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सत्येंद्र रंजन |
-सत्येंद्र रंजन
"Rule of Law के तहत पुलिस एवं न्यायिक व्यवस्था से अपेक्षा रहती है कि निर्णय लेते समय वे अपनी निजी पसंद या अपने खास एजेंडे से प्रभावित ना हों, बल्कि जो बने हुए कानून हैं, उससे निर्देशित हों। इस समझ को आधार बनाएं तो दिल्ली के खिरकी एक्सटेंशन में गुरुवार की रात जो हुआ, क्या उसे विजलैन्टिज़म नहीं कहा जाना चाहिए? ..."
विजलैन्टिज़म का अर्थ होता है- कानून अपने हाथ में लेना और सही-गलत की अपनी निजी समझ के अनुसार तुरंत न्याय करना। अक्सर ऐसा समाज में स्थापित न्याय व्यवस्था का अनादर करते हुए किया जाता है। ऐसा करने वाले संगठन या समूह स्थापित न्याय प्रक्रिया से श्रेष्ठतर न्याय करने का दावा करते हैं। ऐसे समूहों को Vigilante और उनके कार्य को Vigilante justice कहा जाता है।
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फोटो साभार- http://www.fakingnews.firstpost.com/ |
स्पष्टतः यह कानून के शासन (Rule of Law) के सिद्धांत के खिलाफ है। इस सिद्धांत के मुताबिक कानून सबसे ऊपर है। कानून व्यक्तियों की अलग-अलग मान्यता से स्वतंत्र हैं। कानून लंबी अवधि के अनुभवों से विकसित, विवेक एवं तर्क पर आधारित और सही-गलत की अधिकतम सामाजिक आम-सहमति के अनुरूप होते हैं। इन पर अमल सुनिश्चित कराने के लिए संस्थाएं और एजेंसियां बनी हैं, जिनकी समाज संचालन की स्थापित व्यवस्था के प्रति जवाबदेही होती है।
Rule of Law के तहत पुलिस एवं न्यायिक व्यवस्था से अपेक्षा रहती है कि निर्णय लेते समय वे अपनी निजी पसंद या अपने खास एजेंडे से प्रभावित ना हों, बल्कि जो बने हुए कानून हैं, उससे निर्देशित हों।
इस समझ को आधार बनाएं तो दिल्ली के खिरकी एक्सटेंशन में गुरुवार की रात जो हुआ, क्या उसे विजलैन्टिज़म नहीं कहा जाना चाहिए?
ये तथ्य गौरतलब हैं-
- इस मामले में कोई एफ़आईआर दर्ज नहीं हुई थी
- दिल्ली के मंत्री सोमनाथ भारती ने कानूनी कार्रवाई शुरू करने की बुनियादी प्रक्रिया का बिना पालन किए पुलिस को सीधे छापा मारने के लिए कहा।
- वहां इकट्ठे लोग पुलिस या दूसरे पक्ष की बात सुनने को तैयार नहीं थे।
- वे खुद अपनी धारणा के आधार पर इस निष्कर्ष पर थे कि वहां अपराध हो रहा है।
- बिना प्रमाण के उन्होंने वहां ड्रग सेवन और वेश्यावृत्ति का आरोप लगाया।
- नाईजीरिया की दो और उगांडा की दो महिलाओं को भीड़ ने घेर लिया। उन्हें वेश्या कहा गया।
- भारती ने कहा कि ‘ये लोग हमारे जैसे नहीं हैं।’ स्पष्टतः उनका मतलब उन महिलाओं के रंग (ब्लैक) अथवा उनके विदेशी होने से था। उनका निहितार्थ था कि वे लोग ड्रस और सेक्स के रैकेट में लगे हैं। क्या यह नस्लीय आधार पर एक पूरे समुदाय को लांछित करने का प्रयास नहीं है? और क्या इसमें विदेशी द्रोह की बू नहीं आती है?
- सोमनाथ भारती ने सार्वजनिक रूप से कहा कि वहां कंडोम पाए गए। क्या भारती और उनकी पार्टी सेक्स के बारे में अपनी नैतिकता समाज पर थोपने की कोशिश नहीं कर रहे हैं?
- दूसरी घटना में एक अन्य मंत्री राखी बिड़ला रात में पुलिस धरने पर बैठ गईं। उनका आरोप था कि एक महिला को ससुराल वालों ने जला दिया है, लेकिन पुलिस कार्रवाई नहीं कर रही है। वे उसी वक्त ससुराल वालों की गिरफ्तारी चाहती थीं। इस संदर्भ में ये बातें ध्यान देने योग्य हैं-
- राखी बिड़ला और उसके साथी आरोप को अपराध साबित हो जाना मान कर बातें कर रहे हैं।
- आम आदमी पार्टी के एक नेताने - जो मशहूर वकील हैं (प्रशांत भूषण)- एक टीवी चैनल पर बार-बार कहा कि जिन लोगों को बहू को जला दिया, पुलिस उन्हें गिरफ्तार नहीं कर रही थी। पत्रकार शेखर गुप्ता ने ध्यान दिलाया कि प्रशांत को “जिन पर लोगों बहू जला देने का आरोप है” कहना चाहिए, लेकिन वे अपना पुराना वाक्य ही दोहराते रहे।
- सोमनाथ भारती के मामले में उनकी दलील थी कि लेफ्टिनेंट गवर्नर ने न्यायिक जांच का आदेश दे दिया है। कुछ कहने के पहले उसके निष्कर्षों का इंतजार करना चाहिए। जबकि भारती टीवी पर पुलिस के साथ बदसलूकी करते देखे गए थे। क्या यह आम आदमी पार्टी का दोहरा मानदंड नहीं है?
