इन्द्रेश मैखुरी |
"...क्या संवेदनशीलता ऐसी चीज हो सकती है,जो एक जैसे ही कई मामलों में अलग-अलग स्तर पर नजर आती हो?जो मामला मीडिया की सुर्खियाँ बन जाए उसमें संवेदनशीलता का स्तर अत्याधिक बढ़ जाए और मामला यदि सुर्खियाँ ना बटोर रहा हो तो उसकी तरफ झांका भी ना जाए! मुख्यमंत्री जैसे जिम्मेदार और क़ानून का अनुपालन कराने के लिए उत्तरदायी पद पर बैठे व्यक्ति के संवेदनशीलता प्रदर्शन में यदि ऐसा उतार-चढ़ाव दिखा रहा हो तो उस संवेदनशीलता के प्रदर्शन पर संदेह होना लाजमी है..."
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा |
देहरादूनमें 2009में अंशु नौटियाल हत्याकांड हुआ. डी.ए.वी.(पी.जी.)कालेज में बी.काम की छात्रा अंशु,घर की कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते पी.सी.ओ. में भी नौकरी करती थी और उसके बाद कम्प्युटर कोर्स करने जाती थी. ये उसकी रोज की दिनचर्या थी. लेकिन 23मई 2009को 21 वर्षीय अंशु घर नहीं पहुँची. दो दिन बाद 25मई 2009को देहरादून के जिलाधिकारी के आवास के बाहर एक बोरे में उसकी लाश मिली. इस हत्याकांड से देहरादून दहल गया. लोग सड़कों पर उतर आये. लगभग दो महीने तक चले आंदोलन और अंशु के परिजनों की मांग पर सरकार ने इस मामले में सी.बी.-सी.आई.डी. जांच के आदेश दिए. पुलिस ने इस मामले में एक दुकान के सेल्समैन प्रवीण चावला को हत्यारोपी बताकर गिरफ्तार किया. पुलिस के दावे के अनुसार प्रवीण का एक युवती से प्रेम प्रसंग चल रहा था. उसके पिता को फंसाने के लिए ही उसने अंशु की हत्या की. आरोप था कि वह 23 मई को अंशु को बहलाकर अपने घर ले गया और वहां उसकी हत्या कर दी. लेकिन पुलिस की यह सारी कहानी अदालत में रेत के महल की तरह ढह गयी और आरोपी युवक कुछ समय पहले अदालत से बरी हो चुका है. अंशु हत्याकांड में न्याय के लिए अभियान चला रहे डी.ए.वी.कालेज के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष पंकज क्षेत्री कहते हैं कि आरोपी तो बरी हो गया,लेकिन अंशु की हत्या तो हुई थी,तो हत्यारा कौन है और वो कैसे पकड़ा जायेगा? जिस समय अंशु नौटियाल हत्याकांड हुआ उस समय विजय बहुगुणा इस क्षेत्र के सांसद थे. तब भी इस प्रकरण में उनकी कोई उल्ल्लेखनीय भूमिका नहीं रही थी.आज जब वे मुख्यमंत्री हैं तब भी दोषियों को सजा दिलवाने में ना उनकी और ना ही उनकी सरकार की कोई रूचि दिखाई दे रही है.
