जॉन बेलेमी फ़ॉस्टर
- जॉन बेलेमी फ़ॉस्टरअनुवादः रोहित, मोहन और सुनील
जॉन बेलेमी फ़ॉस्टर मंथली रिव्यू के संपादक हैं। वे, यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑरेगोन में समाजशास्त्र के प्रवक्ता और चर्चित पुस्तक ‘द ग्रेट फाइनेंसियल क्राइसिस’(फ्रैड मैग्डोफ़ के साथ) के लेखक हैं। उक्त आलेख 11अप्रैल 2011 को फ्रैडरल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सेंटा कैटेरिना, फ्लोरिआनोपोलिस, ब्राजील में शिक्षा एवं मार्क्सवाद पर पांचवे ब्राजीलियन सम्मेलन (ईबीईएम) में उनके द्वारा दिए गए आधार वक्तव्य का विस्तार है। इस लम्बे आलेख को हम ४ किस्तों में यहाँ दे रहे हैं. यह दूसरी क़िस्त है... क्लिक करें)-सं.
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शिक्षा-उदयोग संकुल
स्कूलों की पुनर्संरचना की प्रक्रिया ने निजी शिक्षा उदयोग को बढ़ावा दिया, इसे भारी मुनाफ़ा कमाने वाले विकासमान क्षेत्र के तौर पर देखा जा रहा है। CNNMoney.com ने अपनी 16 मर्इ 2011 की रिपोर्ट में कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र के बाद शिक्षा क्षेत्र, 2007 की महान मंदी के उपरांत, सर्वाधिक रोज़गार उपलब्ध करवाने वाला क्षेत्र रहा है। शैक्षणिक सेवा क्षेत्र तथा सार्वजनिक कालेजों में 303000 नौकरियां उपलब्ध करवार्इ गई।
2000 में ब्लूमबर्ग बिजनेस वीक ने शिक्षा क्षेत्र में निवेश संबंधी रिपोर्ट में स्कूलों के बाज़ारीकरण तथा निजीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति की ओर इंगित किया। लेग्ग मेसन (एक वैशिवक परिसंपत्ति प्रबंधन फर्म) से जुड़े शिक्षा अन्वेषक स्काट साफेन ने अभिव्यक्त किया कि ''निजी शिक्षा की सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी है सरकार, और वक्त के साथ मुनाफ़ा-अर्जक क्षेत्र इस व्यवसाय में सरकार को पीछे छोड़ देगा।
निजी शिक्षा उद्योग स्वभावत: ही मूल्यांकन तथा परीक्षण की नर्इ पद्धतियों का समर्थक है। 2005 में थिकइविटी पार्टनर्स एलसीसी ने 'नया उद्योग, नए स्कूल, नया बाज़ार : के-12 शिक्षा उद्योग आउटलुक, 2005 शीर्षक से एज्यूकेशन इंडस्ट्री एसोसिएशन के लिए एक रिपोर्ट प्रकाशित की। इसने पाया कि 2005 में ''500 बिलियन डालर के के-12घरेलू बाज़ार में निजी शिक्षा उद्योग का हिस्सा 75 बिलियन डालर (या कुल व्यय का 15 फ़ीसद) था। राजकीय एवं संघीय सरकारों द्वारा अपनाए जा रहे नए पैमानों, परीक्षण तथा उत्तरदायित्व के मानदण्डों तथा चार्टर स्कूलों की वृद्धि के परिणामस्वरूप अगले 10 सालों में निजी शिक्षा उद्योग का हिस्सा 163 बिलियन डालर; के-12 शैक्षणिक बाज़ार का 20 फीसद तक बढ़ जाने का अनुमान लगाया गया। 2005 में के-12 ने शिक्षा उद्योग से 6.6 बिलियन डालर का संरचनात्मक तथा हार्डवेयर का सामान ख़रीदा, 8 बिलियन डालर की निर्देशात्मक सामग्री तथा 2 बिलियन डालर का मूल्यांकन (परीक्षण व्यवस्था) संबंधी सामान ख़रीदा। तकनीक पर किया गया ख़र्च (चूंकि साफ्टवेयर को निर्देशात्मक सामग्री में शामिल किया गया था) अनुमानत: 8 बिलियन डालर था। शिक्षा उद्योग की रिपोर्ट निष्कर्षत: कहती है कि यह प्रवृत्ति ''शिक्षा और उद्योग के गहराते समन्वयन को दर्शाती है। पैसा बनाने के ''बहुत से रास्ते” खुल रहे थे।
