Quantcast
Channel: पत्रकार Praxis
Viewing all articles
Browse latest Browse all 422

क्या आप के दुल्‍हे घोड़ी चढ़ेगे...?

$
0
0

-संजय वर्मा

"...मास्‍लो के सिद्धांत की रोशनी में यदि 'आप'पार्टी के प्रति उमड़ी दिलचस्‍पी को देखें तो इस भीड़ के मनोविज्ञान को समझा जा सकता है। ये तमाम उम्‍मीदवार पिछले दस पन्‍द्रह सालों से जारी आर्थिक तेजी के चलते अपनी बुनियादी जरूरतों के पहले और सुरक्षा के दूसरे स्‍तर को पार कर चुके हैं, और अब सामाजिक प्रतिष्‍ठा और ताकत के तीसरे चरण के लिये संघर्ष कर रहे हैं।..."

http://www.thehindu.com/multimedia/dynamic/01692/21CARTOONSCAPE_1692875e.jpg
 कार्टून साभार - 'द हिन्दू'
दिल्‍ली मे ‘आम ’ आदमी पार्टी की जीत की शहनाइयों की गूंज ने शहर और देश भर के कई लोगों के मन मे़ सोये अरमानों को जगा दिया है। बरसों से रसूख और ताकत तलाश रहे इन लोगों ने सेहरे बांध लिये हैं और राजनीति की घोड़ी चढ़ने को तैयार है। जैसा कि इन लोगो का कहना है कि इनकी प्रेरणा उनका देशप्रेम और भ्रष्‍टाचार मुक्‍त व्‍यवस्‍था है, मान कर इन्‍हे सलाम करने को जी चाहता है,पर ये पूरा सच नहीं है। दरअसल ‘आप’ के दरवाज़े पर पार्षद‍ से लगा कर प्रधानमंत्री तक और ब्‍लाक से ले  कर प्रदेश अध्‍यक्ष तक बनने के लिये दस्‍तक दे रहे इन तमाम लोगों मे एक बड़ी संख्‍या उन लोगों की है जो पढ़े लिखे संपन्‍न लोग हैं, जिनकी बुनियादी जरूरते पूरी हो चुकीं हैं। एक ठीक ठाक घर, कार, पेंशनप्‍लान की व्‍यवस्‍था कर चुकने के बाद अब उन्हें सामाजिक प्रतिष्‍ठा, ताकत और सार्थकता चाहिये जो उनका मौजूदा व्‍यापार या नौकरी नहीं दे रहा। समाज के हाशिये पर पड़े इन मासूम लोगों को ‘आप’ ने अचानक एक किरदार ऑफर कर दिया है और इनकी भी खूने जिगर देखने की तमन्‍नाऐं जाग उठी हैं।
एकसमाज विज्ञानी हुए हैं मास्‍लो...। उन्‍होने इंसान की ज़रूरतों को पिरामिड‍ बना कर समझाया है। पिरामिड के सबसे निचले हिस्‍से मे बु‍नियादी ज़रूरते होती हैं, मसलन भूख, प्‍यास नींद और सेक्‍स। फिर जब ये ज़रूरते पूरी हो जाती हैं तो इन्‍सान दूसरे स्‍तर की ज़रूरतें महसूस करने लगता है वो है सुरक्षा की ज़रूरत। मसलन प्राक्रतिक आपदाओं से, बीमारी से, भविष्‍य की आर्थिक समस्‍याओं से। इस तरह तीसरा स्‍तर होता है प्रेम, पारिवारिक रिश्‍तों की ज़रूरत का। और जब यह भी मिल जाये तो इंसान चौथे स्‍तर की ज़रूरते महसूस करता है वह है सामाजिक पहचान, प्रतिष्‍ठा और ताकत। पांचवा और अं‍तिम स्‍तर है आत्‍म साक्षात्‍कार।

