो देने की परियोजनाएं चल रही हैं। और जो गांव बांध की जद में नहीं आते उन्हें सरकारी नीतियां ने पलायन की बाढ़ पैदा कर मैदानों की तरफ धकेला है। गांव के गांव खाली हो रहे हैं। गांवों में जो कुछ बच भी रहा है उसे शराब में डुबो देने के सारे प्रबंध हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के ऐसे त्रासद दौर से उसे जनांदोलन ही उभार पाएंगे। और आंदोलनों को ही विकास का वैकल्पिक माॅडल भी सामने रखना होगा। यह यात्रा और सरयू और बालगंगा नदी की ये प्रस्तावित जन-परियोजनाएं इसी मुहीम का एक हिस्सा हैं।
प्रेसवार्ताको संबोधित करते हुए चेतना आन्दोलन के संयोजक त्रेपन सिंह चैहान ने कहा है कि वन अधिनियम 2006 के तहत कोई भी प्रोजेक्ट लगाने से पहले सरकार को ग्राम सभा की अनुमति लेनी पड़ती है। लेकिन उत्तराखण्ड़ में इस कानून का धड़ल्ले से उलंघन हो रहा है और खनन एवं बांधों के लिए अनुमती दे रही है जो सरासर गैर कानूनी है। उन्होंने कहा कि पहाड़ को तबाह करती इन बाँध परियोजनाओं का विरोध पहाड़ की जनता के लिए अनिवार्य हो गया है. इसके लिए जनता को अपने दुश्मनों को पहचानते हुए उनके खिलाफ संघर्ष करना होगा. उन्होंने कहा कि पहाड़ में शासन कर रही सारी मुख्य राजनीतिक पार्टियां पहाड़ विरोधी हैं. वे मुजफ्फर नगर कांड के प्रमुख दोषी अनंत कुमार सिंह और बुआ सिंह को सजा देने के बजाय लगातार उनकी पदोन्नति करती रही हैं. यह इनके पहाड़ी जनता के प्रति विरोधी नजरिये को दर्शाता है.
आज़ादी बचाओ आंदोलन के मनोज त्यागी ने कहा कि इस यात्रा का बड़ा उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों में स्थानीय जनता की मिल्कियत का है। यह संवैधानिक मांग है। ७३वां और ७४वां संविधान संसोधन, ग्राम सभाओं को अपने फैसले लेने का हक देता है. इसी के अनुसार पहाड़ की जनता का अपनी नदियों और अपने संसाधनों पर पहला हक है। उत्तराखंड पानी का प्रमुख स्रोत है। बाजार के सभी लोग अब इस पानी और बिजली के कारोबार में टूट पड़े हैं। इस सब में जनता के हकों की बात नदारद है। सरकारें कंपनियों को पानी सौंप कर उनके हकों को छीन रही हैं और वहीँ दूसरी ओर जनता की प्रोड्यूसर्स कंपनी को मदद पहुंचाने का उसका कोई इरादा नहीं दिखता। इसके लिए जनता को जन विरोधी नीतियों और कानूनों के लिए सिविल ना-फरमानी का ऐलान करना होगा।
उलोवाके पूरन चंद्र तिवारी ने सभा में कहा कि उत्तराखंड से लगातार हो रहे पलायन की वजह से यहाँ किसी भी किस्म के टिकाऊ विकास के मॉडल का न हो पाना है। अगर माइक्रो हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट जनता खुद अपनी कंपनी बना कर शुरू करे तो यहाँ पहाड़ के पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए एक स्थाई विकास का मॉडल खड़ा किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ये यात्रा इस सपने को गाँव-गाँव तक पहुचाने की एक मुहिम है.
