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प्रोटेस्ट को कवर करने आये मीडिया कर्मियों की एक पड़ताल

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केशव कुमार 

"...इसी बीच कुछ टीवी चैनल पर समाचार 'चमके' कि ‘असामाजिक तत्व हैं प्रोटेस्ट में’, ‘पुलिस पर पथराव किया गया है’ ‘हिंसक हो रहे हैं लोग’, ‘सुरक्षा घेरा तोडा जा रहा है’, ‘पुलिस तो बचाव कर रही है.’ इस बारे में इन रिपोर्टर्स से पुछा गया कि ‘साहब! राजपथ तो दिन में कई बार साफ़ किया जाता है. यहाँ पुलिस पर फैंकने के लिए जनता के पास पत्थर कहाँ से आ गया यहाँ तो दुकाने भी नहीं कि लोग बोतल खरीद कर पुलिस पर फैंकें. इस सवाल पर मीडिया कर्मी गुस्सा गए और कुछ तो व्यक्तिगत होने लगे..."


स भयानक हादसे का एक हफ्ता पूरा हो गया है. पीड़िता को सहानुभूतियों के अलावे क्या हासिल हुआ है? सोचने की इस एक बात से आगे अनेक बातें और हैं. बहरहाल देश–विदेश के अलग–अलग हिस्सों के बरक्स बलात्कार और बलात्कारियों के लिए सर्वाधिक माकूल जगह दिल्ली में कुछ चुनिन्दा जगहों पर हो रहे जन-आंदोलनों और उसकी कवरेज़ के लिए पहुंचे पत्रकार दोस्तों से बात करके हमने उनकी सोच और संवेदना की जमातलाशी करने की कोशिश की. मुनिरका, जंतर मंतर, इंडिया गेट, राष्ट्रपति भवन, मुख्यमंत्री आवास, गृह मंत्री के दफ्तर, दस-जनपथ और सफदरजंग अस्पताल के सामने आन्दोलन कर रहे छात्र-छात्राओं, आमजनों और राजनितिक कार्यकर्ताओं की गतिविधियों को कवर कर रहे इलेक्ट्रोनिक मीडियाकर्मियों से गपशप की तो कई बातें उभरकर सामने आई.


समाज, कानून, दर्शन वगैरह की बातों से परे हटकर सीधे-सीधे मन की बात कहने का हमने आग्रह किया तो लोग खुल कर सामने आये.

जगह- मुनिरका, समय- दोपहर से ठीक पहले, दिन-पहला


सड़क जाम कर रहे और उसके बाद वसंत विहार पुलिस थाने के सामने मानव श्रृंखला बना रहे छात्र –नौजवानों को कवर करने आये कई मीडियाकर्मी हादसे से ठीक तरह से वाकिफ नहीं थे शायद, देर से उठकर सीधे असाइनमेंट पर आ जाने से बेखबर होने को जस्टिफाई किया उन सबने , खैर !

जगह- सीएम आवास के सामने, समय- दोपहर के आसपास, दिन– दूसरा

स्टुडेंट्स पर वॉटर कैनन और आंसू गैस के गोले बरसने की शुरुआत, कुछेक संजीदा संवाददाताओं में गुस्सा. पर जिनसे कुछ पूछा उसने कहा– ‘ऐसा होता है, सीएम् क्या कर सकती है.’
इसी दिन आई.टी.ओ. पर पुलिस हेडक्वार्टर के सामने जमा नौजवानों की बातों के  बजाय कमिश्नर से मिलने पहुंची राज्यसभा सांसद जया बच्चन का इंतज़ार कर रहे मीडिया के दोस्तों ने सवालों से पहले ही कहा – समझते तो तुम हो ही चीजें ....

