"...इस इलाके में पहले से ही गोत्रों और जातियों में गहरी खाई थी। ऐसे में बहुत आसानी से सांप्रदायिक भावनाओं को पाल पोसकर बड़ा करने वाले हिन्दुत्वादी संगठनों ने आगे इस इलाके में ‘बहू-बेटी बचाओ’ पंचायतों के माध्यम से जाट समुदाय को गोलबंद किया। इस गोलबंदी के बाद क्षेत्र में जगह-जगह रविदास मंदिरों को केन्द्र बनाकर दलितों में ‘हिंदू बोध’ को संगठित कर ‘लव जिहाद’ को आतंकी षडयंत्र बताते हुए प्रसारित किया जा रहा है।... "
साभार- http://www.outlookindia.com/ |
जयतिभारतम की पश्चिमी उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण और दुष्कर्म के मसले पर दायरयाचिका में धार्मिक रंग देने और अभद्र भाषा के इस्तेमाल को तो न्यायालय नेखारिज कर दिया पर समाज में हो रहा यह विषरोपण कैसे खारिज हो, यह एक चुनौतीहै। मेरठ के खरखौदा प्रकरण व साल भर से भी अधिक समय से पश्चिमी यूपी मेंसांप्रदायिक ताकतें हावी हैं और पूरे क्षेत्र में जिस तरीके से महिलाओं कीसुरक्षा के नाम पर ऐसी ताकतों को चुनावी सफलता मिली है, इसमें महिलाओं कीस्थिति का आकलन करना निहायत जरुरी हो जाता है। इसी बीच मुजफ्फरनगर केजाडवाड गांव में एक पंचायत ने लड़कियों के मोबाइल फोन व जींस पहनने पर रोक लगाते हुए कहा कि अगर वे ऐसा करती हैं तो इसके लिए उनके परिवारों पर भी दंडलगेगा।
वैसे तो खापों वाले इस इलाके में ऐसे पंचायती फैसले नएनहीं हैं। पर महिला सुरक्षा का सवाल जिस तरीके से हिंदू के लिए अलग औरमुस्लिम के लिए अलग हो रहा है वह एक मजबूत सांप्रदायिक पृष्ठभूमि कानिर्माण कर रहा है। इस इलाके में जहां गोत्रों और दूसरी जातियों मेंलड़के-लड़कियों के शादी कर लेने पर मारकर पेड़ से लटका दिया जाता हो वहांपर इस नई त्रासदी के आगमन और खासतौर पर दलित और मुस्लिम क्षेत्रों में ऐसीसांप्रदायिकता एक खतरनाक रुप अख्तियार कर चुकी है। इसकी पृष्ठभूमि मेंसंस्कृतीकरण की मूल अवधारणा है जो आधुनिकता को तो मौजूदा हालात मेंबर्दाश्त कर लेती है पर किसी दूसरे समुदाय के लड़के से प्रेम विवाह को हमलेके बतौर देखती है। जहां आज एक लड़की जो भले ही मोबाइल फोन या जींस पहननापसन्द करती है पर उसके साथ वह इस संशय में भी है कि वह कहीं किसी दूसरीसमुदाय के साथी के साथ प्रेम विवाह कर उसके धर्म को ‘मजबूती’ और अपने धर्मको ‘कंलकित’ तो नहीं कर रही है।
इस इलाके में पहले से हीगोत्रों और जातियों में गहरी खाई थी। ऐसे में बहुत आसानी से सांप्रदायिकभावनाओं को पाल पोसकर बड़ा करने वाले हिन्दुत्वादी संगठनों ने आगे इस इलाकेमें ‘बहू-बेटी बचाओ’ पंचायतों के माध्यम से जाट समुदाय को गोलबंद किया। इसगोलबंदी के बाद क्षेत्र में जगह-जगह रविदास मंदिरों को केन्द्र बनाकरदलितों में ‘हिंदू बोध’ को संगठित कर ‘लव जिहाद’ को आतंकी षडयंत्र बतातेहुए प्रसारित किया जा रहा है। आरएसएस के अनुषांगिक संगठन धर्म जागरण मंच नेहिंदू लड़कियों को बरगलाकर शादी और धर्म परिवर्तन के लिए चल रहे ‘लवजिहाद’ के खिलाफ ‘जंग जारी करते हुए’ रक्षाबंधन के मौके पर अभियान चलाकर इसमामले को एक पुख्ता आधार प्रदान किया। धर्म जागरण मंच इस बात को प्रचारितकरता है कि मुस्लिम लड़के जो हाथों में कलावा बांधते हैं, वो आज का फैशनहै, हिंदू लड़कियां उनके झांसे में न आएं कि वो उनके धर्म का सम्मान करतेहैं।
