मोहम्मद आरिफ |
-मोहम्मद आरिफ
"...वास्तव में जिस पूंजीवादी लूट खसोट को नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में लागू किया है,अब वही मॉडल पूरे देश में लागू कर खुली कॉर्पोरेट-लूट की चाहत में कॉर्पोरेट जगत मोदी को पीएम बनाने के लिए मुक्तहस्त सहयोग कर रहा है| लेकिन इसका सबसे भयावह पहलू वह है जिसे हम फासीवादी-पूँजीवाद है| यह फासीवादी-पूँजीवाद बिलकुल वैसा है जैसे द्वितीय विश्व युद्ध की पूर्वसंध्या पर जर्मनी में विद्यमान था और सारे प्रतिक्रियावादी और पूंजीवादी तत्व एकजुट होकर हिटलर को सत्ता प्राप्ति में हरसंभव मदद कर रहे थे...."
साभार- firstpost.in |
आजकलनरेन्द्र मोदी अपनी चुनावी सभाओं में देश को आर्थिक महाशक्ति बनाने और देश का पुनर्निर्माण करने के बड़े-2 दावे करते हैं और देश के दलित,पिछड़े,मध्यवर्ग को आर्थिक रूप से सशक्त करने की बात करते हैं | मोदी के इन दावों की हकीकत जानने के लिये संघ और भाजपा के अतीत को जान लेना आवश्यक होगा कि वास्तव में संघ अपने मूल रूप में विचारधारात्मक स्तर एक यथास्थितिवादी संगठन है | दो स्पष्ट वर्ग स्थितियों के बीच के त्रिशंकु की तरह लटकने वाली इस पार्टी के लिए कोई जन हितैषी कार्यक्रम पेश कर पाना आसान नही है| भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान भी संघ सदैव जनवादी शक्तियों का विरोध करता रहा है|
गुरुगोलवलकर ने संघ के आर्थिक दर्शन को साम्यवाद विरोध का आयाम दिया और नारा दिया “समाजवाद नहीं,हिन्दूवाद”| आरएसएस की कम्युनिस्ट विरोधी प्रवृत्ति जे.ए.करान ने अपने शोध में कही हैं जो 1950 के आस-पास आरएसएस के विशेष अध्ययन के दौरान उन्हें ज्ञात हुईं कि “यदि भारत में वामपंथी शक्तियां अत्यधिक महत्व प्राप्त कर लें या साम्यवादी भारत की प्रभुसत्ता के लिए इतना बड़ा खतरा पैदा कर दें कि कांग्रेसी सरकार उसे न रोक पाए तो आरएसएस फायदे में रहेगा| इसके उग्र मार्क्सवादी-विरोधी तत्व एकजुट हो जायेंगे|” (करान, जे.ए. 1951. मिलिटेंट हिंदूइस्म इन इंडियन पॉलिटिक्स : ए स्टडी ऑफ़ आरएसएस, न्यूयॉर्क) इस कारण से समाज में आमूल-चूल परिवर्तन से भय खाने वाले सभी तत्व संघ के समर्थन में आ गए | इसी तथ्य कि पुष्टि करते हुए गोविन्द सहाय लिखते हैं “पूंजीपति,जमींदार तथा अन्य निहित स्वार्थी भी कुछ हैं जो निजी कारणों से कांग्रेस के ‘किसान-मजदूर राज’ के आदर्श से डरते हैं | अपने संकीर्ण वर्गीय हितों के निष्ठुर तर्क से चालित ये लोग भी संघ को एकमात्र ऐसा संगठन मानते हैं जो सत्ता से कांग्रेस को हटा सकते हैं और इस प्रकार उन्हें जनतंत्र के क्रोध और आक्रोश से उन्हें बचा सकते हैं|”
संघ की इस जनविरोधी नीति का उल्लेख मधु लिमये ने अपनी किताब “सेक्युलर डेमोक्रेसी” में भी किया है| लिमये के अनुसार “जब संजय गाँधी ने सार्वजनिक क्षेत्र के विरूद्ध और स्वतंत्र बाज़ारवाली पूंजीवादी व्यवस्था के समर्थन में अपना इंटरव्यू प्रकाशित कराया तो संघी महान नेता कहकर उनकी जय जयकार करने लगे |” इस घटना से संघ के रणनीतिकारों के पूंजीवादी लगाव को समझा जा सकता है |