जगह- सफदरजंग अस्पताल, समय– शाम सात बजे, दिन- तीसरा

जे.एन.यू. छात्रसंघ और विभिन्न विश्वविद्यालयों के स्टूडेंट यहाँ मोमबत्ती जलाकर पीड़िता के लिए समर्थन और दोषियों को सख्त सजा की मांग कर रहे थे. पुलिस आंदोलन की विडियोग्राफी करवा रही थी और हिदायते देने में लगी थी . मिडिया की बड़ी भीड़ में कुछ ने जवाब देने का समय निकाल लिया. ज्यादातर मीडियाकर्मियों ने रिपोर्ट में अपना नाम ना देने का वादा पहले करवा लिया .

सवाल –
*आपका इस दिल दहला देनेवाले हादसे के बारे में क्या सोचना है ?
*अपराधियों को सजा के बारे में आपकी राय ..?
*ऐसे दर्दनाक हादसे फिर ना होने पाए के लिए आपके सुझाव..?
*सरकार से आपकी मांग ..?
*दिल्ली को लेकर आपकी चिंता ?

एक मशहूर बिजनेस चैनल की महिला रिपोर्टर – “आई एम् सो हैप्पी ...फाइनली आई एम डीप्ल्योड हियर. यहाँ ऑनस्क्रीन रहने के ज्यादे चांस हैं. सरकार क्या करेगी ? लोगों को ही कुछ करना होगा.”

खबरिया चैनल की महिला रिपोर्टर – “मेरी पूरी संवेदना है पीड़िता के साथ.” फिर चुप्प ..

अंग्रेजी खबरिया चैनल का रिपोर्टर जो सड़क पर ‘लेट’ कर भी लिंक दे रहा था – “अपराधियों को चौराहे पर फांसी देना चाहिए. दिल्ली बेकार शहर है.”

अंग्रेजी खबरिया चैनल का एक रिपोर्टर – “इट्स नॉट माय बिजनेस . आई एम् डूइंग माय जॉब . फांसी लोगों के कहने से दी जाती है क्या ?? ”

इसी दरम्यान एक क्रिस्पी खबर आने से सब एक तरफ निकल पड़े.

जगह- जंतर मंतर, समय- दोपहर एक बजे , दिन- चौथा

‘आप’ का धरना प्रदर्शन . यहाँ महिला पत्रकारों की संख्या औसतन काफी कम .

सवाल – वही.

ज्यादातर पत्रकारों के मिलते जुलते जवाब. यहाँ पत्रकार भी लोगों को सोनिया गाँधी के घर की ओर कूच करने की सलाह दे रहे हैं.

जगह- इण्डिया गेट, समय-शाम के तक़रीबन आठ बजे, दिन– पांचवां

एक सामजिक संस्था के लोग यहाँ अन्तः वस्त्रों की होली जला रहे हैं. एक थियेटर ग्रुप के लोग नुक्कड़ नाटक कर लोगो को जागरूक कर रहे हैं .

सवाल- ज्यादातर वही, एक सवाल नया कि आप इस पुरे घटनाक्रम में अपनी भूमिका  कहाँ देखते हैं?

ज्यादातर  लोगों को कहना है कि उन्हें जो करना है कर रहे हैं . सरकार पर दवाब बनाना सबसे बड़ा उपाय है . बाकी पहले के सवालों के जवाब वही स्टीरियोटाईप .

जगह- राष्ट्रपति भवन क सामने, समय– दोपहर के पहले से अँधेरा होने तक, दिन- चौथे से सातवें तक

पानी की बौछारें दी जा रही हैं संघर्ष कर रहे लोगों पर. आंसू गैस के गोले के साथ लाठियां भी स्टूडेंट्स पर बरसा रही है पुलिस. लोगों के गुस्से के बीच  कई बड़े टीवी पत्रकार पहुंचे हुए हैं. आपाधापी के बीच सवाल कि लोगों को फैसले के लिए कितना इंतज़ार करना पड़ेगा. इसके लिए आपकी ओर से कोशिशों की कोई जानकारी..

जवाब– यह तो वक़्त ही बताएगा . पीड़िता की तबियत सुधर रही है . कोर्ट जल्द ही कन्विक्सन देगा. बाकी पेंडिग केसेस के लिए भी फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट का  दवाब बनाया जा रहा है ..पर यह वक़्त लेगा.

