जॉन बेलेमी फ़ॉस्टर |
- जॉन बेलेमी फ़ॉस्टर
अनुवादः रोहित, मोहन और सुनील
जॉन बेलेमी फ़ॉस्टर मंथली रिव्यू के संपादक हैं। वे, यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑरेगोन में समाजशास्त्र के प्रवक्ता और चर्चित पुस्तक ‘द ग्रेट फाइनेंसियल क्राइसिस’(फ्रैड मैग्डोफ़ के साथ) के लेखक हैं। उक्त आलेख 11अप्रैल 2011 को फ्रैडरल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सेंटा कैटेरिना, फ्लोरिआनोपोलिस, ब्राजील में शिक्षा एवं मार्क्सवाद पर पांचवे ब्राजीलियन सम्मेलन (ईबीईएम) में उनके द्वारा दिए गए आधार वक्तव्य का विस्तार है। इस लम्बे आलेख को हम ४ किस्तों में यहाँ दे रहे हैं. यह दूसरी क़िस्त है... (पहली के लिए यहाँ क्लिक करें)
-सं.
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आर्थिक ठहराव और सार्वजनिक शिक्षा पर हमले
1974-75के बीच शुरू हुई मंदी के साथ आर्थिक ठहराव की शुरूआत और अभूतपूर्व रूप से निरंतर गिर रहे आर्थिक विकास ने चीजों को निर्णायक रूप से बदतर कर दिया था। 1970 से संयुक्त राज्य में दशक दर दशक गिर रहे वास्तविक आर्थिक विकास से शिक्षा पर दबाव लगातार बढ़ता गया। 1960 और शुरूआती 1970 के दौर में के-12 शिक्षा पर जो खर्च लगातार बढ़कर कर 1975 में जीडीपी के 4.1 प्रतिशत तक पहुंचा, एक दशक बाद ही 1985 में गिर कर 3.6 प्रतिशत रह गया। स्थानीय सरकारों से सार्वजनिक स्कूलों को मिलने वाला राजस्व बड़े पैमाने पर हुए संपत्ति कर में हुए बदलाव के चलते 1965 में 53 प्रतिशत से घटकर 1985 में 44 प्रतिशत जा पहुंचा। नतीजतन राज्य स्तर पर फंडिंग और अधिक केंद्रीकृत हो गई।
इसबीच स्कूलों को वृहद समाज में बढ़ रहे घाटे को झेलने करने को मजबूर किया गया। संयुक्त राज्य में गरीबी में जी रहे बच्चों की संख्या 1973 में 14.4 प्रतिशत से 1993 तक 22.7 प्रतिशत हो गई जबकि इन गरीब बच्चों में अत्यधिक गरीब बच्चे जोकि आधिकारिक गरीबी दर में आधे हैं, का कुल अनुपात 1975 में 30 प्रतिशत से बढ़कर 1993 में 40 प्रतिशत से भी ऊपर पहुंच गया। सार्वजनिक स्कूलों में तेजी से गरीब बच्चों की बढ़ती संख्या का दबाव स्कूल के सीमित संसाधनों पर भी पड़ा।
नवउदारवादीदौर में स्कूलों की इन बिगड़ती दशाओं के बावजूद मानकों और मूल्यांकन पर जोर देते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के खर्चो में कटौती की गई। स्कूलों को और अधिक बाजार और कॉरपोरेट के संचालन में ढकेला गया और वाउचर और चार्टर सहित कई रूढि़वादी विकल्पों की पहल कर तेजी से निजीकृत किया गया। स्कूल-वाउचर का प्रस्ताव पहले-पहल 1962 में मिल्टन फैडमैन की किताब ‘कैपिटलिज्म एंड फ्रीडम’ से लोकप्रिय हुआ जिसमें सरकार द्वारा अभिवावकों को उनके बच्चों की सार्वजनिक शिक्षा के मूल्य के बराबर के वाउचर देने का प्रस्ताव था जिससे वे अपने बच्चे