वृद्धिमान शिक्षा-उद्योग से अर्जित मुनाफ़े का बड़ा हिस्सा विशाल निगमों के पास जाने की संभावना है, ख़ासतौर से एप्पल, डेल, आर्इबीएम, एचपी काम्पैक, पाम और टेक्सस इन्स्ट्रूमेन्टस (तकनीक); पीयर्सन, हारकार्ट, मैक्ग्रा-हिल, थामसन और हाटन मिफिलन (निर्देशात्मक सामग्री); सीटीबी मैक्ग्रा, हारकार्ट असेसमेन्ट, थामसन, प्लेटो और रिनेसां (मूल्यांकन); और स्कोलेसिटक, प्लेटो, रिनेसां, साइंटिफिक लर्निंग और लीपफ्राग (परिशिष्ट निर्देशात्मक सामग्री) को बड़ा हिस्सा मिलने की संभावना है। थिंकइकिवटी के-12 रिपोर्ट में छोटी तकनीकी कंपनियों तथा नव्य-स्थापित परिशिष्ट निर्देशात्मक सामग्री उपलब्ध करवाने वाली फर्मों के हस्तगन की प्रक्रिया की ओर इंगित किया गया था। दरअस्ल, निर्देशात्मक सामग्री बनाने वाली बड़ी कंपनियों द्वारा छोटी कंपनियों के अर्जन की प्रक्रिया पहले से ही शुरू हो चुकी थी। 9 कंपनियों के पास परीक्षण बाज़ार का 87 फ़ीसद हिस्सा था। कंप्यूटर हार्डवेयर तथा परीक्षण, दोनों ही द्रुत वृद्धि वाले क्षेत्र माने गए।
जाने-माने शिक्षा अनुसंधानकर्ता तथा आलोचक जेराल्ड डब्ल्यू ब्रेसी ने 2005 में 'नो चाइल्ड लैफ्ट बिहाइंड : पैसा जाता कहा है?” शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित करवार्इ थी; उन्होंने बड़ी पूंजी, भ्रष्टाचार तथा रिश्वतखोरी पर ख़ास ध्यान दिया था। निजी शिक्षा क्षेत्र के प्रभाव को स्पष्ट करने वाला तथ्य यह है कि जार्ज डब्ल्यू बुश ने व्हाइट हाऊस में अपने प्रवेश के पहले दिन ही (एनसीएलबी के उदघाटन से कुछेक दिन पहले) अपने नज़दीक पारिवारिक मित्र तथा अपनी संक्रमणकालीन टीम के सदस्य मैक्ग्रा तृतीय के साथ मीटिंग की थी। ये मैक्ग्रा हिल के सीर्इओ हैं। बिजनेस राउण्डटेबल, जो कि यूएस के 200 सबसे बड़े निगमों का प्रतिनिधित्व करता है, ने एनसीएलबी का दृढ़ समर्थन किया था। स्टेट फार्म इन्श्योरेन्स का सीर्इओ एडवर्ड रस्ट जूनियर, जिसकी एनसीएलबी के लिए बिजनेस राउण्डटेबल का समर्थन जुटाने में महती भूमिका रही थी, एक साथ कर्इ पदों पर कार्यरत था- वह बिजनेस राउण्डटेबल के एज्यूकेशन टास्क फोर्स का चेयरमैन था, मैक्ग्रा-हिल का बोर्ड सदस्य था और बुश की संक्रमणकालीन टीम का भी सदस्य था। ब्रसी के मुताबिक एनसीएलबी के अंतर्गत मुनाफ़ा-केन्द्रित शैक्षणिक सेवाओं की वृद्धि की प्रक्रिया एक 'हैरानकुन दोगलापन दर्शाती है-' सार्वजनिक स्कूलों के ऊपर कमरतोड़ दबाव डाला गया, इसके विपरीत 'स्कूलों को सामग्री और सेवाएं मुहैया करवाने वाले निगमों के साथ शिथिलता बरती गर्इ।
पूंजी से परे शिक्षा
नवउदारवादी स्कूल संशोधन आंदोलन तथा कारपोरेट मीडिया द्वारा शिक्षकों और शिक्षक संघों की निरंतर दुर्भावनापूर्ण निंदा ही अमेरिका में शिक्षण के क्षेत्र संबंधी संघर्ष की वास्तविक प्रगति को उजागर कर देती है। रैविच (जिसने डब्ल्यू.एच.बुश और किलंटन दोनों ही प्रशासनों के अंतर्गत काम किया था, वह एनसीएलबी का पक्का समर्थक है) ने घोषणा की:
''कारपोरेट स्कूल संशोधन तो असल मक़सद को ढकने का बहाना भर है; उनका मक़सद है ट्रेड यूनियनों को उखाड़ फेंकना। कारपोरेट स्कूल संशोधन चाहता है कि सामूहिक सौदेबाजी की इस परंपरा को विधान द्वारा समाप्त कर दिया जाए, ताकि यूनियनों से छुटकारा पाया जाए। लेकिन यूनियानों के खत्म होते ही बच्चों और कार्य की दशा के बारे में बोलने वाला कोर्इ न रहेगा....”
