"...साहु लगातार धमकी और जबरदस्ती करने लगा कि जमीन का कब्जा हमको दे दो। लगातर धमकी और मारपीट होने लगी। इसी बीच उन लोगों ने अपने मवेशी को हमारे खेत में चराना शुरु कर दिया। ऐसे ही एक दिन जब मेरे पति को पता चला कि हमारी खेत में मवेशी फसल चर रहा है तो वो बेटे के साथ खेत की तरफ दौड़े लेकिन लौट तो सिर्फ उन दोनों की लाशें ही आयी..."
अमरौतिया देवी जब अपने दोनों हाथों को जोड़ धीमी आवाज में गांव के ठाकुरों द्वारा खुद पर किए गए जुल्म की कहानी सुनाती है तो हजारों-हजार साल से चुप उसकी पथराई आंखें खुद बोलने लगती हैं। झर-झर बहते आँसू और ठाकुरों का जुल्म। इनकी कहानी सुन हाथों की मुट्ठियां अनायास ही तन जाती है। मध्य प्रदेश के सिंगरौली से 40 किलोमीटर दूर अमिलिया गांव की रहने वाली चमार समुदाय की अमरौतिया देवी के ऊपर जुल्म व शोषण की कहानी आज की नहीं है. ये सदियों से चली आ रही है...सन् उन्नीस सौ चौरासी से...।
1984 से 2013 तक सिर्फ निजाम बदले....शोषित नहीं...
अमरौतियादेवी याद करती है कि इंदिरा गांधी के मरने से पहले ही की बात है. साल कुछ याद नहीं। मध्य प्रदेश शासन की जमीन का खाता उनके नाम था। वे लोग उस जमीन पर खेती कर गुजर बसर कर रहे थे। कमाने वाला पति सुखदेव और हट्टा-कट्टा गवरु जवान बेटा रामरुख। दो बेटा गोद में और एक पेट में। सबकुछ ठीक-ठाक चल जाता। भरपेट खाना, महुआ-लकड़ी बेच कर कुछ रुपये भी। इसी बीच उस जमीन पर गांव के ही एक बड़े साहु की नजर लग गयी। साहु लगातार धमकी और जबरदस्ती करने लगा कि जमीन का कब्जा हमको दे दो। लगातर धमकी और मारपीट होने लगी। इसी बीच उन लोगों ने अपने मवेशी को हमारे खेत में चराना शुरु कर दिया। ऐसे ही एक दिन जब मेरे पति को पता चला कि हमारी खेत में मवेशी फसल चर रहा है तो वो बेटे के साथ खेत की तरफ दौड़े लेकिन लौट तो सिर्फ उन दोनों की लाशें ही आयी.
अकेलीमां ने अपने बच्चों को संभाला, घर-गांव की मदद से किसी तरह बच्चे तो पल गये लेकिन जुल्म की कहानी नहीं रुकी। पूरे गांव में कुएं-चापाकल हैं लेकिन आज भी ये दलित परिवार नदी-नाले के पानी पर ही गुजर कर रहा है।
आज से पांच-सात पहले गांव के सरपंच ठाकुर रुदन सिंह ने उस विवादित जमीन पर अपना कब्जा जमा दिया। जब अमरौतिया देवी अपनी कहानी सुना रही थी तो बीच में उसका बेटा रामलल्लु टोकते हुए धीरे से कहता है- "यहां ठाकुरों की ही चलती है साहिब। ठाकुर रुदन ने जबरदस्ती हमारे जमीन पर तालाब खुदवा दिया। पुलिस-शासन सब ओकरे लिए है तो हम का कर सकब साहिब। बाप-भाई के मार दिया तो हमरा बोलने पर हमरो मार देगा। अब रोटी-भोजन चलाबे खातिर चुपचाप सह रहे हैं।"
कारपोरेट कंपनी बने नये ठाकुर...
पूंजीवादीव्यवस्था के समर्थक अक्सर ये दलील देते सुने जाते हैं कि इस सिस्टम ने हमारे सामंती समाज को बदल कर रख दिया है। कुछ लोगों ये भी कहते हैं कि पूंजीवादी व्यवस्था में जाति का जोर नहीं रहता। जबकि सच्चाई है कि इस व्यवस्था का सबसे ज्यादा फायदा सामंती समाज को ही हुआ है। वैसे सोचने वालों को एक बार अमिलिया गांव आना चाहिए. एस्सार समूह ने इसी गांव के पास अपना चार हजार करोड़ की लागत से पावर प्लांट लगाया है। अब उन्हें इस प्लांट के लिए अमिलिया के आस-पास के महान क्षेत्र के जंगलों को काट कर पहाड़ खोदकर कोयला निकालना है. इसके लिए दलित-गरीबों की जमीन ही छीनी जा रही है। अमरौतिया देवी कहती है "अब बचा-खुचा जमीन पर इ कंपनी वाला नया ठाकुर बन नजर लगा दिया है. अब अगर हम अपना जमीन-जंगल दे देंगे तो खाएंगे क्या साहिब."
