"...छात्रों ने दिल्ली के अपने साथियों पर हुए बर्बर लाठी चार्ज की निंदा करते हुए कहा कि शिक्षा हमारा बुनियादी हक़ है और यूजीसी का यह फैसला अप्रत्यक्ष तरीके से हमारे इस बुनियादी हक़ को सीमित करता है। एक तरफ तो सरकारें ‘सर्व शिक्षा अभियान’ और ‘राइट टू एजुकेशन’ के नाम पर कभी “भारत उदय” तो कभी “भारत निर्माण” की बातें करती हैं और दूसरी तरफ अपनी नीतियों के जरिए शिक्षा बजट में लगातार कटौती करते हुए उच्च शिक्षा को गरीब व आम विद्यार्थियों की पहुँच से दूर कर रही हैं।..."
यूजीसी चेयरमैन और मानव संसाधन विकास मंत्री का फूंका पुतला
सरकार की शिक्षा विरोधी नीतियों पर जताया रोष, फैसला तुरंत वापस लेने की मांग
यूजीसी द्वारा केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एमफिल और पीएचडी के शोध छात्रों को दी जाने वाली शोधवृत्ति को बंद किए जाने के निर्णय के खिलाफ़ 23 अक्तूबर को महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के सैकड़ों छात्र-छात्राओं द्वारा कैंपस में एक विरोध मार्च निकाला गया।
कैंपस के केंद्रीय विद्यालय परिसर से शुरू होकर यह मार्च वाया गर्ल्स हॉस्टल, कबीर हिल्स और गांधी हिल्स से होते हुए लगभग दो किलोमीटर का सफर तय कर नज़ीर हाट तक आया जहां पर यूजीसी के इस छात्र विरोधी फैसले के लिए जिम्मेदार यूजीसी अध्यक्ष वेदप्रकाश और मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी का पुतला फूंका गया।
ज्ञात हो कि अभी दो दिन पहले ही यूजीसी ने एक सर्कुलर जारी किया है जिसके अनुसार नए सत्र से केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में मिलने वाली नॉन-नेट फेलोशिप को बंद कर दिया गया है। इसके बाद से ही लगातार पूरे देश में यूजीसी के इस कदम का व्यापक पैमाने पर विरोध हो रहा है और विद्यार्थी सड़कों पर उतर आए हैं।
दिल्ली में यूजीसी के मुख्यालय के सामने सैकड़ों छात्र-छात्राएँ धरने पर बैठे हुए हैं और देश के बाकी हिस्सों से लोग उनके समर्थन में पहुँच रहे हैं। लेकिन प्रशासनिक तानाशाही और बर्बरता का आलम यह है कि अपने हक़ के लिए प्रदर्शन कर रहे इन छात्र-छात्राओं पर पुलिस एवं अर्ध-सैनिक बलों द्वारा लठियाँ बरसायी गईं जिसमें कई लोग घायल हुए हैं।
इसी क्रम में यूजीसी के इस फैसले के विरोध और दिल्ली के अपने संघर्षशील साथियों के साथ कदम मिलाते हुए आज हिन्दी विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने भी प्रोटेस्ट मार्च निकाला और मानव संसाधन विकास मंत्री व यूजीसी चेयरमैन का पुतला दहन किया।
छात्रों ने दिल्ली के अपने साथियों पर हुए बर्बर लाठी चार्ज की निंदा करते हुए कहा कि शिक्षा हमारा बुनियादी हक़ है और यूजीसी का यह फैसला अप्रत्यक्ष तरीके से हमारे इस बुनियादी हक़ को सीमित करता है। एक तरफ तो सरकारें ‘सर्व शिक्षा अभियान’ और ‘राइट टू एजुकेशन’ के नाम पर कभी “भारत उदय” तो कभी “भारत निर्माण” की बातें करती हैं और दूसरी तरफ अपनी नीतियों के जरिए शिक्षा बजट में लगातार कटौती करते हुए उच्च शिक्षा को गरीब व आम विद्यार्थियों की पहुँच से दूर कर रही हैं।
सरकारों का यह दोहरापन साबित करता है कि वे अपने देश की आम जनता को सोचने-समझने की चेतना से युक्त एक चिंतनशील नागरिक बनाने की बजाय सिर्फ अक्षर ज्ञान तक सीमित कर देना चाहती हैं ताकि उन्हें अपने फायदे के लिए जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र के आधार पर भेड़-बकरियों की तरह कभी भी मन-मुताबिक हाँका जा सके।
विद्यार्थियों ने मांग की कि यूजीसी का यह निर्णय तत्काल वापस लिया जाए ताकि गरीब और पिछड़े तबकों के उन असंख्य छात्र-छात्राओं के लिए भी उच्च शिक्षा के दरवाजे खुले रह सकें जहां तक लाखों में से चंद खुशनसीब लोग ही पहुँच पाते हैं। इस दौरान बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं के साथ ही कई शिक्षक भी शामिल हुए और उन्होंने विद्यार्थियों को अपना समर्थन दिया।
इस दौरान छात्रों ने आगे की रणनीति के रूप में एक हस्ताक्षर अभियान चलाने का फैसला किया जिसे यूजीसी एवं मानव संसाधन मंत्रालय के साथ ही राष्ट्रपति को भेजा जाएगा और इसके अलावा यह भी तय किया गया कि विद्यार्थियों का एक प्रतिनिधिमंडल दिल्ली जाकर दिल्ली के साथियों के साथ इस लड़ाई में भागीदारी करेगा।