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बलूचिस्तान का सवाल!

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विनय सुल्तान
-विनय सुल्तान

"...बलूचिस्तानका जिक्र होने पर जो तस्वीर दिमाग में उभरती है वो है लम्बी दाढ़ी. पगड़ी और हाथ में AK 47 लिए हुए मौलाना किस्म के ही की. ये तस्वीर हमें इस्लामिक क्रांति के पूर्वाग्रहों के सांचे में एकदमफिट होती नज़र आती है. लेकिन यहाँ मामला एकदम उल्टा है..."


रान, अफगानिस्तान, पंजाब, सिंध और अरब सागर मिल कर जो चौहद्दी बनाते हैं उन्ही के बीच हैबलूचिस्तान. ईरान केपठार का ये पूर्वी भाग पिछले छः दशक से एक अनचाहे युद्ध और रक्तपात की और जबरन ठेल दिया गया है. कलात,लसबेला,मकरान और खरान राज्यों वाला ये क्षेत्रपाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का 44फीसदी है. यहाँ कुल 18प्रमुख जनजातिया हैं और सांस्कृतिक रूप से यहाँ का समाज अभी भी कबीलाई है.

इतिहासकी खिड़की से देखने पर पता लगता है की अपनी उबड़-खाबड़ और बंजर जमीन की वजह से ये क्षेत्र मुग़ल,अफगान और ईरान साम्राज्य की महत्वकंक्षाओ के कभी जगह नहीं बना पाया. इस तरह यहाँ का समाज लम्बे समय से खुद को राजनीतिक रूप से स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र रख पाया. १८३९ में अंग्रेजो ने इस क्षेत्र पर पहली बार हमला किया और बलूचिस्तान एक “Princely State “ में तब्दील हो गया.

बलूचिस्तान : दूसरा कश्मीर

जबभारत और पाकिस्तान का बंटवारा हो रहा था तब देशी रियासतों के पास स्वतंत्र रहने का कोई विकल्प नहीं रखा गया था. कलात के तत्कालीन खान अहमद यार खान जिन्ना के “इस्लामिक लोकतान्त्रिक गणराज्य “ के प्रस्ताव को गले नहीं उतार पाए और उन्होंने आज़ादी को एक बेहतर विकल्प के रूप में चुना. इस पर उन्हें सैन्य कार्यवाही की धमकी दी गई. इस प्रकार कश्मीर की कहानी एक बार फिर से दोहराई गई.

15अप्रैल 1948  को बलूचिस्तान का पाकिस्तान में विलय हो गया. जिस तरह से कश्मीर के मामले में जनमत संग्रह का झांसा दिया गया था उसी तरह से “पूर्ण स्वायत्ता” और ब्रिटिश राज की राजनीतिक स्थिति को यथावत लागूकरने का झांसा अहमद यार खान को भी दिया गया था. बलूच जनता में विद्रोह के बीज विलय के साथ ही पड़ गए थे. जनता सड़को पर उतर गई और इस विलय का व्यापक विरोध हुआ. उसके बाद बलूचिस्तान में विद्रोह और दमन का जो दौर शुरू हुआ वो आज भी बदस्तूर जारी है.

बलूच राष्ट्रीयता: एक उलझी हुई गुत्थी

बलूचिस्तानका जिक्र होने पर जो तस्वीर दिमाग में उभरती है वो है लम्बी दाढ़ी. पगड़ी और हाथ में AK 47 लिए हुए मौलाना किस्म के विद्रोही की. ये तस्वीर हमें इस्लामिक क्रांति के पूर्वाग्रहों के सांचे में एकदम फिट होती नज़र आती है. लेकिन यहाँ मामला एकदम उल्टा है. जन “इस्लामिक गणराज्य पाकिस्तान बन रहा था तब बलूचिस्तान पर कब्ज़े के उसके तर्क लगभग वही थे जो आज के दौर की इस्लामिक क्रांति के हैं. बलूच राष्ट्रीयता का तर्क इसके खिलाफ खड़ा होता है.

ईरान,अफगानिस्तान और मुग़ल साम्राज्यों के बीच पले-बढे बलूचिस्तान ने ये सबक बचपन में ही सीख लिया था की मज़हब और सियासी आज़ादी एकदम अलहदा मसाले हैं. धर्म किसी भी मायने में राष्ट्रीयता को तय नहीं करता. बलूचिस्तान के राष्ट्रवादी नेता नवाब खैर बक्स मर्री एक इंटरव्यू में इसी बात को साफ़ करते हुए कहते हैं “हम अपने धार्मिक विश्वास की वजह से मुसलमान है. राष्ट्रीयता का इससे कोई लेना-देना नहीं है. मेरा श्रेत्र और मेरी जनजाति मेरे लिए पहली प्राथमिकता है.” 

पाकिस्तानबनने के बाद पंजाब का राजनैतिक वर्चस्व पुरे पाकिस्तान पर हावी रहा है. बलूचिस्तान अब तक मुख्यधारा की राजनीती में किसी भी प्रकार के महवपूर्ण प्रतिनिधित्व से वंचित रहा है. सबसे बड़ा सूबा होने के बावजूद यहाँ के लोगो मिल रही शिक्षा और स्वास्थ जैसी बुनियादी जन-सेवा देश में सबसे घटिया हैं. बलूचिस्तान का राष्ट्रिय आन्दोलन इन्ही असमानताओं पर टिका हुआ है. ये श्रेत्र लगातार सामाजिक और आर्थिक विकास के मामले में अछूत बना हुआ है. 2009में जब गिलानी सरकार ने “आगाज़-ए-हकूक-ए-बलूचिस्तान” नाम से विशेष पैकेज दिया तो यहाँ की अवाम ने उसे जकात कह कर ठुकरा दिया.