पूंजीवादी लाभ भी ठाकुरों के लिए
अमरौतियाकी बात सही भी है यहां के ठाकुर समुदाय के पास विभिन्न जगहों पर सैकड़ों एकड़ जमीन पड़ी हुई है. ऐसे लोग अपनी जमीन का कुछ हिस्सा कंपनी के हाथों बेच रहे हैं. दूसरा इनके पास ट्रक,जीप जैसी गाड़ियां हैं जो कंपनी के काम में लग लाखों रुपये कमा रहे हैं, तीसरा इनके घरों के बच्चे पढ़े-लिखे हैं जिन्हें कंपनी में नौकरी भी मिल जाती है। ये ठाकुर लोग कंपनी के एजेंट बन कर अब गांव वालों पर दबाव बना रहे हैं कि वे भी जमीन बेच दें। ऐसे में साफ है कि ठाकुर पूंजीवादी लाभ में अपनी हिस्सेदारी के लिए गरीबो-दलितों के शोषण को और अधिक बढ़ा रहे हैं।
अमरौतिया जैसे दलित जिसके पास न राशन कार्ड है न कोई दूसरी सरकारी सुविधा। जो बस जंगल के सहारे ही जीवन को बीता रहे हैं। जिनके लिए न तो शिवराज सिंह चौहान की चमकती शासन व्यवस्था है और पुलिस..प्रशासन..और भगवान तो उन्हें आजतक नहीं मिले।
हर कदम धोखा ही धोखा....
सिंगरौलीमें आप देखेंगे कि हर तरीके से गरीबों का शोषण किया जा रहा है। भोले-भाले अनपढ़ गरीबों के नाम पर मोबाइल सिमकार्ड बेचने का फर्जीवाड़ा यहां आम है। आपके पास अगर कोई आईकार्ड नहीं है तो यहां के एजेंट आपके लिए पहले से ही आईकार्ड रखते हैं। वे आपको बड़ी आसानी से बिना आईकार्ड लिए सिमकार्ड दे देंगे। ये सारा फर्जीवाड़ा भोले-भाले ग्रामीणों के नाम पर होता है। दरसल एजेंट इन अनपढ़ गरीबों का आईकार्ड किसी भी बहाने अपने पास रख लेते हैं। कोई उन्हें राशन कार्ड मुहैया करवाने के बहाने को कोई उन्हें अन्य सरकारी लाभ दिलवाने के बहाने उनका आईकार्ड और तस्वीरें रख लेता है। इन्ही तस्वीरों व आईकार्ड का इस्तेमाल कर वे बाहरी लोगों या कंपनी के लोगों को फर्जी सिम बेच देते हैं। और इस फर्जीवाड़े का पता अनपढ़ भोले भाले गरीबों को भी पता नहीं चल पाता। साफ है कि भोले-भाले ग्रामीणों को हर तरीके से बेवकूफ बनाया जा रहा है।
लोकतंत्र के फरेब में अमरौतियां जैसे लोगों की जगह कहां हैं....
अंग्रेजों से आजादी मिले करीब साढे छह दशक बीत गए हैं। कहते हैं भारत का लोकतंत्र सबसे बड़ा लोकतंत्र है। लेकिन क्या इस लोकतंत्र में अमरौतिया देवी जैसों की कोई जगह है। सदियों से चले आ रहे शोषण व दमन से जूझ रहे ये लोग ना तो कभी आजाद हो पाए हैं ना ही इन्हें जीने की मोहलत है। इस लोकतंत्र पर इनकी छाती पीट-पीट कर रोने का भी कोई असर नहीं होता। कथित विकास की दौड़ में ये लगातार मारे जा रहे हैं। सारी व्यवस्था, सरकार, पुलिस प्रशासन, धर्म, समाज सब सड़ चुका है। इनके नाम पर चलनेवाली सैंकड़ों योजनाएं किस मुंह में समा रही हैं कहने की जरुरत नहीं है। सदियों से चला आ रहा इनका सामाजिक शोषण लगातार नए-नए रुप धरता आया है। बहरहाल अमरौतिया देवी की कहानी किसी एक गरीब दलित की कहानी नहीं है बल्कि उस पूरे वर्ग की कहानी है जो विकास के नारों के बीच लोकतंत्र के सामने छाती पीट-पीट कर मातम मना रहा है लेकिन इनकी कोई सुनवाई नहीं।
अविनाश युवा पत्रकार हैं. कुछ समय एक राष्ट्रीय दैनिक में काम.
इनसे संपर्क का पता avinashk48@gmail.com है.