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प्राकृतिक सम्पदा की लूट, पानी नहीं कोक पियो!

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जीवन चन्द्र 'जेसी'

-जीवन चन्द्र 'जेसी'

"...प्रदेश में आज भी सैकड़ों गाँव पीने के पानी से वंचित हैं और दूसरी तरफ बहुगुणा सरकार कोका कोला कम्पनी के साथ एम.ओ.यू. साइन कर कोका कोला बाटलिंग प्लान्ट को पानी मुहैया कराकर जनता को रंगीन बोतल में कोक परोसना चाहती है, अब जनता पानी नहीं बल्कि कोक पीये।..." 

त्तराखण्ड की बहुगुणा सरकार ने बहुराष्ट्रीय कम्पनी कोका कोला के साथ एक एम.ओ.यू.(करार) साईन कर सहसपुर व विकास नगर के बीच में कोका कोला का बाटलिंग प्लान्ट लगाने की अनुमति दे दी है। इस एम.ओ.यू. को बहुगुणा सरकार अपने विशेष उपलब्धि मान रही है। बहुगुणा सरकार के अनुसार कोका कोला उत्तराखण्ड में 600 करोड रूपये का निवेश करेगी तथा प्लान्ट लगने से 1000 लोगों को रोजगार मिलेगा।
कोकाकोला कम्पनी का सहसपुर व विकास नगर के बीच में प्लान्ट लगाने के लिए सरकार कम्पनी को कृषि योग्य उपजाऊ 60 एकड़ भूमि कौडि़यों के भाव देगी और इस प्लान्ट को यमुना एवं टौस नदी का पानी दिया जायेगा। उत्तराखण्ड में मात्र 13 प्रतिशत भूमि पर ही खेती होती है। इस पर औ़द्योगीकरण के नाम पर, विकास के नाम पर, सिडकुल व कोका कोला प्लान्ट जैसे बहुराष्ट्रीय देशी-विदेशी कम्पनियों को सैकड़ों एकड़ कृषि भूमि कौडि़यों के भाव से बेची जा रही है। प्रदेश में आज भी सैकड़ों गाँव पीने के पानी से वंचित हैं और दूसरी तरफ बहुगुणा सरकार कोका कोला कम्पनी के साथ एम.ओ.यू. साइन कर कोका कोला बाटलिंग प्लान्ट को पानी मुहैया कराकर जनता को रंगीन बोतल में कोक परोसना चाहती है, अब जनता पानी नहीं बल्कि कोक पीये। पीने के पानी की व्यवस्था तो प्रदेश की जनता के लिए सरकार करना ही नहीं चाहती उसे तो बहुराष्ट्रीय कम्पनी को मुनाफा पहुँचाना है। प्रदेश का पानी कम्पनी के मुनाफे के लिए बेच रही है। 

बहुगुणासरकार क्या ऐसी विकास की तस्वीर पेश कर अपनी उपलब्धियों की वाह-वाही लूटना चाहती है जहाँ कृषि भूमि को कौडि़यों के भाव बेचा जा रहा है। जल सम्पदा को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के मुनाफे के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है और ग्रामीण जनता पीने के पानी से वंचित है और आम जनता गरीबी मँहगाई व बेरोजगारी से त्रस्त है। हरिद्वार व उधम सिंह नगर में औद्योगक आस्थान (सिडकुल) के बनने के इतने वर्षों बाद भी स्थानीय लोगों को रोजगार के लिए आज भी पलायन करना पड़ रहा है और जो लोग वहाँ नौकरी कर भी रहे हैं तो वे ढाई तीन हजार रूपये में अर्द्धगुलामी में जीवन जी रहे हैं। ऐसे में रोजगार के झूठे सपने दिखाकर प्रदेश की सरकार प्राकृतिक सम्पदा जल व जमीन को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हवाले कब तक करती रहेगी ? सरकार को जनहित में कोका कोला कम्पनी के साथ किये गये एम.ओ.यू. को तत्काल रद्द करना चाहिए।