को अपनी पसंद के स्कूल में भेज सकें। इसका मुख्य लक्ष्य निजी शिक्षा को सरकारी सब्सिडी मुहैया कराना था। यह सार्वजनिक शिक्षा पर सीधा हमला था। वहीं सार्वजनिक वित्तपोषित लेकिन निजी प्रबंधन वाले चार्टर स्कूल जोकि शिक्षा विभाग द्वारा न चलाए जाने के बावजूद भी तकनीकी रूप से सार्वजनिक स्कूल थे, 1980 तक शिक्षा के निजीकरण के सूक्ष्म तरीके के उदाहरण के तौर पर दिखाई दिए।
1980 में सार्वजनिक शिक्षा के विरुद्ध, कॉरपोरेट हितों का पैरोकार एक शक्तिशाली रूढि़वादी राजनीतिक गठबंधन खड़ा किया गया। रोनाल्ड रीगन ने कार्टर प्रशासन के दौरान कैबिनेट स्तर पर गठित यूएस सार्वजनिक विभाग को समाप्त करने की इच्छा बार-बार जताते हुए वाउचर शिक्षा के लिए जोर लगाया। रीगन ने शिक्षा पर एक राष्ट्रीय आयोग गठित किया जिसने ‘ए नेशन एट रिस्क’ शीर्षक वाली अपनी रिपोर्ट 1983 में रखी। जिसका सार था कि यूएस शिक्षा व्यवस्था अपने स्वयं के अंतर्विरोधों के कारण असफल हो रही है। (धीमे आर्थिक विकास, बढ़ती हुई असमानता और गरीबी का इसमें कोई जिक्र नहीं था।) ‘अ नेशन एट रिस्क’ के अनुसार ‘‘यदि किसी गैरहितैषी शक्ति ने अमेरिका में मौजूद वर्तमान औसत दर्जे की शिक्षण प्रणाली को थोपा होता तो हम इसे आसानी से एक युद्ध से जुड़ा हुआ कृत्य मान लेते। यह मौजूद है क्योंकि हमने इसे होने दिया है। हम वास्तव में विचारहीन, एकांगी शैक्षिक निरस्त्रीकरण का कृत्य कर रहे हैं।’’
बड़ेशीतयुद्ध सैन्य ढांचे की शुरूआत करने वाले रीगन प्रशासन ने अमीरों और निगमों को करों में छूट देते हुए, स्कूलों को मिलने वाली संघीय मदद की कटौती को, आसमान छूते हुए संघीय घाटे की लफ्फाजी के आधार पर सही ठहराया। इस कटौती में कम आय वाले विभागों को स्कूलों के लिए मिलने वाली मदद में 50 प्रतिशत कटौती भी सम्मिलित थी। 1980 के दशक अंत और 90 की शुरूआत में नाटकीय रूप से कठोर मानक, उत्तरदायित्व और मूल्यांकन प्रणाली की ओर एकाएक बदलाव देखा गया जिनका अनुसरण केनटुकी और टैक्सास जैसे राज्यों में (बाद में गवर्नर जार्ज डब्लू बुश के अधीन) जबरन किया गया। जार्ज एच डब्लू बुश और क्लिंटन प्रशासन के दौरान शिक्षा सुधारों की यही दिशा रही और जार्ज डब्लू बुश के राष्ट्रपति काल में यह प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के रूपांतरण के लिए विभाजक रेखा के रूप में स्थापित हो गई।
2001में शपथग्रहण के तीन दिन के बाद ही बुश ने अपने एनसीबीएल कार्यक्रम को जाहिर किया। 