मास्‍लोके सिद्धांत की रोशनी मे यदि ‘आप’ पार्टी के प्रति उमड़ी दिलचस्‍पी को देखे तो इस भीड़ के मनोविज्ञान को समझा जा सकता है। ये तमाम उम्‍मीदवार पिछले दस पन्‍द्रह सालों से जारी आर्थिक तेजी के चलते अपनी बुनियादी जरूरतों के पहले ओर सुरक्षा के दूसरे स्‍तर को पार कर चुके हैं। उम्र के इस पड़ाव पर परिवार, रिश्‍ते, मुहब्‍बत जितने और जैसे भी हो सकते थे हो चुके, इसलिये वे अब सामाजिक प्रतिष्‍ठा और ताकत के चौथे चरण के लिये संघर्ष कर रहे हैं। ये लोग अच्‍छी तरह जानते हैं कि प्रमुख दलों मे बतौर सामान्‍य कार्यकर्ता प्रवेश करना और परंपरागत तरीको से ऊपर चढ़ना उनके बस की बात नहीं है। वहां जिस तरह का ज्ञान और हुनर चाहिये वह उन्हें किसी स्‍कूल या कालेज मे नहीं पढा़या गया। इन परंपरागत दलों के नेता और कार्यकर्ताओं की एक अलग दुनिया, भाषा और तेवर हैं जहां ये बुद्धिजीवी खुद को और वे उन्हें बेगाना समझते हैं । जबकि 'आप'इन्हें एक ऐसा मंच देता है जँहा सब इन्‍ही की जुबान बोलते हैं। 

शहनाइयांबजवाने को बेताब इन दूल्हों के पक्ष मे कहा जा सकता है कि वजह कोई भी हो, यदि देश को नये और बेहतर नेता मिलते है तो आखिर हर्ज क्‍या है । हर्ज है...।

अन्‍नाआंदोलन के समय से जब ये लोग अपनी कारों पर झंडा बांध कर भ्रष्‍टाचार खत्‍म करने की कसमें खा रहे है थे तब से अब तक इनमें से अधिकांश लोगों में कोई चारित्रिक बदलाव नहीं आया। वे अब भी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी मे लगातार छोटे बड़े भ्रष्‍टाचार करते हैं। रेल यात्रा मे बर्थ के लिये टीटी को रिश्‍वत देने से टैक्‍स चोरी तक। हर आदमी को अपना भ्रष्‍टाचार सुविधा शुल्‍क लगता है ओर दूसरो का पाप। ऐसे में ‘आप’ में शामिल होते ही ये पाक साफ हो जायेंगे, मानने को तो जी तो करता है पर शक भी होता है। यह बात इसलिये भी अधिक महत्‍वपूर्ण है कि इस शादी की बुनियाद ईमानदारी के एक सूत्रीय कार्यक्रम पर टिकी है। ऐसे में इनकी छोटी-मोटी बेवफाई को भी निगलना आप पार्टी के लिये मुश्किल हो जायेगा।

एकऔर महत्‍वपूर्ण बात है। राजनीति एक संस्‍कार है, जिसे रातों-रात पैदा नहीं किया जा सकता। इनमें से कई लोग कवि हैं, ब्‍लागर हैं, लेखक, बुद्धिजीवी हैं जो राजनी‍ति के अच्‍छे आलोचक हैं, पर स्‍वयं कितने अच्‍छे राजनीतिज्ञ साबित होंगे, कहा नहीं जा सकता। इस तरह का एक हादसा हम असम में छात्र नेताओं की सरकार के रूप में देख चुके हैं। फिर एक नेता की जिंदगी की अपनी मुश्किलें हैं, पारिवारिक जीवन का त्‍याग है अनियमित काम के घंटे हैं। जोश में आकर इन भले लोगों ने नाल ठुकवाने के लिये पैर तो आगे बढ़ा दिया है, पर इनमें से कितने इसका दर्द बर्दाश्‍त कर पायेंगे, देखना होगा।

इनतमाम आशंकाओं के बावजूद हमें इनकी कामयाबी की दुआ करनी चाहिये, क्योंकि इनके नाकामयाब होने का मतलब होगा एक लंबे समय की खामोशी जिसमें कोई नया सूरमा प्रजातंत्र की दुल्‍हन के स्‍वयंवर में निशाना लगाने नहीं आयेगा। और इस खामोशी से मुझे तो, शहनाइयों की आवाज़ ज्‍यादा अच्‍छी लगती है, दुल्‍हे अच्‍छे लगते हैं।  भले ही उनमे कुछ अधेड़ और विधुर भी हों तो क्‍या...

संजय वर्मा साहित्‍य एवं सामाजिक मुद्दों में दिलचस्‍पी रखते हैं।
इनसे संपर्क का पता imsanjayverma@yahoo.co.in है

Viewing all articles
Browse latest Browse all 422

Trending Articles