सत्येंद्र रंजन |
-सत्येंद्र रंजन
"...राजनीतिक शब्दावली में ऐसी राजनीतिक शक्तियों को Populist कहा जाता है। भारत में राजकोष से जन-कल्याणकारी या लोकलुभावन कार्यक्रम चलाने की घोषणाओं या उन पर अमल को Populist कहा जाता है। मगर इस शब्द की वास्तविक परिभाषा के तहत वे दल आते हैं, जो परंपरागत राजनीतिक व्यवस्था के बाहर से आकर स्थापित राजनीति को चुनौती देते हैं- मगर जिनके पास को कोई उचित विकल्प नहीं होता। जो भड़काऊ भाषणों और अव्यावहारिक वादों से लोगों को लुभाने की कोशिश करते हैँ। Populism को आम तौर पर संवैधानिक लोकतंत्र के लिए बड़ी चुनौती माना जाता है, क्योंकि Populist पार्टियां व्यक्ति केंद्रित और अधिनायकवादी प्रवृत्ति लिए होती हैं।..."
कार्टून साभार- http://www.thehindu.com |
दिल्ली में आम आदमी पार्टी (‘आप’) की सफलता को समझने के लिए हाल के वर्षों में दुनिया के कई लोकतांत्रिक देशों में दिखी परिघटना मददगार हो सकती है। पहले निम्नलिखित उदाहरणों पर गौर करें-
·इटली के पिछले आम चुनाव में वहां फिल्मी कॉमेडियन बेपे ग्रिलो ने अपनी पार्टी फाइल स्टार मूवमेंट को उतारा। वह 25.55 प्रतिशत वोट हासिल कर संसद के निचले सदन चैंबर ऑफ डेपुटीज में दूसरे सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। ऊपरी सदन सीनेट के चुनाव में भी 23.79 प्रतिशत वोट पाकर वह दूसरे नंबर पर रही।
·2012 में फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव में नेशनल फ्रंट की मेरी ला पां 17.9 प्रतिशत वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहीं। उसके पहले 2002 के राष्ट्रपति चुनाव में तो उनके पिता और इसी पार्टी के उम्मीदवार ज्यां-मेरी ला पां पहले दौर के मतदान में सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार से भी अधिक वोट पाने में सफल रहे थे और दूसरे दौर में उनका मुकाबला तत्कालीन राष्ट्र यॉक शिराक से हुआ था।
·ग्रीस में 2012 के संसदीय चुनाव में गोल्डन डॉन पार्टी ने संसद में 21 सीटें जीत कर किसी दल को स्पष्ट बहुमत मिलने से रोक दिया था।
· नीदरलैंड में गीर्त वाइल्डर्स की फ्रीडम पार्टी का हाल में तेजी से उदय हुआ है। हालांकि उसे अभी बड़ी चुनावी सफलता का इंतजार है।
· अमेरिका में 2009 से टी-पार्टी मूवमेंट ने राजनीतिक विमर्श- खासकर रिपब्लिकन पार्टी के अंदरूनी ढांचे पर गहरा असर डाला है। उसे खासा जन समर्थन मिला है। पिछले चुनाव में उम्मीदवार बनने के लिए इस पार्टी के नेता अधिक से अधिक इस आंदोलन का समर्थन पाने की होड़ में लगे रहे।
· ऐसे रुझान अन्य देशों में भी हैं। लेकिन चूंकि वहां के दलों को अभी उल्लेखनीय चुनावी सफलता नहीं मिली है, इसलिए यहां उन्हें हम छोड़ सकते हैँ।
इन सभी दलों में आखिर समान बात क्या है? इसे हम इस तरह रेखांकित कर सकते हैं-
· ये दल मूल रूप से कंजरवेटिव, उग्र-राष्ट्रवादी, नस्लवादी, विदेशी विरोधी हैं। उनका मुख्य समर्थन आधार समाज के ऐसे ही तबकों में है।
· लेकिन पांच साल से जारी आर्थिक संकट और सरकारों की किफायत बरतने की नीति के कारण विभिन्न समाजों में पैदा हुए असंतोष एवं समस्याओं का उन्होंने खूब लाभ उठाया है।
· उनकी भाषा भड़काऊ, उग्रवादी- और अक्सर गाली-गलौच की हद तक जाने वाली होती है। यह नौजवानों को आकर्षिक करने में खास सहायक रही है।
·हालांकि ये दल मूल रूप से धुर दक्षिणपंथी हैं, लेकिन आर्थिक संकट से पैदा हुए हालात के बीच उन्होंने जो शब्दावली अपनाई है, उससे उनके वामपंथी होने का भ्रम हो सकता है। उन्होंने किफायत की नीतियों का विरोध किया है, बढ़ती बेरोजगारी का सवाल उठाया है, यूरोपीय संघ का विरोध करते हुए राष्ट्रीय संप्रभुता का मुद्दा उठाया है। उनकी भाषा ऐसी है, जिससे हर तरह के अंसतुष्ट लोग उनके पक्ष में गोलबंद हो सकते हैं और ऐसा वास्तव में हुआ है।
· उन सभी दलों का एक खास एजेंडा सिस्टम को क्लीन करना है। उनके नेता खुद को ईमानदार और देशभक्त और बाकी सभी दलों के नेताओं के भ्रष्ट और जन-विरोधी बताते हैं।
· चूंकि ये दल स्थिति की जटिलताओं में नहीं जाते, तस्वीर को ब्लैक एंड व्हाइट में पेश करते हैं, इसलिए उनका नौजवानों और समाज के कई आम तबकों से सीधा संवाद बन गया है। उन्होंने खुद को परंपरागत दलों से त्रस्त लोगों के संरक्षक के रूप में पेश किया है।
·विंडबना यह है कि ये दल अपने अपने देशों के राजनीतिक एजेंडे को अधिक से अधिक दक्षिणपंथ की तरफ झुकाने में सहायक बने हैं, लेकिन बहुत से लोग उन्हें जन-पक्षीय मान रहे हैं। उन्हें न सिर्फ मध्य वर्ग, बल्कि श्रमिक वर्ग के कई हिस्सों का भी समर्थन मिला है।
राजनीतिक शब्दावली में ऐसी राजनीतिक शक्तियों को Populist कहा जाता है। भारत में राजकोष से जन-कल्याणकारी या लोकलुभावन कार्यक्रम चलाने की घोषणाओं या उन पर अमल को Populist कहा जाता है। मगर इस शब्द की वास्तविक परिभाषा के तहत वे दल आते हैं, जो परंपरागत राजनीतिक व्यवस्था के बाहर से आकर स्थापित राजनीति को चुनौती देते हैं- मगर जिनके पास को कोई उचित विकल्प नहीं होता। जो भड़काऊ भाषणों और अव्यावहारिक वादों से लोगों को लुभाने की कोशिश करते हैँ। Populism को आम तौर पर संवैधानिक लोकतंत्र के लिए बड़ी चुनौती माना जाता है, क्योंकि Populist पार्टियां व्यक्ति केंद्रित और अधिनायकवादी प्रवृत्ति लिए होती हैं।
विचारणीयहै- ‘आप’ इस अर्थ में Populist है या नहीं?
सत्येंद्र रंजन वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं.
satyendra.ranjan@gmail.com पर इनसे संपर्क किया जा सकता है.