8 जनवरी 2002 को पास एनसीएलबी विधेयक सैकड़ों पेजों का है पर अवधारणागत् रूप में इसके सात मुख्य अवयव हैंः (1) प्रत्येक राज्य को अपने मूल्यांकन और प्रदर्शन के तीन स्तर (बुनियादी, प्रवीणता और आधुनिक) विकसित करने थे। जिसमें राज्यों को प्रवीणता के अपने मानक तय करने थे। (2) संघीय शिक्षा निधि को प्राप्त करने के लिए राज्यों को छात्रों का वार्षिक मूल्यांकन उनके वाचन और गणित में प्रवीणता के आधार पर तीन से आठ ग्रेड तक करना था और हासिल किए गए अंकों को निम्न आर्थिक स्तर, नस्ल, नृजातीयता, विकलांगता स्तर और अंग्रेजी की कम कुशलता के आधार पर विभाजित करना था। (3) प्रत्येक राज्य को एक समयरेखा देनी थी जिससे यह दिखाया जाय कि 2014 तक उसके 100 फीसदी छात्र कुशलता को प्राप्त कर लें। (4) सभी स्कूलों और विद्यालयी विभागों को प्रत्येक विभाजित उपसमूह में 2014 तक सौ प्रतिशत कुशलता प्राप्त करने संबंधी पर्याप्त वार्षिक प्रगति (एवाईपी) को प्रदर्षित करने के आदेश दिए गए। (5) जो विद्यालय सभी उपसमूहों के लिए पर्याप्त वार्षिक प्रगति प्राप्त नहीं कर पाएंगे उन पर आगामी प्रत्येक वर्ष में भारी दंड लगाया जाएगा। चौथे वर्ष में स्कूल में सुधार के कदम उठाए जाएंगे जिसके तहत पाठ्यक्रम परिवर्तन, स्टाफ परिवर्तन या सत्रावधि में वृद्धि की जाएगी। यदि स्कूल अब भी पर्याप्त वार्षिक प्रगति नहीं दे पाए तो पांचवे साल में उसे पुनर्गठित किया जाएगा। (6) पुनर्गठित किए जाने वाले स्कूल को पांच विकल्प दिए जाएंगे जिनका परिणाम अनिवार्य रूप से एक ही होगाः (ए) स्कूल को चार्टर स्कूल में बदल दिया जाएगा। (बी) प्रधानाचार्य और स्टाफ को बदल दिया जाएगा (सी) स्कूल का प्रबंधन निजी हाथों में दे दिया जाएगा। (डी) राज्य स्कूल का नियंत्रण छोड़ देगा (ई) विद्यालयी प्रशासन का व्यापक पुनर्गठन (अधिकांश स्कूल और स्कूली विभाग अपेक्षाकृत कम सुनिष्चित विकल्प होने के कारण आखिरी विकल्प को चुनने के लिए बाध्य थे ताकि अन्य विकल्पों को टाला जा सके।) (7) प्रत्येक राज्य को नेशनल एसेसमेंट ऑफ़ एजूकेशनल प्रोग्रेस नामक एक संघीय परीक्षा में प्रतिभाग करना था जो वैसे तो स्कूल और स्कूली विभागों पर कोई प्रभाव नहीं डालती थी परंतु राज्य की मूल्यांकन प्रणाली में बाहरी नियंत्रण के लिए बनाई गई थी।
एनसीएलबी के तहत पुनर्गठन का दबाव झेलने वाले स्कूलों की संख्या साल दर साल बढ़ती गई। 2007-08 में देश भर में पैंतीस हजार स्कूल पुनर्गठन की प्रक्रिया या योजना स्थिति में लाए गए। यह पिछले साल की तुलना में सीधे 50 फीसदी ज्यादा था। 2010 में संयुक्त राज्य में कई स्कूल एनसीएलबी के नियमों के तहत एवाईपी बनाने में असफल रहे और इनकी संख्या पिछले वर्ष के 33 प्रतिशत की तुलना में 38 प्रतिशत जा पहुंची।
एनसीएलबीने स्कूलों और अध्यापकों पर नए भार और अपेक्षाओं को तो बढ़ाया लेकिन यूएस सरकार द्वारा प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा पर खर्च होने वाले जीडीपी के प्रतिशत को नहीं बढ़ाया गया। यह खर्च 1990 के दशक में बढ़ाया गया था। 2001 में एनसीएलबी की ठीक शुरूआत के समय यह खर्च बढ़ते हुए जीडीपी का 4.2 प्रतिशत पहुंचा जो कि इसका अधिकतम था। यह खर्च एनसीएलबी के बाद के वर्षों में केवल घटता ही गया और 2006 में 4.0 तक पहुंच गया जो कि 1975 के खर्च के बराबर था।
