नन्दलाल शर्मा |
-नन्दलाल शर्मा
"...अप्रैल में सचिन उम्र के चालीसवें बसंत को गुडबॉय कहने जा रहे है। उससे पहले माइकल क्लार्क की अगुवाई वाले कंगारुओं के दल के सामने उन्हें यह साबित करना है कि उनके अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट करियर का सूरज अभी पश्चिम से काफी दूर है। जहां वह अस्त होगा। लेकिन ग्यारह खिलाड़ियों की एक टीम के साथ खेलते हुए जब आप खुद के लिए खेलते हैं, तो सबसे ज्यादा दर्द आपके चाहने वालों को होता है।..."
चेन्नई के चेपक स्टेडियम में धोनी ब्रिगेड कंगारुओं के खिलाफ एक इकाई के रूप में खेलती नजर आई। इसमें कोई शक नहीं कि अपने घर में टीम का प्रदर्शन प्रभावशाली रहा। लेकिन इसी मैच में एक शख्स खुद के लिए खेलता नजर आया। ढाई दशक से ज्यादा समय तक करोड़ों लोगों के लिए खेलने वाले सचिन रमेश तेंदुलकर आज खुद को साबित करने के लिए खेल रहे हैं। मजेदार बात ये है कि उन्हें स्वयं के बनाए मानकों को लांघना है या फिर उनकी चमक पिछले के बराबर रखनी है।
मेरीस्मृतियों में जो पहला वाकया दर्ज है वह 1999 में इंग्लैंड में चल रहे विश्वकप टूर्नामेंट का है। भारतीय टीम अपने दोनों शुरूआती मैच दक्षिण अफ्रीका और जिंबाब्वे से हार चुकी थी। उस समय मोहल्ले के चौक पर रखे एक रेडियो पर चालीस कान केन्द्रित होते। लेकिन उस दिन सब यहीं अफसोस जता रहे थे कि काश सचिन इस समय टीम में होते, तो हमारी उम्मीदें और जवां होती। गौरतलब है कि पिता के निधन के चलते सचिन टीम में नहीं थे। केन्या के खिलाफ सचिन टीम में लौटे और शानदार शतक से अपने चाहने वालों की उम्मीदें को पंख लगा दिए। लेकिन आज सचिन यह साबित करना चाह रहे है कि उनके पैरों की चपलता अब भी उतनी ही तेज है, उनकी कलाईयां अभी भी हजारों रन जुटा सकती हैं, शरीर घंटों साथ दे सकता हैं। लेकिन क्या वाकई?
बहुतसारे खेल प्रेमी, समीक्षक यह मानते है कि 1991-92 में कंगारूओं के खिलाफ पर्थ के वाका मैदान पर खेली गई 114 रनों की पारी ने सचिन को भारतीय बल्लेबाजी का स्तम्भ बना दिया। उनकी इस पारी ने साबित कर दिया कि वे अकेले दम पर किसी भी गेंदबाजी आक्रमण को नेस्तूनाबूंद कर सकते हैं। जबकि कुछ का मानना है कि 1889 में पाक दौरे पर ही विख्यात स्पिनर कादिर के खिलाफ लगातार गेंदों पर जड़े गए छक्कों ने उन्हें उम्मीदों का रखवाला बनाया। 89 और 92 के बाद एक पीढ़ी जवान हो चुकी हैं। जिसके मुंह ट्वेंटी-ट्वेंटी का चखना लग चुका है.. ऑस्ट्रेलियाई तेंदुलकर के देश में है। टीम में उनकी उपयोगिता को परखने के लिए.. ऑस्ट्रेलियाई टीम के साथ तेंदुलकर के करियर का वृत्त पूरा होता दिख रहा है। लेकिन वृत्त पूरा होने से पहले एक छोर ग्रे शेड लिए हुए है। याद रहे, कंगारूओं के घर में मिली 4-0 की हार के दौरान सचिन फेल साबित हुए।
