कमलेश |
-कमलेश
"...बिहार के किसानों के युद्ध के नायक रह चुके डॉ. निर्मल की प्रतिमा उनके अपने कॉलेज दरभंगा मेडिकल कॉलेज के परिसर में क्या लगी, राजनीतिक हलकों से लेकर चिकित्सकों तक के बीच जैसे तूफान खड़ा हो गया है। भाजपाइयों ने दरभंगा से लेकर पटना तक में सरकार पर दबाव डाला और स्वास्थ्य मंत्री बने अश्विनी कुमार चौबे ने यह घोषणा की कि सरकार दरभंगा मेडिकल कॉलेज के परिसर से डॉ. निर्मल की प्रतिमा को हटा लेगी। सरकार की इस घोषणा का विरोध शुरू हो गया है, कई सामाजिक कार्यकर्ता, साहित्यकार और डॉ. निर्मल के बैच के छात्र रहे कई डॉक्टर सरकार के इस फैसले का विरोध करने दरभंगा पहुंच गये हैं..."
कहते हैं फिनिक्स पक्षी अपनी राख से जी उठता है। पता नहीं मिस्र की यह कहावत सच है या नहीं लेकिन बिहार के किसानों के युद्ध के नायक रह चुके डॉ. निर्मल अपनी मौत के 38 वर्ष के बाद मानो अचानक जी उठे हैं। डॉ. निर्मल सिंह, कामरेड निर्मल और नक्सलवादियों की भाषा में शहीद डॉ. निर्मल।
उनके नाम को लेकर जितनी बहस अभी चल रही है उतनी तो तब भी नहीं हुई थी जब उन्होंने मेडिकल शिक्षा का शानदार कॅरियर छोड़कर भोजपुर के धधकते खेत-खलिहानों में नक्सलवादी आन्दोलन की राह पकड़ी थी। पुलिस से घंटों लड़ाई लड़ने के बाद जब उनकी लाश पाई गई थी तब लोगों को पता चला था कि किसानों द्वारा चलाये जा रहे उस मुक्ति युद्ध में कितने मेधावी लोग अपनी जिन्दगी होम कर रहे हैं।
उसीडॉ. निर्मल की प्रतिमा उनके अपने कॉलेज दरभंगा मेडिकल कॉलेज के परिसर में क्या लगी, राजनीतिक हलकों से लेकर चिकित्सकों तक के बीच जैसे तूफान खड़ा हो गया है। भाजपा के नगर विधायक संजय सरावगी के नेतृत्व में भाजपाई लोगों ने डॉ. निर्मल की प्रतिमा लगाये जाने का इस आधार पर विरोध किया कि एक नक्सली नेता की प्रतिमा कॉलेज परिसर में कैसे लग सकती है।
भाजपाइयोंने दरभंगा से लेकर पटना तक में सरकार पर दबाव डाला और विधान परिषद में भाजपा के कोटे से स्वास्थ्य मंत्री बने अश्विनी कुमार चौबे ने यह घोषणा की कि सरकार दरभंगा मेडिकल कॉलेज के परिसर से डॉ. निर्मल की प्रतिमा को हटा लेगी। अब सरकार की इस घोषणा को लेकर मानो पूरे बिहार में तूफान खड़ा हो गया है। सरकार की इस घोषणा का विरोध शुरू हो गया है और भाकपा, माकपा और भाकपा माले ने इसके खिलाफ आन्दोलन शुरू कर दिया है। मात्र यही नहीं कई सामाजिक कार्यकर्ता, साहित्यकार और डॉ. निर्मल के बैच के छात्र रहे कई डॉक्टर सरकार के इस फैसले का विरोध करने दरभंगा पहुंच गये हैं।
निर्मलसिंह भोजपुर जिले के चरपोखरी प्रखंड के बरौरा के रहने वाले थे। वे एक मेधावी छात्र थे और 1968 में उन्होंने दरभंगा मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया था। भले वे मेडिकल कॉलेज में पढ़ रहे थे लेकिन समाज में व्याप्त गैरबराबरी उन्हें बराबर परेशान करती थी। उसी समय भोजपुर जिले में जगदीश मास्टर के नेतृत्व में नक्सलवादी आन्दोलन तेज हुआ। 1971 में वे बिहार में चल रहे नक्सलवादी आन्दोलन में शामिल हो गये और उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई छोड़ दी। लोगों को इसका पता तब चला जब दरभंगा मेडिकल कॉलेज में एक बम विस्फोट के बाद नक्सलवादी आन्दोलन के समर्थन में पर्चे बांटे गये। नक्सलवादी संगठन के लिए भी वे एक अच्छे संगठनकर्ता साबित हुए।
