Quantcast
Channel: पत्रकार Praxis
Viewing all articles
Browse latest Browse all 422

इस सांप्रदायिक गठजोड़ पर क्यों नहीं होती कार्रवाई

$
0
0

- राजीव यादव

"...सहारनपुर सांप्रदायिक हिंसा पर आई रिपोर्ट के बाद भाजपा ने ताल ठोका है कि सपा सरकार मुकदमा दर्ज करके दिखाए। जब प्रशासनिक अधिकारियों को मालूम था कि वहां सांप्रदायिक भीड़ इकट्ठा हो रही है और अब जब इस संलिप्तता को सांप्रदायिक हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है तो क्या सरकार प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज करेगी?..." 

त्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में जुलाई 2014 में हुई सांप्रदायिक हिंसा पर आई रिपोर्ट ने भाजपा सांसद राघव लखनपाल व प्रशासनिक अमले को जिम्मेवार ठहराया तो वहीं भाजपा ने इसे राजनीति से प्रेरित रिपोर्ट करार दिया। इस रिपोर्ट के आने के बाद लाल किले की प्राचीर से सांप्रदायिकता पर जीरो टाॅलरेंस की बात करने वाले प्रधानमंत्री से अपनी पार्टी की स्थिति स्पष्ट करने की मांग की जा रही है। वहीं अमित शाह जब खुद कहते हैं कि यूपी में भाजपा सरकार बनाने तक उनका काम खत्म नहीं होगा। अब वह ‘मिशन यूपी पार्ट टू’ की रणनीति पर चल रहे हैं तो ऐसे में इस रणनीति के मायने समझने होंगे कि अब कौन सा नया ‘मॉडल’ बनाने की जुगत में वो हैं। सत्ता प्राप्ति तक संघर्ष जारी रखने का आह्वान करने वाले ने मिशन ‘पार्ट वन’ में क्या-क्या ‘संघर्ष’ किया इसको भी जांचना होगा।




बहरहाल, इस रिपोर्ट में भाजपा सांसद और प्रशासन की भूमिका को जिस तरह से कटघरे में खड़ा किया गया है उसकी रोशनी में प्रदेश में हुई अन्य सांप्रदायिक घटनाओं की अगर तफ्तीश की जाए तो आरोप लगाने वाले और आरोपी की भूमिका की शिनाख्त में थोड़ा आसानी होगी।



सहारनुपर के करीबी जनपद मुजफ्फरनगर और उसके आस-पास के क्षेत्रों को ठीक एक साल पहले सांप्रदायिकता की आग में झोंके जाने की तैयारी पहले से ही दिखने लगी थी। 7 सितंबर 2013 को हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा नंगला मंदौड़ में बिना अनुमति की पंचायत के बाद पूरे क्षेत्र को सांप्रदायिक हिंसा की आग में झोंक दिया गया था। यह आश्चर्य ही है कि इस पंचायत और इससे पहले हुई कई पंचायतों की कोई वीडियो रिकार्डिंग प्रशासन ने नहीं करवाने की बात कही है। ऐसा अमूमन नहीं होता पर सबूत तो निकल ही आता है, एक बड़ा सबूत कुटबा-कुटबी गांव के एक मोबाइल चिप से प्राप्त हुआ जिसे कुछ मानवाधिकार संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट मंे दायर याचिका में भी लगाया है। जिसमें 8 सितंबर यानी जनसंहार के दिन हमलवार आपस में किसी ‘अंकल’ की बात कर रहे हैं, जिसने गांव में पीएसी को देर से आने के लिए तैयार किया ताकि उन्हें मुसलमानों को मारने उनके घरों को जलाने का पर्याप्त वक्त मिल सके।



गौरतलब है कि इस साम्प्रदायिक हिंसा में सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले गांवों में से कुटबा-कुटबी जहां आठ मुसलमानों की निर्मम हत्या कर दी गई थी नवनिर्वाचित भाजपा सांसद व केन्द्रीय कृषि मंत्री संजीव बालियान का गांव है। इस मोबाइल कनर्वसेशन को रिहाई मंच नामक संगठन द्वारा इस सांप्रदायिक हिंसा की जांच कर रही एसआईसी को सौंपा गया लेकिन आज तक ‘अंकल’ कौन हैं इसकी शिनाख्त नहीं की जा सकी। ठीक यही प्रवृत्ति 24 नवंबर 2012 को फैजाबाद में हुई सांप्रदायिक हिंसा में भी देखने को मिली थी।

