Quantcast
Channel: पत्रकार Praxis
Viewing all articles
Browse latest Browse all 422

और अंत में मनमोहन...

$
0
0
Indresh Maikhuri
इन्द्रेश मैखुरी
-इन्द्रेश मैखुरी

"...यह बड़ा रोचक है कि भ्रष्टाचार के मामले पर मनमोहन सिंह ने अपने बचाव में वैसे ही तर्क दिए जैसे आम तौर पर भाजपा और मोदी समर्थक मोदी के दंगाई व्यक्तित्व के बारे में देते हैं.मनमोहन सिंह ने कहा कि आधिकांश घोटाले उनके पहले कार्यकाल के हैं और इसके बावजूद लोगों ने उन्हें दोबारा चुना.मोदी समर्थक भी तो ठीक यही तर्क देते हैं कि गुजरात में 2002 के नरसंहार के बावजूद मोदी तो लगातार चुनाव जीत रहे हैं..."

प्रधानमन्त्री ने अपने विदाई प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि इतिहास उनका मूल्यांकन करेगा. भाई प्रधानमन्त्री जी, आप आये ही क्यूँ प्रेस कांफ्रेंस में? इतिहास को ही भेज देते, जब सारे जवाब इतिहास ने ही देने हैं तो ! वैसे भी कुछ दिनों में तो आप इतिहास होने ही वालें हैं या फिर यूं कहें कि इतिहास के कूड़ेदान में फाईलों का जो ठंडा बस्ता है, उसमें नत्थी किये जाने वाले हैं. आपका भी गजब रहा मनमोहनसिंह जी, कभी जवाब अमरीका देगा, कभी माता सोनिया और अब दस साल प्रधानमन्त्री रहने के बाद, आपके बारे में लोग इतिहास से जवाब मांगें ! ये भी भली चलाई.

प्रेसकांफ्रेंस की शुरुआत में मनमोहनसिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि हमारे लिए अच्छा समय आना तय है. सही कह रहे हैं, मनमोहन सिंह जी अब इससे और कितना ज्यादा बुरा समय आयेगा. उन्होंने फरमाया कि 2004 में उन्होंने अपनी सरकार को ग्रामीण भारत के लिए एक नयी “डील” के लिए प्रतिबद्ध कर लिया था. क्या थी, ये नयी डील? खेती और किसानों की तबाही ! लाखों किसानों ने आत्महत्या की. गृह मंत्रालय की ही कुछ साल पहले की रिपोर्टों के अनुसार, औसतन हर आधे घंटे में कर्ज के बोझ तले दबकर आत्महत्या करता हुआ एक किसान ! मनरेगा का भी काफी बखान किया मनमोहन सिंह ने कि इसने ग्रामीण श्रमिकों की मोल-तोल की शक्ति को बढ़ा दिया है. न्यूनतम मजदूरी कानून तो लागू किया नहीं मनमोहन सिंह जी आप ने इस मनरेगा में. कैसा और कितनों को रोजगार मिला, इसका भी नमूना देख लीजिये. 2013 में उत्तराखंड की विधान सभा में प्रस्तुत नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट बताती है कि जॉब कार्ड धारक परिवारों को साल में औसतन 39 दिन ही रोजगार मिल पाया. इस योजना को कार्यान्वित करने वाले कर्मचारियों का ठेकेदारों के हाथों इतना शोषण होता है कि पिछले दिनों देहरादून में वे हड़ताल कर रहे थे और उनकी मांग थी कि उन्हें विभागीय संविदा पर नियुक्त किया जाए.जिनके लिए योजना है और जिनके माध्यम से क्रियान्वित होनी है ना उनके लिए रोजगार है ना गारंटी, तो फिर मन रे कैसे गा !!!

मनमोहनसिंह ने फरमाया कि देश में 2004 से 2011 की बीच गरीबी रेखा के नीचे की जनसंख्या में तेजी आयी और यह जनसंख्या अब 13.8 करोड़ रह गयी है. यह कृषि जी.डी.पी बढ़ने के चलते हुए चमत्कार नहीं है,प्रधानमन्त्री महोदय. यह तो 26 रुपये और 32रुपये कमाने वालों को गरीबी रेखा से ऊपर मानने का चमत्कार है. आप अपने आई.एम.ऍफ़. के सखा मोंटेक सिंह अहलूवालिया से कहो कि एक रुपये और दो रुपये से अधिक कमाने वाले को गरीब रेखा से ऊपर घोषित कर दें,तब देखिएगा, इस देश में एक भी आदमी लाख चाह कर भी गरीबी रेखा के नीचे नहीं आने पायेगा. वरना तो आप ही की बनायी हुयी कमेटियों के जरिये यह सच भी सामने आया है कि इस देश में आबादी का 77फीसदी हिस्सा 20रुपया प्रतिदिन से कम पर ज़िंदा है. आंकड़ों की जबानी कृषि की हालत जानना चाहें तो हालत यह कि जी.डी.पी. में कृषि का हिस्सा मात्र 15 प्रतिशत रह गया है जबकि आजीविका के लिया आज भी 60 प्रतिशत आबादी इसी कृषि पर निर्भर है.