एनसीएलबी विधेयक बिना बजट का आबंटन किए एक ऐसी व्यवस्था थोपता है जिसमें राज्य द्वारा संचालित सार्वजनिक स्कूल बिना संसाधनों के बड़ी अतिरिक्त लागत को झेलने के लिए विवश होते हैं। बाउल्डर, कॉलरेडो में स्थित नेशनल ऐजूकेशन पालिसी सेंटर के प्रबंध निदेशक और वरमान्ट में स्कूलों के पूर्व अधीक्षक ‘विलियम मैथिस’ ने यह आंकलन किया कि एनसीएलबी के के-12 शिक्षा के राष्ट्रीय बजट में अभी के मुकाबले 20-30 फीसदी की बढ़ोत्तरी करनी होगी। लेकिन शिक्षानिधि के मामूली तौर पर बढ़ने के बजाय यह या तो स्थिर रही या और भी गिरी और यह बात जीडीपी के प्रतिशत और नागरिक सरकार के खर्च दोनों में देखी गई।
राज्य संचालित बड़े शहरी स्कूलों में से न्यूयार्क शहर के ‘मेयर माइकल ब्लूमबर्ग स्कूल’ में एनसीएलबी शैली से किया गया सुधार सर्वाधिक चर्चित रहा। अरबपति ब्लूमबर्ग अपने 18 अरब डालरों के साथ 2011 के संयुक्त राज्य में व्यक्तिगत् धनाड्यों की सूची में तेरहवें स्थान पर है। इन्होंने यह अरबों डालर वित्तीय समाचार मीडिया के साम्राज्य के विकास से ‘ब्लूमबर्ग एलपी’ के जरिए से कमाया।अपनी प्रचार अभियान सामग्री में ब्लूमबर्ग ने घोषणा की कि स्कूल ‘आपातकाल की स्थिति’ में हैं। मेयर के अपने चुनाव के दौरान उसने तेजी से के-12 शिक्षा को कॉरपोरेट वित्तीय दिशा की ओर बदलने की बात कही। वाचन और गणित की परीक्षाओं में अंक प्राप्ति की ओर मुख्य जोर था जब्कि पाठ्यक्रम के अन्य विषयों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया गया। असफल रहे सार्वजनिक स्कूलों को चार्टर स्कूलों में तब्दील कर दिया गया। हालांकि ब्लूमबर्ग के स्कूलों के पुनर्गठन और निजीकरण के बावजूद संघीय एनएईपी परिक्षा से पता चलता है कि न्यूयार्क शहर में 2003 से 2007 के दौरान वाचन या गणित में कोई महत्वपूर्ण सफलता नहीं हासिल हुई।\
साहसपूर्ण परोपकार और मूल्य-वर्धित शिक्षा
ब्लूमबर्गअकेला अरबपति नहीं था जिसे स्कूलों के सुधारों ने आकर्षित किया। वित्त और सूचना पूंजी के एकाधिकार की 21वीं सदी में उच्च कॉरपोरेट हलकों में यह विशवास पैदा हुआ है कि अब शिक्षा का वैज्ञानिक तकनीकी और वित्तीय क्षेत्रों के समान ही पूरी तरह से प्रबंधन किया जा सकता है, जिससे (1) शिक्षकों की श्रम प्रक्रिया का नियंत्रण (2) अधिक विभेदित और एकरस श्रमशक्ति के निर्माण के लिए अधीनस्थ शिक्षा और (3) सार्वजनिक शिक्षा का निजीकरण (जहां तक बिना गंभीर प्रतिरोधों के हो सके) संभव हो जाएगा। डिजिटल युग में नौकरशाहीकरण, ट्रैकिंग और परीक्षण पहले की तुलना में अधिक आसान हो गए थे। शिक्षण की श्रमप्रक्रिया का केंद्रीकरण ही इस प्रक्रिया का मकसद था ताकि शिक्षा विज्ञान को लागू करने का तरीका क्लासिक वैज्ञानिक प्रबंधन की तरह शिक्षकों से छीनकर उच्चाधिकारियों को सौंप दिया जाय।