तत्कालीन डीजीपी एसी शर्मा ने मौके पर मौजूद एसपी सिटी राम सिंह यादव को आंसू गैस छोड़ने व रबर बुलेट चलाने को कहा लेकिन आदेश को लागू करने के बजाए यादव ने अपना मोबाइल स्विच आॅफ कर लिया। पुलिस तीन घंटे तक मूकदर्शक बनी रही और वह फैजाबाद जो 1992 में भी सांप्रदायिक तांडव से अछूता था, धूं-धूं कर जलने लगा। 24 अक्टूबर की शाम 5 बजे से शुरू हुई इस सांप्रदायिक हिंसा के घंटों बीत जाने के बाद 25 अक्टूबर की सुबह 9 बजकर 20 मिनट पर कर्फ्यू लगाया गया। चैक फैजाबाद पर शाम से शुरू हुई आगजनी और लूटपाट के वीडियो और फोटोग्राफ्स में पुलिस की मौजूदगी में पूर्व विधायक व नवनिर्वाचित भाजपा सांसद लल्लू सिंह की उपस्थिति में देर रात तक दुकानों को लूटने व आगजनी को देखा जा सकता है। पर आश्चर्य है कि कर्फ्यू सुबह लगाया जाता है और वहां मौजूद फायर ब्रिगेड की गाडि़यों से दुकानों की आग न बुझाने के सवाल पर प्रशासन कहता है कि गाडि़यों में पानी नहीं था? प्रेस काउंसिल आॅफ इंडिया द्वारा गठित एकल सदस्यीय शीतला सिंह कमेटी की रिपोर्ट ने रुदौली के भाजपा विधायक रामचन्द्र यादव और पूर्व विधायक व अब भाजपा सांसद लल्लू सिंह, तत्कालीन डीएम, एसएसपी, पुलिस अधिक्षक, एडीएम समेत पूरे पुलिसिया अमले की सांप्रदायिक हिंसा में संलिप्तता पर सवाल उठाए हैं।



सहारनपुर सांप्रदायिक हिंसा पर आई रिपोर्ट के बाद भाजपा ने ताल ठोका है कि सपा सरकार मुकदमा दर्ज करके दिखाए। जब प्रशासनिक अधिकारियों को मालूम था कि वहां सांप्रदायिक भीड़ इकट्ठा हो रही है और अब जब इस संलिप्तता को सांप्रदायिक हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है तो क्या सरकार प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज करेगी?



इन सवालों में उलझी सरकार को पूर्ववर्ती सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं से सबक जरूर लेना चाहिए। मुख्यमंत्री बार-बार कहते हैं कि दोषी प्रशासनिक अधिकारियों को बख्शा नहीं जाएगा पर ऐसी घटनाओं के बाद कार्रवाई न करने से सांप्रदायिक आपराधिक मनोबल को बढ़ावा मिलता है। क्योंकि किसी एसपी सिटी राम सिंह यादव का मोबाइल आॅफ कर देना कोई चूक नहीं है ठीक उसी तरह जिस तरह यादवों और  पिछडे वर्ग के एक बड़े हिस्से का भाजपा की थैली में जाना। चूंकी फैजाबाद में सांप्रदायिक तनाव रुदौली से भाजपा विधायक रामचन्द्र यादव की अगुवाई में शुरू हुआ और जिस अधिकारी पर इसे रोकने की जिम्मेवारी थी उसकी पहचान आधारित अस्मिता ठीक राम चन्द्र यादव की तरह ही सपा पूरी नहीं कर सकती थी इसलिए वह सांप्रदायिकता का हथियार बना। ठीक इसी परिघटना को मुजफ्फरनगर-शामली में भी देखा जा सकता है जहां भी जाट समुदाय के थानेदार थे, वह इलाका सांप्रदायिकता की भेंट चढ़ गया।



दरअसल, दलित और पिछड़ी जातियों की अस्मितावादी राजनीति ने जो गोलबंदी की थी वह जाति के नाम पर थी न कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर। जैसे ही ‘महिला सुरक्षा’ जैसे सवालों को आगे कर पुरुषवादी समाज का सीना ‘56 इंच’ फुला दिया गया दलित और पिछड़ा वर्ग सांप्रदायिक राजनीति का पैदल सिपाही बन गया। अब इस अंधे कुएं से इन्हें निकालना किसी अस्मितावादी राजनीति के बस की बात नहीं है। मुजफ्फरनगर में हुई सांप्रदायिक हिंसा को जाट और मुस्लिम संघर्ष बताने और फैजाबाद में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच अविश्वास के चलते हुई साम्प्रदायिक हिंसा बताने वाली सपा सरकार को अपनी जाति आधारित अस्मितावादी राजनीति के खोल से बाहर आना चाहिए। 

लोकसभा चुनावों के बाद प्रदेश की 600 से अधिक सांप्रदायिक घटनाओं में से 259 घटनांए सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में घटित हुई हैं और 358 घटनाएं उन 12 विधानसभा क्षेत्रों में हुई हैं जहां पर उपचुनाव होने हैं, इससे साफ है कि यह पूरा खेल चुनावों के लिए हो रहा है। ठीक इसी तरह लोकसभा चुनावों के पहले भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक हिंसा हुई जिसके पीडि़त आज भी विस्थापित हैं। पर सांप्रदायिक हिंसा के उन आरोपियों जिन्होंने अपने ऊपर लगे आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया वह संसद की चहारदिवारी में चले गए। इस तरह से हम देखें तो पाते हैं कि भाजपा के पूर्व सांसद या विधायक इन सांप्रदायिक हिंसा के कारकों की बदौलत ‘वर्तमान’ हो गए हैं। सपा को यह समझ लेना चाहिए कि सांप्रदायिकता से हुए ध्रुवीकरण का लाभ उसे नहीं मिलेगा जिसे पिछले लोकसभा चुनाव ने सिद्ध कर दिया है। क्योंकि संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के तहत उससे फिसला यादव समेत अन्य पिछड़ा वर्ग ऐसे किसी भी ध्रुवीकरण के बाद भाजपा को ही मजबूत करेगा।



राजीव यादव
media.rajeev@gmail.com


Viewing all articles
Browse latest Browse all 422

Trending Articles