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सुनील कुमार |
-सुनील कुमार
"...जिस दिन मीडिया लगातार बतला रहा है कि देश 65 वां गणतंत्र मना रहा है ठीक उसी दिन मारूति सुजूकि के 148 मजदूरों की रिहाई को लेकर मजदूर व उनके परिवार जनजागरण यात्रा के 11वें दिन फर्रूखनगर में थे। वे गणतंत्र द्वारा दिये हुए अधिकारों की मांग कर रहे थे, उस अधिकार को देना तो दूर बदले में वे 18 माह से जेल में बंद कर दिये गये हैं। इस पर देश का तंत्र खामोश क्यों है? सुजूकी उसी देश की कम्पनी है जो इस 65वें गणतंत्र दिवस में मुख्य अतिथि हैं। ..."
भारत ने इस वर्ष अपना 65 वां ‘गणतंत्र दिवस’ मनाया, जिसमें जपान के प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे मुख्य अतिथि थे। मीडिया द्वारा पूरे दिन इस बात पर जोर दिया गया कि देश 65 वां ‘गणतंत्र दिवस’ मना रहा है। ग्रेहाउंड्स के प्रसाद ‘बाबू’ को मरणोपरांत अशोक चक्र दिया गया। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर ‘राष्ट्र’ को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा-
‘‘भ्रष्टाचार तथा राष्ट्रीय संसाधनों की बर्बादी से भारत की जनता गुस्से में है। ....सरकार कोई परोपकारी निकाय नहीं है। लोक-लुभावना अराजकता शासन का विकल्प नहीं हो सकती। झूठे वायदों से मोहभंग होता हैं, जिससे क्रोध भड़कता है तथा इस क्रोध का एक ही स्वाभाविक निशाना होता है सत्ताधारी वर्ग। ......जो लोग सत्ता में है उन्हें अपने और लोगों के बीच भरोसे में कमी को दूर करना होगा। ........राज्य के सभी हिस्से तक समतापूर्ण विकास पहुंचाने के लिए छोटे-छोटे राज्य बनाने चाहिए।’’
भारतके गणतंत्र में हर साल हथियारों की नुमाईश (शक्ति प्रदर्शन) की जाती है। यह नुमाईश किसके लिये की जाती है? क्या यह भारत की जनता को दिखलाकर डराया जाता है या यह एहसास कराया जाता है कि वह इन हथियारों के बल पर सुरक्षित है? यह पड़ोसी देशों (पाकिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका, भूटान) को दिखाया जाता है? निश्चय ही ये हथियारों की नुमाईश भारत की जनता और दक्षिण एशिया के देशों को अपनी ताकत दिखाने के लिए की जाती है।
भारतके उसी क्षेत्र में यह नुमाईश की जाती है जहां पर केवल तंत्र होते हैं। गण जब अपनी आवाज़ सुनाने के लिए दिल्ली के इस इलाके में पहुंचता है तो तंत्र के इस इलाके को चारों तरफ से बैरिकेटिंग कर दी जाती है कि वह इस इलाके से दूर ही रहे। दूर-दराज के तंत्र की कराह तो इनको सुनाई भी नहीं देती। दिल्ली में जहां लोकतंत्र को बचाने के लिए लाठी चलानी पड़ती है वहीं भारत के और राज्यों में लाठियों के साथ-साथ गन (बन्दूकों) का भी बेधड़के इस्तेमाल होता है उस आवाज को दबाने के लिए जो यह गणतंत्र सुनना नहीं चाहता।
भारतके उसी क्षेत्र में यह नुमाईश की जाती है जहां पर केवल तंत्र होते हैं। गण जब अपनी आवाज़ सुनाने के लिए दिल्ली के इस इलाके में पहुंचता है तो तंत्र के इस इलाके को चारों तरफ से बैरिकेटिंग कर दी जाती है कि वह इस इलाके से दूर ही रहे। दूर-दराज के तंत्र की कराह तो इनको सुनाई भी नहीं देती। दिल्ली में जहां लोकतंत्र को बचाने के लिए लाठी चलानी पड़ती है वहीं भारत के और राज्यों में लाठियों के साथ-साथ गन (बन्दूकों) का भी बेधड़के इस्तेमाल होता है उस आवाज को दबाने के लिए जो यह गणतंत्र सुनना नहीं चाहता।
