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महिलाओं, छात्र-युवाओं, श्रमिक संगठनों और सांस्कृतिक संगठनों ने मनाया राष्ट्रीय शर्म दिवस

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"...पुलिसका यह कहना कि 'हम गैंगरेप के आरोपियों के खिलाफ कार्रवार्इ कर रहे हैं, तो फिर आंदोलन क्यों किया जा रहा है' यह इस बात की ओर इशारा करता है कि सरकार और प्रशासन चाहती है कि मामला इसी घटना तक ही सीमित रहे। लेकिन लोगों का गुस्सा इसलिए भी उमड़ रहा है कि अभी भी लगातार बलात्कार, छेड़छाड़ और उत्पीड़न की घटनाएं जारी हैं।..."



दिल्ली में बसंत विहार में हुए सामूहिक बलात्कार के विरोध में महिलाओं, छात्र-युवाओं, श्रमिक संगठनों और सांस्कृतिक संगठनोंने मिल कर राष्ट्रीय शर्म दिवसमनायाइस आयोजन में एपवा, आइसा-इनौस, एक्टू और जन संस्कृति मंच आदि संगठन शामिल थे। प्रदर्शनकारियों को इंडिया गेट न पहुंचने देने की तमाम कोशिशों के बावजूद निजामुददीन गोलंबर से जुलूस निकालकर वे बैरिकेट को तोड़ते हुए इंडिया गेट पहुंचे और वहां सभा की। यह प्रदर्शन बिल्कुल शांतिपूर्ण था और महिलाओं की आजादी और सुरक्षा की मांग कर रहा था। विवाह, परिवार, जाति, संप्रदाय की आड़ में किए जाने वाले बलात्कार और सुरक्षा बलों द्वारा किए जा रहे बलात्कार और इज्जत के नाम पर की जाने वाली हत्याओं के खिलाफ संसद का विशेष सत्र बुलाकर एक प्रभावी कानून बनाने की भी मांग की गर्इ। बलात्कार के मामलों में सजा की दर कम होने पर भी सवाल उठाया गया तथा सभी दोषियों की सजा सुनिशिचत करने की मांग की गर्इ। आदिवासी सोनी सोढ़ी के गुप्तांग में पत्थर भरने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ भी कार्रवार्इ की मांग की गर्इ। देश में सामंती-जातिवादी और सांप्रदायिक शकितयों द्वारा किए जाने वाले बलात्कार के दोषियों को भी सजा की गारंटी हो, इस पर जोर दिया गया।
प्रदर्शनकारियोंने पुलिस पर इंडिया गेट पर आज के प्रदर्शन को बर्बरता से कुचलने का आरोप लगाया है और कहा है कि सरकार ने एक तरह से अघोषित इमरजेंसी लागू कर दी है। लोग इंडिया गेट न पहुंच न पाएं, इसके लिए उसने हरसंभव कोशिश की। इसके बावजूद जो लोग वहां पहुंचकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे, उनके खिलाफ पुलिस लगातार उकसावे की कार्रवार्इ करती रही। बिना किसी उग्र प्रदर्शन के उसने आंसू गैस छोड़ने की शुरुआत की। पुलिस ने जिस तरह उपद्रवियों का बहाना बनाकर महिलाओं और निहत्थे लोगों तक पर लाठियां बरसार्इ हैं, पानी की बौछार की है, लगातार आंसू गैस के गोले छोड़े हैं, वह सरकार के तानाशाहीपूर्ण और अलोकतांत्रिक रवैये का उदाहरण है। पुलिस ने साजिशपूर्ण तरीके से शांतिपूर्ण आंदोलन के दमन का बहाना बनाया है, जिसकी जांच होनी चाहिए। आज जिस तरह प्रदर्शनकारियों और आम जनता पर बर्बर हमला किया गया, जिस तरह पुलिस ने लड़कियों के साथ बदसलूकी की, पत्रकारों तक को नहीं बख्सा, वह बेहद शर्मनाक है। इससे स्त्री अधिकार से जुड़े सवालों और आम स्त्री के प्रति पुलिस और यूपीए सरकार की संवेदनहीनता का ही पता चलता है।

पुलिसका यह कहना कि 'हम गैंगरेप के आरोपियों के खिलाफ कार्रवार्इ कर रहे हैं, तो फिर आंदोलन क्यों किया जा रहा है' यह इस बात की ओर इशारा करता है कि सरकार और प्रशासन चाहती है कि मामला इसी घटना तक ही सीमित रहे। लेकिन लोगों का गुस्सा इसलिए भी उमड़ रहा है कि अभी भी लगातार बलात्कार, छेड़छाड़ और उत्पीड़न की घटनाएं जारी हैं। समाचार पत्र ऐसी खबरों से भरे पड़े हैं। एपवा, आइसा, इनौस, एक्टू और जसम का प्रदर्शन संपूर्ण स्त्री विरोधी तंत्र को बदलने की मांग को लेकर था, जिसमें सक्षम कानून बनाने से लेकर बलात्कार और हिंसा के मामले में न्यायपालिका, पुलिस, चिकित्सा तमाम क्षेत्रों में आमूल चूल बदलाव की मांग शामिल थी। यौन हिंसा की तमाम प्रवृतितयों को औचित्य प्रदान करने वाली प्रवृतितयों और संस्कृति के अंत की मांग भी प्रदर्शनकारी कर रहे थे।
अपनी 'ज़िम्मेदारी' निभाती पुलिस
प्रदर्शन के दौरान सभाओं को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि इस गैंगरेप और बलात्कार, यौन हिंसा, उत्पीड़न के तमाम मामलों में तो न्याय चाहिए ही, कहीं भी किसी वक्त आने-जाने, अपने पसंद के कपड़े पहनने, जीवन के तमाम क्षेत्रों में बराबरी के अवसर और जीवन साथी को चुनने की आजादी भी होनी चाहिए। एपवा की ओर से कविता कृष्णन और आइसा की ओर सुचेता डे ने सभा को संबोधित किया। जसम की ओर से कवि मदन कश्यप, पत्रकार आनंद प्रधान, आशुतोष, सुधीर सुमन, मार्तंड, रवि प्रकाश, कपिल शर्मा, उदय शंकर, खालिद भी इस प्रदर्शन में शामिल हुए। आइसा के ओम प्रसाद, अनमोल, फरहान, इनौस के असलम, एक्टू के संतोष राय, वीके एस गौतम, मथुरा पासवान समेत कर्इ नेताओं ने प्रदर्शन का नेतृत्व किया।

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