"....ये सभी घटनाएं मोदी जी आपके द्वारा लाल किले की प्राचीर से की गई अपील के बाद हुई है लेकिन आप इस किसी भी घटना पर अपना मुह खोलना वाजिब नहीं समझा। आप तो इस देश के ‘प्रधान सेवक’ हैं और जब आप इन सारी घटनाओं पर चुप रहते हैं तो यह कैसे मान लिया जाये कि आप 2002 वाले मोदी नहीं हैं?..."
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नरेन्द्र मोदी ने सी.एन.एन. के लिये फरिद जकारिया को दिये गये साक्षात्कार में कहा है कि‘‘भारतीय मुसलमानों की देशभक्ति पर सवाल उठाये नहीं जा सकते। भारतीय मुस्लिम भारत के लिए जीते हैं और भारत के लिए ही मरते है’’। मोदी का यह शब्द सुनने में काफी अच्छा लगता है और मोदी के असली चेहरे को नहीं जानने वाला उनका युवा मातदाता उन्हें एक धर्मनिरपेक्ष नेता भी मानने लगता है। इस युवा वर्ग का जिक्र मोदी हमेशा पूंजीपति वर्ग को लुभाने के लिए करते रहे हैं। मोदी 2002 के गुजरात जनसंहार में साम्प्रदायिकता के लगे धब्बे को लगातार छुड़ाने की कोशिश करते रहे हैं। 2014 के चुनाव अभियान हो या लाल किले के प्राचीर से मोदी का साम्प्रदायिकता के खिलाफ की गई अपील या सी.एन.एन. को दिया गया साक्षात्कार मोदी को अपने उपर लगे धब्बे को छुड़ाने का असफल प्रयास है।
मोदीके मुख्यमंत्री काल में 2002 के जनसंहार को एक बार भुला भी दिया जाये (जिसके कारण ही उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी मिली) और मोदी जी को एक नया मोदी मान कर भी सोचा जाये तो यह हमारे दिल में कहां तक उतरता है कि वे एक धर्म विशेष के साथ भेद-भाव नहीं करते। चुनावी भाषणों को छोड़ भी दिया जाये (जहां वोट लेने के लिए वादे झूठे ही किये जाते हैं) तो प्रधानमंत्री के रूप में लाल किले के प्राचीर से दिये गये भाषण की ‘हम बहुत लड़-कट लिये, मार दिया और किसी को कुछ नहीं मिला। जातिवाद, साम्प्रदायवाद देश के विकास में रूकावट है।’ प्रधानमंत्री के रूप में मोदी का देश से जातिवाद, साम्प्रदायिकता के खिलाफ 10 साल के लिए स्थगित तय करने की अपील के चार दिन बाद ही उन्हीं के सरकार का गृह मंत्रालय मुजफ्फरनगर दंगे के जिम्मेदार भाजपा विधायक को जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा मुहैय्या कराने की बात कहती है। क्या इससे सम्प्रदायिक शक्तियों को बढ़ावा नहीं मिलता है?
चुनावप्रचार के समय भजपा सांसद गिरिराज सिंह के पाकिस्तान भेजने वाली बात को अगर छोड़ भी दिया जाये तो मोदी सरकार के भाजपा सांसद साक्षी महाराज का वह बयान कि‘‘मदरसों में आतंकवाद की शिक्षा दी जाती है’’ को कैसा भुलाया जा सकता है। सांसद योगी आदित्यनाथ जो कि मोदी सरकार में उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रभारी थे चुनाव प्रचार के दौरान कहा कि जहां 10 प्रतिशत से अधिक मुसलमान हैं वहीं सम्प्रदायिक झगड़े हो रहे हैं इसके साथ ही उन्होंने प्रचार के दौरान ‘लव जेहाद’ के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया और कहा कि‘लव जेहाद’ के लिए आई.एस.आई. पैसा दे रहा है। क्या यह साम्प्रदायिकता नहीं है?
बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने आतंकवाद और बम बनाने में धन जुटाने के लिये ‘पिंक रेवल्युशन’ (गउ हत्या) की बात कर एक सम्प्रदाय विशेष पर निशाना साधा। इन्दौर की भाजपा विधायक उषा ठाकुर द्वारा यह कहना कि प्रति वर्ष 4.5 लाख हिन्दु लड़कियों का धर्म परिवर्तन किया जाता है और पर्चे-पोस्टर के माध्यम से हिन्दुवादी संगठनों को अगाह करना कि दशहरे के दौरान गरबा नृत्य में गैर हिन्दु लोगों को नहीं आने दिया जाये। आने वाले लोगों की पहचान पत्र देख करके ही पंडाल के अन्दर प्रवेश दिया जाये। क्या इससे देश में साम्प्रदायिकता की जहर नहीं फैलती है?
उज्जैनके विक्रम विश्वविद्यालय के उपकुलपति प्रो. जवाहरलाल कौल के बयान वापसी को लेकर बजरंग दल व विश्व हिन्दु परिषद (जो आपके सहयोगी हैं) के 35-40 कार्यकर्ताओं (गुण्डे) द्वारा पुसिल की मौजूदगी में उपकुलपति पर हमले किये गये और विश्वविद्यालय में तोड़-फोड़ किया गया। इस घटनाक्रम को बिजेपी शासित प्रदेश के पुलिस मुक दर्शक बन कर देखती रही। प्रो. कौल का मात्र यह ‘दोष’ था कि उन्होंने कश्मीर में आई विपदा के लिए मकान मालिकों से अनुरोध किया था कि कश्मीर छात्रों के साथ मकान मालिक कुछ महिनों के लिए किराये में रियायत दे और इस विपदा में सहयोग करते हुए तत्काल किराये देने के लिए बाध्य न करें। अपने स्टाफों से बाढ़ पिड़ितों के लिए राहत सामग्री जुटाने के लिए अपील की। इस तरह का दोष मोदी जी आपने भी कश्मीर जाकर किया लेकिन आपको तो इसके लिए वाह वही मिली। यह आपका कैसा शासन है जहां एक ही तरह के काम के लिए एक को दफनाने के लिए ‘लोग’ उतारू हो जाते हैं तो दूसरो को ‘दिलों’ में बसाया जाता है।
येसभी घटनाएं मोदी जी आपके द्वारा लाल किले की प्राचीर से की गई अपील के बाद हुई है लेकिन आप इस किसी भी घटना पर अपना मुह खोलना वाजिब नहीं समझा। आप तो इस देश के ‘प्रधान सेवक’ हैं और जब आप इन सारी घटनाओं पर चुप रहते हैं तो यह कैसे मान लिया जाये कि आप 2002 वाले मोदी नहीं हैं?
आपके मौन व्रत से साम्प्रदायिक शक्तियों के द्वारा समाज में साम्प्रदायिक विद्वेष को बढ़ावा देने का मौका नहीं मिल रहा है? यह कैसे मान लिया जाये कि आप के मन में एक विशेष समुदाय के प्रति नफरत नहीं रह गई है? अगर आप दिल से भी ‘सबका साथ, सबका विकास’ की बात करें तो आप नहीं कर सकते हैं। आप की पितामह संस्थाएं इसलिए आपको ‘प्रधान सेवक’ बनाया है कि आप एक विशेष समुदाय व विशेष वर्ग की ही सेवा कर सकें। यही कारण है कि आप के मातहत नेता आपके अपीलों का नजरअंदाज करते हुए जो चाहते हैं वह कहते हैं और आप उसको मौन स्वीकृति के रूप में स्वीकार करते हैं। मोदी जी आपके वायदे, अपील व साक्षात्कार को जनता आत्मसात कर पायेगी? यह पब्लिक है सब जानती है।
सुनील सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता हैं.
समकालीन विषयों पर निरंतर लेखन.
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संपर्क- sunilkumar102@gmail.com