-सरोज कुमार
![]() |
सरोज कुमार |
"...यह अनशन विश्वविद्यालय प्रशासन से मांग करने को लेकर था। यानि यह विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ था ना कि एबीवीपी या किसी अन्य संगठन के खिलाफ। फिर एबीवीपी की ओर से हमला क्यों हुआ। साफ पता चलता है कि हमला प्रशासन की शह पर हुआ है।विश्वविद्यालय प्रशासन किसी भी तरह छात्रों का अनशन तुड़वाना चाह रही थी। उनको झुकता न देख उसने एबीवीपी के आशीष सिन्हा के नेतृत्व में हमला करवाया..."

इस हमले में विश्वविद्यालय प्रशासन की भूमिका भी खुलकर सामने आई है। प्रॉक्टर की भूमिका संदिग्ध है। छात्रों का आरोप है कि प्रॉक्टर के ईशारे पर ही यह हमला हुआ है। यह आरोप यों ही नहीं लगाया जा रहा है। एआईएसएफ के छात्र छात्रवासों में बुनियादी सुविधाएं मुहाल करने, एक छात्र गोपाल का नाम काटे जाने पर उसके साथ न्याय करने समेत छात्रसंघ के अधिकारों पर अंकुश लगाने के विरोध में विश्वविद्यालय मुख्यालय पर पिछले पांच दिनों से अनशन कर रहे हैं।
यह अनशन विश्वविद्यालय प्रशासन से मांग करने को लेकर था। यानि यह विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ था ना कि एबीवीपी या किसी अन्य संगठन के खिलाफ। फिर एबीवीपी की ओर से हमला क्यों हुआ। साफ पता चलता है कि हमला प्रशासन की शह पर हुआ है। विश्वविद्यालय प्रशासन किसी भी तरह छात्रों का अनशन तुड़वाना चाह रही थी। उनको झुकता न देख उसने एबीवीपी के आशीष सिन्हा के नेतृत्व में हमला करवाया। प्रॉक्टर का विरोध पहले भी एआईएसफ और आइसा जैसे संगठन करते रहे हैं। पहले भी छात्रसंघ चुनावों में उसकी भूमिका की जांच की मांग की गई थी। चुनावों में एबीवीपी के आशीष सिन्हा के पक्ष में काम करने का आरोप भी उनपर लग चुका है। इसलिए वह उनसे खार खाया हुए थे साथ ही इस अनशन के उनकी मुश्किलें बढ़ा दी थी। ऐसे में कुलपति ने भी अनशनरत छात्रों से मिल कर उनकी मांगों पर विचार करने का आश्वासन दिया था। और प्रॉक्टर और डीन ऑफ स्टूडेंट समेत अन्य प्रोफसरों की टीम बना छात्रसंघ को साथ बैठा उनकी मांगों पर विचार करने का प्रयास किया था। लेकिन प्रॉक्टर कृतेश्वर प्रसाद डीन ऑफ स्टूडेंट के खिलाफ मोर्चा खोले रहते हैं। यहीं कारण रहा कि एबीवीपी हमला करने के साथ ही प्रॉक्टर की शह पर एआईएसएफ और डीन ऑफ स्टूडेंट के खिलाफ भी नारेबाजी करते रहे। एबीवीपी डीन ऑफ स्टूडेंट पर एआईएसएफ से मिलीभगत का आरोप लगा रहा था। मामला साफ है कि जब एआईएसएफ विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ धरने पर था तो एबीवीपी ने हमला क्यों किया। कुलपति भी इस मामले में उदासीन बने रहे।
गुरुवार को भी एआईएसएफ के छात्र धरने पर बैठे हुए थे। महासचिव अंशु कुमारी और उपाध्यक्ष समेत एआईएसएफ के कुछ छात्र और छात्राएं धरने पर मौजूद थी। अनशन विश्वविद्यालय मुख्यालय में ही चल रहा था। करीब 11 बजे दिन में आशीष सिन्हा करीब 30-40 बाहरी गुंडों के साथ परिसर में पहुंचा। पहले तो बाहर में उसने आर्ट कॉलेज के एक छात्र अविनाश कुमार को बुरी तरीके से मारा पीटा। फिर गुंडों के साथ अंदर घुस कर धरने पर बैठे महासिचव अंशु कुमारी और गोपाल के साथ धक्का-मुक्की और मारपीट करने लगे। गुंडों ने अंशु कुमारी को भी थपप्ड़ जड़े। उनके बैनर-पोस्टर फाड़ डाला और उनको गालियां दीं। बाद में मौजूद कर्मचारियों और मौजूद पुलिसवालों ने मुख्यालय कार्यालय का दरवाजा बंद कर एबीवीपी के गुंड़ों को बाहर किया। हाल ये बना रहा कि एआईएसफ के अनशनरत छात्रों समेत अन्य कर्मचारियों को मुख्यालय के अंदर घंटों कैद रहना पड़ा। वहीं एबीवीपी वाले आशीष के नेतृत्व में दरवाजे पर ही बैठ उनको धमकाते रहे।