स्कूलों के बंद होने से आखिर खुशी किस को मिलती है? वाल स्ट्रीट हेज़ फण्डस, डेमोक्रेटस फार एजुकेशनल रिफार्म (भेड़ की खाल में भेडि़ये), स्टैण्ड फार चिल्ड्रन (जिसे गेटस फाउण्डेशन से लाखों डालर मिलते हैं), द बिल्योनेयर क्लब (गेटस, वाल्टन, ब्रोड), वाशिंगटन डी.सी. में बैठे रणनीतिकार जिनमें से लगभग सभी को गेटस फाउण्डेशन से पैसा मिलता है। ये बहुत से संपादकीय मण्डलों में पैठ रखते हैं। यह कारपोरेट संशोधन आंदोलन पूरा चकरघिन्नी है। और मैं ज़ोर देकर कहना चाहता हूँ कि हम सही ही इस पूरे शैक्षणिक संशोधन आंदोलन को कारपोरेट संशोधन का लेबल देते हैं।
पूंजीपति-निर्देशित ये नए स्कूल संशोधन ख़ासतौर से एक वजह से स्कूल शिक्षकों और उनकी यूनियनों को निशाना बनाते हैं : कि शिक्षकगण (हालांकि वे अक्सर राजनीतिक रूप से अक्रिय रहते हैं) अपने विधार्थियों पर थोपे जा रहे नए कारपोरेट शिक्षण तथा उनकी अपनी कार्यदशाओं के टेयलरवादीकरण (टेयलरार्इजे़शन) का विरोध करते हैं। शिक्षक खुद को शैक्षणिक व्यवसायिकों के तौर पर देखते हैं, लेकिन अब तेज़ी से उनका सर्वहाराकरण किया जा रहा है। सो, वे स्कूल पुनर्संरचना योजना तथा बच्चों के वस्तुकरण की प्रक्रिया के सर्वाधिक संभावनाशील विरोधी हैं। इसी वजह से नर्इ परीक्षण विधियां सबसे पहले शिक्षकों को ही निशाना बनाती हैं। वे मूल्यांकन करती हैं, सिर्फ विधार्थियों का ही नहीं, बल्कि मुख्यतया इस बात का कि किस हद तक शिक्षकगण टेयलरवाद (टेयलरर्इज्म) के सामने झुके हैं- ये शिक्षण-विधि का नियंत्रण शिक्षकों से छीनने वाला प्रमुख हथियार है। डंकन ने बाज़ मौकों पर घोषित किया है कि 'रेस टू द टॉप’ की प्रमुख उपलबिध यह रही है कि इसने राज्यों पर दबाव बनाया है कि वे विधार्थी - मूल्यांकन परीक्षाओं के आधार पर शिक्षकों का मूल्यांकन करना तज दें। जैसा कि रैविच ने 'महान अमेरिकी स्कूल व्यवस्था की मौत और जीवन’ में सुझाया है:
'शिक्षक संघों के बहुत से आलोचक हैं। इनमें उनके अंदर के लोग भी शामिल हैं जिनकी शिकायत है कि उनके नेता कारपोरेट सुधारों के विरूद्ध शिक्षकों का बचाव नहीं कर पाते... लेकिन मीडिया में छाए रहने वाले आलोचक यूनियनों को शैक्षणिक सुधारों की राह में मुख्य बाध के तौर पर देखते हैं। वे यूनियनों को दोषी ठहराते हैं क्योंकि यूनियनें परीक्षा-परिणामों के आधर पर शिक्षकों का मूल्यांकन नहीं होने देना चाहती। वे (आलोचक) चाहते हैं कि प्रशासनों को स्वतंत्रता हो कि वे उन शिक्षकों को नौकरी से हटा सकें जिनके विधार्थियों के अंक नहीं बढ़ रहे हैं तथा नए शिक्षकों की भर्ती कर सकें जो शायद परिणाम सुधार सकें। वे परीक्षा परिणामों को मूल्यांकन का अहम पैमाना बनाना चाहते हैं।
