सुनीता भास्कर |
-सुनीता भास्कर
"...लेकिन हमें बार-बार टेरिरिस्ट कहा जाता है। हमारे हिंदु क्लासमेट हमारी फेसबुक वाल पर कई बार टेरिरिस्ट टेरिरिस्ट लिख देते हैं। अफजल को फांसी होने पर हमारी कुलिग के फोन पर मेसेज आए कि बधाई हो अफजल को फांसी हो गई। जफर ने बताया कि कालेज में टीचर उनके प्रोजेक्ट में साइन भी नहीं करते हैं और कोई न कोई एरर बताकर फाइल वापस लौटा देते हैं। ..."
कुछ कश्मीरी युवकों से बातचीत करना जिदंगी का एक नया अनुभव रहा। हम कितनी बेफ्रिकी में जीते हैं, कितने बिंदास रहते हैं एक औरत का भय होने के सिवा और कोई भय नहीं। आखिर सौ करोड़ हिंदू जाति का एक हिस्सा जो हूं इसीलिए कभी महसूस ही न पायी कि अल्पसंख्यक होना क्या होता है उस पर भी मुस्लिम अल्पसंख्यक।
आजजब उन युवकों से बातचीत के लिए उनके कमरे का एड्रस पूछा तो वह सहम गए। हम बुरा न मान जाएं शायद इसीलिए कहने लगे कि नहीं हम ही आ जाएंगे मिलने बताईये कहां आएं। हमने पूछा कोई दिक्कत है कमरे में तो कहने लगे गर्ल्स के लिए नॉट अलाउड है। मैंने कहा हम तो एक जर्नलिस्ट की हैसियत से आ रहे हैं तो फिर उन्होंने बताया कि पुलिस ने उन्हें धमकाया है कि कमरों में बैठे रहो बाहर निकलोगे तो खैर नहीं। और फिर आप लोग आओगे तो मकान मालिक को उनके घर में आना नागवार गुजरेगा।
अबस्तिथियां कुछ समझ में आने लगी थी सो उन्हें उनके घर के पास के किसी पार्क में बुला लिया। मैं अपने साथ एक सीनियर जर्नलिस्ट को लाई थी जिसने प्रामिस की थी कि वह कश्मीरी स्टूडेंस की कंडीशंस पर स्टोरी करेगी और उसके लिए अपने संपादक को भी मनवा लेगी। अपने अखबार की कश्मीरी स्टूडेंट्स के खिलाफ विशेष पैकेजिंग देखकर इतना तो भान हो गया था कि स्टोरी छपना तो दूर आईडिया देने में भी लाइन हाजिर होना पड़ेगा।
कुछदेर इंतजार के बाद दूर से तीन नवयुवकों को आता देख हम एकाएक चौंक गए। हमने सोचा था कि हमारे वहां की तरह साधारण से लडक़े होंगे कुछ देर यहीं पार्क में बात कर चल लेगें। पर यह क्या यह तो विशुद्ध कश्मीरीयत भरे नौजवान, चेहरों पर डल झील सी निश्छलता, दूधिया गुलाबी चेहरे,कुछ की हल्की तो कुछ की बड़ी दाड़ी और एक के सिर पर गोल सफेद (मुल्ला वाली) टोपी। हम एकाएक निर्णय तो नहीं ले पाए कि इन्हें यहां कालोनी के बीचों बीच के पार्क में बैठाना कितना मुनासिब होगा। लेकिन झट से उठकर खड़े हो गए।
कालोनीवाले कोई झमेला करें इससे पहले हम उन्हें लौटा ले गए और आगे कोने में अपनी गाड़ी के पास खड़े खड़े लगभग चालीस मिनट अनौपचारिक बातें की। इस बीच मध्यवर्गीय उस कालोनी के तथाकथित सभ्य व शिष्ट जन हमें कश्मीरियों संग खड़े देख हार्न बजाते जरूर नजर आए। कुछ देर में दो स्कूटर सवार महिलाएं रोड़ी में स्लिप होकर नाली में गिर गई तो एकाएक वह कश्मीरी नौजवान दौड़ पड़े उन्हें उठाने.
