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ये मुखाल्फ़त का दौर है, ये जीतने की शुरुआत है...!

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आशीष भारद्वाज


"...शाम पांच बजते ही सैंकड़ों की संख्या में लोग इंडिया गेट पर जमा होकर अपने गुस्से का इज़हार कर रहे थे. सवा छः बजे छात्र-नौजवानों का ये हुजूम राजपथ को लगभग रौंदते हुए रायसिना हिल की तरफ दौड़ रहा था. सारी व्यस्त ट्रैफिक, चौराहे पर तमाशबीनों में बदल गयी. पुलिस से थोड़ी-बहुत धक्का-मुक्की के बाद तमाम प्रदर्शनकारी भारतीय सत्ता के दलालों के प्रमुख ऐशगाह रायसिना पहाड़ी पर पंहुच गये और नारे लगाने लगे: “होम मिनिस्टर बाहर आओ - बाहर आकर बात करो”! ये एक ऐतिहासिक पल था..."

सड़कों में उमड़े छात्र : (फोटो-विजय)
पिछले तीन दिनों के ताप ने दिसंबर की इस ठण्ड को महसूस करने का वक्त ही नहीं दिया! अंदर जमा हो रहा गुस्सा जब फूटता है तो ऐसे ही मंजर नज़र आते हैं. ये गुस्सा जाने कब से जमा हो रहा था.. केवल इस साल की बात करें तो साल के पहले बलात्कार के तकरीबन छः सौ और बलात्कारों के बाद आम लोगों और छात्र-नौजवानों का गुस्सा इस नौबत तक पंहुचा है, जहां इस शहर के चौक-चौराहों से लेकर रायसिना हिल के नॉर्थ-साउथ ब्लॉक तक छात्र-नौजवान ‘पितृसत्ता मुर्दाबाद’ और ‘दिल्ली पुलिस-शर्म करो’ जैसे नारों से दिल्ली का आसमान गूँज रहा है!

रविवारदेर शाम हुए सामूहिक बलात्कार ने सबको अंदर तक हिला के रख दिया. घटना इस तरह अंजाम दी गयी थी कि इसे महज़ जानना पूरी तरह से शर्मसार होने जैसा था. चलती बस में सामूहिक बलात्कार, बर्बर हिंसा और चलती बस से नंगा करके फेंक दिया जाना संभवतः दिल्ली की आजतक की सबसे “पशुवत घटना” है. चूंकि दिल्ली में इंसान भी रहते हैं, सो इंसानों ने इसके पुरजोर विरोध का फैसला किया. सोमवार की सुबह आते-आते हर तरफ “त्राहि माम” जैसा आलम था! 

शुरुआत मुनीरका के चौराहे से हुई. जे.एन.यू. और आस-पास रह रहे महिला और पुरुष साथियों ने मुनीरका चौराहे को चारों तरफ से ‘ब्लॉक’ कर दिया. चारों तरफ से आ रही दो लेन की सड़क को ‘मानव-श्रृंखला’ बनाकर यातायात को यथावत कर दिया गया. साथियों के दो दस्ते दो सेटेलाइट्स की शक्ल में मानव-श्रृंखला के इर्द-गिर्द घुमते हुए पितृसत्ता, सत्ता और पुलिस के खिलाफ़ नारे लगाते हुए मौजूद तमाम साथियों की हौसला-अफज़ाई कर रहे थे. पुलिस थी, मगर बैकफुट पर! शायद उनमें भी कहीं अंदर कोई ‘अपराध-बोध’ रहा हो या फिर “ऊपर” से कोई निर्देश आया हो. थोड़ी ही देर में मीडिया, माने हर तरह की मीडिया, भी वहाँ पंहुच गयी. आस-पास रह रही जनता, माने महिला-पुरुष और बच्चे भी थोड़ी देर में यहीं जमा होने लगे लगे. कमाल का मंज़र था! ऐसा लग रहा था मानो प्रदर्शनकारी सबको यथावत रोक कर अपनी बात कहना चाह रहे हों. और ऐसा हुआ भी! तकरीबन तीन बजे तक थाने के घेराव के बाद प्रदर्शनकारी मुनीरका की गलियों से नारे लगाते हुए वापस लौट आये. इस निर्णय के साथ कि अगली सुबह दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के घर के आगे प्रदर्शन किया जायेगा.