और अब उसी मूल बिन्दु की ओर लौटना मौजूं रहेगा जो कि 1970 में बोवेल्स और जिनटिस ने 'पूंजीवादी अमेरिका में शिक्षण में प्रतिपादित किया था- कि किसी भी ऐतिहासिक समय-काल में उत्पादन के सामाजिक संबंधों तथा शिक्षा के सामाजिक संबंधों में अनुरूपता पार्इ जा सकती है। इस राजनीतिक-आर्थिक नजरिये के हिसाब से वर्तमान में शिक्षा पर बढ़ रहे नवउदारवादी हमले के कारकों में एकाधिकारी-वित्तीय पूंजी के विशिष्ट द्योतक आर्थिक गतिरोध, वित्तीयकरण तथा आर्थिक पुनर्संरचना को माना जा सकता है। आर्थिक वृद्धि में गिरावट ने, जो कि 1970 के दशक में शुरू हुर्इ, सिर्फ़ आर्थिक मक़सदों तक सीमित रहने वाले संघर्षों (श्रमिकों के) को कमज़ोर किया। साथ ही समाज पर रूढि़वादियों तथा कारपोरेट ताकतों की प्रभुसत्ता बढ़ने से श्रमिकों के राजनीतिक केंद्र भी कमज़ोर पड़े। वित्तीय और सूचना पूंजी की सापेक्षिक बढ़त ने, जिसे उत्पादन में ठहराव से प्रोत्साहन मिला, स्कूलों में डिजिटल आधारित टेयलरवाद तथा कठोर वित्तीय प्रबंधन को और गतिशीलता प्रदान की। इसके साथ ही विषमता, गरीबी तथा बेरोज़गारी भी बढ़ी क्योंकि पूंजी ने आर्थिक हानियों का बोझ श्रमिकों तथा ग़रीबों पर डाल दिया। अल्पवृद्धि, बढ़ती विषमता तथा बढ़ती बाल-दरिद्रता से उत्पन्न दबावों के साथ-साथ जब राजकीय व्यय पर लगे नए प्रतिबंधों का भार भी जुड़ गया तो स्कूल एक भंवर में फंसते चले गए। सार्वजनिक स्कूल, जो कि बहुत से समुदायों तथा बच्चों हेतु सामाजिक सुरक्षा का एक बड़ा सहारा थे, ढहते सामाजिक तथा आर्थिक ताने-बाने हेतु भरपार्इ करने के लिए ज़बरन इस्तेमाल किए गए।
इसी दौरान उभरे 'समृद्धों के विद्रोह’ की वजह से स्कूलों को मिलने वाली स्थानीय इमदाद भी जो कि संपत्तिगत कराधन पर आधारित थी- घटी। राज्य तथा संघीय सरकारें स्कूलों को इमदाद मुहैया करवाने पर मज़बूर हुई, स्थानीय नियंत्रण घटा और अपने परंपरागत कारपोरेट प्रबंधन के लक्ष्यों के साथ कारपोरेट वित्तीयकरण माडल प्रभावी हो गया। सुधार हेतु शुरू की गर्इ परीक्षण एवं उत्तरदायित्व की विधियों की विफलता ने, भले ही उनके मानदण्ड संकीर्ण हों, समस्या की जड़ के तौर पर शिक्षकों ओर शिक्षक संघों को इंगित किया और उन पर दबाव बनाया। 2007 में वित्तीय बुलबुले के फूटने से तथा इसके बाद आर्इ महान मंदी ने स्कूलों तथा शिक्षक संघों को और अधिक हानि पहुँचार्इ और शिक्षा के क्षेत्र में आपात-संकट की सी स्थिति ला दी।
हालांकि बजट मे के-12 शिक्षा का हिस्सा थोड़ा-सा बढ़ा भी, 2009 में यह 4.3 फ़ीसद तक पहुँचा। यह लेकिन शिक्षा के प्रति उत्तरदायिता की किसी भावना को नहीं दर्शाता है बल्कि महान मंदी के संदर्भ में सरकारी इमदाद के बरखि़लाफ निजी अर्थव्यवस्था की कमज़ोरी ज़ाहिर करता है। सरकारी ख़र्च की गिरती दशा के सूचक ये तथ्य हैं कि अमरीकी प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा पर ख़र्च 2001 में कुल सरकारी व्यय का 22.7 फ़ीसद हो गया तथा 2009 में यह 21 फ़ीसद हुआ - यह साफ़ तौर पर इंगित करता है कि कुल सरकारी व्यय में इसका हिस्सा गिरता जा रहा है।