सार्वजनिक स्कूलों को शिक्षकों के बजाय तकनीक पर अधिक ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित किया गया यह उस टेलरवादी योजना के नए संस्करण के अनुरूप था जिसमें शिक्षकों को तेजतर्रार मषीनों के उपांगों के रूप में देखा गया था।
वैज्ञानिकरूप से प्रबंधित शिक्षा का जो स्वप्न 20 वीं सदी में पूरी तरह हकीकत में नहीं बदल सका अंततः 21वीं सदी के डिजीटल पूंजीवाद में पहुंच के भीतर लग रहा था। जार्ज एच डब्लू बुश प्रशासन में सहायक शिक्षा सचिव रहे डिआन रेविच कहते हैं ‘‘तकनीकी विकास के चलते यह संभव हुआ है कि कई राज्य और जिले विशिष्ट छात्र के अंक और उससे संबंधित अध्यापक की जानकारी रख सकें और इसके आधार पर शिक्षक को छात्र की उन्नति और अवनति के लिए जवाबदेह बना सकें।’’ नए रूढि़वादी शिक्षा सुधार आंदोलन का मुख्य नारा मूल्यवर्धित शिक्षा था और छात्रों में वर्धित मूल्य के आधार पर शिक्षकों की क्षमता का मूल्यांकन और इसी गुण के आधार पर उनको भुगतान होना था। इस तरह मूल्यवर्धन, पूंजी के विकास के लिए छद्म रूप में परीक्षा में अंक बढ़ाने से अधिक कुछ नहींथा।
इक्कीसवींसदी के कॉरपोरेट स्कूल सुधार आंदोलन का नेतृत्व, जिसने सरकार की भूमिका को हाशिये पर धकेल दिया, चार बड़े परोपकारी फाउंडेशनों से आया जो एकाधिकारी वित्तीय सूचना और खुदरा पूंजी के मुख्य प्रतिनिधि थे। ये चार फाउंडेशन हैंः (1) द बिल एंड मैलिंडा गेट्स फाउंडेशन (2) द वैल्टन फैमिली फाउंडेशन (3) द एली एंड एडिटी ब्राड फाउंडेशन और (4) द माइकल एंड सुसैन डैल फाउंडेशन। ये नए किस्म के फाउंडेशन हैं जिन्हें ‘वैंचर परोपकार’ (ये नाम वैंचर कैपिटलिज्म से लिया गया है।) का नाम दिया गया और ‘‘परोपकारी पूंजीवाद‘‘ भी कहा गया। परोपकारी पूंजीवाद को उनकी आक्रामक निवेश केंद्रित तौर तरीकों के आधार पर पहले के फाउंडेशनों से अलग किया जाता है। पारंपरिक अनुदान से बचते हुए पैसे को सीधे चुने हुए प्रोजक्टों में डाला जाता है। एक मूल्यवर्धित कार्यप्रणाली अपनाई गई है जिसमें व्यापार के समान ही तुरंत परिणामों की अपेक्षा की जाती है। अपनी कर मुक्त स्थिति के बावजूद ‘परोपकारी पूंजीवादी’ सरकारी नीतियों को सीधे प्रभावित करने के लिए व्यग्र दिखाइ देते हैं।
माइक्रोसॉफ्ट के बिल गेट्स द्वारा बनाए गए ‘द गेट्स फाउंडेशन’ की संपत्ति 2010 में 33 अरब अमेरीकी डालर थी जो कि वित्तीय पूंजीपति वारेन बफे से 30 अरब डालर के वार्षिक योगदान के साथ और बढ़ गई। 2008 में वॉलमार्ट स्टोर्स के मालिकों के वॉलटन फाउंडेशन के पास दो अरब डालर की संपत्ति थी। 1999 में अपने उद्यम सनअमेरीका (जो कि बाद में दिवालिया हुआ और जिसे 18 अरब डालर का बेलआउट पैकेज दिया गया) को बेचने वाले रियल एस्टेट वित्तीय अरबपति एली ब्राड द ब्राड फाउंडेशन के निदेशक हैं जिसकी 2008 में कुल संपत्ति 1.4 अरब डालर है। जबकि डैल के संस्थापक और सीईओ माइकल डैल के द माइकल एंड सुसैन डैल फाउंडेशन की संपत्ति 2006 में लगभग एक अरब डालर से अधिक थी।