बलूचिस्तानप्राकृतिक संसाधनों के मामले में बहुत धनि श्रेत्र है. सोना,तम्बा,जिंक, खनिज तेल और गैस सहित यहाँ 127खनिज उपलब्ध हैं. इन संसाधनों के दोहन का कोई प्रत्यक्ष लाभ यहाँ की जनता को नहीं हो रहा है. बलूच लिबरेशन आर्मी के नेता बलूच खान अल-जजीरा को दिए इंटरव्यू में कहते है “ जितने प्राकृतिक संसाधन हमारी जमीन पर हैं वो आम बलूच की खुशहाल जिंदगी के लिए बहुत ज्यादा हैं. पर पंजाबी और दुसरे लोग इसका फायदा उठा रहे हैं.” 

इसकेअलावा मध्य-पूर्व से आने वाली आयल पाईप लाइन इसी क्षेत्र से हो कर गुजराती हैं. पश्चिमी एशिया और मध्य-पूर्व के व्यापार मार्गों का ये केंद्र है. ग्वादर बंदरगाह इस श्रेत्र को पाकिस्तानी अर्थव्यवथा के लिए महत्वपूर्ण बना देता है.दर-असल प्राकृतिक सम्पन्नता और महत्वपूर्ण भौगोलिक स्तिथि बलूचिस्तान के वर्तमान की सबसे बड़ी त्रासदी भी है. ये पाकिस्तान के बेरहम साम्राज्यवादी शिकंजे के जकडे जाने को एक आधार भी प्रदान करती हैं.

अंतर्राष्ट्रीय अखाडा

ईरान और अफगानिस्तान से सटे होने की वजह से बलूचिस्तान न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि अमेरिका के लिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है. बुश सर्कार के द्वारा शुरू हुई “ आतंक के खिलाफ जंग” अब अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर भारी पड रही है. ऐसे में पाकिस्तान को और अधिक अनुदान देना अमेरिका को ना-गंवारा गुजर रहा है. ऐसी स्थिति में आजाद बलूचिस्तान अमेरिका के लिए हर मायने में फायदे का सौदा साबित होगा. फ़रवरी 2012में हाउस ऑफ़ रिप्रजेंटेटिवमें बलूचिस्तान की आज़ादी का पुरजोर समर्थन करने का प्रस्ताव पारित कर अपने मंसूबे भी जाहिर कर दिए हैं. 

लम्बेसमय से पाकिस्तान भारत पर भी बलूच विद्रोहियों को आर्थिक और सामरिक मदद देने का आरोप लगता आया है.पर जैसा की इन दोनों मुल्को के साथ होता आया है एक आरोप लगता है और दूसरा सिरे से नकार देता है.पर भारत के बलूचिस्तान में हस्तक्षेप से साफ़ इंकार भी नहीं किया जा सकता.

इसकेअलावा चीन और यूरोपीय यूनियन की खास नज़र बलूचिस्तान पर बनी हुई है. असीम प्राकृतिक संसाधनों की वजह से ये श्रेत्र अंतर्राष्ट्रीय शिकारियों की नज़र में नर्म गोस्त की तरह उभरता है.हाल ही में बलूचिस्तान अंतर्राष्ट्रीय खनन माफियाओं के लिए खोला जा चूका है. ग्वादर बंदरगाह संसाधनों की लूट को आसान बनाने के लिए ही विकसित किया गया था. Antofagasta, बैरिक गोल्ड और  BHP Billitonजैसे गिद्ध अपनी उपस्थिति यहाँ दर्ज करवा चुके हैं.

बहरहालHuman Right Watch  की रिपोर्ट बलूचिस्तान की दर्दनाक कहानी बयां करती है. 2002से 2005 के बीच 4000 बलूचो को सेना द्वारा गिरफ्तार किया गया था जिनमे से सिर्फ 200  लोगो को ही कचहरी में पेश किया गया. जनवरी 2011से जुलाई 2011तक डेढ़ सौ लोगो की हत्या सेना द्वारा की गई. राजनैतिक और मानवअधिकार कार्यकर्ताओं की बड़े पैमाने पर हत्या हो रही है. पूरा बलूचिस्तान सेना और अर्धसैनिक बालो की शिकारगाह बना हुआ है. “kill and dump operations” अब तक कितने आम बलूच हलाक हो चुके हैं इसका सही हिसाब-किताब न तो सरकार के पास है और न ही किसी मानवाधिकार संगठन के पास है.

इसीबीच पिछली 13जनवरी को लोकतान्त्रिक तौर पर चुनी हुई सरकार को हटा कर बलूचिस्तान में फिर से राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया है. पिछले दो महीनो से बलूचिस्तान कर्फ्यू, दमन और हत्याओं का शिकार है. इन तमाम हालातों के बीच एक बेहतर कल का सपना मरने के बजाए और ज्यादा मजबूत हो रहा है. असहनीय वेदना और अत्याचार के खिलाफ लगातार जो विद्रोही स्वर गूंज रहा है, वो है “आज़ादी”....



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