इसी बीच कुछ टीवी चैनल पर समाचार 'चमके' कि ‘असामाजिक तत्व हैं प्रोटेस्ट में’, ‘पुलिस पर पथराव किया गया है’ ‘हिंसक हो रहे हैं लोग’, ‘सुरक्षा घेरा तोडा जा रहा है’, ‘पुलिस तो बचाव कर रही है.’ इस बारे में इन रिपोर्टर्स से पुछा गया कि ‘साहब! राजपथ तो दिन में कई बार साफ़ किया जाता है. यहाँ पुलिस पर फैंकने के लिए जनता के पास पत्थर कहाँ से आ गया यहाँ तो दुकाने भी नहीं कि लोग बोतल खरीद कर पुलिस पर फैंकें. इस सवाल पर मीडिया कर्मी गुस्सा गए और कुछ तो व्यक्तिगत होने लगे.

अगले दिन इसका जवाब मिला कि रूलिंग पार्टी के स्टूडेंट विंग ने पत्थर से भरे झोले मंगवाए थे. कुछेक  पत्थरबाजों  की  तस्वीरें भी दिखाई गयी. खैर यहाँ सवाल करना इन सबके लिए ज्यादा हो जाता.

                    अब, जबकि प्रधानमंत्री ,गृहमंत्री , गृहसचिव , कमिश्नर, उपराज्यपाल और रूलिंग पार्टी की सर्वेसर्वा इन सबका बयान आ चुका है. किसीने यह नहीं पूछा कि फास्ट ट्रैक सुनवाई और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा की  इतनी  संगठित इच्छाशक्ति के बावजूद अभी तक मामलें में चार्जशीट तक दाखिल नही किया जा सका है. क्यों हाईकोर्ट भी पुलिस और प्रशासन की अबतक की कारवाईयों को नाकाफी बता रहा है और नाखुश है?

जंतर मंतर पर पूर्व आर्मी चीफ वी के सिंह और 'राजनीति' योग गुरु रामदेव पर केस दर्ज हो चुका है, हजारों छात्र नौजवान और अवाम के साथ मीडियाकर्मी भी घायल हो गये हैं.  एक कांस्टेबल की संयोग से हुई मौत को पुलिस आला-अधिकारियों ने आन्दोलन के खिलाफ माहौल बनाने के लिए भुनाने की असफल कोशिश की हैं..  पुलिस के इस फर्जीवाड़े की पोल जल्द ही खुल जाने से पुलिस की रही बची साख भी जाई रही है.  इस सबसे आगे सूचना और प्रसारण मंत्री ने इलेक्ट्रोनिक मीडिया के लिए एडवाईजरी निकाल दिया है . कुल मिलाकर मामला थमा नहीं है.

चित्र सामने है , निष्कर्ष के लिए आप स्वतंत्र हैं. समाज में मिडिया के लिए काम कर रहे लोग भी शामिल हैं. जिम्मेदारी हर जगह की जड़ता और  यथास्थितिवादिता तोड़ने की उठानी होगी. नए सिरे से सोच रहे लोगो के साथ अपनी सोच और समझ को मिलाकर सहयोग का समय है. यह इंतज़ार का समय नहीं है ..कोशिशों का है. तो अपनी अपनी  जिम्मेदारियों के लिए अपने अंदर ही भूमिका की तलाश और खुद से ही शुरुआत करके हम आगे बढ़ेंगे . अगर नारीमुक्ति संघर्ष से जुड़े और पितृसत्ता के खिलाफ़ जमकर लड़े तो यह सिरा हमें तमाम सुधारों की  ओर  खुद-ब-खुद आगे ले जायेगा... तो निकलिए .. 

केशव पत्रकार हैं. अभी ईएमएमसी में नौकरी. 
इनसे संपर्क का पता keshavom@gmail.com है. 

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