Quantcast
Channel: पत्रकार Praxis
Viewing all articles
Browse latest Browse all 422

कैसे महसूस हो सुरक्षा?

$
0
0
                                                     -सत्येन्द्र रंजन 

नरेंद्रभाई मोदी 16 मई को लोकसभा चुनाव में अपनी अप्रत्याशित और सबको चौंकाने वाली जीत के बाद जब विजय संबोधन के लिए वडोदरा में सार्वजनिक मंच पर आए तो उन्होंने कहा कि वे सवा सौ करोड़ भारतीयों का नेतृत्व करेंगे  और सरकार के लिए कोई अपना-पराया नहीं होता। (http://bit.ly/1nYAIB5).

उन्हीं सवा सौभारतीयों में एक 3 जून को पुणे में हिंदू राष्ट्र सेना नामक संगठन के उपद्रवियों के हाथों मारा जा चुका है (http://bit.ly/1pTEJnh)। लेकिन नरेंद्रभाई या उनके कार्यालय ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है (http://bit.ly/1kH714k)। उनकी पार्टी ने भी अपेक्षित ढंग से इस घटना की निंदा की नहीं है। जबकि यह मौका था, जब प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी सख्त और बेलाग राजनीतिक संदेश भेज कर सभी भारतीयों में सुरक्षा की भावना मजबूत कर सकते थे। (http://bit.ly/1pXQc5g)। अगर वे ऐसा करते तो उससे उन चरमपंथियों को पैगाम मिलता, जिन्होंने एक आईर्टी फर्म में मैनेजर मोहसिन सादिक शेख की न सिर्फ हत्या की, बल्कि एक निर्दोष की जान लेने पर अफसोस के बजाय उस पर में बर्बर प्रतिक्रिया दिखाई (http://bit.ly/1ktheCh)।

एक विचित्रसवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री या सत्ताधारी पार्टी के लिए देश की हर घटना पर प्रतिक्रिया जताना अनिवार्य है। सामान्य स्थितियों में मुमकिन है, ऐसा करना जरूरी नहीं समझा जाए। लेकिन महत्त्व संदर्भ से तय होता है। क्या भाजपा नेता इस तथ्य से वाकिफ नहीं हैं कि देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय में उनकी पार्टी के बारे में क्या धारणा है? (http://bit.ly/1xcdppd). ऐसे में क्या यह उनका कर्त्तव्य नहीं बनता कि सत्ताधारी दल के रूप में अपनी जिम्मेदारी समझते हुए वे समाज के सभी वर्गों में भरोसा पैदा करेंवैसे भी किसी भी रूप में किसी समुदाय के प्रति नफरत की भावना से प्रेरित अपराध को कोई सभ्य समाज बर्दाश्त नहीं कर सकता। (http://bit.ly/1rSDnOw)

भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में आने के बाद अगर अपने  राज-धर्म की याद है, तो उसे ऐसे तत्वों के खिलाफ राजनीतिक संदेश देने में कोई कोताही नहीं करनी चाहिए। (http://bit.ly/1xmlJ62)

ऐसाना होने से समाज में आतंक और तनाव का माहौल बढ़ेगा। अकादमिक किताबों पर संघ परिवार से जुड़े संगठनों के सधते निशाने के साथ बौद्धिक हलकों में ऐसा वातावरण पहले ही बन चुका है। (http://bit.ly/1opeQfP). पहले वेंडी डोनिगर की किताब द हिंदुज को पेंगुइन ने वापस लिया और अब उसी शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति की मांग पर ओरिएंड ब्लैक्सवॉन ने मेघा कुमार की शोध अधारित किताब Communalism and Sexual Violence: Ahmedabad since 1969 की पुनर्समीक्षा कराने का फैसला किया है। (http://bit.ly/1kBK57x)। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इस मामले में भी केंद्र सरकार या सत्ताधारी पार्टी की तरफ से आश्वस्त करने वाला कोई बयान नहीं आया है। इस हाल पर द टाइम्स ऑफ इंडिया की व्यंग्य में की गई ये टिप्पणी प्रासंगिक है कि किताबों को प्रतिबंधित कराने से बेहतर यह होगा कि दीनानाथ बत्रा और उनकी शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति सीधे शिक्षा और सारक्षता को खत्म करने की मांग करें, ताकि ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी की तर्ज पर जब पढ़ने-लिखने में सक्षम लोग ही नहीं रहेंगे तो किताबें आखिर लिखेगा कौन! (http://bit.ly/1pk97HH)

सोशल मीडियापर प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ टिप्पणी करने के मामले में गोवा के देवू चोडानकर (http://bit.ly/TpjDCP) और कर्नाटक के सैयक वकास (http://bit.ly/1iagrAL)  को जिन मुसीबतों से गुजरना पड़ा है, वह तो जग-जाहिर है। मोहसिन सादिक की मौत भी फेसबुक पर बनाए गए कथित आपत्तिजनक पेजों के मामले में ही हुई। (http://bit.ly/1xmnGiN). इन घटनाओं ने सोशल मीडिया पर खुली अभिव्यक्ति को लेकर दहशत पैदा कर दी है। क्या यह केंद्र सरकार की जिम्मेदारी नहीं है कि वह लोगों में निर्भयता और उनके अधिकारों के संरक्षण के प्रति आश्वस्त करे?

केंद्र में मजबूत सरकार बनी है।  (http://bit.ly/Skccvq). अलग संदर्भों में प्रधानमंत्री कार्यालय में सत्ता के अति-सकेंद्रण की आशंकाएं जताई जा रही हैं। (http://bit.ly/1p5wJ5k). बहरहाल, एक आम नागरिक के नजरिए से सबसे अहम सवाल यह है कि क्या मजबूत सरकार के होने से क्या वह अपनी और अपने अधिकारों की सुरक्षा को लेकर अधिक आश्वस्त होगा? अथवा मजबूत सरकार और शीघ्र निर्णय प्रक्रिया का लाभ सिर्फ कॉरपोरेट सेक्टर को मिलेगा, जिसके यूपीए के काल में पोलिसी पैरालिसिस (नीति एवं निर्णय प्रक्रिया के लकवाग्रस्त) के शोर की भाजपा के लिए सत्ता में आने का मार्ग प्रशस्त करने में शायद सबसे खास भूमिका रही?
                                                                                                       
                                                                                                                                 लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.
स्वतंत्र लेखन के साथ ही फिलहाल 
 जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी के एमसीआरसी में 
बतौर गेस्ट फैकल्टी पढ़ाते हैं.

Viewing all articles
Browse latest Browse all 422

Trending Articles