जापानके प्रधानमंत्री जो इस गणतंत्र के मुख्य अतिथि थे, वो परमाणु तकनीक देने आये हैं जिसका विरोध जैतापुर, फतेहाबाद व कुडनकुलम की जनता कर रही है। इस विरोध को दबाने के लिए कुडनकुलम के दसियों हजार गण (जनता) पर भारत का तंत्र (शासक वर्ग) देश द्रोह का फर्जी केस लगाता है।
जिस दिन मीडियालगातार बतला रहा है कि देश 65 वां गणतंत्र मना रहा है ठीक उसी दिन मारूति सुजूकि के 148 मजदूरों की रिहाई को लेकर मजदूर व उनके परिवार जनजागरण यात्रा के 11वें दिन फर्रूखनगर में थे। वे गणतंत्र द्वारा दिये हुए अधिकारों की मांग कर रहे थे, उस अधिकार को देना तो दूर बदले में वे 18 माह से जेल में बंद कर दिये गये हैं। इस पर देश का तंत्र खामोश क्यों है? सुजूकी उसी देश की कम्पनी है जो इस 65वें गणतंत्र दिवस में मुख्य अतिथि हैं।
मुजफ्फरनगरदंगे के पीडि़त परिवारों के लिए क्या यह गणतंत्र है? क्या छत्तीसगढ़ के उन मजदूर परिवारों के लिए यह गणतंत्र है जो अपने पेट की भूख मिटाने के लिए उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में ईट भट्ठे पर काम कर रहे थे जिनको लूट लिया गया और मजदूर महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ? क्या वे मजदूर जो अपने ही देश में अप्रवासी के तरह रहते हैं जिनका हर तरह से शोषण से किया जाता है उसके लिए यह गणतंत्र है जिस पर भारत के प्रथम नागरिक ने कुछ नहीं फरमाया।
गणतंत्रदिवस की झाकियों में दिल्ली स्कूल के बच्चों ने छत्तीसगढ़ का एक लोकगीत ‘‘महुआ झड़े रे, महुआ झड़े रे... सन सन बहेले पुरवईया... कुहुं कुहुं कुहके कोयलिया, फन फन फुदके चिरया’’ गाया जिस पर बहुत लोग झूम रहे थे। आज उसी छत्तीसगढ़ में महुए के पेड़, पूंजीपतियों के मुनाफे के लिए खत्म होते जा रहे हैं, पंक्षी और जानवर गायब होते जा रहे हैं, लोकगीतों की जगह वालीवुड, हालीवुड आ गया है। आदिवासियों के गांव के गांव गन (बन्दूक) के बल पर जलाये जा रहे हैं।
2013के अन्तिम सप्ताह में 80 हजार पुलिस बल को एक साथ कई राज्यों में उतारा गया था, जिसकी सहायता के लिए हेलीकाप्टर, ड्रोन व सेटेलाईट का भी प्रयोग किया गया। क्या यह अपने देश की गण की आवाज को दबाने के लिए गन का प्रयोग नहीं है? यह कैसा देश है जहां पर अपने ही देश में गण के ऊपर गन से हमले किये जा रहे हैं। राष्ट्रपति कहते हैं कि लोगों को भरोसे में कमी को दूर करना होगा तो क्या ऐसे ऑपरेशन से भरोसे में कमी नहीं होगी? जिस प्रसाद बाबू को मरोणापरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया उनकी मौत ऐसे ही ऑपरेशन के दौरान हुई थी। याद रहे कि 2012 के गणतंत्र दिवस के अवसर पर छत्तीसगढ़ के पुलिस अधिकारी अंकित गर्ग को भी वीरता पुरस्कार दिया गया था। जिस पर आरोप है कि छत्तीसगढ़ की जेल में बंद आध्यापिका सोनी सोरी के गुप्तांगों में पत्थर डाला था। क्या ऐसे ऑफिसरों को पदक देकर आप देश के जनता के भरोसे में जो कमी आ रही है उसको दूर कर पायेंगे ‘महामहिम’ जी?