नवम्बर2008में हल्द्वानी में प्रीती शर्मा हत्याकांड हुआ. नैनीताल जिले के हल्द्वानी के नजदीक स्थित मोतीनगर के तिराहे से लगभग आधा किलोमीटर दूर एक गन्ने के खेत में, प्राईवेट नौकरी करने वाली युवती प्रीती शर्मा की लाश मिली. इस हत्याकांड में बलात्कार के बाद हत्या का आरोप है. इस हत्याकांड के खिलाफ संघर्ष समिति बना कर इस क्षेत्र की जनता ने लगातार चार महीने तक आंदोलन चलाया. पुलिस ने भास्कर जोशी नामक एक व्यक्ति को इस हत्याकांड के सन्दर्भ में गिरफ्तार किया, जो पिछले दिनों अदालत से जमानत पर छूटा है. लेकिन प्रीती शर्मा हत्याकांड के विरुद्ध आंदोलन के लिए बनी संघर्ष समिति के संयोजक और भाकपा(माले) के राज्य कमेटी सदस्य कामरेड बहादुर सिंह जंगी का आरोप है कि पुलिस ने राजनीतिक संरक्षण प्राप्त बड़े अपराधियों को बचाने के लिए एक छुटभय्ये अपराधी को गिरफ्तार किया था. कौन जाने ये छुटभय्या भी कल ‘बाइज्ज़त’ बरी हो जाए.इस हत्याकांड के खिलाफ चले आंदोलन के दबाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूडी ने इस हत्याकांड की सी.बी.आई, जांच की घोषणा की थी.खंडूडी सत्ता से हट गए,उनके ममेरे भाई विजय बहुगुणा राज्य के मुख्यमंत्री हो गए.लेकिन चार साल बाद भी प्रीती शर्मा हत्याकांड की सी.बी.आई.जांच का दूर-दूर तक पता नहीं है.जिस समय इस हत्याकांड की सी.बी.आई.जांच की घोषणा हुई थी,उस समय राज्य में भाजपा की सरकार थी.मुख्यमंत्री खंडूडी समेत सभी भाजपाई ये दावा करते थे कि उनकी सरकार ने तो सी.बी.आई.जांच की संस्तुति केंद्र को भेज दी है.वहीँ नैनीताल संसदीय क्षेत्र के सांसद के.सी.सिंह बाबा का आरोप था कि भाजपा सरकार ने संस्तुति उचित प्रारूप के अनुसार नहीं भेजी,इसलिए उक्त हत्याकांड की सी.बी.आई.जांच नहीं हो पा रही है.इस तरह एक युवती की हत्या से जुड़ा इतना संवेदनशील मसला कांग्रेस-भाजपा के एक दूसरे को कमतर साबित करने की राजनीति की भेंट चढ गया. लेकिन आज तो राज्य में भी कांग्रेस की सरकार है और केंद्र में भी.मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा महिलाओं के यौन उत्पीडन की घटनाओं के प्रति अगर वाकई उतने ही संवेदनशील हैं,जितना कि उन्होंने दिल्ली गैंगरेप प्रकरण में स्वयं को दिखाना चाहा है तो वे क्यूँ नहीं चार साल से लंबित पडी प्रीती शर्मा हत्याकांड की सी.बी.आई.जांच के मामले को आगे बढ़ाते ?
उक्तदो मामले बेहद संगीन हैं.लेकिन इनसे भी संगीन मामला है संजना ह्त्याकांड का.10जुलाई 2012को नैनीताल जिले की लालकुआं तहसील के बिन्दुखता में आठ साल की बच्ची संजना को रात में घर से अगवा किया गया.सुबह उसकी लाश गन्ने के खेत में पायी गयी.दरिंदों ने अबोध संजना से दुष्कर्म करने के बाद गला घोट कर उसको मार डाला था.इस घटना के खिलाफ पूरे इलाके के लोग सड़क पर उतरे हुए हैं.इस क्षेत्र के विधायक और उत्तराखंड सरकार में श्रम मंत्री हरिश्चंद्र दुर्गापाल ने घटना के तुरंत बाद संजना के घर वालों को सांत्वना देते हुए ऐलान किया था कि अडतालीस घंटे में इस मामले का खुलासा कर दिया जाएगा.राज्य के एक जिम्मेदार कैबिनेट मंत्री की इस घोषणा से पीड़ित परिवार को लगा कि शायद उन्हें न्याय मिलेगा और दोषी जेल की सलाखों की पीछे होंगे.लेकिन घटना के 6महीने पूरे होने को हैं और मंत्री महोदय की 48घंटे में खुलासे की घोषणा के पूरे होने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं.संजना हत्याकांड के दोषियों की गिरफ्तारी के लिए महिला संगठन-अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसियेशन(ऐपवा) ने सैकड़ों महिलाओं के साथ 27सितम्बर 2012को लालकुआं कोतवाली का घेराव किया.25दिसम्बर 2012 को ऐपवा ने प्रधानमन्त्री और मुख्यमंत्री को संजना हत्याकांड की सी.बी.आई.जांच के लिए एक हज़ार से अधिक लोगों के हस्ताक्षर वाला ज्ञापन भेजा है.ऐपवा नेता विमला रौथाण का कहना है कि संजना हत्याकांड में स्थानीय पुलिस ने बेहद लचर तरीके से काम किया है और मंत्री की घोषणा के बावजूद अपराधी पुलिस की पकड़ से बाहर हैं.इसलिए मासूम बच्ची के हत्यारों के पकडे जाने के लिए इस केस को अविलम्ब सी.बी.आई.को सौंपा जाना जरुरी हो जाता है.
