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एक भूला गया विद्रोह

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Indresh Maikhuri
इन्द्रेश मैखुरी
-इन्द्रेश मैखुरी

"...हालांकि 18 फरवरी 1946 को एच.एम.आई.एस.(हर मैजेस्टीस इंडियन शिप) तलवार पर यह विद्रोह घटिया नाश्ते के खिलाफ “भोजन नहीं तो काम नहीं” के ऐलान से फूटा,लेकिन इसकी पृष्ठभूमि में आई.एन.ए. के सैनिकों पर चलने वाले मुकदमें से फैली राजनीतिक उत्तेजना  और नाविकों के साथ अंग्रेज अधिकारियों का अपमानजनक व्यवहार भी था(अपमानजनक व्यावहार के खिलाफ नाविकों ने शिकायत भी की पर उलटा उन्हें ही धमकाया गया)..."

File:Naval uprising statue.jpg
Naval Uprising Statue, Colaba
साभार- विक्किपीडिया

भा
रत की आजादी की लड़ाई के कई प्रसंग बेहद कम चर्चित हैं.1946 का नेवी विद्रोह भी हमारे स्वाधीनता संग्राम का एक कम चर्चित लेकिन गौरवशाली अध्याय है. यह देश की अवाम यहाँ तक कि अंग्रेजों की रक्षा के लिए बनी सेनाओं के भीतर मुक्ति का विस्फोटक प्रकटीकरण था.यह तो सभी जानते हैं कि अंग्रेजी राज में सेनाओं में हिन्दुस्तानियों के साथ जबरदस्त भेदभाव होता था.लेकिन वह 1857 रहा हो या 1946 जब भी सेनाओं के अन्दर से विद्रोह की चिंगारी फूटी,वह सिर्फ सिपाहियों या नाविकों के साथ भेदभाव पर ही सीमित नहीं रही,बल्कि जनता की मुक्ति का व्यापक सवाल भी इन विद्रोहों ने सामने रखा.

हालांकि 18 फरवरी 1946 को एच.एम.आई.एस.(हर मैजेस्टीस इंडियन शिप)तलवार पर यह विद्रोह घटिया नाश्ते के खिलाफ “भोजन नहीं तो काम नहीं” के ऐलान से फूटा,लेकिन इसकी पृष्ठभूमि में आई.एन.ए. के सैनिकों पर चलने वाले मुकदमें से फैली राजनीतिक उत्तेजना  और नाविकों के साथ अंग्रेज अधिकारियों का अपमानजनक व्यवहार भी था(अपमानजनक व्यावहार के खिलाफ नाविकों ने शिकायत भी की पर उलटा उन्हें ही धमकाया गया).साथ ही इन नाविकों की चेतना पर देश में कम्युनिस्टों के नेतृत्व में चल रहे मजदूर आन्दोलन का प्रभाव भी था.


18फरवरी को शांतिपूर्ण भूखहड़ताल से शुरू हुआ नाविकों का यह विद्रोह बहुत तेजी के साथ फैला.48 घंटे के अन्दर ही 74 जहाज,20 बेड़े,22 यूनिट और लगभग बीस हजार नाविक इस विद्रोह में शामिल हो गये.बम्बई,कलकत्ता,मद्रास,कराची,कोचीन,विशाखापत्तनम सब जगह विद्रोह की चिंगारी धधक उठी थी.इन नाविकों ने तमाम जहाज़ों पर से अंग्रेजी झंडे उतार फेंके और लाल झंडे लहरा दिए.इससे साफ़ हो गया कि मामला सिर्फ ढंग के खाने और अच्छे व्यावहार का ही नहीं है.ये नाविक ना केवल अंग्रेजी गुलामी की बेड़ियों को उतार फेंकना चाहते हैं बल्कि जनता की मुक्ति की सही रास्ते को भी पहचान रहे थे.हड़ताल के संचालन के लिए एक 36 सदसीय नेवी केन्द्रीय हड़ताल समिति बनायी गयी और सिग्नलमैन एम.एस.खान इसके अध्यक्ष व टेलेग्राफ़ ऑपरेटर मदन सिंह उपाध्यक्ष चुने गए.एक मुस्लिम को अध्यक्ष व सिख को उपाध्यक्ष बना कर देश में फूट डालने वाले अंग्रेजों और उनके इशारे पर नाचते साम्प्रदायिक राजनीति की झंडाबरदारों के मुंह पर तमाचा मारते हुए साम्प्रदायिक सौहार्द का भी सन्देश देने की कोशिश की गयी.23अप्रैल 1930 के पेशावर विद्रोह में भी इसी तरह कामरेड चन्द्र सिंह गढ़वाली के नेतृत्व में गढ़वाल राईफल ने अंग्रेजों के सांप्रदायिक विभाजन की साजिश को ध्वस्त कर दिया था.

