"...नरेन्द्र मोदी और बीजेपी के इस चुनावी पिछड़ा प्रेम को समझने के लिए गुजरात के बारे में समझ लेना आवश्यक होगा। गुजरात में जब दलित आरक्षण लागू किया गया था तो उस वक़्त ब्राह्मण, पाटीदार और बनिया वर्ग का जबरदस्त विरोध सामने आया जिसने बाद में 1981 में दलित विरोधी आंद¨लन का रूप लिया और बीजेपी ने इस दलित विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया था। इस दलित विरोधी आंदोलन ने दंगों की शक्ल अख्तियार की और गुजरात के 19 में से 18 जिलों में दलितों को निशाना बनाया गया।..."
सामाजिक न्याय का प्रश्न भारतीय सामाजिक संरचना और आर्थिक स्थितियों से गहरी तरह संबद्ध है। भारत में मौजूद सैकड़ों साल पुरानी मनुवादी वर्ण व्यवस्था से यहाँ सभी अच्छी तरह परिचित हैं, और सामाजिक न्याय का सवाल हमारे स्वतंत्रता आंदोलन में भी अहम रहा है। इसी को देखते हुए संविधान में इसके लिए उपाय किये गए थे, लेकिन अभिलक्षित उद्देश्यों की पूर्ति न होने की वजह से मंडल कमीशन लागू किया गया। हालाँकि, इसके बाद भी पिछड़ों और दलितों की हालत में संतोषजनक बदलाव नहीं आए है। अभी भी उनकी शिक्षा, रोजगार, व्यापार राजनीति में भागीदारी केवल कुछ ऊपरी सतह पर ही सिमटकर रह गयी है। हाशिए पर मौजूद जनसमूह आज भी सामाजिक बराबरी और अपने नागरिक अधिकारों कोपाने के लिए संघर्षरत है।हकीकत तोयह है कि सामाजिक न्याय का सवाल या दलितों, पिछड़ों का सवाल भारतीय राजनीति का वह कोना है जिसे पैंडोरा बॉक्स कहा जा सकता है जिसका जिक्र होते ही तमाम तरह के मुददे जैसे जाति, समुदाय, सामाजिक बनावट, आर्थिक स्थिति, पिछड़ा बनाम अगड़ा आदि बहसें शुरू होजाती हैं। इस बार का लोकसभा चुनाव भी इन बहसों से अछूता नहीं है और हर बार की तरह इस बार भी पिछड़ों के सवाल पर ध्रुवीकरण की कोशिश की गयी है।
इसबार किसी भी कीमत पर सत्ता प्राप्त करने के लिए बीजेपी भी पिछड़ा कार्ड खेल रही है। भारतीय जनता पार्टी जोसंघ की राजनीतिक इकाई के रूप में काम करती है और अपने मूल रूप में विचारधारात्मक स्तर एक यथास्थितिवादी संगठन है, के बावजूद बीजेपी के पीएम उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी इस बार सामाजिक न्याय का लालच देकर दलितों, पिछड़ों कोअपनी ओर मिलाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। इस क्रम में उन्होंने खुद कोपिछड़ा और राजनीतिक अछूत के रूप में भी पेश किया है। मोदी ने ये ऐलान भी किया कि ‘आगामी दशक पिछड़े समुदायों के सदस्यों का दशक होगा।’
नरेन्द्रमोदी और बीजेपी के इस चुनावी पिछड़ा प्रेम कोसमझने के लिए गुजरात के बारे में समझ लेना आवश्यक होगा। गुजरात में जब दलित आरक्षण लागू किया गया था तोउस वक़्त ब्राह्मण, पाटीदार और बनिया वर्ग का जबरदस्त विरोध सामने आया जिसने बाद में 1981 में दलित विरोधी आंद¨लन का रूप लिया और बीजेपी ने इस दलित विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया था। इस दलित विरोधी आंदोलन ने दंगों की शक्ल अख्तियार की और गुजरात के 19 में से 18 जिलों में दलितों कोनिशाना बनाया गया। इन दंगों में मुस्लिमों ने दलितों कोआश्रय दिया और उनकी मदद भी की। वास्तव में दलित, पिछड़ा और आदिवासी गुजरात की लगभग 75 प्रतिशत जनसंख्या बनाते हैं। इसी कोअपने साथ मिलाकर 1980 में कांग्रेस ने सत्ता प्राप्त की थी। यह गठजोड़ जिसे अंग्रेजी के खाम यानि क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम कहा जाता है, ने पहली बार ब्राह्मण और पाटीदारों कोसत्ता के केंद्र से दूर कर दिया। हालाँकि इसके ठीक बाद बीजेपी ने 1980 में अपने कट्टर हिन्दुत्ववादी एजेंडे पर काम करना शुरू किया और आडवानी की रथ यात्रा ने उस प्रक्रिया कोतेज किया, जिसमे सवर्ण और उच्च जाति के लोगों ने सत्ता से दूर होने के आधार पर एकजुट होकर आरक्षण विरोधी आंदोलन कोचलाया। साथ ही इसने गुजरात के भगवाकरण के लिए भी परिस्थितियां पैदा की। 1980 में कांग्रेस की जीत के बाद बीजेपी ने दलित विरोधी रणनीति में परिवर्तन कर इसे सांप्रदायिक रंग दिया और अब निचली जाति के दलित, आदिवासी समूह कोमुस्लिमों के विरुद्ध खड़ा किया। इसी कारण 1981 में आरक्षण विरोधी आंदोलन ने 1985 में सांप्रदायिक हिंसा का रूप धारण कर लिया और इसे आडवानी ने अपनी रथयात्रा से और भी उन्मादी और हिंसक बनाया। 1990 में जब आडवानी रथ यात्रा के जरिए देश में जहर घोल रहे थे, उस वक़्त गुजरात में उनके सिपहसलार नरेन्द्र मोदी थे जोगुजरात बीजेपी महासचिव थे।