यात्रामें टिस मुंबई में माइक्रो हाइड्रो पर अध्ययन कर रहे अंकुर जायसवाल, इलाहबाद यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर प्रदीप कुमार, इलाहबाद यूनिवर्सिटी में ही गणित के सहायक प्राध्यपक स्वपनिल श्रीवास्तव, गांधी स्वराज विद्यापीठ की अध्यक्षा सुमन शर्मा, महिला मंच की पद्मा गुप्ता, सरयू हाईड्रो इलैक्ट्रानिक्स पावर प्रोड्यूसरर्स लिमिटेड के अध्यक्ष राम सिंह, बसन्त राम, और लक्षमण सिंह आदि लोग यात्रा में शामिल रहे।
उज्जवल होटल में हुई इस प्रेसवार्ता में उत्तराखण्ड लोक वाहिनी के केन्द्रीय अध्यक्ष डा0 शमशेर सिंह बिष्ट ने कहा कि यह यात्रा उत्तराखंड को नए सिरे से समझने और संघर्ष की नई रणनीति बनाने के लिहाज से महत्वपूर्ण रही है। पूरे उत्तराखंड में सरकारों की नीतियों के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश है। बांधों से हो रही तबाही और लुट रहे प्राकृतिक संसाधनों के खिलाफ यह जनाक्रोश ही उत्तराखंड की आगामी राजनीति तय करेगा।
उन्होंनेकहा कि उत्तराखंड में हमें जल, जंगल, जमीन के प्राकृतिक संसाधनों पर जनता के हकों के लिए संघर्ष करना होगा। दलाल सरकारों और निजीकंपनियों को खुली लूट के लिए पहाड़ी नदियों को नहीं सौंपा जा सकता। उन्होंने कहा अंग्रेजों तक ने कुमांऊ वाटर रूल के तहत प्राकृतिक संसाधनों पर यहां के लोगों की मिल्कियत का अधिकार दिया था। उसके उलट देश के आजाद होने पर सरकार ने सबसे पहले लोगों को उनके प्राकृतिक अधिकारियों से वंचित करने का काम किया और उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद तो प्राकृतिक संपदा अब सरकार के हाथ में भी नहीं है। उसे सरकार ने माफियाओं के हाथ कर दिया है। इसलिए यहां बड़े स्थर पर खनन का अवैध कारोबार खूब पनप रहा है। खनन सिर्फ खडि़या का ही होता हो ऐसा नहीं है वह समूचे पहाड़ की सभ्यता और परम्परा को नष्ट कर रहा है।
उन्होंनेकहा कि उत्तराखंड के टिकाऊ जनपक्षीय विकास के लिए जनता की प्रोड्यूसर्स कंपनी बना कर पर्यावरण पक्षीय १ मेगावाट की छोटी परियोजना बनाई जा सकती हैं। इसमें पूरी तरह जनता की मिल्कियत होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि उलोवा कुमाऊं के पनार क्षेत्र की सरयू नदी पंर और चेतना आन्दोलन गढ़वाल क्षेत्र के छतियारा में बालगंगा नदी पर यह प्रयोग करने जा रहा है। जिसमें प्रोड्यूसर्स कंपनी एक्ट 2002 के तहत ग्रामीणों की दो प्रोड्यूसर्स कंपनियां सरयू हाईड्रो इलैक्ट्राॅनिक्स पावर प्रोड्यूसरर्स लिमिटेड और संगमन हाईड्रो इलैक्ट्राॅनिक्स पावर प्रोड्यूसरर्स लिमिटेड बना दी गई हैं। अब ग्रामीण ही कंपनी के मालिक हैं और कंपनी के मुनाफे में उनका ही हक होगा। ऐसी ही परियोजनाएं बनाकर पहाड़ से पलायन को रोका जा सकेगा।
उन्होंनेकहा कि आगामी २३ अप्रैल को वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के पेशावर कांड को याद करते हुए जागेश्वर में एक राष्ट्रीय कन्वेंशन किया जा रहा है। यह यात्रा उसकी प्रिप्रेशन/तैयारी यात्रा है। जिसमें कि जनता के खिलाफ बने कानूनों को ना मानने यानी सिविल ना-फरमानी का निर्णय लिया जाएगा।