छात्रसंघ महासिचव अंशु कुमारी ने बताया कि एबीवीपी वालों के हमले के वक्त उन्होंने फिर स्थानीय पुलिस और विश्वविद्यालय प्रशासन को फोन करती रही। वहां तैनात पुलिसवालों के सामने ही हमला हुआ पर किसी ने उन्हें रोका नहीं। और तो और घटना के दो-तीन मिनट पहले ही जहां प्रॉक्टर का नंबर ऑन बता रहा था। हमला होते ही उन्होंने फोन किया तो प्रॉक्टर ने फोन ऑफ कर लिया। साफ जाहिर होता है कि प्रॉक्टर को इसी जानकारी रही थी। एबीवीपी वाले हमला कर परिसर में ही घंटों जमे रहे। बाद में स्थानीय पुलिस डीएसपी और थानेदार पहुंचे। लेकिन उल्टे डीएसपी एआईएसफ के खिलाफ ही बोलते रहे। वह अनशन को ही गलत बताते रहे। जबकि साफ है कि अनशन पर विचार करना प्रशासन का काम था ना कि एबीवीपी का।
करीब एक-देढ़ घंटे बाद एआईएसएफ के समर्थन में भी कुछ छात्र जुटने लगे। एबीवीपी वाले बाहरी गुंडे तो मौजूद थे ही। हंगामा बढ़ने के आसार पर पुलिस ने फिर एबीवीपी और बाकी छात्रों को परिसरा से हटाया और पुलिस बल तैनात कर दिया। जबकि यहीं पुलिस पहले मूकदर्शक बनी हुई थी। साफ है कि एबीवीपी का आशीष सिन्हा जो चाहता था वह पूरा हो चुका था। प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस का समर्थन उसे यों ही नहीं मिला हुआ है। वह भाजपा विधायक अरुण कुमार सिन्हा का बेटा है। चुनावों के दौरान भी उसे इसी तरह समर्थन और गोलबंदी जुटाई गई थी।
इस हमले के बाद भी अनशनरत छात्रों का हौसला कम नहीं हुआ है। वे अनशन पर डटे हुए हैं। इनमें से एक छात्र महेश की हालत ज्यादा खराब थी। उसे दो बारी पीएमसीएम में भर्ती करना पड़ा था। फिर भी वह वापस आर धरने पर डटे हैं। निखिल कुमार भी इसी हाल में धरने पर बैठे हैं। दोनों की हालत बिगड़ती जा रही है लेकिन प्रशासनिक रवैएया उदासीन ही नहीं एबीवीपी जैसे हमले करवा अनशन खत्म करवाने का है।
महासचिव अंशु कुमारी को भी धमकी मिलती रही है। कैबिनेट के चुनाव के दौरान भी उन्हें एबीवीपी के गुंड़ों ने बुरा परिणाम भुगतने की धमकी दी थी। इस बार भी उन्हें ऐसी ही धमकियां दी गई हैं। बावजूद इसके उनके उत्साह में कमी नहीं हुआ है। वे बेखौफ हो कर कहती हैं , "ऐसे धमकियों से हम सबों का संघर्ष रुकने वाला नहीं हैं। मुझे एबीवीपी के गुंडें धमकियां देते रहे हैं, जान से मारने तक की धमकी मिलती है। इस बार भी उन्होंने मारपीट के साथ ही धमकी भी दी, इनसे हम डरने वाले नहीं हैं।"
इस मामले में एआईएसएफ की ओर से एबीवीपी के आशीष सिन्हा, आलोक वत्स, निशांत कुमार समेत 50 लोगों पर स्थानीय थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई गई है। वहीं अंशु कुमारी ने मानवाधिकार आयोग, महिला आयोग, जेंडर सेंसटाइजेशन सेल और महिला थाने में भी शिकायत दर्ज कराई है।
सरोज युवा पत्रकार हैं. अभी पटना में एक दैनिक अखबार में काम .
इनसे krsaroj989@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.