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परिजनों की व्यथा भी कम नहीं है

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सुनीता भास्कर

-सुनीता भास्कर

"...आज सुबह जब उनके तंबू पर पहुंच अलग अलग ग्रुपों में बैठे गुजरात, राजस्थान व हरियाणा के लोगों की सुध लेनी चाही तो उनके भीतर का ज्वालामुखी फूट पड़ा। उनके दिलों की आग उनकी जुबां से निकल रही थी।.." 



पिछले आठ-नौ दिनों से अपने परिजनों की तलाश में राजस्थान, महाराष्ट्, गुजरात, यूपी, हरियाणा, आन्ध्रा समेत अन्य राज्यों से हड़बड़ी व बदहवास स्थिति में पहुंचे परिजन सरकारी बदइंतजामी से हलकान हो गए हैं। परिजनों को ढांढस का एक लफ्ज तक सरकार की जुबां पर नहीं है। भला हो तमाम धार्मिक, सामाजिक संगठन व स्वैच्छिक वालेंटियरों का जिन्होंने एयरपोर्ट , रेल व बस स्टेशन पर रहने व भूख के सारे इंतजामात किए हुए हैं। वरना सरकार के पास दो हजार की राहत राशि देने के सिवा और कोई संवेदनाएं नहीं हैं। नैतिक दायित्व तो छोडिय़े सरकार अपना सरकारी दायित्व भी ठीक से नहीं निभा रही है। 

कुछदिन पूर्व सभी अखबार व चैनलों में राज्य के सूचना विभाग ने मुख्यमंत्री की बड़ी सी तस्वीरों के साथ सभी आपदा प्रभावित जनपदों व हेल्प लाइनों के दूरभाष नंबर दिये जिसमें से अधिकतर गलत पाए गए। बाद में जिसके लिए उन्हें माफी मांगनी पड़ी। देश के कोने कोने से लोग सूचना पाने के लिए तरस पड़े। अब सरकार का दूसरा कारनामा सैकड़ों की संख्यां में पहुंचे परिजनों से मुंह मोड़ लेना है। 

देहरादून, जोलीग्रांट, ऋषिकेश व हरिद्वार में हैलीपेड, एयरपोर्ट, बस स्टैंड व रेलने स्टेशनों में अपनों का इंतजार कर रहे लोगों को रेस्क्यू कर बचाए गए लोगों की सूची तक मुहैय्या नहीं करायी जा रही है। परिजनों के ऋषिकेश, हरिद्वार मार्ग पर हंगामा काटने व जाम लगा देने के बाद सरकार कुछ हरकत में आई और रेसक्यू किए लोगों की जानकारी सरकार की अपनी वेबसाइट में डालना शुरु की। लेकिन एक और आफत अब लोगों के सामने है। एक तो यह कि रोज के रेसक्यू की सूची अपडेट नहीं की जा रही है। दूसरा लोगों के नाम के पीछे ना जाति लिखी है न पिता या पति का नाम है और ना ही गांव या राज्य का नाम। जिससे परिजनों के सामने अपनों को नाम से पहचानने का कोई चांस ही नहीं है। एक ही नाम के कई कई लोग हैं। कईयों के परिजन खुद जान हथेली में रखकर ग्रुप में गुप्तकाशी या गौरीकुंड तक हो आए हैं, लेकिन उन्हें अपने कहीं नजर नहीं आए। 

कईपरिजन चार चार हिस्सों में बंटे हैं। संगठनों द्वारा रात गुजारने के लिए दिए आशियाने से मुंह अंधेरे ही यह लोग उठ जाते हैं और चारों दिशाओं में फैल जाते हैं। एक सहस्त्रधारा हैलीपैड पर तो दूजा जौलीग्रांट एयरपोर्ट के गेट के बाहर अड्डा डालता है। तीसरा ऋषिकेश तो चौथा हरिद्वार में अपनों के इंतजार में खड़ा हो जाता है। उन्हें नहीं मालूम कि बचाव व राहत कार्य के बाद कौन किस रास्ते कब व कहां लाया जाएगा। कुछ लोग सभी अस्पतालों के चक्कर काट रहे हैं तो कोई दिन भर कैफे में सरकारी वेबसाइट खंगालते रहते हैं। आलम यह है कि मुंह अंधेरे की सुबह से शाम की कालिमा छंटने तक कोई भी मंत्री, अधिकारी उनके कांधे पर हाथ रख दिलासा देने वाला नहीं है। इसके उलट यह अधिकारी फोन स्वीच आफ कर वातानुकुलित कमरो में रहकर उनके जले पर नमक ही छिडक़ने का काम कर रहे हैं।