बीजेपी न केवल दलित,पिछड़ा आरक्षण के विरोध का नेतृत्व करती रही है बल्कि सत्ता में आने के बाद नरेन्द्र मोदी की सरकार ने गुजरात में इस आरक्षण के लाभ कोभी सरकारी मशीनरी के दुरूपयोग से रोका है। इसके लिए मशीनरी का किस तरह इस्तेमाल किया गया है यह समझना आवश्यक है। बख्शी पिछड़ा वर्ग आयोग ने जिसने 1978 में अपनी संस्तुति प्रस्तुत की उसमे कुछ मुस्लिम पिछड़ी जातियों की पहचान की गई थी जिसमे जुलाया और घांची भी शामिल थे, में राज्य कल्याण विभाग ने इन जातियों के आवेदन निरस्त कर दिए और 1978 के पहले के रिकॉर्ड मांगे। जबकि उन्हें 1978 में शामिल किया गया था। इस प्रकार राज्य मशीनरी ने सामाजिक न्याय से उन्हें वंचित किया। इस तरह के हजारों मामले हैं जिनमे पिछड़ी, दलित और आदिवासियों कोसामाजिक न्याय के लाभ से राज्य मशीनरी द्वारा जान-बूझकर एक सोची-समझी रणनीति के तहत वंचित किया गया है। इसी तरह कुछ और मामले हैं जिनमे हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप किया( इमरान राजाभाई पोलार बनाम गुजरात राज्य)। इस मामले में जाति कल्याण विभाग के डायरेक्टर ने जाति प्रमाण पत्रों कोजाली और गलत तरीके से प्राप्त कहकर ख़ारिज कर दिया था। ठीक इसी तरह से राज्य सरकार ने हजारों प्रमाण पत्रों कोनिरस्त कर दिया जबकि वे विधिसम्मत और प्रक्रिया से प्राप्त किये गए थे। इमरान राजाभाई के मामले में हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए डायरेक्टर के फैसले कोरद्द किया और यह भी कहा कि डायरेक्टर ने जानबूझकर मामले कोआगे बढाया क्योंकि जुलाया समुदाय पहले से ही पिछड़ी जाति के रूप में अधिसूचित है।
अब इस मामले कोदेखें तोस्पष्ट होजायेगा कि यह केवल तकनीकी गड़बड़ी नहीं है बल्कि एक सोची समझी साजिश के तहत लोगों कोवंचित किया जा रहा है। यह सामाजिक न्याय कोनकारने का एक सरकारी उपक्रम है जोअपने स्वभाव से ही दलित, पिछड़ा और आदिवासी विरोधी है। बीजेपी वास्तव में संघ परिवार का राजनीतिक उपक्रम है और यह संघ की रणनीति कोही लागू करती है, जोअपने मूल वैचारिक स्वरुप में घोर सांप्रदायिक, प्रतिक्रियावादी, जनतंत्र विरोधी है। संघ का राष्ट्रवाद असमानता पर आधारित राष्ट्र के निर्माण की बात करता है। नरेन्द्र मोदी खुद कोभले ही पिछड़ा और राजनीतिक अछूत घोषित करें लेकिन हकीकत सभी कोअच्छी तरह पता है कि वोखुद दलित, पिछड़ा विरोधी आंदोलन के नेता रहे हैं। इसके अलावा रही बात संघ की तोयह बात जगजाहिर है की संघ मनुस्मृति कोही शासन का आधार मानता है और मनुस्मृति स्पष्ट रूप से वर्ण व्यवस्था की वकालत करती है क्योंकि उनके अनुसार यह प्रकृति का नियम है और असमानता शाश्वत है जिसे दूर नहीं किया जा सकता है।(एम एस गोलवलकर,बंच ऑफ़ थॉट्स,1960)
इससेसाफ़ है कि बीजेपी भले ही दिखावा करे लेकिन वह सामाजिक न्याय विरोधी और जनतंत्र की मूल अवधारणा के भी विरुद्ध है। इसका सामाजिक राजनीतिक दर्शन ही फासीवादी और एकात्मवादी है जहाँ दलितों,पिछड़ों,आदिवासियों के लिए सामाजिक न्याय की कल्पना नहीं की जा सकती है। बीजेपी कितना भी कोशिश कर ले किन्तु वह देश की जनता कोभ्रमित नहीं कर सकती है और आनेवाले दिनों में लोकसभा परिणाम इस तथ्य की पुष्टि करेंगे कि हमें फासीवादी नहीं बल्कि एक जनतांत्रिक और सामाजिक न्याय में यकीन रखने वाली सरकार चाहिए।
मोहम्म्द आरिफ
मो-9807743675
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