संजना हत्याकांड के अलावा जिन दो ह्त्याकांडों का जिक्र यहाँ किया गया है,उनसे विजय बहुगुणा यह कह कर भी पल्ला झाड सकते हैं कि जब ये कांड हुए तो वे मुख्यमंत्री नहीं थे.हालांकि यह तर्क बहुत वजनदार नहीं क्यूंकि सांसद तो वे तब भी थे और संवेदनशीलता का परिचय देने में, मुख्यमंत्री ना होना,एक सांसद के लिए कतई बाधक नहीं हो सकता.लेकिन एक बारगी उनका यह तर्क मान भी लिया जाए तो संजना हत्याकांड के मामले में वे क्या कहेंगे?आठ साल की मासूम संजना की तो बलात्कार के बाद हत्या विजय बहुगुणा के ही शासनकाल में हुई है.एक ऐसे क्षेत्र में हुई है,जहां का विधायक उनके मंत्रिमंडल में कबिनेट मंत्री है.इस कैबिनेट मंत्री की घोषणा के बावजूद पुलिस नहीं हिलती और सरकार चुपचाप घोषणा सुन कर बैठ जाती है तो क्या एक संवेदनशील और सक्षम सरकार होने के लक्षण हैं?
वापसलौटते हैं दिल्ली गैंगरेप पर जिसकी पीड़ित को मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने पांच लाख रुपया देने की घोषणा की है.उक्त तीनों घटनाएं जो मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के शासन वाले राज्य में घटी और जिन में अपराधी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं,उनके प्रति मुख्यमंत्री और उनकी सरकार का उपेक्षापूर्ण रवैया क्या दर्शाता है?इन मामलों में राज्य सरकार का रुख कम से कम उस संवेदनशीलता से तो मेल नहीं खाता है,जो मुख्यमंत्री ने दिल्ली गैंगरेप के मामले में दिखाई है.क्या संवेदनशीलता ऐसी चीज हो सकती है,जो एक जैसे ही कई मामलों में अलग-अलग स्तर पर नजर आती हो?जो मामला मीडिया की सुर्खियाँ बन जाए उसमें संवेदनशीलता का स्तर अत्याधिक बढ़ जाए और मामला यदि सुर्खियाँ ना बटोर रहा हो तो उसकी तरफ झांका भी ना जाए! मुख्यमंत्री जैसे जिम्मेदार और क़ानून का अनुपालन कराने के लिए उत्तरदायी पद पर बैठे व्यक्ति के संवेदनशीलता प्रदर्शन में यदि ऐसा उतार-चढ़ाव दिखा रहा हो तो उस संवेदनशीलता के प्रदर्शन पर संदेह होना लाजमी है. उत्तराखंड के ऊपर वर्णित और इन जैसे कई अन्य प्रकरणों के अपराधियों को सजा दिलवाने और पीड़ितों को न्याय दिलवाने में मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की भूमिका से ही तय हो सकेगा कि दिल्ली गैंग रेप पीड़ित के मामले में,उनकी संवेदनशीलता वास्तविक थी या फिर सुर्खियाँ बने मामले में,सरकारी खर्च पर अपने लिए चर्चा बटोरने के लिए किया गया भंगिमा प्रदर्शन(Posturing)!अभी तो यह अभिनय कौशल से भरपूर नाटकीय अभिव्यक्ति ही मालूम पड रही है.संवेदनशीलता को नाटकीय तो नहीं होना चाहिए मुख्यमंत्री महोदय !
इन्द्रेश भाकपा (माले) के सक्रिय कार्यकर्ता हैं.
इनसे इंटरनेट पर indresh.aisa@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.