बाद में वे सीपीआई एमएल के तत्कालीन महासचिव जौहर के साथ एक पुलिस मुठभेड़ में मारे गये। यह मुठभेड़ भोजपुर जिले के बाबूबांध गांव में 1975 में हुई थी। कहते हैं, पूरी रात मुठभेड़ चली थी। नक्सली दस्ते की सारी गोलियां खत्म हो गईं लेकिन उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया और आखिरकार लड़ते-लड़ते मारे गये। नक्सलवादी संगठन आज भी निर्मल को अपने नेता के रूप में श्रद्धा के साथ याद करते हैं। भोजपुर जिले में आज भी एक गीत गाया जाता है- जब-जब याद आवे बाबूबांध के कहनिया, अंखिया भरि आवे ए साथी.....।
दरभंगाजिले में काम कर रहे भाकपा माले की केन्द्रीय कमेटी के सदस्य धीरेन्द्र कुमार झा बताते हैं कि पिछले साल दरभंगा मेडिकल कॉलेज के पूर्व छात्रों की एक बैठक हुई। इस बैठक में दरभंगा मेडिकल कॉलेज के परिसर के सौंदर्यीकरण का फैसला लिया गया। इसके तहत कई काम हुए मसलन तालाब बना, पार्क बना और कई पूर्व छात्रों के नाम पर नये काम शुरू हुए। इसी क्रम में पिछले 27 जनवरी को दरभंगा मेडिकल कॉलेज के परिसर में डॉ. निर्मल की भी मूर्ति लगाई गई। चूंकि वे भी इसी कॉलेज के छात्र थे इसलिए पूर्व छात्रों ने उन्हें भी याद किया। मूर्ति के निर्माण के लिए कॉलेज के पूर्व छात्रों ने जमकर मदद भी की। देश ही नहीं विदेशों में भी कार्यरत चिकित्सकों ने इसके लिए पैसे भेजें। उस समय कॉलेज के प्रभारी प्राचार्य डॉ. अजीत चौधरी थे। वे अभी कॉलेज में पैथोलॉजी विभाग के अध्यक्ष हैं। उनके अलावा कॉलेज के ही एक अन्य शिक्षक डॉ. बीएमपी यादव ने भी इसमें मदद की। वे डॉ. निर्मल के बैच के छात्र थे।
लेकिनइस प्रतिमा को लगाने के बाद भाजपा से जुड़े लोगों ने इसको लेकर जमकर हंगामा शुरू कर दिया। उन्होंने कॉलेज परिसर से प्रतिमा को हटाने की मांग की। मामला विधान परिषद में भी उठाया गया और वहां सरकार ने कहा कि उस प्रतिमा को तीन दिनों के भीतर हटा दिया जाएगा। अब सरकार के इस फैसले के खिलाफ दरभंगा में आन्दोलन शुरू हो गया है। राजधानी से साहित्यकार प्रेमकुमार मणि और वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. राजेश्वर आदि ने दरभंगा पहुंचकर सरकार के फैसले का विरोध किया। मात्र यही नहीं तीनों वाम दलों के साथ-साथ राजद और जनता दल यू के भी जमीनी हिस्से ने प्रतिमा को हटाने का विरोध किया है। दूसरी तरफ प्रतिमा लगाने की अनुमति देने वाले तत्कालीन प्रभारी प्राचार्य के खिलाफ कॉलेज प्रशासन ने कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है और उनके खिलाफ मुकदमा भी कर दिया है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अरुण कुमार ठाकुर का कहना है कि वे चाहते हैं कि कॉलेज में शांति बहाल हो और चिकित्सक के खिलाफ की गई कार्रवाई वापस हो। उनका यह भी कहना है कि परिसर में लगी प्रतिमा के बारे में जनहित के अनुसार और नियमानुकूल फैसला लेना चाहिए।