आज सुबह जब उनके तंबू पर पहुंच अलग अलग ग्रुपों में बैठे गुजरात, राजस्थान व हरियाणा के लोगों की सुध लेनी चाही तो उनके भीतर का ज्वालामुखी फूट पड़ा। उनके दिलों की आग उनकी जुबां से निकल रही थी। राजस्थान से आए कई परिजनों ने कहा कि राजस्थान से पांच से छह सौ तक बसें केदारनाथ की यात्रा पर आई थी। केवल दस फीसद ही अभी तक लौटे हैं। नब्बे फीसद का कोई अता पता नहीं है। कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री अशोक कुमार गहलोत आए थे। लेकिन एयरपोर्ट पर उतरकर पत्रकारों को बाइट देकर निकल पड़े। एक बार भी यहां तक आने हम से बात करने की जहमत नहीं उठाई। चार अधिकारियों को यहां नामित कर बैठा गए लेकिन कोई भी हमसे मिलने नहीं आया। सभी राज्यों के राहत कैंप लगे हैं हमारे कैंप का बैनर तक उखड़ कर उजाड़ हो गया है। अधिकारियों को फोन कर रहे हैं. लेकिन या तो वह रिसीव नहीं किए जा रहे या फिर स्वीच ऑफ आ रहे हैं। अधिकारी आपदा के समय में आठ घंटा ड्यूटी कर फोन स्वीच आफ कर दे रहे हैं। कुछ दिन पहले राजस्थान के एक विधायक आए और अपने कुछ रिश्तेदारों को केदारनाथ से निकलावाकर ले गए। यह राजस्थान की जनता के मुंह पर करारा तमाचा है। आज ही यहां राजस्थान के पर्यटन मंत्री राजेन्द्र पारिख पहुंचे हैं लेकिन अभी तक उन्होंने भी कोई सुध नहीं ली है। अपने वहां भी सरकार ने कोई सर्वे नहीं किया कि आखिर राजस्थान से कितने लोग यात्रा पर निकले थे जबकि इसके बनस्पित गुजरात सरकार ने अपने सारे गांव व जिलों में मुनादी कराई कि जो जो भी तीर्थ यात्रा पर गए थे वह जिला प्रशासन के वहां रपट लिखाएं और इस तरह गुजरात के सभी तीर्थयात्रियों की संख्या की जानकारी मिल गई। मंत्री नेता व अधिकारियों की इसी उपेक्षा का परिणाम है कि राजस्थान के लोगों को हालिकप्टर में भी कोई जगह नहीं मिल रही है। पिछले दस दिनों से हम यहां तैनात हैं। सभी राज्यों के लोग रोज हर राउंड में पहुंच रहे हैं लेकिन राजस्थान का कोई वाशिंदा अभी तक हालिकप्टर से नहीं उतरा। हमारे कुछ लोग खुद ही रिस्क लेकर गुप्तकाशी तक हो आए वहां के हालात देख कर वह रुंआसे होकर लौटे हैं। 

इसीतरह महाराष्ट्र वर्धा से आए दर्जनों परिजन या यूं कहें पूरे गांव वाले ही यहां पहुंचे हैं। डबडबायी आंखे, गले तक भरा मन लेकर वह भी जगह जगह हाथ पांव मार रहे हैं। वहीं सोनीपत हरियाणा का राजीव सैनी अपने पिता की तस्वीर हाथ में लेकर जाने कितने अस्पतालों के चक्कर काट चुका है। देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार के अलावा वह पहाड़ चढक़र श्रीनगर तक के अस्पताल में घूम आया लेकिन उसके पिता का कही कोई सुराग नहीं लगा, जबकि कुछ दिन पहले एक चैनल ने हाथ में इंजेक्शन लगे बगल में नर्स के खड़े होने की उसके पिता की तस्वीर दिखाई थी। एक हफ्ता हो गया लेकिन राजीव अपने जिंदा व अस्पताल में एडमिट पिता को नहीं ढूंढ पाया है। इससे बड़ी बदइंतजामी की मिशाल क्या होगी कि चैनल उसके पिता को अस्पताल के बैड पर दिखा रहा है और सरकार का वह अस्पताल जाने किस धरती पर है। लापता लोगों के परिजनों की व्यथाएं इतनी बढ़ी गई है कि केदारनाथ घाटी की आपदा उनके सामने बौनी नजर आ रही।
सुनीता  पत्रकार हैं. 
अभी देहरादून में एक दैनिक अखबार में कार्यरत.
sunita.bhaskar.5@facebook.com पर इनसे संपर्क हो सकता है.

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