हमारे देश में बहुत सी हिंदू लड़कियां मुस्लिम लड़कों कोभाई मानते हुए राखी बांधती हैं पर ‘षडयंत्र के ऐसे सिद्धांत’ हमारीसांस्कृतिक ऐतिहासिक परंपरा को खत्म करने पर आमादा हैं। इन अफवाह तंत्रोंका इतना असर रहा कि रक्षाबंधन के पूरे त्योहार को जहां सोशल साइट्स पर‘शौर्यता’ का भाव दिया गया तो वहीं ‘ईद की बधाई क्यों नहीं दी जाए’ केअभियान चले। इसे हम अपनी संसद में भी देख सकते हैं, जहां प्रधानमंत्रीद्वारा ईद की बधाई न देने व देने और इफ्तार पार्टी क्यों नहीं दी गई जैसेसवाल उठे। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने इसे संसदीय कार्यवाई में भलेही शामिल न करने का निर्णय लिया पर देश की आम अवाम की जेहन में इससे निकलाजो संदेश दर्ज हो गया है, उसे निकालना इतना आसान न होगा।
हिंदुओंऔर मुस्लिमों में बढ़ती दरार का अंदाजा सहारनपुर के बाबा रिजकदास के बारेमे आई खबरों से लगाया जा सकता है कि वह मुस्लिमों के प्यार में ‘बीमार’ लड़कियों को ‘ठीक’ करते हैं। संघ गिरोह के प्रचार कि ‘लव जिहाद’ चल रहा हैने परिजनों में आतंक का संचार कर दिया है। इसका आकलन इससे लगाया जा सकता हैकि जिस समय सहारनपुर में सांप्रदायिक हिंसा की वजह से पूरा क्षेत्र अशांतथा, उस दौर में भी ‘लव जिहाद’ से आतंकित परिजन सहारनपुर आ रहे थे। प्रेमजिसके भाव का संचार आचार-विचार जैसे मूल तत्वों से होता उसे यहां भूत समझकरबाबा रिजकदास के यहां लड़की के सर से मुस्लिम लड़के का भूत उतरवाने लोगआते हैं। क्योंकि बाबा की ‘ख्याती’ दूर-दूर तक फैली है कि बाबा ‘मुस्लिम’ लड़के का भूत उतारने के ‘महारथी’ हैं।
हिंदू समाज के रक्षक केतौर पर ‘सुशोभित’ बाबा के सामने लोग अपनी लड़की को लाकर उसके बारे मेंबताते हैं कि कैसे वह मोबाइल, फेसबुक या अन्य के जरिए मुस्लिम लड़के केप्रभाव आई, उसके साथ घूमते-फिरते देखी गई, और लाख मना करने पर भी मानतीनहीं इस तरह से अपनी परेशानी बताते हैं। और फिर क्या बाबा ‘पवित्र’ मिनरलवाटर की एक बोतल और चावल के कुछ दानों के जरिए उन्हें ‘ठीक’ करते हैं।कभी-कभी ‘पवित्र’ मिनरल वाटर को छूने से इनकार करने पर लड़की के साथ बल काइस्तेमाल भी किया जाता है और हां बाबा तंत्र मंत्रों के जरिए भी इस ‘कालेजादू’ को खत्म करते हैं।
संघ इस पूरे क्षेत्र में ‘लव जिहाद’ के खिलाफ जागरुकता पैदा करने के नाम पर एनजीओ की श्रंखला भी विकसित किए हुएहै। जो उन हिंदू लड़कियों को जिन्होंने मुस्लिमों से विवाह कर लिया है, उनकी ‘घर वापसी’ करवाने की मुहीम चलाने के सहारे ‘लव जिहाद’ के अफवाह तंत्रको विकसित कर रहे हैं।
‘लव जिहाद’ का हौवा संघ परिवार ने खड़ाकिया है या यह वास्तविक है जैसे सवालो पर दक्षिणपंथी बुद्धिजीवी दिसंबर 2009 के केरल उच्च न्यायालय के फैसले को उद्धृत करते हैं। ऐसे में पिछलेदिनों सुप्रीम कोर्ट की टिप्पड़ी को भी हमको नजरंदाज नहीं करना चाहिएजिसमें अभद्र भाषा, धर्म को न्यायालय में लाने, याचिकाकर्ता द्वारा मामलेको जो रंग दिया जा रहा था इत्यादि पर यह याद दिलाया गया कि भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। देश की धर्मनिरपेक्षता न्यायालय परिसर तक सीमित नहोकर आम-अवाम तक हो इसके लिए नागरिक समाज को एक जुट होना होगा।
हमारासमाज जो गैर बराबरी, सांप्रदायिक, जातीय, नस्लीय और लिंग के आधार पर भेदकरता है वैसे समाज में ‘लव जिहाद’ के सहारे समाज को विघटित करना बहुत आसानहो जाता है। पर यह ध्यान में रहे कि यह वही मुनवादी ताकतें हैं जो पश्चिीमीउत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान आदि में गोत्रों के मध्यकालीन और बर्बरफरमानों का समर्थन करता है, आदिवासी-दलित लड़के की सवर्ण जाति की लड़की सेविवाह को मान्यता ही नहीं देता बल्कि ‘इज्जत के नाम पर हत्याएं’ भी करता हैऔर आदिवासी-दलित लड़कियों के साथ यौन दुराचार को अपना अधिकार समझता है।ऐसे में हमारे समाज को किसी ‘काले जादू’ वाले तांत्रिक रिजकदास की नहींबल्कि कबीर की अवधारणा की जरुरत है- ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।