-उमेश पंत
“और ये जो नया काम आपने शुरु किया है ज़रा बताइये कि इसका न्यूज़रुम से क्या सरोकार है ? इस नये काम को क्या कहते हैं क्या आप जानते हैं ? रितु धवन, अनिता शर्मा और प्रसाद जिनका नाम तनु ने अपने सुसाइड नोट में लिखा है उन्हें आप जानते तो होंगे ना ? कोई विशाखा गाइडलाइन होती है ऐसे मसलों के लिये, आपने सुना तो होगा ही। इस गाइडलाईन के तहत खुद पर और इन लोगों पर कोई कार्रवाई करें तो खबर ज़रुर चलवा दीजियेगा, इससे बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़ और हो भी क्या सकती है। इस खबर की न्यूज़ वैल्यू और गम्भीरता बाबा बर्फानी के साक्षात दर्शन से ज्यादा है। सच मानिये।”
आपकी अदालत में इस बार कठघरे में आप खुद खड़े हैं शर्मा जी। आज हमारे पास आपके खिलाफ बड़े आरोपों की लिस्ट है। आपने अच्छे-अच्छों को अपनी स्वयंभू अदालतों के चक्कर लगवाये हैं। अच्छे-अच्छों पर अपनी अदालत में फैसले सुनवाये हैं। आज आपकी बारी है शर्मा जी। आप बताइये क्या इंडिया टीवी नाम के आपके कथित समाचार चैनल में काम करने वाली तनु शर्मा झूठ बोल रही हैं ? क्या उनकी चार पन्ने की वो एफआइआर जिसमें वो सिलसिलेवार आपके समाचार चैनल में अन्दरखाने चल रहे व्याभिचारी खेल का पर्दाफाश करती हैं, झूठ का बस पुलिंदा भर है ? आपके खिलाफ गढ़ा जा रहा है एक शड़यंत्र भर ? या फिर समाचार चैनल के नाम शड़यंत्र आप कर रहे हैं ?
आपकेचैनल में समाचार के नाम पर हमने दूध पीती मूर्तियों को देखा है, हमने देखा कि है कैसे प्राइम टाइम को आप पीआर एजेन्सी के माकेर्टिंग स्टंट की तरह प्रयोग कर ले जाते हैं। आपके छोटे परदे पर समाचार की शक्ल में कसीदे पढ़कर बिकने की बू हमें पहले से आती रही है। ये तो हम सब अब समझ ही चुके हैं कि समाचार में समाचार कितना और प्रचार कितना होता है, पर इस बार आपको नहीं लगता कि हद हो गई है ?
अगरतनु शर्मा नाम की वो लड़की सच कह रही है तो आप जानते भी हैं कि आप कितने बड़े अपराधी हैं ? एक लड़की आपके और आपके संबंधियों और चाटुकारों के रचे जाल में फंसकर मरते-मरते बची है, क्या आपको इस बात की गम्भीरता का इलहाम भी हैं ?
उन मासूम, भोले पत्रकारों की कोई गलती नहीं है जो ये सब सुनकर भी चुप हैं। वो तो दरअसल गलती से अपने आपको पत्रकार समझ बैठे हैं। वो क्लर्की का काम कर रहे हैं। वो लिख रहे हैं, जो उनसे लिखाया जाता है। वही बोल रहे हैं, जो उनसे बोलने को कहा जाता है।
चैनलोंकी गाइडलाइन दरअसल आपके उन आदेशों की फेहरिस्त ही तो है जिनके इस्तेमाल से आप जैसे लोग बड़े-बड़े पूंजीपतियों के और अपने-अपने अध्येता नेताओं के हित साधते हैं। जो काम आप कोट-पैंट पहनकर स्टूडियो में करते हैं वही बाज़ारों में, रेलवे स्टेशनों में और किसी गली के अपने छोटे से दफ्तर में वो लोग अपनी-अपनी तरह से करते हैं जिन्हें हम दलाल कहते हैं। नही, हम आपको दलाल नहीं कह रहे, दलाल तो फिर भी बताते हैं कि वो दलाल हैं, ब्रोकर्स यू नो ? पर आप तो…. और ये जो नया काम आपने शुरु किया है ज़रा बताइये कि इसका न्यूज़रुम से क्या सरोकार है ? इस नये काम को क्या कहते हैं क्या आप जानते हैं ? रितु धवन, अनिता शर्मा और प्रसाद जिनका नाम तनु ने अपने सुसाइड नोट में लिखा है उन्हें आप जानते तो होंगे ना ? कोई विशाखा गाइडलाइन होती है ऐसे मसलों के लिये, आपने सुना तो होगा ही। इस गाइडलाईन के तहत खुद पर और इन लोगों पर कोई कार्रवाई करें तो खबर ज़रुर चलवा दीजियेगा, इससे बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़ और हो भी क्या सकती है। इस खबर की न्यूज़ वैल्यू और गम्भीरता बाबा बर्फानी के साक्षात दर्शन से ज्यादा है। सच मानिये।
आप ऐसे अचानक महज इसलिए किसी के सपनों का गला नहीं घोंट सकते क्यूंकि वो हर किसी की तरह आपके तलुवे चाटते हुए आपके हित साधने से मना कर देता है. शर्मा जी आप पर आरोप ये भी है कि तनु शर्मा के साथ हुए जिस करार में आपने कहा है की आप तो प्रेजेंटर के साथ कोंट्रेक्ट ख़तम कर सकते हैं पर प्रेजेंटर को ये हक़ नहीं है फिर किस हक़ से आपकी कंपनी ने एक एसएमएस को इस्तीफा मानकर उसे मंजूर करने की बात की है ? किस हक़ से आपने उसे एक रात में सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया जिसका जिक्र वो अपने फेसबुक स्टेटस में कर रही है.
एकयुवा जब नौकरी की तलाश में नये शहर में आता है, अपने-अपने काॅलेजों से निकलकर नौकरी की तलाश में भटकता हुआ आप जैसे लोगों तक पहुंचता है तो वो कितनी उम्मीदें पाल बैठता है। आप उन्हें बाल बराबर पैसा देकर उनके सपने उनसे खरीद लेते हैं पर इसका ये मतलब नहीं कि आपकी नौकरी कर रहा शख्स आपका दास होता है। यहां-वहां हर जगह से पैसा बटोर-बटोर कर आप तो पूंजिपति हो जाते हैं, और पत्रकारों के नाम पर जमा किये मजदूरों को आप अपनी जूठन उनकी छोटी तनख्वाहों के रुप में दे देते हैं। हर किसी की मजबूरियां होती हैं पर हर कोई इस मजबूरी के नाम पर सबकुछ नहीं सह जाता शर्मा जी। कुछ लोग तनु की तरह मरने का फैसला करके ही सही पर सच को जग जाहिर करने का हौसला रखते हैं।
तनुशर्मा की मौत के इस ऐलान के बाद आप अब किस मुंह से आपकी अदालत लगायेंगे ? आज ये अदालत आपको मुलजि़म ठहराती है, पता नही हमारी कानून व्यवस्था आप जैसे लोगों को मुज़रिम कब ठहरा पायेगी।
उमेश लेखक हैं. कहानी, कविता और पत्रकारीय लेखन.
गुल्लक नाम से एक वेबसाइट चलाते हैं.
mshpant@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.