महिलामंच की कमला पंत ने कहा कि उत्तराखंड बनने के बाद सपनों के उलट राज्य विकास के बजाय विनाश झेल रहा है। पहाड़ की शर्तों पर पहाड़ के विकास की अवधारणा बिल्कुल गायब है। पूरे प्रदेश में गावों के विकास के बजाय बांधों में उन्हें डुबो देने की परियोजनाएं चल रही हैं। और जो गांव बांध की जद में नहीं आते उन्हें सरकारी नीतियां ने पलायन की बाढ़ पैदा कर मैदानों की तरफ धकेला है। गांव के गांव खाली हो रहे हैं। गांवों में जो कुछ बच भी रहा है उसे शराब में डुबो देने के सारे प्रबंध हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के ऐसे त्रासद दौर से उसे जनांदोलन ही उभार पाएंगे। और आंदोलनों को ही विकास का वैकल्पिक माॅडल भी सामने रखना होगा। यह यात्रा और सरयू और बालगंगा नदी की ये प्रस्तावित जन-परियोजनाएं इसी मुहीम का एक हिस्सा हैं।
प्रेसवार्ताको संबोधित करते हुए चेतना आन्दोलन के संयोजक त्रेपन सिंह चैहान ने कहा है कि वन अधिनियम 2006 के तहत कोई भी प्रोजेक्ट लगाने से पहले सरकार को ग्राम सभा की अनुमति लेनी पड़ती है। लेकिन उत्तराखण्ड़ में इस कानून का धड़ल्ले से उलंघन हो रहा है और खनन एवं बांधों के लिए अनुमती दे रही है जो सरासर गैर कानूनी है। उन्होंने कहा कि पहाड़ को तबाह करती इन बाँध परियोजनाओं का विरोध पहाड़ की जनता के लिए अनिवार्य हो गया है. इसके लिए जनता को अपने दुश्मनों को पहचानते हुए उनके खिलाफ संघर्ष करना होगा. उन्होंने कहा कि पहाड़ में शासन कर रही सारी मुख्य राजनीतिक पार्टियां पहाड़ विरोधी हैं. वे मुजफ्फर नगर कांड के प्रमुख दोषी अनंत कुमार सिंह और बुआ सिंह को सजा देने के बजाय लगातार उनकी पदोन्नति करती रही हैं. यह इनके पहाड़ी जनता के प्रति विरोधी नजरिये को दर्शाता है.
आज़ादी बचाओ आंदोलन के मनोज त्यागी ने कहा कि इस यात्रा का बड़ा उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों में स्थानीय जनता की मिल्कियत का है। यह संवैधानिक मांग है। ७३वां और ७४वां संविधान संसोधन, ग्राम सभाओं को अपने फैसले लेने का हक देता है. इसी के अनुसार पहाड़ की जनता का अपनी नदियों और अपने संसाधनों पर पहला हक है। उत्तराखंड पानी का प्रमुख स्रोत है। बाजार के सभी लोग अब इस पानी और बिजली के कारोबार में टूट पड़े हैं। इस सब में जनता के हकों की बात नदारद है। सरकारें कंपनियों को पानी सौंप कर उनके हकों को छीन रही हैं और वहीँ दूसरी ओर जनता की प्रोड्यूसर्स कंपनी को मदद पहुंचाने का उसका कोई इरादा नहीं दिखता। इसके लिए जनता को जन विरोधी नीतियों और कानूनों के लिए सिविल ना-फरमानी का ऐलान करना होगा।
उलोवाके पूरन चंद्र तिवारी ने सभा में कहा कि उत्तराखंड से लगातार हो रहे पलायन की वजह से यहाँ किसी भी किस्म के टिकाऊ विकास के मॉडल का न हो पाना है। अगर माइक्रो हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट जनता खुद अपनी कंपनी बना कर शुरू करे तो यहाँ पहाड़ के पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए एक स्थाई विकास का मॉडल खड़ा किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ये यात्रा इस सपने को गाँव-गाँव तक पहुचाने की एक मुहिम है.
यात्रामें टिस मुंबई में माइक्रो हाइड्रो पर अध्ययन कर रहे अंकुर जायसवाल, इलाहबाद यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर प्रदीप कुमार, इलाहबाद यूनिवर्सिटी में ही गणित के सहायक प्राध्यपक स्वपनिल श्रीवास्तव, गांधी स्वराज विद्यापीठ की अध्यक्षा सुमन शर्मा, महिला मंच की पद्मा गुप्ता, सरयू हाईड्रो इलैक्ट्रानिक्स पावर प्रोड्यूसरर्स लिमिटेड के अध्यक्ष राम सिंह, बसन्त राम, और लक्षमण सिंह आदि लोग यात्रा में शामिल रहे।