उत्तराखंड में ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए पिंडारी ग्लेशियर एक महत्वपूर्ण डेस्टिनेशन है. पिंडारी के साथ ही हिमालय के कई शिखरों, घाटियों में लम्बी-लम्बी यात्राओं का अनुभव बटोर चुके केशव भट्ट पिंडारी से सबसे नजदीक के क़स्बे बागेश्वर में रहते हैं. वे इस ट्रेक के लिए कुछ ख़ास टिप्स दे रहे हैं. पढ़ें चौथी क़िस्त-
लगभग 1982 मीटर की उंचाई पर बसा खाती गांव यहां से लगभग आठ किलोमीटर की दूरी पर है. धाकुड़ी से खर्किया तक तीनेक किलोमीटर का ढलान है. फरवरी से अप्रैल माह तक इस रास्ते के दोनों ओर बुरांश की लालीमा छिटकी मिलती है. करीब डेढ किलोमीटर के बाद रास्ते के किनारे वन विभाग द्वारा बनाया गया हर्बल गार्डन है. वन विभाग ने 2008 में इसे जड़ी-बूटी के साथ ही पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बनाया था. लेकिन इस हर्बल गार्डन के हालात देख ऐसा कुछ लगता नहीं है. गार्डन में थाम रिंगाल, तेज पत्ता, थुनेर-टेक्सास बकाटा, अतीस, जटामासी, कुटकी, सालम मिश्री की पौंध भी लगाई गई लेकिन वन विभाग का ये प्रयास रंग नहीं ला सका. कुछ कदमों के बाद जंगल खत्म होते ही बांई ओर दूर तक फैले पहाड़ों की गोद में बसे बधियाकोट से लेकर वाच्छम तक दर्जनों गांवों की झलक दिखती है.
थोड़ा आगे भगदाणुं नामक जगह है. भगदाणुं लगभग दस-पन्द्रह मवासों का रास्ते के दोनों ओर फैला हुआ छोटा सा गांव है। करीब किलोमीटर भर उतार के बाद मिलता है खर्किया. पहले के और आज के खर्किया में बहुत अंतर आ गया है. अब यहां पर टूरिस्टों के रूकने के लिए तीनेक साल पहले एक ‘प्रिन्स’ नामक रैस्ट हाउस भी बन गया है. यहां तक कर्मी होते हुए कच्ची सड़क भी पहुंच गई है. हांलाकि सड़क के हालात बहुत सही नहीं हैं लेकिन जीपों में सामानों के साथ सवारियां भी किसी तरह यहां तक पहुंच ही जाती हैं. खर्किया से एक रास्ता सीधी नीचे उतार में पिंडर नदी को पार कर उंचाई में बसे वाच्छम गांव को जाता है. दूसरा रास्ता दाहिने को हल्के उतार के बाद हल्की चढ़ाई लिए हुए उमुला, जैकुनी, दउ होते हुए खाती गांव को है. अब जैकुनी व दउ में भी टूरिस्टों के रहने के लिए स्थानीय लोगों ने अपने रैस्ट हाउस भी बना लिए हैं. रास्ते में घने पेड़-झाडि़यों के झुरमुटों के मध्य बने गधेरों से कल-कल बहता पानी हर किसी के मन को खींचता सा है.
खाती से आधा किलोमीटर पहले तारा सिंह का संगम लाॅज भी है. खाती गांव इस यात्रा मार्ग का अंतिम गांव है, जहां पर सुंदर व गहरी घाटी तथा पिंडर नदी का किनारा है. खाती गांव में पीडब्लूडी के साथ ही स्थानीय लोगों के करीब आधा दर्जन रैस्ट हाउस हैं. गांव से आधा किलोमीटर आगे निगम का रैस्ट हाउस भी है. इस गांव के ज्यादातर युवा पर्वतारोहण में माहिर हैं. गांव में काली मंदिर की भी काफी महत्ता है.
2013 की आपदा के बाद से अब यहां से आगे के रास्ते के हालात काफी बदल गए हैं. तब पिंडर व कफनी क्षेत्र में लगातार बारिश से पिंडर नदी में आई भयानक बाढ़ अपने साथ कर्णप्रयाग तक सभी पुलों को बहा ले गई. द्ववाली से मलियाधौड़ तक पिंडर नदी के किनारे बना आरामदायक पैदल रास्ता भी इस आपदा की भेंट चढ़ गया. हांलाकि अभी यहां रास्ता बन रहा है लेकिन ये रास्ता कब तक बन जाएगा कहा नहीं जा सकता.
2013 से पहले खाती से आगे टीआरसी होते हुए पिंडर नदी के किनारे मलियाधौड़ को जाना होता था. अब एक नया संकरा रास्ता गांव वालों ने गांव में काली मंदिर के बगल से पिंडर नदी के पास तक खुद ही ईजाद कर लिया है. इस रास्ते की जानकारी गांव में ही मिल जाएगी कि कौन सा रास्ता अभी ठीक है.
खाती से द्ववाली पहले दस किलोमीटर था लेकिन अब मलियाधौड़ से पिंडर नदी के साथ-साथ दांए-बांए होते हुए यह करीब एक किलोमीटर ज्यादा हो गया है. वैसे रास्ते में कई खूबसूरत झरने आपकी थकान मिटाने के लिए हैं. द्ववाली तीव्र पहाड़ी ढलानों के अत्यन्त संकुचित घाटी क्षेत्र में है. यहां पर पिंडर व कफनी नदियों का संगम होता है. पिंडर नदी आगे गढ़वाल की ओर बहकर कर्णप्रयाग में अलकनंदा से संगम बनाती है. द्ववाली में पीडब्लूडी के साथ ही निगम व स्थानीय दुकान वालों के वहां रहने की व्यवस्था है. यहां से पिंडारी तथा कफनी ग्लेशियर के लिए रास्ते बंट जाते हैं.....
अभी जारी है..