डैलफाउंडेशन के क्रियाकलाप डैल (कंपनी) की गतिविधियों से जुड़ी हुई रही जो कि सार्वजनिक स्कूलों को बाजार के तौर पर देखने वाली तकनीक आधारित कंपनियों में से प्रमुख है। डैल फाउंडेशन तीन अन्य परोपकारी पूंजीवादी संगठनों के साथ साथ ही काम करता है (गेट्स और बोर्ड फाउंडेशन इसके बड़े दानदाता हैं)। यह प्रदर्शन के प्रबंधन पर विशेष जोर देता है। जोकि सूचना तकनीकी को स्कूलों में जवाबदेही का आधार बनाने पर केंद्रित है।
यहसीधे तौर पर शिक्षा बाजार के डैल के अपने आर्थिक हितों से जुड़ा हुआ है। क्योंकि डैल, एप्पल के बाद के-12 स्कूलों में तकनीकी हार्डवेयर सुविधाएं मुहैया कराने वाली दूसरी कंपनी है। द डैल फाउंडेशन दावा करता है कि वो स्कूल के बेहतर प्रबंधन के लिए शहरी स्कूलों की, सूचना के एकत्रीकरण विश्लेषण और प्रतिवेदन में तकनीक के इस्तेमाल में मदद कर रहा है।
यहचार्टर स्कूलों में लाभ आधारित शिक्षा प्रबंधन संगठनों और चार्टर स्कूलों के रियल एस्टेट डेवलेपमेंट का बड़ा समर्थक है।
शिक्षणेत्तरक्षेत्रों (जैसे व्यापार, कानून, सेना आदि) से पेशेवरों की भर्ती करते हुए नवउदारवादी पूंजीवादी शिक्षा सुधार के लिए नए कैडर के प्रशिक्षण में ब्राड फाउंडेशन अव्वल है। इसका लक्ष्य उन्हें उस कैडर को स्कूल के उच्च प्रबंधन स्टाफ और स्कूल अधीक्षण में स्थान देना है। द ब्राड सेंटर फॉर द मेनेजमेंट ऑफ़ स्कूल सिस्टम्स के दो कार्यक्रम मुख्य हैः (1) द ब्राड सुपरिटेंडेंट्स ऐकेडमी, जिसमें स्कूल सुपरिटेंडेंट्स को प्रशिक्षण दिया जाता है और बड़े शहरों में औहदे दिलाए जाते हैं। (2)द ब्राड रेजीडेंसी इन अर्बन एजूकेशन जो कि अपने स्नातकों को स्कूली विभागों में उच्च स्तरीय प्रबंधकीय औहदे दिलाने के लिए स्थापित की गई है। ब्राड फाउंडेशन अपने स्नातकों को वेतन की पेशकश करते हुए और इस तरह उन्हें कठिन दौर से गुजर रहे स्कूलों के लिए आकर्षक बनाते हुए ऐसी नियुक्तियों में तेजी लाता है और स्कूल बोर्डों को उच्च कारपोरेट की सेवाओं को लेने के अवसर देता है। ब्राड के स्नातकों की सेवाएं लेकर स्कूली विभाग ब्राड फाउंडेशन से अतिरिक्त धन लेने के लायक बन जाते हैं। ब्राड इंस्टिट्यूट फॉर स्कूल बोर्ड्स का मिशन स्कूल बोर्ड के देश भर से चुने हुए सदस्यों को पुनः प्रशिक्षण देकर उन्हें स्कूलों के कॉरपोरेट प्रबंधन मॉडल के अनुरूप ढालना है।
