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आदिल रज़ा खान |
"...बहरहाल सबसे ज़्यादा चिंता की बात है कि मार्केट ने युवाओं को इसकी ज़द में इस तरह जकड़ रखा है कि उनका इससे बाहर निकल पाना मुश्किल मालूम पड़ता है। प्रोटेस्ट के साथ ही खुद में वास्तविक बदलाव की कोशिश इस सबमे ज्यादा कारगर होगी...जहां हम हर रोज अनायास ही फूटती मां-बहन की भद्दी गालियां ना दें....जहां हम दोस्त एक दूसरे के साथ हंसी-ठिठोली में भी माँ-बहन या महिलाओं को उपभोग का पात्र न बनाएं..."

यहांपर मैं एक और उदाहरण कंडोम या निरोध के विज्ञापन के साथ जोड़कर देना चाहूंगा...ज़्यादातर विज्ञापनों को देखकर ऐसा लगता है मानो इस जन स्वास्थ्य हित वाले ऐड में सुरक्षा को कम और सेक्सुअल फैंटेसी को ज़्यादा प्रदर्शित किया जाता है...जरा सोचें और खुद ही बताएं कि क्या इस तरह के ऐड से आपके अंदर सुरक्षा को लेकर चेतना जागी या आप और ज़्यादा फंतासी के लिए प्रोवोक हुए...हाल के दिनों में टीवी पर छाने वाले डियो के ऐडस् के बारे में मैं अब नहीं कहना चाहता जिसमें बेटा-बहु-ससुर की केमिस्ट्री दिखाई गई है..
थोड़ा बॉलीवुड का रुख करते हैं...आइटम गाना अब किसी भी फिल्म के बॉक्स ऑफिस रिज़ल्ट को निर्धारित करता है...आइटम सॉन्ग में जितने कम कपड़े और चलताऊ लैंग्वेज का सहारा लिया जाएगा...उतनी ही हिट होगी वो फिल्म....अब तो चलताऊ से फूहड़ शब्दों के मेटामॉरफोसिस का दौर है...जहां 'पटाना' काफी सहज लफ्ज़ है। और हर युवा के स्मार्ट फोन में ऐसे कंटेंट का नहीं होना उसे आउटडेटेड कर देता है......जहां स्मार्ट फोन की भी निकल पड़ती है और गाना बनाने वालों की भी...और इन सब के बीच हम महिलाओं के खिलाफ अभद्रता का लुत्फ उठाते हैं.........सवाल ये है कि बदलाव की चाहत रखने वाले हम युवाओं में इन सब उपभोक्तावादी चरित्र से बचने के लिए कितने मज़बूत हैं...एक और बात ये भी कि आखिर युवा ही क्यों.... इस तरह के बाजा़र या इसको चलाने वाले लोग भी समाज का ही हिस्सा हैं...उनके अंदर आखिर इस तरह कि नैतिक चेतना क्यों नहीं होनी चाहिए कि वे स्त्री को परोसना बंद करें....इसके लिए हम क्या कर सकते हैं...कैसे इस फूहड़ता को रोक सकते हैं...सोचने की ज़रूरत है....
नएसाल के मौके पर रैप सिगर हनी सिंह का कॉन्सर्ट तय था... बड़ी संख्या में टिकटें भी बिकीं...हालांकि ये औऱ बात है कि मौजूदा दबाव के चलते आयोजकों को ये शो रद्द करना पड़ा। बहुत आनाकानी और अनमने ढंग से शो तो रद्द कर दिया गया...लेकिन क्या युवा पीढ़ी वाकई हनी सिंह की फूहड़ता, अश्लील गानों, मशहूर आइटम नंबर को नकारने का माद्दा रखती है...या फिर ये शांतिपूर्ण मार्च महज़ दिखावा है.....
बहरहाल सबसे ज़्यादा चिंता की बात है कि मार्केट ने युवाओं को इसकी ज़द में इस तरह जकड़ रखा है कि उनका इससे बाहर निकल पाना मुश्किल मालूम पड़ता है। प्रोटेस्ट के साथ ही खुद में वास्तविक बदलाव की कोशिश इस सबमे ज्यादा कारगर होगी...जहां हम हर रोज अनायास ही फूटती मां-बहन की भद्दी गालियां ना दें....जहां हम दोस्त एक दूसरे के साथ हंसी-ठिठोली में भी माँ-बहन या महिलाओं को उपभोग का पात्र न बनाएं..बदलाव इसलिए भी कि फूहड़ कॉन्सर्ट के लिए हम 25 हज़ार रुपये खर्च करने के बजाए किसी ज़रूरतमंद के सुपूर्द करें और यहां सैटिस्फैक्शन तलाशें....बदलाव इस तरह का कि आधी रात बीच सड़क पर शराब पीकर हुल्लड़ मचाने को ही हम अपनी अल्टीमेट आज़ादी ना मानें...बदलाव इसलिए भी क्योंकि हम इंसान हैं...हममें साकारात्मक बदलाव की सलाहियत है...जो किसी अन्य प्राणी में शायद नहीं.....
आदिल युवा पत्रकार हैं.
अभी राज्यसभा में काम कर रहे हैं.
इनसे adilraza88@gmail.comपर संपर्क किया जा सकता है.