येनाविक केवल कोई अलग-थलग विद्रोह नहीं कर रहे थे,बल्कि राजनीतिक पार्टियों और देश की जनता से भी इन्होने समर्थन माँगा.रेडियो स्टेशन पर  कब्जा कर,उनके जरिये इस विद्रोह के सन्देश को पूरे देश में प्रसारित किया गया.21 और 22 फरवरी को हड़ताल समिति ने आम हड़ताल का अह्वान किया गया.नाविकों का यह विद्रोह जो ना केवल नेवी को बल्कि आम जनता को भी प्रभावित कर रहा था,अंग्रेज सरकार के लिए चुनौती बन गया था.रॉयल इंडियन नेवी के कमांडर एडमिरल गोडफ्रे ने चेतावनी दी कि या तो विद्रोही नाविक समर्पण करें या तबाह होने को तैयार रहें.ब्रिटिश प्रधानमन्त्री क्लेमेंट एटली द्वारा इस विद्रोह को कुचलने का निर्देश आते ही ब्रिटिश फौजों इन नाविकों को सबक सिखाने उतर पडी.इस तरह यह शांतिपूर्ण हड़ताल एक हथियारबंद संघर्ष में तब्दील हो गयी.21 फरवरी को बम्बई में एक नाविक की शहादत हुई तो अगले ही दिन कराची में 14 नाविक शहीद हुए.नाविक विद्रोह के समर्थन में उतरे मजदूरों पर भी बर्बर दमन ढाया गया.23 फरवरी तक 250 नाविक और मजदूरों की शहादत हो चुकी थी.


File:RIN HMIS Akbar.jpg
HMIS Talwar at Bombay Harbour. 
साभार- विक्किपीडिया
अंग्रेजसरकार इन नाविकों के विद्रोह को कुचलना चाहती थी,यह समझ में आता है.लेकिन देश की आजादी की लडाई लड़ने वाली कांग्रेस का इस विद्रोह के प्रति उपेक्षापूर्ण और विद्रोह को खारिज करने वाला रुख समझ से परे है.23 फरवरी 1946 को ब्रिटेन की संसद में विद्रोह का ब्यौरा देते हुए प्रधानमन्त्री क्लेमेंट एटली ने भी स्वीकार किया था कि “कांग्रेस ने आधिकारिक रूप से इस विद्रोह में शामिल होने से इनकार किया है.”मुस्लिम लीग की तरफ से जिन्ना ने भी बयान जारी कर विद्रोहियों को अपनी कार्यवाही समाप्त करने को कहा.जिन सरदार पटेल की विरासत पर कब्जे के लिए आजकल देश में भाजपा-कांग्रेस में रार मची हुई है,वही सरदार पटेल इस नेवी विद्रोह के खिलाफ सबसे मुखर रूप से खड़े हुए थे.सरदार पटेल ने इन विद्रोहियों के बारे में कहा कि ये  “मुट्ठीभर गर्म दिमाग और पागल युवा,ऐसी हरकतों के जरिये राजनीति में दखल देने की कोशिश कर रहे हैं,जबकि उनका राजनीति से कोई लेना देना नहीं है”.उन्होंने विद्रोहियों के लिए “गुंडे” जैसे संबोधनों का भी इस्तेमाल किया.नेवी विद्रोह में पटेल की भूमिका स्वतंत्रता संग्राम के नेता की नहीं बल्कि अंग्रेजों के प्रतिबद्ध वकील जैसी नजर आती है,जो किसी भी हाल में इन विद्रोही नाविकों से समर्पण करवा कर,अंग्रेजी राज की लाज रख लेना चाहता था.

अंततः तीव्र दमन,देश के नेताओं की बेरुखी और पटेल के दबाव के बीच 24 फरवरी को काले झंडे लहरा कर विद्रोही नाविकों ने समर्पण कर दिया.काले झंडे लहरा कर समर्पण करते हुए एक तरह से नाविक अपना विद्रोह ही दर्ज कर रहे थे.समर्पण से पूर्व केंद्रीय नेवी हड़ताल समिति ने जो प्रस्ताव पारित किया,वह इस देश में सामजिक बदलाव और मेहनतकश जनता की मुक्ति के लिए संघर्षरत तमाम लोगों के लिए बेहद प्रेरणादायी है.विद्रोही नाविकों ने अपने प्रस्ताव में कहा “हमारा विद्रोह हमारे लोगों के जीवन में एक बेहद महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना था.पहली बार वर्दी धारी और गैर वर्दी धारी मजदूरों का रक्त एक ही धारा में, एक सामूहिक उद्देश्य के लिए बहा.हम वर्दीधारी मजदूर इस बात को कभी नहीं भूलेंगे.हम जानते हैं कि आप,हमारे सर्वहारा भाई और बहने भी कभी इसे नहीं भूलेंगे.जो हम हासिल नहीं कर सके,आने वाली पीढियां इससे सबक सीखते हुए,इस कार्यभार को पूरा करेंगी.मेहनतकश जनता जिंदाबाद,इन्कलाब जिंदाबाद”.


                                                     
इन्द्रेश 'आइसा' के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं 
और अब भाकपा-माले के नेता हैं. 
indresh.aisa@gmail.com पर इनसे संपर्क किया जा सकता है.

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