बहुगुणा सरकार का देखो खेल
शराब सस्ती मँहगा तेल

उत्तराखण्डमें बहुगुणा सरकार ने नयी आबकारी नीति से शराब सस्ती कर गली नुक्कड़ पर शराब/बीयर/वाइन की दुकानें खोलकर कमर तोड़ मँहगाई, बेरोजगारी से जूझ रही जनता को बर्बादी का तोहफा दे दिया है। नशा मुक्त उत्तराखण्ड की अपेक्षा के साथ राज्य आन्दोलन लड़ा गया लेकिन राज्य बनने के बाद स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ। राजनेताओ, नौकरशाहों, व माफियाओं के गठजोड़ ने उत्तराखण्ड को नशे में डुबाये रखने की हर सम्भव प्रयास किया जाता रहा है। गरीबी, मँहगाई, बेरोजगारी से जूझ रही जनता सरकारों की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ अपने आक्रोश, विरोध व प्रतिरोध को उभरने से रोकने के लिए प्रदेश की भाजपा व कांग्रेस की सरकारों ने राजस्व जमा करने के नाम पर जनता को नशे में डुबाये रखने के लिए हर सम्भव कुप्रयास किया है। 
प्रदेशमें सैकड़ों गाँव स्वास्थ्य सुविधाओं, पीने के पानी, बिजली, सड़क से आज भी वंचित हैं। सैंकड़ों विद्यालय शिक्षक विहीन या एकल शिक्षक पर चल रहे हैं। लेकिन प्रदेश की सरकारों ने इन समस्याओं के समाधान की कोई समुचित व्यवस्था तो नहीं की परन्तु गाँव-गाँव में शराब की दुकानें जरूर खोल दीं। शराब की दुकानों के खिलाफ जब जनता ने विरोध शुरू किया तो सरकार ने मोबाईल वैन से शराब बेचना शुरू कर दिया। 
इसवर्ष उत्तराखण्ड सरकार ने नयी आबकारी नीति के तहत शराब को सस्ता कर दिया। शराब से 22 प्रतिशत वैट (कर) कम कर शराब को सस्ता कर दिया है। प्रदेश में कमर तोड़ मँहगाई में दो जून की रोटी की व्यवस्था करने में आम आदमी का तेल निकल रहा है लेकिन सरकार दाल, रोटी सस्ता करने के बजाय शराब सस्ता कर रही है।
राजस्वजमा करने के नाम पर सरकार शराब सिंडिकेट/माफिया का हित साध रही है और जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। देश के संविधान (भाग-4 राज्य के नीति निर्देशक तत्व) के अनुच्छेद 47 में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि राज्य का यह प्राथमिक कर्तव्य होगा कि वह लोगों के पोषाहार, और जीवन स्तर को ऊँचा करने और लोक स्वास्थ्य में सुधार करने का प्रयास करे तथा हानिकारक, मादक पदार्थों का उपयोग प्रतिषेध करने का प्रयास करे, लेकिन उत्तराखण्ड में सरकार संविधान का उल्लंधन कर उत्तराखण्ड को नशा मुक्त करने के बजाय लोक स्वास्थ्य को खराब करने व समाज में शराबजनित अपराधों के कारण अराजकता फैलाने के लिए शराब को सस्ता कर गली नुक्कड़ पर शराब की दुकानें खोल रही हैं और घर-घर में शराब पहुँचा रही है, क्या एक लोक कल्याणकारी राज्य का यही दायित्व बनता है ? 


जीवन चन्द्र उत्तराखंड के सक्रिय जन-आंदोलनकारी और पत्रकार हैं.
उत्तराखंड से निकलने वाले अखबार 'प्रतिरोध के स्वर' का संपादन
इनसे संपर्क का पता है- jivan.jc@facebook.com

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