प्रेम पुनेठा |
प्रेम पुनेठा
"...वैसे नेपाली सरकार ने चुनाव कराने के लिए सेना को भी सुरक्षा कामों में लगाने का आदेश दिया है। आज हम महेंद्रनगर और धनगढ़ी में थे और वहां पुलिस सड़कों पर दिखाई दे रही थी। अलबत्ता सेना की मौजूदगी अभी तक कहीं दिखाई नहीं दी है। इस बात की संभावना है कि माओवादी अपनी ताकत का प्रदर्शन अवश्य करेंगे। वैद्य ग्रुप भी इस बात को समझता है कि अगर चुनाव बहिष्कार का असर नहीं दिखा तो वह राजनीतिक तौर पर खत्म हो जाएगा। इसलिए उसके लिए यह अस्तित्व का सवाल है कि बहिष्कार प्रभावी हो।..."
एनेकपा माओवादी का मतदान का आह्वान |
नेपाल में संविधान सभा का चुनाव अब अंतिम चरण में पहुंच चुका है। सभी राजनीतिक दलों ने प्रचार में ताकत झोंक रखी है। लेकिन इन सबके बाद भी मतदाताओं और राजनीतिक दलों में संशय मौजूद है कि अगले दस दिनों मे क्या होगा क्योंकि नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी चुनाव का बहिष्कार कर रही है जिसके साथ 30 अन्य राजनीतिक संगठन भी हैं. इन्होंने 11 नवंबर से दस दिन का बंद का आह्वान किया है। इसके तहत एक दिन की आम हड़ताल और शेष दिन यातायात को बाधित रखने का कार्यक्रम है। इस तरह माओवादी चुनाव के इस चरण में यातायात को बाधित कर चुनाव को प्रभावित करना चाहते हैं। माओवादियों की रणनीति यह है कि किसी भी तरह से चुनाव में मतदान का प्रतिशत कम करवाया जाए और कुछ स्थानों पर हो सके तो पूर्ण बहिष्कार कर मतदान पेटियां खाली भिजवाई जाएं, जिससे चुनावों की वैधता की सवालों के घेरे में आ जाए।
वैसेनेपाली सरकार ने चुनाव कराने के लिए सेना को भी सुरक्षा कामों में लगाने का आदेश दिया है। आज हम महेंद्रनगर और धनगढ़ी में थे और वहां पुलिस सड़कों पर दिखाई दे रही थी। अलबत्ता सेना की मौजूदगी अभी तक कहीं दिखाई नहीं दी है। इस बात की संभावना है कि माओवादी अपनी ताकत का प्रदर्शन अवश्य करेंगे। वैद्य ग्रुप भी इस बात को समझता है कि अगर चुनाव बहिष्कार का असर नहीं दिखा तो वह राजनीतिक तौर पर खत्म हो जाएगा। इसलिए उसके लिए यह अस्तित्व का सवाल है कि बहिष्कार प्रभावी हो। अगर कहीं हिंसा ज्यादा होती है तो आम आदमी चुनाव की चुनाव में भागीदारी कम हो जाएगी। वैसे दो दिन पहले ही नेकपा माले की एक जनसभा में बम से हमला हुआ है और उसमें कुछ लोग घायल भी हुए है। वैसे यह काम किसने किया इस बारे में साफ तो कुछ नहीं मालूम लेकिन संदेह माओवादियों पर ही जा रहा है। अगर इस तरह की घटनाएं और होती हैं तो भय का वातावरण पैदा हो जाएगा। नेपाल की जनता दस साल के सशस्त्र आंदोलन में इस तरह की हिंसा को झेल चुकी है और वह अब किसी भी तरह की हिंसा से बचना चाहती है। आम आदमी राजनीतिक दलों से इस बात से खिन्न है कि चार साल में वे संविधान नहीं बना पाए। लेकिन बहिष्कार को भी समर्थन देने को तैयार नहीं है।
वैसेआम हड़ताल सफल भी हो जाए क्योंकि तोड़फोड़ के डर से लोग दुकानें बंद रख देंगे और यातायात भी बाधित हो जाए। नेपाल में सार्वजनिक परिवहन अधिकतर निजी हाथों में है वे अपने वाहनों को सड़क पर लाने का जोखिम उठाने के मूड में नहीं दिख रहे हैं। धनगढ़ी बाजार में जिन व्यापारियों और ठेली लगाने वालों से बात हुई उनका कहना था कि 'देखेंगे! जो सब करेंगे वही हम भी करेंगे।'फलों के ठेली लगाने वाला कह रहा था 'हम देखेंगे मौका मिला तो कहीं अदर जाकर ठेला लगा लेंगे।'मुख्य सड़क पर तो नहीं आ सकते। इससे इतना तो जाहिर है कि बंद चुनाव बहिष्कार के समर्थन में तो नहीं है वह किसी हिंसा और तोडफोड़ के भय से होगा। सबसे महत्वपूर्ण यह देखना होगा कि राजनीतिक दलों की गतिविधियों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि सभी दलो की रैलियां, सभाएं और प्रदर्शन हो रहे हैं।
बंद की पूर्व संध्या पर चौराहों पर पुलिस |
हमभी इंतजार कर रहे हैं कि कल माओवादी क्या करते हैं। वैसे हम तो माओवादियों के इस बंद की अपील से पहले दिन से ही जूझ रहे हैं। हमने बनबसा (भारत) से ही गाड़ी करने का विचार बनाया था लेकिन कोई भी अपनी गाड़ी लेकर नेपाल चलने को तैयार नहीं हुआ। सभी ने यही कहा कि वहां माओवादी तोड़फोड़ कर सकते हैं, ऐसे में वहां जाकर कौन मुसीबत मोल ले। हमने सोचा चलो महेंद्रनगर से ही वाहन की व्यवस्था कर लेंगे लेकिन यहां आकर पता चला कि हालत और भी खराब हैं। चुनाव के कारण बहुत सी गाडि़यां राजनीतिक दलों ने ले ली हैं और चुनाव में भी कई गाडि़यां पुलिस ने ली हैं। हमारे संपर्क के प़त्रकार मित्र ने भी एक राजनीतिक दल के लिए बनबसा से गाड़ी की व्यवस्था की लेकिन वह भी बनबसा और महेद्रनगर के दो प़त्रकारों की गारंटी पर। हमें तो महेंद्रनगर में वाहन नहीं मिला। हमारे लिए मित्रों ने जिस कार की व्यवस्था की वह उसे ठीक कराने टनकपुर चला गया और लगभग दो बजे तक नहीं लौटा तो हमने सार्वजनिक परिवहन से धनगढ़ी ही जाना उचित समझा। धनगढ़ी में भी वाहनों की हालत यही है और अभी आगे जाने की व्यवस्था नहीं हुई है। देखें कल क्या होता है।
प्रेम पुनेठा वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.
मध्य-पूर्व के इतिहास और राजनीति पर निरंतर अध्ययन और लेखन.
इनसे संपर्क के पते- prem.punetha@faceboo k.com और prempunetha@gmail.com