निरंतर अधोगमन की इस सिथति में शिक्षकों पर बढ़ते दबाव और उनका मनोधैर्य तोड़ने की कोशिशें सार्वजनिक शिक्षण व्यवस्था पर सांघातिक प्रहार है क्योंकि पूंजीवादी व्यवस्था के अंतर्गत शिक्षकगण शिक्षा-प्रसार (सिर्फ शिक्षण ही नहीं) को अपना उत्तरदायित्व समझकर इस दिशा में प्रयासरत रहे हैं- व्यवस्था के खि़लाफ़ जाकर भी। शिक्षक प्रभुत्ववाद के विरोध में खड़े हुए और वे उस ढ़हती स्कूली व्यवस्था को थामे हुए हैं जो कि उनके असाधारण संघर्ष की अनुपसिथति में अब तक ढह ही चुकी होती। स्टेटस आफ़ द अमेरिकन पब्लिक स्कूल टीचर के ताज़ा सर्वेक्षण के मुताबिक़ अधिकांश शिक्षक हर हफ़्ते 10 घंटे बिना भुगतान के अतिरिक्त कार्य करते हैं (40 घंटा हफ़्ता के इलावा) और औसतन सालाना 443 डालर कक्षा के बजट संसाधनों पर अपनी जेब से ख़र्च करते हैं। शिक्षकों के मज़बूत सामाजिक उत्तरदायिता भाव के बगै़र सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था बहुत पहले ही अपने अंतर्विरोधों का ग्रास बन चुकी होती।
पिछले कुछ दशकों में शिक्षकों की अधिसंख्या आर्थिक संकट तथा वर्गीय-नस्लीय समस्याओं द्वारा बच्चों पर डाले जाने वाले दुष्प्रभावों से निपटने हेतु चलने वाले प्रयासों में हिरावल की भूमिका में शामिल रही है। राष्ट्रीय मूल्यांकन की व्यवस्था, जो कि मुख्यत: शिक्षकों तथा शिक्षक संघों को निशाना बनाने हेतु तैयार की गर्इ है, चाहती है कि शिक्षा का निजीकरण कर दिया जाए तथा विदयार्थियों को नीरस कार्यशैली का मज़दूर-दास बना दिया जाए। इन सब चीज़ों ने शिक्षा को व्यवस्थागत संकट के केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया है। बहुत से शिक्षकों को नौकरी से निकाल दिया गया, बहुत से खुद ही मरणासन्न सार्वजनिक स्कूलों को छोड़कर चले गए।
सार्वजनिक शिक्षा पर अवनतिशील समाजार्थिक परिस्थितियों के प्रभावों को मददेनज़र रखते हुए; शैक्षणिक लक्ष्यों की प्रापित हेतु सुझार्इ गर्इ कोर्इ भी योजना जो विस्तृत सामाजिक समस्याओं और उनके प्रभावों को ध्यान में नहीं रखती है, एक भददा मज़ाक होगी। 1995 में 'टीचर्स कालेज रेकार्ड’ में जीन अनयन ने दशकों की अपनी गवेषणा का निष्कर्ष सार रूप में प्रस्तुत करते हुए कहा था:
यह तो स्पष्ट हो चुका है कि पिछले कर्इ दशकों से चलता आ रहा स्कूली सुधार अमेरिका के अंदरूनी शहरों में कुछ खास हासिल नहीं कर पाया है। असफल स्कूली सुधार के हालिया अन्वेषण (तथा बदलाव के नुस्खे़) शैक्षणिक, प्रबंधकीय या वित्तीय पहलुओं को अलग-थलग करते हैं तथा ये अंदरूनी शहरी स्कूलों को ग़रीबी तथा नस्ल आदि सामाजिक सन्दर्भों से भी काट देते हैं... अंदरूनी शहरों में शिक्षा व्यवस्था की असफलता के संरचनागत कारक राजनीतिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक पहलू वाले हैं। इन समस्याओं को हल करने के बाद ही अर्थपूर्ण स्कूल संशोधन योजनाएं लागू की जा सकती हैं। समाज की ग़लतियों का ख़ामियाजा स्कूलों से नहीं भरवाया जाना चाहिए।