वास्तवमें संघ के पास कोई रचनात्मक आर्थिक कार्यक्रम नहीं है बल्कि इसके विपरीत वे यथास्थितिवादी और कट्टर कम्युनिस्ट विरोधी नीति का पालन करते हैं | गोलवलकर हमेशा कहा करते थे कि प्रकृति का सामंजस्य असमानता पर टिका हुआ है और इसमें समानता लाने की कोशिश प्रकृति का विनाश करेगी| यही विचार उनके समाज के आर्थिक पहलू पर भी लागू होता है | संघ के इन्ही विचारों के कारण पूंजीपति,व्यवसायी और मध्य वर्ग के एक तबके का उसे सदैव समर्थन मिलता रहा है |
आपातकालके बाद से अबतक परिस्थितियां काफी बदल चुकी है और देश में नयी आर्थिक नीति के लागू होने के बाद से अर्थव्यवस्था के स्वरुप में काफी परिवर्तन आये हैं| उदारवाद के नाम पर अर्थव्यवस्था से जुड़े जो भी प्रयोग किये गए हैं उससे पूंजीवादियो को मज़बूत आधार मिला है,फलस्वरूप भाजपा के कॉरपोरेट जगत के साथ सम्बन्ध भी काफी प्रगाढ़ हुए है | भाजपा ने रामजन्मभूमि आन्दोलन पर सवार होकर इस दौर में एक नए तरीके के पूंजीवादी-सांप्रदायिक गठजोड़ की शुरुआत की जो अब अपने भयावह रूप तक पहुँच चुकी है| 1991 के आम चुनावों से पहले आडवाणी शहर-2 घूमकर पूंजीपतियों के साथ बैठकें कर भाजपा के लिए रुपये बटोरते रहे और उस समय कलकत्ता के बी एम बिड़ला से निजी तौर पर मिलने उनके घर भी गए |
साभार- truthofgujarat.com |
वर्तमानपरिदृश्य को देखें तो साफ़ हो जाता है कि यह पूंजीवादी-फासीवादी गठजोड़ और भी मजबूत हो गया है| गुजरात दंगों के आरोपी नरेन्द्र मोदी को आज विकासपुरुष का दर्जा देने वालों में एक बड़ी संख्या उन मोदी भक्तों की है जिन्हें गुजरात में औने-पौने दामों पर संपत्ति प्राप्त हुई है या ऐसे निजी स्वार्थी समूह हैं जिन्हें मोदी के पीएम बनने से लाभ मिलने की आशा है| पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के मूल में लाभ अन्तर्निहित होता है और इस कारण वह लाभ को केंद्र में रखकर अपनी रणनीति तय करती है| अब यह समझाने की जरुरत नहीं है कि कॉर्पोरेट शक्तियां मोदी का समर्थन कर क्यों रही हैं और उनके पीएम बनने के रंगीन सपने क्यों बन रही हैं|
वास्तवमें जिस पूंजीवादी लूट खसोट को नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में लागू किया है,अब वही मॉडल पूरे देश में लागू कर खुली कॉर्पोरेट-लूट की चाहत में कॉर्पोरेट जगत मोदी को पीएम बनाने के लिए मुक्तहस्त सहयोग कर रहा है| लेकिन इसका सबसे भयावह पहलू वह है जिसे हम फासीवादी-पूँजीवाद है| यह फासीवादी-पूँजीवाद बिलकुल वैसा है जैसे द्वितीय विश्व युद्ध की पूर्वसंध्या पर जर्मनी में विद्यमान था और सारे प्रतिक्रियावादी और पूंजीवादी तत्व एकजुट होकर हिटलर को सत्ता प्राप्ति में हरसंभव मदद कर रहे थे | इसने पूरी दुनिया को नारकीय विश्वयुद्ध में धकेल दिया जिसके लिए इतिहास उन्हें कभी माफ़ नहीं करेगा | आज भारतीय लोकतंत्र के सामने कुछ इसी तरह का संकट फासीवादी-पूँजीवाद के रूप में मुंह फैलाए खड़ा है | सवाल यह है कि इसे रोकने के लिए हम क्या कर रहे हैं | अब हमे तय करना ही होगा कि हम किस ओर हैं ?
मोहम्मद आरिफ
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इलाहाबाद विश्वविद्यालय,इलाहाबाद