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Clik here to view.‘महामहिम’जी भ्रष्टाचार व संसधनों की बर्बादी की बात कह रहे थे। भ्रष्टाचार तो पूंजीवाद की जननी है और वह पूंजी संसाधनों की लूट व श्रम की लूट से आती है जिस पर आप चुप हैं। संसाधनों की लूट के खिलाफ ही छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा इत्यादि राज्य की जनता लड़ रही है जिसको निपटाने के लिए आपके तंत्र उन राज्यों की जनता पर अलग-अलग नाम से आपरेशन कर जुल्म ढा रही है। श्रम के लूट के खिलाफ बोलने पर मारूति सुजूकी, ग्रेजियानों, निप्पाॅन के मजदूर आज तक जेलों में बंद हैं। जिस तरह इन गण को गन के बल पर और जेलों में डाल कर चुप्प कराने की कोशिश की गई है उसी तरह आप भी इस तंत्र में बैठ कर गणतंत्र पर चुप्प हैं। आप लोक लुभावन बात करते हैं। 64 वर्ष के गणतंत्र में लोकलुभावन बातें ही आपका तंत्र करते आया है जो भी इस लोक लुभावन के खिालफ बोलने की बात करती है उसको निपटा दिया जाता है।
Clik here to view.‘महामहिम’जी भ्रष्टाचार व संसधनों की बर्बादी की बात कह रहे थे। भ्रष्टाचार तो पूंजीवाद की जननी है और वह पूंजी संसाधनों की लूट व श्रम की लूट से आती है जिस पर आप चुप हैं। संसाधनों की लूट के खिलाफ ही छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा इत्यादि राज्य की जनता लड़ रही है जिसको निपटाने के लिए आपके तंत्र उन राज्यों की जनता पर अलग-अलग नाम से आपरेशन कर जुल्म ढा रही है। श्रम के लूट के खिलाफ बोलने पर मारूति सुजूकी, ग्रेजियानों, निप्पाॅन के मजदूर आज तक जेलों में बंद हैं। जिस तरह इन गण को गन के बल पर और जेलों में डाल कर चुप्प कराने की कोशिश की गई है उसी तरह आप भी इस तंत्र में बैठ कर गणतंत्र पर चुप्प हैं। आप लोक लुभावन बात करते हैं। 64 वर्ष के गणतंत्र में लोकलुभावन बातें ही आपका तंत्र करते आया है जो भी इस लोक लुभावन के खिालफ बोलने की बात करती है उसको निपटा दिया जाता है।
तंत्र की गन, गण के ऊपर हावी है। सही गणतंत्र लाने के लिए आपको गण को जल-जंगल-जमीन पर अधिकार देना होगा। श्रम का उचित मूल्य देना होगा। साम्राज्यवाद पस्त नीतियों को बदलना होगा। आप को अपने विरोधी विचारों को भी तरजीह देनी होगी जिसको आप का तंत्र सुनना नहीं चाहता है। इस तरह के अधिकार तो भारत का संविधान भी देता है लेकिन आपके तंत्र में बैठे हुए ही लोग इस संविधान की धज्जियां उड़ाते हैं। आपका गणतंत्र अपने जन्म काल से ही गनतंत्र बन कर रह गया है, यह बात अब पूरी तरह खुल कर सामने आ चुकी है।
सुनील कुमार सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं.
इनसे संपर्क का पता sunilkumar102@gmail.com है.