"...ज्ञातव्य है कि वर्ष 2001 मे स्थापित इस इस डेयरी संघ का गठन स्थानीय स्तर पर बेरोजगारों को दुग्ध उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करना एवं रोजगार के अवसर पैदा करना था, लेकिन दुर्भाग्य का विषय है कि अपने जन्म के समय से ही इस संघ में निरंतर अव्यवस्थाओं एवं भ्रष्टाचार का ही बोलबाला रहा है। वर्तमान में स्थिति यह है तमाम सरकारी मदद के बावजूद भी संघ प्रतिवर्ष लगभग 3 लाख रुपए का घाटा अपने अभिलेखों मे दिखा रहा है।..."

ज्ञातव्यहै कि वर्ष 2001 मे स्थापित इस इस डेयरी संघ का गठन स्थानीय स्तर पर बेरोजगारों को दुग्ध उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करना एवं रोजगार के अवसर पैदा करना था,लेकिन दुर्भाग्य का विषय है कि अपने जन्म के समय से ही इस संघ में निरंतर अव्यवस्थाओं एवं भ्रष्टाचार का ही बोलबाला रहा है। वर्तमान में स्थिति यह है तमाम सरकारी मदद के बावजूद भी संघ प्रतिवर्ष लगभग 3 लाख रुपए का घाटा अपने अभिलेखों मे दिखा रहा है।
सूचनाके अधिकार के तहत मांगी गयी जानकारी के तथ्य सत्य से कोसों परे हैं,तथा दी गयी आधी अधूरी जानकारी इस संघ की दुर्दशा बयान करने के लिए काफी है।
अधिकारी सूचना के अधिकार को कितनी गंभीरता से ले रहे हैं इस बात का प्रमाण इस बात से मिल जाता है कि ‘‘सूचना के एवज मे प्रार्थी सुनील रावत द्वारा प्रार्थना पत्र के साथ संलग्न पोस्टल ऑर्डर संख्या- 17F- 518494, 518495, 518493 भी सूचना के साथ वापस भेज दिये गए हैं,जबकि नियमानुसार ये सरकारी खाते मे जमा होने चाहिए थे’’
जबइस सूचना से संतुष्ट न होने पर प्रथम अपीलीय अधिकारी डेरी विकास उत्तराखंड,के समक्ष अपील की गयी तो पुनः वही सूचना छायाप्रति कर प्रेषित कर दी गयी तथा लापरवाही कि इंतहा ये है कि दी गयी सूचना में प्रथम अपीलीय अधिकारी ने अपने हस्ताक्षर न कर,डेरी संघ सिमली के सूचना अधिकारी के हस्ताक्षर वाला पृष्ठ ही संलग्न कर दे दिया।
प्राप्त सूचना के अनुसार जनवरी 2013 से सितंबर तक संघ ने 30 रुपए प्रति लीटर की दर से कुल 137731 लीटर दुग्ध वितरण किया जिससे आय हुई 4131930 रुपए,जबकि समितियों से दूध 18 रुपए प्रति लीटर की दर से खरीदा जा रहा है,दुग्ध संघ ने इस प्रकार प्रति लीटर 12 रुपए के दर से 1652772 रुपए की कमाई की,लेकिन हालत ये है कि विगत जुलाई माह से ट्रांसपोर्टरों का भुगतान नहीं किया गया है। ट्रांसपोर्टर सुनील रावत,दिनेश बिष्ट,त्रिलोक सिंह आदि का कहना है कि जब भी दुग्ध संघ में जाते है तो अधिकारी कर्मचारी बजट न होने का रोना रोते हैं,प्रबन्धक कभी कार्यालय में मिलते ही नहीं हैं,विगत 07 दिसंबर के बाद प्रबन्धक सीधे 22 दिसंबर को कार्यालय आए एवं पुनः 25 दिसंबर को चले गए तथा आज 8 जनवरी को लौटे हैं,हम लोग कार्यालय का चक्कर काट-काट कर थक चुके हैं,यदि ऐसा ही हाल रहा हो सभी ट्रांसपोर्टर दुग्ध वितरण बंद कर देंगे एवं आंदोलन करने के लिए बाध्य होंगे॰
दुग्ध संघ में अव्यवस्थाओं एवं अनियमितताओं की पोल इस बात से भी खुल जाती है कि ‘संघ में प्लांट ऑपरेटर पद पर कार्यरत कर्मचारी ने अपनी प्राइवेट इंडिगो सीएस गाड़ी प्रशासक के प्रयोगार्थ लगाई हुई है,वही चालक बना हुआ है,तथा मजेदार बात यह है कि यह गाड़ी सात माह बाद भी आज बिना नंबर प्लेट के चल रही है. इस गाड़ी पर एक राजनैतिक पार्टी का भी झण्डा एवं बोर्ड लगा होता है,साथ ही गाड़ी बिना किसी टेंडर आमंत्रित किए हायर की गयी है। इसका बिल उसी कर्मचारी की दूसरी गाड़ी मारुति ओमिनी यूके11 टीए 0571 के नाम से निकाला जा रहा है। एक गाड़ी पर वर्षवार व्यय की बानगी देखिये कि वर्ष 2010-11 में इस पर व्यय 161752.00 रुपए बताया गया है जो कि एक ही वर्ष में लगभग 5 गुना बढ़कर वर्ष 2011-12 मे 789369.00 रुपए हो गया तथा पुनः वर्ष 2012-13 में डेढ़ गुना बढ़कर 1079534.00 रुपए हो गयी जो कि सरासर सरकारी धन का दुरुपयोग ही प्रतीत हो रहा है।

गत माह संघ द्वारा सड़क से संघ भवन तक लगभग 50 मीटर रास्ता निर्माण एवं एक 10x10 मीटर चबूतरे का मरम्मत कार्य करवाया गया है,जिसकी लागत 8 लाख रुपए बताई जा रही है,जो कि समझ से परे है तथा कहीं न कहीं घोटाले की कहानी स्वयं बयान कर रहा है। इस बावत बात करने पर प्रबन्धक का कहना है कि ‘यह कार्य निदेशालय से टेंडर निकाल कर किया गया था,मुझे इस बारे मे कोई भी जानकारी नहीं है’।
दुग्धसंघ मे कार्यरत 7 समितियों एवं ट्रांसपोर्टरों का कहना है कि प्रबंधन अत्यंत लाचार एवं भ्रष्ट हो चुका है,यदि यही हाल रहा तथा शासन प्रशासन समय पर नहीं जागा तो वह दिन दूर नहीं जब डेयरी पर ताले लटके नजर आएंगे तथा यह स्थिति न तो हम लोगों के लिए और ना ही सरकार के लिए सुखद होगी।