पिछले कुछ दशकों में, सामाजिक पतन तथा इसके साथ ही स्कूलों पर बढ़ते हमलों का जवाब शिक्षकों ने विदयार्थियों का और बड़ा मददगार बनकर दिया है। साथ ही वे राजनीतिक गतिविधियों से भी बचते रहे हैं। लेकिन अब परिदृश्य बदल रहा है। आखि़रकार अमेरिका में शिक्षकों, अभिवावकों, विदयार्थियों तथा सामुदायिक सदस्यों का राजनीतिक प्रतिरोध उभार रहा है- हालांकि अभी से यह नहीं तय किया जा सकता कि यह इंगित क्या करता है।
2010 में एक हार्इस्कूल अध्यापिका तथा काकस आफ़ रैंक एण्ड फाइल एज्यूकेशन (कोर) की नेता कैरोन लुर्इस ने इससे पहले लगातार दो बार यह चुनाव जीत चुके अपने रूढि़वादी प्रतियोगी को हराकर शिकागो शिक्षक संघ के अध्यक्ष पद का चुनाव जीता। यह शिकागो (जो कि डंकन का गृहनगर है) के शिक्षकों की अपनी नौकरी, कार्यदशाओं तथा बच्चों के भविष्य के लिए लड़ने की अभिलाषा से ही संभव हुआ। यह संगठन (कोर) शिकागों में डंकन की स्कूलबंदी तथा स्कूलों को राजपत्रित करने वाली ''कायापलटकारी परंपरा के विरूद्ध एक तृणमूल प्रतिरोध के रूप में उभरा।
अप्रैल 2011 में डेट्रायट में विदयार्थियों ने पुरस्कृत तथा सम्मानित कैथरीन फग्यर्ुसन अकादमी की तालाबंदी रुकवाने हेतु विरोध प्रदर्शन किया। यह अकादमी गर्भवती माताओं और कुमारियों के लिया बना एक राजकीय स्कूल है तथा उस जिले में 100 फ़ीसद कालेज दाखि़ले का रेकार्ड रखता है जहाँ एक-तिहार्इ विदयार्थी स्नातक कर ही नहीं पाते। जब शांतिपूर्वक धरने पर बैठे हुए विदयार्थियों तथा उनके समर्थकों को गिरफ़्तार कर लिया गया तो इसे पूरे राष्ट्र की तवज्जह मिली। डेट्रायट पब्लिक स्कूल के आपातकालीन मैनेज़र राबर्ट बाब के आदेश से बड़ी संख्या में स्कूल बंद किए जा रहे हैं। बाब ब्रोड सुपरिन्टेन्डेन्टस अकादमी से 2005 में स्नातक हुआ था। उसे ब्रोड और केलोग्ग फाउण्डेशन से 1.45 लाख डालर का वेतन मिलता है। यह हैरत की बात नहीं है कि बाब की प्रबंधन रणनीति को कुछेक लोग वित्तीय मार्शल ला भी कहते हैं। अप्रैल 2011 में डेट्रायट के सभी 5,466 शिक्षकों को निलंबन के नोटिस थमा दिए गए।
2011 में विस्कानिसन के गवर्नर स्काट वाकर द्वारा उस राज्य में सार्वजनिक क्षेत्र से यूनियनों का खात्मा करने की कोशिश ने वर्ग संघर्ष को और अधिक गहन कर दिया। यह श्रमिक-समुदाय और पूंजी के बीच संघर्ष को एक नया आयाम दे सकता है। वाकर की कार्यपद्धति के विरुद्ध एक आम विरोध के रूप में मर्इ 2011 में बाब पीटरसन को 8,000 सदस्यी मिलवाउकी शिक्षक शिक्षा संघ का अध्यक्ष चुना गया। बाब पांचवीं श्रेणी के अध्यापक हैं और 'रिथिंकिंग स्कूल्स’ के संस्थापक संपादक हैं।