इसकी आधिकारिक वैबसाइट के अनुसार 2009 में ब्राड ऐकेडमी के स्नातकों द्वारा शहरी स्कूलों के अधीक्षक के पदों में से 43 फीसदी पर नियुक्ति पाई गई। द ब्राड फाउंडेशन शिक्षा के निजीकरण का कट्टर समर्थक है। विशेष रूप से इसकी दिलचस्पी शिक्षक संघों को तोड़ने, शिक्षकों के लिए योग्यता भुगतान की व्यवस्था स्थापित करने और सामान्यतया शिक्षा को गैरपेषेवर रूप देने में है ताकि इसे शुद्ध व्यावसायिक तौर पर श्रमशक्ति का सर्वहाराकरण करते हुए चलाया जा सके। 2009 में ऐली ब्राड ने न्यूयार्क में एक भाशण के दौरान कहा “हम पढ़ाने के तरीके और पाठ्यक्रम अथवा इनमें से किसी के बारे में कुछ भी नहीं जानते। परंतु हम प्रबंधन और शासन के बारे में जानते हैं।“
नाओमीक्लेन के शब्दों में कहें तो सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था का विध्वंस कर इसका निजीकरण करने की कोशिश द्वारा ब्रोड फाउन्डेशन ‘झटका सिद्धांत’ को बढ़ावा दे रहा है, यह ‘विनाशक पूंजीवाद’ का ही एक रूप है।अप्रैल 2009 में सिएटल एज्युकेशन ने ‘कैसे जानें कि आपके स्कूल में ब्रोड वाइरस आ चुका है’ नाम से अपनी वेबसाइट पर अभिभावकों हेतु एक निर्देशिका प्रकाशित की। ब्रोड वाइरस के लक्षणों में से हैः
आपकेजिले में अचानक स्कूल बंद होने लगते हैं... जिला अभिलेखों तथा वक्तव्यों में ‘औपलब्ध्कि असफलता’ तथा ‘औपलब्धिक असफलता की भरपाई’ जैसे मुहावरों का प्रयोग बढ़ जाता है... अचानक से बाहरी वैज्ञानिक सलाहकारों की आमद बढ़ जाती है। निजी चार्टर स्कूलों में बदले गए सार्वजनिक स्कूलों की संख्या बढ़ जाती है... गणित की सरल किताब लागू की जाती है... शायद भाषा की भी सरल किताब लागू की जाए... जिला प्रशासन घोषित करता है कि जिले की इकलौती समस्या शिक्षक हैं। आपके बच्चों पर तरह-तरह की परीक्षाएं लाद दी जाती हैं... आपके स्कूल की परिषद स्टॉकहोम सिन्ड्रोम के लक्षण दिखाने लगती है। वे एक राय से सुपरिन्टेंडेंट के पीछे-पीछे मतदान करने लगते हैं। सुपरिंटेंडेंट तथा उसकी रणनीतिक योजनाके लिए ब्रोड तथा गेट्स फाउन्डेशन की ओर से मदद आने लगती है। गेट्स फाउन्डेशन आपके जिले की तकनीकी सामग्री या चार्टर स्कूलों में शिक्षकों की क्षमता बढ़ाने हेतु इमदाद मुहैया करवाती है।
वॉलमार्टकॉरपोरेशन ने अपना धंधा श्रमिकों को कम वेतन देकर फैलाया है। यह यूनियनों की विद्वेषपूर्ण विरोधी है तथा इसने खुदरा क्षेत्र में खुद को एकाधिकारी शक्ति बना लिया है- वाल्टन फाउण्डेशन इसी के नज़रिये को अभिव्यक्त करती है। यह हर संभव तरीके से शिक्षा पर सार्वजनक क्षेत्र के एकाधिकार को खत्म करना चाहती है। इसके तरीके हैं- शिक्षक संघों पर हमले करना, निजी चार्टरों को बढ़ावा देना, स्कूल चयन इत्यादि। रेविच कहते हैं- ‘‘वाल्टन परिवार फाउण्डेशन के योगदान की समीक्षा करने पर जाहिर होता है कि यह परिवार सार्वजनिक क्षेत्र के विकल्प पैदा करना, उन्हें मज़बूत करना तथा उन विकल्पों को बढ़ावा देना चाहता है। उनका एजेन्डा है चुनाव, प्रतिस्पर्ध और निजीकरण।’’
...अगली क़िस्त में जारी
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