अगलीसुबह लगभग साढ़े बारह बजे तकरीबन सौ प्रदर्शनकारी शीला दीक्षित के सरकारी आवास के सामने जमा हो चुके थे. अगले आधे घंटे में सामने खड़े दो बैरिकेड्स इनके सामने टिके नहीं और अगले पन्द्रह मिनट में ज़मींदोज़ कर दिये गये. फिर शुरू हुई “पुलिसिया गुंडई”! इन निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर पहले लाठी चार्ज हुआ और फिर वाटर कैनन से इन्हें बहा देने की कोशिश की गयी. छः साथियों को ज़्यादा चोटें आयीं पर इसके बावजूद तमाम साथियों का हौसला कम नहीं हुआ. तीन बजे तक प्रदर्शनकारी मुख्यमंत्री के घर के सामने सड़क पर जमे रहे और ज़बरदस्त नारेबाज़ी करते रहे. ये और बात है कि “बहरी सरकारें” सुनती कम हैं. फिर तय हुआ कि पांच बजे से इंडिया गेट पर प्रदर्शन होगा.

शामपांच बजते ही सैंकड़ों की संख्या में लोग इंडिया गेट पर जमा होकर अपने गुस्से का इज़हार कर रहे थे. सवा छः बजे छात्र-नौजवानों का ये हुजूम राजपथ को लगभग रौंदते हुए रायसिना हिल की तरफ दौड़ रहा था. सारी व्यस्त ट्रैफिक, चौराहे पर तमाशबीनों में बदल गयी. पुलिस से थोड़ी-बहुत धक्का-मुक्की के बाद तमाम प्रदर्शनकारी भारतीय सत्ता के दलालों के प्रमुख ऐशगाह रायसिना पहाड़ी पर पंहुच गये और नारे लगाने लगे: “होम मिनिस्टर बाहर आओ - बाहर आकर बात करो”! ये एक ऐतिहासिक पल था. पुराने साथियों ने बताया कि ऐसा शायद पहले कभी नहीं हुआ जब आप “इनकी इतनी अलग सी दुनिया” के इतने करीब आकर इन्हें ही कोस रहे हों! ज़बरदस्त माहौल था. दबाव इतना था कि इस केन्द्र सरकार के गृहमंत्री को प्रदर्शनकारियों के एक डेलिगेशन से मिलने के लिए तैयार होना पड़ा, और वो भी अपने सरकारी आवास पर! लेकिन, जैसा कि आम तौर पर होता है, इस देश के गृहमंत्री ने कहा कि ‘हम आपके तमाम सवालों पर संसद में चर्चा करेंगे और कोई समाधान तलाशने की कोशिश करेंगे”.

हमयही मान कर चलते हैं कि “संसद” से कोई अंतिम समाधान नहीं मिलेगा. समाधान सड़कों, चौक-चौराहों, गली-नुक्कड़ों, खेत-खलिहानों, कल-कारखानों और पढ़ने-लिखने वालों के कैम्पसों से निकलेगा. समाधान निकल भी रहा है. पिछले तीन दिनों ने यही तो साबित किया है.

सुनाहै आज फिर कोई विरोध प्रदर्शन है, पितृसत्ता, सत्ता और बलात्कारियों के खिलाफ़! वहीँ मिलते हैं!!

आशीषआईआईएमसी में पत्रकारिता अध्यापन में हैं.
इनसे ashish.liberation@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.

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