बारामुल्लाडिस्ट्रिक के सोपेरा टाउन के इन नौजवानों में से एक मुह्म्मद जफर ने बताया कि वह अभी अपने कालेज से लौटा है कल की घटना की अखबारी प्रतिक्रिया के बाद वह क्लास पढऩे में सहज महसूस नहीं हो रहा था सभी लोग उन्हें रूड़ नजरों से देख रहे थे इसीलिए वह सिर्फ दो पीरियड पढक़र ही घर लौट आया। जफर का छोटा भाई मीर किसी कालेज में एडमिशन नहीं लिया है। जफर ने बताया कि अब्बा व अम्मी ने कहा कि यहां से चला जा कहीं भी रह भाई के साथ पढ़ ले कुछ भी कर ले पर कश्मीर में मत रह।
मीरने कहा कि वह कुछ समय पहले ही यहां आया है सो वह अभी सोच समझ ही रहा है कि कहां व किस कोर्स में दाखिला ले। मीर ने कहा कि वह कल की घटना से काफी डरा हुआ है। उनके दो साथियों को शिव सेना के लोगों ने तिब्बती मार्केट के पास पकडक़र बहुत मारा है और जबरन घसीट कर पुलिस थाने ले गए। इसीलिए मीर को अब देहरादून में अच्छा नहीं लग रहा। तीसरे लडक़े आमिर नायक ने बताया कि देहरादून में लगभग दस हजार कश्मीरी हैं जिनमें स्टूडेंट और व्यापारी लोग हैं।
उन्होंनेबताया कि व्यापारी लोग ज्यादातर इललिटरेट हैं जो कि फेरी से साल बेचने का काम करते हैं। उसने बताया कि आज सुबह मेरठ का एक मुस्लिम दोस्त मिला उसने गले लगकर कहा कि कोई दिक्कत होगी तो बताना। आमिर ने कहा कि काश यहां के सभी लोग हमारे साथ ऐसे ही पेश आते तो हम बहुत बेफ्रिकी से यहां रह सकते थे। लेकिन हमें बार बार टेरिरिस्ट कहा जाता है।
हमारेहिंदु क्लासमेट हमारी फेसबुक वाल पर कई बार टेरिरिस्ट-टेरिरिस्ट लिख देते हैं। अफजल को फांसी होने पर हमारी कुलिग के फोन पर मेसेज आए कि बधाई हो अफजल को फांसी हो गई। जफर ने बताया कि कालेज में टीचर उनके प्रोजेक्ट में साइन भी नहीं करते हैं और कोई न कोई एरर बताकर फाइल वापस लौटा देते हैं। जफर ने बताया कि एक बार उसके सर पर पीछे चोट आ गई थी जहां पट्टी बांधी थी, लेकिन उस चोट के लिए उसे क्साल के कुलिगस ने बहुत टार्चर किया। क्साल की गर्ल्स कहती थी कि यह जफर के पीछे गोली लगी है इसीलिए घाव हुआ है। क्लास में कुलीग को देखकर लगता है कि हम चौतरफा टेरिस्ट होने की निगाहों से घिरे पड़े हैं।
जफरने बताया कि देहरादून में कमरा ढूंढने के लिए अन्तत: उसे अपनी दाढ़ी काटनी पड़ी थी । वरना कोई भी कश्मीरियों को कमरा देने को तैयार ही नहीं होता। वह बताता है कि एक बार अनिल नाम के एक लडक़े से उसकी दोस्ती हो गई लेकिन दो तीन दिन बाद जैसे ही उसे पता चला कि मैं कश्मीरी हूं तो उसने कहा कि उसे नहीं करनी किसी कश्मीरी से दोस्ती। कश्मीरी तो आंतकवादी होते हैं। और उसने मुझे अवाइड कर दिया।
तीनों लड़कों ने बताया कि वे कश्मीर में शांति बहाली के लिए मांग कर रहे थे। वहां पांच दिन से कफ्यू लगा है। हमारे अब्बू लोग दूध लेने भी बाहर नहीं जा सकते। अगर यही स्थिति रही तो हमें पैसों के भी लाले पड़ जाएंगे। हमारा खर्चा तो अब्बू ही कश्मीर से भेजते हैं। उन्होंने बताया कि उनके सोपेर टाउन की आबादी लगभग 48 हजार है। वहां की तीन पीढिय़ों ने किसी भी चुनाव में वोटिंग नहीं की है। वहां पर अभी लगभग तेरह लाख आर्मी लगी हुई है। जिन्होंने हमारी कितनी ही जमीन जब्त कर रखी है। घर से निकलते हैं बाहर सीआरपीएफ व एसटीएफ का मन होगा तो वह सीधे जाने देगा कोई सवाल नहीं करेगा और मूड बदल गया तो रोक लेगा फिर पूछताछ करेगा और अन्तत: छोडऩे के लिए 2 0 हजार की मांग करते हैं।