पूरे मर्इ 2011 के दौरान राजकीय स्कूलों के सफ़ाए की प्रक्रिया के विरोध में चले राष्ट्रव्यापी गतिरोधों में अध्यापकों, विधार्थियों तथा अभिभावकों ने शिरकत की। 9 मर्इ 2011 को हज़ारों अध्यापकों, विधार्थियों तथा उनके समर्थकों ने सार्वजनिक शिक्षा के बचाव हेतु हफ़्ते भर चलने वाले 'आपद-काल की शुरूआत की। 9 मर्इ को कैलिफार्निया की राजधानी सैक्रामेन्टों में चल रहे विरोध प्रदर्शनों में शामिल 65 शिक्षकों, विधार्थियों तथा उनके समर्थकों को गिरफ़्तार कर लिया गया। 12 मर्इ को कैलिफार्निया शिक्षक संघ के अèयक्ष समेत 27 और लोगों को गिरफ़्तार किया गया। ये विरोध प्रदर्शन विदयार्थियों और शिक्षकों (जो कि खुद को कर्मचारी समझते हैं) के बीच एक गठजोड़ की ओर इशारा करते हैं जो कि सत्ता के लिए ख़तरे की घण्टी है।
कैलिफार्निया के गवर्नर जैरी बाऊन ने स्कूलों पर बढ़ते हमलों के विरोध में हुए इन प्रदर्शनों का संज्ञान लेते हुए मर्इ 2011 के बजटीय खाके में एक दूसरी ही राह पकड़ी तथा इंगित किया कि वह बेलगाम राजकीय परीक्षण पद्धति पर नियंत्रण लगाएगा ब्राउन ने कहा: ''शिक्षकों को टैस्ट हेतु पढ़ाने पर ज्यादा ध्यान लगाना पड़ता है, इस तरह से उनकी रचनाशीलता तथा विदयार्थियों के साथ उनका मेलजोल दब जाते हैं। राजकीय और संघीय प्रशासक क्लासरूम से बाहर रहकर ही शिक्षण पर अपने प्रभुत्व का केन्द्रीयकरण करते रहते हैं। ब्राउन का कहना है कि वह ''स्कूलों में राजकीय परीक्षण को दिए जाने वाले समय को घटाना चाहता है तथा ''नियंत्रण स्कूल प्रबंधकों, शिक्षकों तथा अभिभावकों को लौटाना चाहता है। ब्राउन स्टेट लांगिटयूडिनल डाटा फार एजयूकेशन (मौजूदा डाटाबेस को समाहित करते हुए विदयार्थी मूल्यांकन डाटा को लंबे समय तक एकत्रित करने की योजना) की फंडिंग स्थगित करने में प्रयासरत है; साथ ही इसी तजऱ् पर बनने वाले शिक्षक डाटाबेस सिस्टम को भी ठंडे बस्ते में डालने की तैयारी में है। उसने कैलिफार्निया के अटार्नी जनरल के तौर पर पहले भी कहा हे कि ''नतीज़ों की निम्नतर गुणवत्ता से ग्रसित स्कूलों की समस्याएं समुदायों की सामाजिक और आर्थिक परिसिथतियों में अवसिथत हैं।
सार्वजनिक स्कूलों के निजीकरण की प्रक्रिया की मुख़ालफ़त करने वाले प्रतिरोध आंदोलनों का रणनीतिक लक्ष्य सिर्फ़ मौजूदा स्कूल व्यवस्था को बचाना भर नहीं होना चाहिए। बल्कि इस आपातकाल का उपयोग शिक्षा के प्रति एक क्रांतिकारी नज़रिये की बुनियाद डालने के लिए किया जाना चाहिए- ऐसी शिक्षा व्यवस्था जो सामुदायिक स्कूलों पर आधारित हो। यह जेम्स और ग्रेस ली बोगस के 'डेट्रायट केंद्र’ के ''वैकलिपक शिक्षा संभव है” में प्रतिपादित लक्ष्यों के अनुसार किया जा सकता है। ग्रेस ली बोग्स के अनुसार हमें अपने बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ सामुदायिक प्रतिभागिता की प्रक्रिया में लगाना चाहिए, उसी तरह जिस तरह नागरिक अधिकार आंदोलन ने उन्हें अलगाववाद-विरोध में लगाया था। रैडिकल शिक्षा सिद्धांतकार बिल आयर्स में एनसीएलबी तथा रेस टू द टाप की मुख़ालफ़त में ''हर इंसान अतिशय महत्वपूर्ण है के सिद्धांत के आधार पर ''स्वतंत्रवादी शिक्षा तथा स्वतंत्र स्कूलों के पुनर्निर्माण के माडल का आहवान किया है। रैडिकल शिक्षाशास्त्री आत्म-समावेशी शिक्षण की प्रक्रिया का महत्व इंगित करते रहे हैं। मार्क्स और पाआलो फ्रेयरे की लाइन में वे स्वतंत्रतामूल अध्यापन का बुनियादी सवाल इस प्रश्न को मानते हैं कि ''शिक्षक को कौन शिक्षित करता है? इस पद्धति में विदयार्थियों को केन्द्रीय पात्र के तौर पर देखा जाता है।
हमें इसे एक रैडिकल संघर्ष के तौर पर लेना चाहिए। इसी तरह के कारपोरेट स्कूली सुधार की पूरी दुनिया में लागू किए जा रहे हैं, ब्राज़ील भी उन्हीं में से एक उदाहरण है।
बहुत कुछ दांव पर लगा है। मर्इ 1949 में मन्थली रिव्यू के पहले अंक में प्रकाशित अपने लेख 'समाजवाद क्यों’ में अल्बर्ट आइंस्टीन ने लिखा था:
“...व्यकित को पंगु बना डालना मेरे तईं पूंजीवाद का सबसे बदनुमा पहलू है। हमारी पूरी शिक्षा व्यवस्था इसी बुरार्इ से निकली है। विदयार्थियों में अतिशय प्रतिस्पर्धा की भावना भर दी जाती है, उन्हें कैरियर के तौर पर लालसा मूलक सफलता की पूजा करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। मेरे ख़्याल में, एक समाजवादी अर्थव्यवस्था तथा सामाजिक लक्ष्यों द्वारा अनुप्राणित शिक्षा व्यवस्था की स्थापना के द्वारा ही इन बुराइयों को खत्म किया जा सकता है। ऐसी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों का नियोजन समाज द्वारा किया जाता है तथा योजनाबद्ध तरीके से उनका इस्तेमाल किया जाता है। एक नियोजित अर्थव्यवस्था उत्पादन को समाज की जरूरतों के हिसाब से व्यवसिथत करेगी, कार्य का सभी सक्षम लोगों के बीच बंटवारा करेगी तथा सभी मर्दों, औरतों तथा बच्चों की जीविका की गारण्टी दे सकेगी। तब शिक्षा- हमारे वर्तमान समाज में सत्ता और सफलता के गुणगान के विपरीत-व्यकित की सहज योग्यताओं के विकसन के साथ-साथ उसमें अपने साथी मानवों के प्रति उत्तरदायिता की भावना का भी विकास करेगी।...”
आइंस्टीन के लिए शिक्षा तथा समाजवाद अंतरंग तथा द्वंदात्मक रूप से जुड़े हुए थे। सामाजिक परिवर्तन तथा नियोजन संबंधी यह नज़रिया मानता है कि शिक्षा हमारी जीवन-पद्धति का हिस्सा होनी चाहिए, उसे सिर्फ शिक्षण तक महदूद न कर दिया जाना चाहिए।
मेरा मानना है कि हमें एक लंबे संघर्ष के लिए खुद को तैयार करना चाहिए जो अन्य चीज़ों के साथ-साथ समुदाय-सम्बद्ध शिक्षा की स्थापना करे तथा जो लोगों की असल तथा बुनियादी जरूरतों से पैदा हो। इस तरह की 'समुदाय-केन्द्रित तथा व्यकित आधरित शिक्षा- जिसकी शुरूआत तो स्कूल से हो किन्तु उसका विस्तार बृहत्तर समाज तक किया गया हो- शिक्षा के प्रति गहनतम सम्मान-भाव के द्वारा ही पार्इ जा सकती है। ऐसा सम्मान-भाव जो कि एक जीवन-पद्धति हो और स्थार्इ समता पर आधारित समाज के निर्माण की अपरित्याज्य पूर्व शर्त हो।
समाप्त.
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