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एक दामिनी अभी जिंदा है, आइये उसे न्याय दिलाएं !

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आशीष कुमार ‘अंशु
-आशीष कुमार 'अंशु'

"...एक अनुमान के अनुसार लगभग पचास फीसदी बलात्कार के मामले राजस्थान में न्याय की राह देख रहीं हैं और चालिस फीसदी मामलों को राज्य की पुलिस ने गलत ठहरा कर खारिज कर दिया है। ऐसे में बिहार से आए एक मजदूर परिवार की कहानी को कौन सुनता?..." पर आप सुनें... 


"सीकर में जिस बच्ची के साथ गलत हुआ, वास्तव में यह मामला दिल्ली से कम नृशंस नहीं है। लेकिन यह लड़की अल्पसंख्यक समाज से ताल्लुक रखती है। इसलिए इसे महत्व नहीं दिया गया। सीकर के लोगों ने भी मामले को महत्व नहीं दिया क्योंकि लड़की बिहार की है।"

सीकर में एक नाबालिग लड़की के नृशंश बलात्कार के मामले में जयपुर में राजस्थान अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष माहिर आजाद से बात हुई तो उन्होंने उपरोक्त शब्दों में स्वीकार किया कि लड़की को न्याय मिलने में देरी इसीलिए हो रही है क्योंकि वह बच्ची नाबालिग है। एक परिवार अपराधियों की गिरफ्तारी के लिए और कितना इंतजार करे जबकि घटना को लंबा वक्त गुजर गया।

घटनापिछले साल ईद के दिन की है। जब अपनी बहनों के साथ फिल्म देखकर आ रही एक ग्यारह साल की बच्ची को कुछ लोग जबरन अपने साथ गाड़ी में बिठाकर ले गए। उस पर घंटो गाड़ी में सवार युवक ज्यादती करते रहे लेकिन पुलिस उन्हें तलाश नहीं पाई और अपराधी उसे मरने की हालत में लहू लुहान करके सड़क पर फेंक गए। पुलिस पूरी रात उस बच्ची को तलाशती रही। वह नहीं मिली। वह बच्ची खून से लथपथ हालत में पन्द्रह घंटे बाद, अगले दिन साढे़ ग्यारह बजे मिली। सीकर में उसका ईलाज शुरू हुआ लेकिन डॉक्टरों ने उसके अंदरूनी हिस्सों में लगी चोट की गंभीरता को समझते हुए, उसे जयपुर रेफर किया। इस घटना को अब छह महीने होने को जा रहा है। वह बच्ची इस वक्त जयपुर हाउस (दिल्ली) में जिन्दगी और मौत से लड़ रही है। आने वाले महीनों में उसके तीन ऑपरेशन होने हैं।

इसकेपहले बच्ची का ईलाज जेके लोन अस्पताल (जयपुर ) में चल रहा था। वहां उसे हमेशा ह्त्या का डर सताता रहा। राजस्थान में नागरिक समाज ने इस घटना पर बातचीत बंद कर दी थी। दिसम्बर में दिल्ली-दामिनी की घटना के बाद सामाजिक कार्यकर्ताओं को इसकी याद आई। इस तरह पांच महीने पुराना मामला मानो एक बार फिर से मीडिया में आया। बच्ची के दरभंगा (बिहार) से होने के कारण इस मामले में बिहार की सरकार भी सक्रिय हुई। यह बच्ची अपने पिता की मृत्यु के बाद अपनी बड़ी बहन के पास सीकर (राजस्थान) रहने आई थी। साथ में उसकी एक बडी बहन और मां भी आए। बहुत ही गरीबी में कट रही जिन्दगी में अचानक ईद के दिन मानों भूचाल आ गया।

एकअनुमान के अनुसार लगभग पचास फीसदी बलात्कार के मामले राजस्थान में न्याय की राह देख रहीं हैं और चालिस फीसदी मामलों को राज्य की पुलिस ने गलत ठहरा कर खारिज कर दिया है। ऐसे में बिहार से आए एक मजदूर परिवार की कहानी को कौन सुनता?

सामाजिककार्यकर्ता नसीमा खातून के अनुसार- ‘आज कोई इस बच्ची की आवाज नहीं सुन रहा। कल खुदा ना करे कुछ गलत हो, लेकिन कुछ लोग अपना सिर पीटने के लिए, उस दिन के इंतजार में है। इस बच्ची को जिन्दगी की अभी जरूरत है, मदद के लिए अभी हाथ बढ़ाइए। आज उसे अच्छे से अच्छा ईलाज चाहिए। आज आप जितना कर सकते हैं, कीजिए- कहीं मदद के लिए हाथ बढ़ाते-बढ़ाते बहुत देर ना हो जाए।’

दिल्लीदामिनी घटना के बाद बीते गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों ने दिल्ली गैंग रेप की घटना की निन्दा की, वहीं दूसरी तरफ जयपुर के अस्पताल में सीकर की पीड़िता, जिन्दगी मौत से जुझ रही थी।