अभीकश्मीर में इस कफ्यू के दौरान दस लोगों की मौत हो गई है जबकि मीडिया केवल एक की ही मौत दिखा रही है। उन्होंने बताया कि एक 11 साल के बच्चे को वहां की सीआरपीएफ ने अपनी बंदूक के बट से पीछे सर में मार दिया जिससे उसने दम तोड़ दिया और फिर उन्होंने उस बच्चे के शव को पानी में फेंक दिया। इसी तरह पुलिस कभी हमारे घरों के सीसे तोड़ देती है तो कभी मस्जिद के सीसे तोड़ देती है । उसका सवाल है कि हमारी प्रार्थना की चीजें हमसे क्यों छीनी जा रही हैं।
उन्होंनेबताया कि वहां पर पुलिस दमन के लिए जिस टियर गैस का इस्तेमाल करती है वह हमारी आखों व शरीर के लिए भी हार्मफुल होता है। अभी सोपोर में पांच लडक़े शहीद हो गए हैं। यहां पुलिस हमसे कहती है कि तुमने फेसबुक में आंतक फैला रखा है। उन्होंने बताया कि कश्मीर में लगभग दस फीसद सिक्ख व पांच से सात फीसद कश्मीरी पंडित हैं। वह उनके रक्षाबंधन होली समेत सभी त्यौहारों पर भागीदारी करते हैं। वहां पर स्पेशल आमर्ड फोर्सेस एक्ट का इतना खौफ है कि आठ साल के बच्चे का भी अपना आईडेंटीकार्ड होता है। बिना पहचान पत्र के वह घर से बाहर नहीं निकल सकता। रात के नौ बजे बाद बाहर नहीं निकलने दिया जाता।
एकनौजवान व एक बुजुर्ग को पुलिस ने कश्ती में पत्थर भरकर डूबोकर मार दिया और कहते हैं कि कश्ती डूब गई थी। हम पाकिस्तान की मांग नहीं कर रहे। हम अपना स्वतंत्र कश्मीर चाहते हैं। अभी वहां पर पुलिस ना डाक्टरों को सख्त हिदायतें दी हैं कि अगर कोई भी अस्पताल में मरता है तो उसे मरा हुआ घोषित नहीं करेंगे और घर वालों से कहेंगे कि कौमा में है। उन्होंने यह भी बताया कि अब वहां पर सारे क्रिश्चयन मिशनरी स्कूल बारहवीं तक के खुलने लगे हैं। उन्होंने बताया कि वहां लोगों की आय का बड़ा साधन कृषि है इसीलिए पुलिस द्वारा भूमि कब्जाए जाने पर हजारों कश्मीरी बेरोजगार हो गए हैं।
उन्होंनेसीआरपीए व एसटीएफ के पुराने कारनामों के बारे में भी बताया कि एक व्यक्ति की पत्नी नीलोफर व उसकी बहन आसमा को सेब के बगींचे से लौटने के बाद दोनों के साथ सामूहिक रेप कर उन्हें मार दिया गया। और एवज में उन पर कोई कार्रवाही भी नहीं की गई। अभी कफ्यू के दौरान एक गर्भवती महिला की एंबुलेंस को रोक दिया गया जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई। पुलिस वाले यह एक्ट गयारह साल के बच्चे पर भी लगा देते हैं उन्होंने जोर दे कर कहा कि वह पाकिस्तान की बात नहीं कर रहे हैं। वह अलग कश्मीर चाहते हैं।
सुनीता पत्रकार हैं.
अभी देहरादून में एक दैनिक अखबार में कार्यरत.
sunita.bhaskar.5@fac ebook.com पर इनसे संपर्क हो सकता है.
sunita.bhaskar.5@fac