अप्रैलमें सचिन उम्र के चालीसवें बसंत को गुडबॉय कहने जा रहे है। उससे पहले माइकल क्लार्क की अगुवाई वाले कंगारुओं के दल के सामने उन्हें यह साबित करना है कि उनके अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट करियर का सूरज अभी पश्चिम से काफी दूर है। जहां वह अस्त होगा। लेकिन ग्यारह खिलाड़ियों की एक टीम के साथ खेलते हुए जब आप खुद के लिए खेलते हैं, तो सबसे ज्यादा दर्द आपके चाहने वालों को होता है। एक पेशेवर खिलाड़ी की फॉर्म और फिटनेस के बारे में उससे बेहतर कोई नहीं जानता और सचिन भी अपनी स्थिति से अपरिचित नहीं है। जब उन्हें लगा कि वनडे टीम में उन्हें जगह नहीं मिलने वाली, उन्होंने संन्यास की घोषणा करने में देर नहीं लगाई (हालांकि आप इस पर बहस कर सकते है)। सचिन यहीं पर स्वार्थी बन जाते है उन्हें मालूम है कि टेस्ट टीम में उनकी जगह को कोई खतरा नहीं है। वे खुद को जितनी बार चाहे आजमा सकते हैं। स्वयं को आजमाने और साबित करने की जिद लेकर सचिन कंगारूओं के खिलाफ खेल रहे है।
मौजूदाश्रृंखला में उम्र का फैक्टर सचिन के खिलाफ जा रहा है। लेकिन उनके साथ अपार अनुभव है और इसी अनुभव के दम पर उन्हें बताना है कि उनके शाट्स की धार उतनी ही तेज है जितना वॉर्न और मैक्ग्रा के खिलाफ हुआ करती थी। उन्हें दिखाना है कि उनका डिफेंस उतना ही मजबूत है। जिसने अकरम और वकार को भी हांफने पर मजबूर किया। साथ ही प्रजेंस ऑफ माइंड उतना ही सशक्त है जिसे मुरलीधरन भांप नहीं पाएं। क्या सचिन उतनी सतर्कता और एकाग्रता दिखा पाएंगे? जैसा उन्होंने सिडनी 2004 में दिखाया था। जब अपने दोहरे शतक की पूरी पारी में उन्होंने ऑफ साइड में कवर क्षेत्र की ओर गेंद नहीं खेली।
लेकिनपिछले दो सालों में सचिन का प्रदर्शन कई सारे सवाल खड़े करता है। भले ही उन्होंने रणजी में 108 और ईरानी ट्रॉफी में 140 रन की पारी खेली हो। लेकिन उनका पिछला शतक 2011 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ केपटाउन में था। उसके बाद 30 (मौजूदा श्रृंखला को छोड़कर) पारियों में सचिन तीन अंकों में नहीं पहुंच पाएं। पिछली 10 पारियों में उनका स्कोर 13, 19, 17, 27, 13, 8, 8, 76, 5 और 2 रन रहा है। यह सच है कि इस दौरान केवल सचिन ही संघर्ष नहीं कर रहे थे, बल्कि द्रविड़ को छोड़कर अमूमन सारे खिलाड़ी।
सचिनके खेलने की एक सकारात्मक इच्छा के बावजूद गेंदबाज अब उनके खिलाफ अपना जाल बुनने लगे हैं। ध्यान दीजिए पिछली कई पारियों में सचिन लगातार बोल्ड हुए हैं। यहां तक की न्यूजीलैंड के तेज गेंदबाज मिल्स के सामने सचिन एक ही तरीके से पवेलियन का रास्ता नाप चुके हैं।
सचिनके साथ या आसपास अपना करियर शुरू करने वाले अधिकांश खिलाड़ी अपने ग्लब्स टांग चुके हैं। सचिन नई पीढ़ी के साथ ड्रेसिंग रूम शेयर कर रहे है। पिछले नवंबर में उन्होंने कहा था कि ‘मैं टीम के लिए योगदान दे सकता हूं, मैं खेलूंगा, लेकिन सांसों की उसी आवृत्ति के साथ उन्होंने आगे जोड़ा, इसका फैसला मैं सीरीज दर-दर सीरीज करूंगा। ऐसे में सबकी नजरें इस श्रृंखला पर टिकी है कि क्या सचिन अपने बल्ले से सवालों के बुलबुले फोड़ पाएंगे या उनकी संख्या और स्वरुप विपक्षी गेंदबाज तय करेंगे।
नंदलाल पत्रकार हैं.
फिलहाल जयपुर में एक हिंदी दैनिक में काम.
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