"...सवाल यह है कि जो बच्चा 11 साल की उम्र में घर से बाहर आता है, वह हर अच्छे बच्चे की तरह संवेदनशील, दूसरों की इज्जत करने वाला और परिवार की जिम्मेदारी उठाने वाला होता है। वह जब अपने परिवार से दूर शहर में रोजी-रोटी की तलाश में आता है तो वह इतना क्रूर और हिंसक हो जाता है कि वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हो जाता है। इसके लिए जिम्मेदार कौन है- वह परिवार या हमारा समाज और हम?..."

इस तरह के कानून अमेरिका में है और भारत उसी माॅडल को अपना रहा है। अमेरिका में जेल जाने वाले किशोर जब जेल से बाहर आते हैं तो उनमें से 80 प्रतिशत अपराध करते हैं। भारत में इस तरह का कोई रिकाॅर्ड सरकार के पास नहीं है। लेकिन बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले अधिवक्ता आनन्द आस्थाना के अनुसार उनके क्लांइट के मात्र 10 प्रतिशत ही बाद में चोरी और डकैती जैसे अपराध में लिप्त हुए हैं। उन्होंने तीन से चार हजार किशोर अधिनियम के तहत केस लड़े हैं।
भारत में बाल अपराध को हम तालिका 1 और 2 में देख सकते हैं:
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तालिका 1 स्रोत : मिनिस्ट्री ऑफ़ स्टेटिक्स एंड प्रोग्राम इम्प्लीमेंटेशन, 2013 |
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तालिका - 2 स्रोत : द रजिस्ट्रार जेनरल ऑफ इंडिया |
जब उन्हें बताया गया कि वह नाबालिग है और सजा काट कर जल्द ही वापस गांव आ जायेगा तो गुस्से से उन्होंने कहा ‘‘इतनी बदनामी के बाद गांव वाले उसे यहां कदम भी नहीं रखने देंगे’’। ऐसे तबके में समाज में भी दंड देने का प्रावधान है जिससे अपराधी, अपराध करने से डरता है। इस तबके के पास इतना पैसा भी नहीं होता कि वो पैरवी करें या दूर कहीं मिलने के लिए जायें। अपने बच्चों की पैरवी करने, जेल या हवालात में सुविधा या राहत दिलाने का काम एक वर्ग विशेष ही कर पाता है। समाज का एक तबका उसको निर्दोष और भोला कहता है, जिसका लाभ उसको केस में भी मिलता है।
समाज की भूमिका
दिल्ली गैंग रेप का नाबालिग दोषी उत्तर प्रदेश के बंदायू जिले का रहने वाला है। वह 11 साल की उम्र में अपने परिवार का पेट भरने के लिए दिल्ली कमाने के लिए आ गया। मां बताती है कि ‘‘वह बहुत संवेदनशील बच्चा था और गांव में सभी से डरता था; मुझे लगता है कि वह दिल्ली जाकर बुरी संगत में पड़ गया जिसकी वजह से उसने यह घिनौना अपराध किया’’। वह बताती है कि ‘‘बेटे से अंतिम मुलाकात छह-सात साल पहले दिल्ली जाने के समय ही हुई थी। दिल्ली जाने से पहले आखिरी बार उसने हमसे कहा कि मैं अपना ख्याल रखूं और फिर वो बस पकड़ कर शहर के लिए रवाना हो गया। वहां जाने के बाद दो-तीन साल तक उसने अपनी कमाई का पैसा भेजा लेकिन उसके बाद उसका कोई पता नहीं चला, मुझे लगता था कि वह अब जिन्दा नहीं होगा।’’
सवाल यह है कि जो बच्चा 11 साल की उम्र में घर से बाहर आता है, वह हर अच्छे बच्चे की तरह संवेदनशील, दूसरों की इज्जत करने वाला और परिवार की जिम्मेदारी उठाने वाला होता है। वह जब अपने परिवार से दूर शहर में रोजी-रोटी की तलाश में आता है तो वह इतना क्रूर और हिंसक हो जाता है कि वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हो जाता है। इसके लिए जिम्मेदार कौन है- वह परिवार या हमारा समाज और हम?
सवाल यह है कि जो बच्चा 11 साल की उम्र में घर से बाहर आता है, वह हर अच्छे बच्चे की तरह संवेदनशील, दूसरों की इज्जत करने वाला और परिवार की जिम्मेदारी उठाने वाला होता है। वह जब अपने परिवार से दूर शहर में रोजी-रोटी की तलाश में आता है तो वह इतना क्रूर और हिंसक हो जाता है कि वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हो जाता है। इसके लिए जिम्मेदार कौन है- वह परिवार या हमारा समाज और हम?

अगर हम सचमुच बाल अपराधों की संख्या को कम करना चाहते हैं तो सबसे पहले बालश्रम को सख्ती से रोकना होगा और गरीब शोषित-पीडि़त तबकों के बच्चों के लिए बुनियादी सुविधाएं एवं उचित शिक्षा की व्यवस्था करनी होगी। सर्वोपरी शोषण-दमन एवं अन्याय पर आधारित आर्थिक-सामाजिक व्यवस्था को बदलना करना होगा।
सुनील सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता हैं.
समकालीन विषयों पर निरंतर लेखन.
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संपर्क- sunilkumar102@gmail.com