शिक्षाके बारे में बोलते हुए मनमोहन सिंह ने कहा कि वे स्वयं उदार छात्रवृत्तियों और शिक्षा में सार्वजनिक निवेश के लाभार्थी रहे हैं,इसलिए वे इसकी महत्ता को समझते हैं और उन्होंने दावा किया कि उनकी सरकार ने देश में शिक्षा के पूरे परिदृश्य को बदल दिया है.शिक्षा के निवेश की ही बात करें तो सोमालिया,घाना,इथोपिया,नेपाल,भूटान जैसे देश भी अपने सकल घरेलू उत्पाद(जी.डी.पी.) के शिक्षा पर खर्च के प्रतिशत में भारत से आगे हैं और इस मामले में केवल जाम्बिया और पाकिस्तान ही हमसे पीछे हैं.बाकी शिक्षा में सार्वजनिक निवेश की कहानी तो दिल्ली से लेकर जम्मू तक और मेरठ से लेकर देहरादून तक खुली डिग्री बेचने की दुकाने स्वयं बयान कर रही हैं. विदेशी डिग्री बेचने की दुकानों के लिए भी मनमोहन सिंह एंड कंपनी रास्ता खोलना चाहते थे,पर अभी तक तो ये हो ना सका. तमाम शिक्षाविदों और यहाँ तक कि यू.पी.ए.-1 में सरकार की खुद की बनायी यशपाल कमेटी की इस स्वीकारोक्ति के बावजूद कि दूसरे-तीसरे दर्जे के ही विदेशी विश्वविद्यालय देश में आयेंगे,मनमोहन सिंह और उनकी सरकार विदेशी विश्वविद्यालय विधेयक पास करवाने के लिए लालायित थी .पी.पी.पी.मोड में शिक्षण संस्थानों को सौंप कर,सार्वजनिक धन से खड़े शिक्षा के ढांचे को पूंजीपतियों के मुनाफे के काम में लगाने का बंदोबस्त किया गया.कार्पोरेट घरानों द्वारा पाठ्यक्रमों को गोद लेने जैसे उपक्रम कर यह सुनिश्चित किया जा रहा कि शिक्षण संस्थानों से जागरूक नागरिक और उन्नत मस्तिष्क नहीं बल्कि कारपोरेटों के मुनाफे की गाड़ी के बाल-बेयरिंग निकलें.प्रधानमन्त्री जी,ये है शिक्षा के आपके हाथों रूपांतरित होने का रोडमैप !

अपनेपहले कार्यकाल में नौ प्रतिशत विकास दर का दावा तो आपने किया मनमोहन सिंह जी,लेकिन उसमें भी आपने यह नहीं बताया कि जिस समय नौ प्रतिशत विकास दर थी उस समय भी रोजगार की वृद्धि दर 0.22 प्रतिशत थी.यानि उच्चतम विकास दर के समय भी जिस विकास का आप ढोल पीट रहे हैं वह रोजगारविहीन विकास दर थी.

यह बड़ा रोचक है कि भ्रष्टाचार के मामले पर मनमोहन सिंह ने अपने बचाव में वैसे ही तर्क दिए जैसे आम तौर पर भाजपा और मोदी समर्थक मोदी के दंगाई व्यक्तित्व के बारे में देते हैं.मनमोहन सिंह ने कहा कि आधिकांश घोटाले उनके पहले कार्यकाल के हैं और इसके बावजूद लोगों ने उन्हें दोबारा चुना.मोदी समर्थक भी तो ठीक यही तर्क देते हैं कि गुजरात में 2002 के नरसंहार के बावजूद मोदी तो लगातार चुनाव जीत रहे हैं. दोबारा चुनाव जीतने से लूट की कालिख और खून के धब्बे दोनों साफ़ ! प्रकारांतर से कांग्रेस-बी.जे.पी. इस (कु)तर्क को आगे बढाते हुए इस सहमति पर भी पहुँच सकते हैं कि तुम हमारी लूट भूल जाओ,हम तुम्हारे रचाए नरसंहार भूल जाते हैं.वैसे भी खूनखराबे से ना तो कांग्रेस का दामन पाक साफ़ है और भाजपा ने भी भ्रष्टाचार की काली गंगा में कुछ कम हर-हर गंगे तो किया नहीं है.

एकमहत्वपूर्ण उपलब्धी मनमोहन सिंह ने नहीं गिनाई कि पिछले आठ बजटों में उनकी सरकार ने इस देश के कारपोरेटों को पांच अरब रुपये से अधिक की छूट दी है.यह उपलब्धि शायद वे गिनना भूल गए या इस लिहाज के मार बोल नहीं पाए कि इसे उपलब्धि क्या कहना,यह तो अपने वर्ग प्रभुओं की वह सेवा थी,जिसके लिए यह पद मिला ही था.

बड़ेसाहसी आदमी हैं मनमोहन सिंह जी.इतने सब के बाद और अब तक की सबसे भ्रष्टतम सरकार के मुखिया के खिताब से नवाजे जाने के बावजूद भी आपको आस है कि इतिहास आपका नरमी से मूल्यांकन करेगा !इतिहास आपके वर्ग प्रभुओं के नियंत्रण वाला मीडिया नहीं है,महोदय जो विज्ञापनी बंसी की धुन पर आपकी विरुदावालियां गायेगा.


 इन्द्रेश 'आइसा' के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं 
और अब भाकपा-माले के नेता हैं. 
indresh.aisa@gmail.com पर इनसे संपर्क किया जा सकता है.

Viewing all articles
Browse latest Browse all 422

Trending Articles