- दिल्ली में जब से ये पार्टी सत्ता में आई है, उसके कार्यकर्ता स्कूल, अस्पतालों, रैन बसेरों आदि में जाकर कामकाज में सीधा दखल दे रहे हैं। वे दोष सुधार की तय प्रक्रिया से गए बगैर कथित रूप से खुद चीजें सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। इस रूप में क्या आम आदमी पार्टी विजलैंन्टे ग्रुप में परिवर्तित नहीं हो गई है?
- संघ परिवार के संगठन जब वैलेनटाइन डे या अन्य मौकों पर प्रेमी जोड़ों पर हमला करते हैं या कर्नाटक में अंतर-धर्मीय विवाह करने वाले जोड़ों पर जैसे हमले किए गए, उनसे ये कार्रवाइयां किस रूप में अलग हैं?
भारती मामले से उठे सवाल-
- - कानून मंत्री पद पर आसीन होने के बावजूद भारती ने कानून की उचित प्रक्रिया के उल्लंघन की कोशिश की।
- - उन्होंने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) का ख्याल नहीं किया, जिसके तहत छापामारी जैसी कार्रवाई के पहले केस दर्ज होना और साक्ष्य जुटाना अनिवार्य है।
- - नार्कोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटांस ऐक्ट (एनडीपीएस) में ऐसे सख्त प्रावधान हैं, जिससे पुलिस किसी को परेशान ना कर सके। पुलिस बिना किसी केस के सीधे छापामारी नहीं कर सकती। ऐसा वह करती, तो कानून का उल्लंघन होता। भारती ने ऐसा करने का दबाव बना कर कानून एवं संविधान की भावना के खइलाफ काम किया।
- - निर्भया कांड के बाद बने कानून में महिलाओं की गिरफ्तारी एवं उनकी तलाशी के लिए सख्त प्रावधान किए गए हैँ। बिना महिला पुलिसकर्मियों के पुलिस रात में किसी महिला को गिरफ्तार नहीं कर सकती या उसकी तलाशी नहीं ले सकती। बिना केस दर्ज हुए तो ऐसा बिल्कुल नहीं किया जा सकता।
- - देश में नागरिक अधिकार आंदोलन ने इस प्रावधान को लागू कराने के लिए लंबा संघर्ष किया है कि पुलिस को बिना वारंट गिरफ्तारी या तलाशी लेने से रोका जाए। जबकि भारती ऐसा ही चाहते थे। क्या उनका कदम नागरिक स्वतंत्रता एवं महिला अधिकारों के खिलाफ नहीं है?
- - सड़क पर न्याय करने और सस्ती लोकप्रियता बटोरने की ऐसी कोशिशें अंततः लोकतंत्र को खतरे में डालती हैं। अक्सर तानाशाहों का उदय तुरंत न्याय दिलाने के ऐसे ही हथकंडों के जरिए हुआ है।
महिला मुद्दों की नासमझी
मुख्यमंत्रीअरविंद केजरीवाल ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि बलात्कार का कारण ड्रग्स हैं। जबकि ऐसे समाजशास्त्रीय एवं मनोवैज्ञानिक अध्ययनों की कमी नहीं है, जिनके मुताबिक इसका मुख्य कारण पुरुष वर्चस्व की संस्कृति एवं सामाजिक मान्यताओं में निहित है। नशाखोरी से समस्या भड़क सकती है, लेकिन वह समस्या की जड़ नहीं है। आम आदमी पार्टी तमाम समस्याओं की ऐसी ही सरलीकृत धारणा पेश कर क्या समाज में विवेकहीनता को बढ़ावा नहीं दे रही है?
केजरीवालने दिल्ली पुलिस को कम्प्रोमाइज्ड फोर्स कहा। लेकिन नाईजीरियाई महिलाओं ने कहा है कि जब भीड़ ने उन्हें घेर लिया तो पुलिस ने उनकी मदद की। जब अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान में उन पर अनुचित तरीके से जबरन पेशाब के सैंपल देने का दबाव बनाया जा रहा था, तब पुलिस ने डॉक्टरों से नियमों के मुताबिक काम करने को कहा। तो क्या केजरीवाल दिल्ली पुलिस को निशाना बना कर असल में कांग्रेस से मोर्चा खोल रहे हैं?
क्या वे संघर्षशील छवि बनाए रखना चाहते हैं ताकि लोकसभा चुनाव में उसका लाभ उठा सकें?
आमआदमी पार्टी सरकार पर सस्ती लोकप्रियता के दूसरे कदम उठाने के भी आरोप लगे हैं। हेल्पलाइन के जरिए भ्रष्टाचार मिटाने की कोशिश भी इनमें एक है। ऐसे क्या यह संदेह निराधार है कि इस पार्टी के पास शासक के रूप में कुछ पेश करने के लिए नहीं है और वह जन भावनाओं को भड़काए रखना चाहती है?
ऐसा करते हुए वह भारतीय संविधान एवं कानूनी व्यवस्था का भी पालन नहीं कर रही है। ये सवाल उठाने पर पार्टी के नेता कहते हैं कि वे कुछ नया कर रहे हैं, जिसे समझने के लिए पुराने चश्मों से निकलने की जरूरत है। जबकि सामने यह आ रहा है कि प्रयोग या नया करने के नाम पर यह पार्टी अपनी ऐसी कार्रवाइयों को जन-वैधता दिलाने की कोशिश कर रही है, जिनसे लोकतांत्रिक व्यवस्था पर चोट पहुंचती है। क्या ऐसी धारणा गलत है?
सत्येंद्र रंजन वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं.
satyendra.ranjan@gmail.com पर इनसे संपर्क किया जा सकता है.