जयपुरकी बात करूं तो वहां के सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं के बीच जब पीड़िता के अपराधियों - जो जमानत पर खुले में घूम रहे हैं- की गिरफ्तारी की बात होनी चाहिए थी। उसके अच्छे स्वास्थ्य की बात होनी चाहिए। उस वक्त वहां मिलने वाले अधिक सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता उन पांच लाख रुपयों की ही बात करते मिले जो उस बच्ची को राजस्थान के मुख्यमंत्री कोष से दिया गया था। यह रकम फिक्स डिपोजिट के तौर पर पीड़िता को दिया गया। स्वास्थ्य पर और उस बच्ची के अपराधियों की गिरफ्तारी और उन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिलने की बात पर किसी का स्पष्ट बयान नहीं है। बाद में पीड़िता के परिवार वालों ने साफ तौर पर मीडिया से कहा कि उन्हें सरकार से किसी भी तरह की आर्थिक मदद नहीं चाहिए। वे सारा पैसा सरकार को लौटाना चाहते हैं, जो उन्हें मिला है।

वास्तवमें राजस्थान में चुनाव करीब हैं और यह बात जाहिर है कि सरकारें चुनावी मौसम में न्याय से अधिक समीकरणों पर विचार करती है।

पीपुल्सयूनियन फॉर सिविल लिबर्टिज की सचिव कविता श्रीवास्तव का कहना था-
‘सीकर बलात्कार मुद्दे पर कुछ लोग राजनीति कर रहे हैं। इस तरह एक संवेदनशील मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए।’

12जनवरी को जब बच्ची का ईलाज हुआ, उस वक्त डॉक्टरों ने विश्वास दिलाया था कि बच्ची एक दो सप्ताह के अंदर घर चली जाएगी। लेकिन अब डॉक्टरों की तरफ से नया बयान आया है कि लड़की को तीन महीने और अस्पताल में बिताना होगा। लड़की की बहन ने बातचीत में बताया कि कोई डॉक्टर नहीं बताता कि मेरी बहन का क्या ईलाज चल रहा है? सबकुछ चुपके-चुपके कर रहे हैं। हमें ईलाज को लेकर अंधेरे में क्यों रखा जा रहा है। एक बार कहा जाता है कि दीदी को जल्दी ही अस्पताल से घर जाने दिया जाएगा और अगले ही दिन डॉक्टर उसे लेकर ऑपरेशन थिएटर में चले जाते हैं।

बच्ची के परिवार के लोग पहले से चाहते थे कि उसका ईलाज बाहर हो अथवा बाहर के डॉक्टरों की देखरेख में हो। जयपुर का जेके लोन अस्पताल बच्ची के लिए सुरक्षित नहीं है। मीडिया और कुछ ईमानदार सामाजिक कार्यकर्ताओं की मांग और दबाव के बाद अन्तिम में बच्ची को जेके लोन अस्पताल से निकाल कर दिल्ली के एम्स में दाखिल कराया गया। अब बच्ची राजस्थान भवन (दिल्ली) में है। आने वाले समय में उसके कुछ ऑपरेशन होने हैं।

इसपूरे मामले में राजस्थान महिला आयोग की अध्यक्ष लाड कुमारी जैन ने कहा- ‘पहले दिन उस बच्ची से जब हम मिले, वह बातचीत करने की हालत में नहीं थी। पांच महीने पुरानी यह खबर अब अचानक इतनी बड़ी खबर कैसे बन गई?अपराधियों को जरूर सजा मिलनी चाहिए। लेकिन हम सबको ट्रायल कोर्ट बनने से भी बचना चाहिए। इसके साथ-साथ इस तरह के कानून की जरूरत भी है कि इस तरह के मामले में एंटी सिपेटरी बेल दोषियों को नाम मिले।’

गौरतलबहै कि जेके लोन अस्पताल में जिन छह डॉक्टरों की एक बोर्ड बच्ची के ईलाज पर नजर रखने के लिए बनाई गई थी, उस बोर्ड ने भी प्रशासन को भेजे अपने रिपोर्ट में बच्ची का ईलाज बाहर कराने की अनुशंशा की थी। बोर्ड के सदस्यों का मानना था कि चूंकि पिछले कुछ समय में परिवार के लोगों का विश्वास डॉक्टरों पर कम हुआ है, इसलिए वे मानते हैं कि बच्ची का ईलाज बाहर होना चाहिए। डॉक्टर एलडी अग्रवाल प्रारंभ से ही बच्ची के ईलाज से जुड़े हैं और वे यूनिट हेड थे । डॉक्टर अग्रवाल मानते हैं- ‘यदि बच्ची का ईलाज लंबा खिंच रहा है और बार-बार स्वस्थ्य होने के करीब पहुंच कर वह फिर बीमार हो जाती है तो वह यह बच्ची से अधिक हम डाक्टर्स के लिए शर्मनाक है।’

बहरहाल स्वास्थ्य की लड़ाई अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के डॉक्टर और बच्ची/बच्ची के परिवार वाले मिल कर लड़ रहे हैं लेकिन उसके लिए न्याय की लड़ाई अब भी अधुरी है। उस बच्ची के अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। अपराधियों को सजा मिले इस मुद्दे पर बात करने के लिए ना राजनीतिक दल तैयार हैं और ना राजस्थान के सभ्य समाज फिर क्या अपराधी यूं ही बच जाएंगे। अगले अपराध को अंजाम देने के लिए।


आशीषसे संपर्क का पता http://facebook.com/ashishkumaranshu


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