उत्तराखंड में ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए पिंडारी ग्लेशियर एक महत्वपूर्ण डेस्टिनेशन है. पिंडारी के साथ ही हिमालय के कई शिखरों, घाटियों में लम्बी-लम्बी यात्राओं का अनुभव बटोर चुके केशव भट्ट पिंडारी से सबसे नजदीक के क़स्बे बागेश्वर में रहते हैं. वे इस ट्रेक के लिए कुछ ख़ास टिप्स दे रहे हैं. पढ़ें तीसरी क़िस्त-
लोहारखेत से धाकुड़ी की पैदल दूरी लगभग नौ किलोमीटर है. समय करीब पांच घंटे मान कर चलिए. चलने से पहले अपनी वॉटर बोटल में पानी जरूर भर लें. हांलाकि पानी इस रास्ते में कई जगहों पर मिलते रहेगा लेकिन स्वयं के पास पानी होना बहुत जरूरी है.
इस पैदल रास्ते में दोनों ओर सैकड़ों की तादात में बुरांश के पेड़ हैं. फरवरी से अप्रैल तक इस रास्ते में बुरांश के फूल बिछे रहते हैं. आप यदि खामोशी से चलें तो अपने दुनिया में मगन कई पक्षियों की सुरीली आवाजों का आनंद भी ले सकते हैं.
करीब डेढ़ किलोमीटर बाद ये कच्ची सड़क बांई ओर चौढ़ास्थल गांव की ओर को मुड़ जाती है. इस जगह का नाम रगड़ है. यहां से दाहिने को पैदल रास्ते में चलते चले जाना हुवा. आपको हल्की चढ़ाई लिए हुए घना जंगल मिलेगा. जिसकी छांव में चलने का आंनद आपको वहीं मिलेगा.
रास्ते में अंग्रेजों के जमाने के बने लकड़ी के पुल भी मिलेंगे. हांलाकि कुछ पुलों की हालात खराब होने पर बमुश्किल उन्हें कई वर्षों बाद सुधारा गया है. पैदल रास्ता धीरे-धीरे पहाड़ के साथ अंदर तक ले जाते हुए दाहिने की ओर मुड़ेगा. एक पथरीली चढ़ाई के बाद मिलेगा झंडी धार. यहां कुछ देर आप अपनी सांसों को आराम दे सकते हैं.
यहां एक खूबसूरत मंदिर बुरांश से घिरा हुवा है. पहले यहां एक बुर्जुग परिवार चाय-नाश्ते की दुकान चलाते थे. धीरे-धीरे आवाजाही कम होने पर वो भी इस जगह को छोड़कर चले गए. अब यहां सिर्फ दुकान के खंडहर ही उनकी याद दिलाते हैं.
यहां से आगे कुछ दुरी पर है तल्ला धाकुड़ी. पर्यटन सीजन में यहां एक दुकान खूब चलती है. यदि आप सुबह बिना नाश्ते किए चले हैं तो यहां आपको हल्का नाश्ता मिल जाएगा. यहां पानी के धारे में मीठा पानी भी हर पल सबकी प्यास बुझाते रहता है. यहां से आगे का रास्ता थोड़ी सी चढ़ाई लिए हुए है.
कुछ जगहों पर शार्टकट रास्ते भी हैं, लेकिन यदि आप पहली बार जा रहे हैं तो मुख्य रास्ते को ना छोड़े. आगे धीरे—धीरे बुग्याली घास के मैदान आपकी थकान मिटाते चले जाएंगे. कुछ किलोमीटर मीठी चढ़ाई के बाद एक बुग्याली घास का तिरछा मैदान आपको मिलेगा. इस जगह पर जर्मनी के पीटर कोस्ट की याद में एक समाधी है. 56 वर्षीय पीटर तीन जून 2000 को पिंडारी से अपने साथियों के साथ वापस लौट रहे थे. हृदय गति रूक जाने से उन्होंने यहां पर अंतिम सांस ली.
यहां से अब हल्की चढ़ाई के बाद रास्ता आपको धाकुड़ी के शीर्ष में ले जाएगा. स्थानीय लोग इस जगह को चिल्ठा विनायक धार भी कहते हैं. यहां पहुंचते ही सामने हिमालय को देख आपकी थकान दूर हो जाएगी. यहां से अब धाकुड़ी को एक किलोमीटर का ढ़लान है.
थोड़ा इस जगह की जानकारी भी ले लें. इस जगह से दाएं-बाएं की ओर उंचाई पर बने पुराने दो मंदिरों के लिए दो रास्ते हैं. बांई ओर करीब एक किलोमीटर की दूरी पर कर्मी गांव के शीर्ष में बने मंदिर को कर्मी चिल्ठा मंदिर तथा दाहिने ओर करीब दो किलोमीटर की दूरी पर सूपी गांव के शीर्ष में बने मंदिर को सूपी चिल्ठा मंदिर के नाम से जाना जाता है.
यहां के लोगों के मुताबिक सूपी चिल्ठा मंदिर पहले बना है. इस मंदिर की बनावट को देखकर ऐसा लगता भी है. कर्मी चिल्ठा मंदिर को जाते हुए एक खूबसूरत बुग्याल मिलता है. वक्त हो और धाकुड़ी में यदि दो दिन बिताने हों तो इस बुग्याल और मंदिर का दीदार करना ना भूलें. अकसर पिंडारी या अन्य ग्लेशियरों से वापसी में ज्यादातर प्रकृति प्रेमी यहां जाना पसंद करते हैं. कुछ तो अपने टैंट के साथ यही पसर जाते हैं. यहां से गढ़वाल से लेकर नेपाल तक फैले हिमालय की खूबसूरत रेंज दिखती है.
धाकुड़ी लगभग 2550 मीटर की उंचाई पर है. यहां कुमांउ मंडल विकास निगम के साथ ही पीडब्लूडी के रेस्ट हाउस हैं. कुछ दुकानें भी हैं. जिनमें भीड़ होने की स्थिति में रहने की व्यवस्था भी हो जाती है. धाकुड़ी में अभी फाइबर हट बने हैं लेकिन इनका काम पूरा नहीं हुवा है. आपके पास यदि टैंट है तो यहां मैदान में लगाने के बेहतर जगह है.
धाकुड़ी में मौसम प्रायः ठंडा रहता है. अकसर दिसंबर अंत से फरवरी-मार्च तक धाकुड़ी व चिल्ठा टाॅप बर्फ से लदकद रहते हैं. अप्रैल से जून के मध्य तथा सितंबर से दिसंबर तक का मौसम काफी सुहावना रहता है. यहां पीडब्लूडी के बंगले में तैनात हयात सिंह काफी मिलनसार और हसमुंख है. धाकुड़ी में अंग्रेजों के जमाने के बने डांक बंगले बेहतर तकनीक से बने हैं. बाहर खुला हरा-भरा आंगन और अंदर एक बरामदा है. ठंड में कमरे में बने फायर प्लेस में जलती आग कमरे में अच्छी गर्माहट भर देती है. सूर्योदय और सूर्यास्त के वक्त धाकुड़ी के सामने मैक्तोली, नंदा कोट समेत हिमालय की घाटियों में सूरज की लाल रक्तिम किरणों से जो अद्भुत नजारा दिखता है, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता.
धाकुड़ी इस साहसिक पैदल यात्रा का पहला पढ़ाव है.
अभी जारी है..