अंकुर जायसवाल |
-अंकुर जायसवाल
"...पर धीरे-धीरे बम्बई शहर के बढ़ने से मानखुर्द के उन जंगलों मतलब जमीनों की जरुरत और कीमत बढ़ने लगी, तो भूमि माफियाओं की नजर यहाँ पड़ना लाजमी था तो अचानक से ये लोग गैरकानूनी हो गये और जहाँ घर बना के रहते थे वहां से 2005 में खदेड़ दिए गये और सामने के फुटपाथ पे आ के रहने लगे और फिर वहां से भी उनको स्वाभाविक रूप से हटा दिया गया क्यूंकि एक साहब वहीँ पीछे ही शादी का हाल बनवा रहे है..."
साभार - द हिन्दू |
राम चन्द्र जी से परिचय बहुत पुराना रहा है..मेरे घर से कोई सत्तर किलोमीटर दूर एक मस्जिद तोड़ दी जाती है क्यूँ की लोगों का कहना है की वहां वो पैदा हुए थे शेष सारा आस्था, श्रद्धा, विश्वास की बात है खैर अभी मैं बम्बई में रहता हूँ और जहाँ पढाई करता हूँ वहां से कोई दो किलोमीटर दूर आगरवाड़ी (मानखुर्द) नाम की जगह पे एक और राम चन्द्र जी हैं जो अपने एक सौ तीस सदस्यीय आदिवासी परिवारों के साथ रहते थे|
वे बताते हैं कि वो लोग आंध्रप्रदेश और कर्नाटक की सीमाओं के पास रहने वाले हैं और बूरिया जंगम और मसान जोगी नाम की आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. 1984 में उनके चाचा-पापा कोई यहाँ मजदूरी करने आये थे और वर्ली के मोरारजी मिल में काम करते थे फिर एक ठेकेदार ने इन्हें चिल्ड्रेन ऐड सोसाइटी नाम की संस्था जो की मानखुर्द में स्थित है की बाउंड्री बनाने के लिए बुलाया और फिर ठेकेदार और सोसाइटी के झगड़े में इनको पूरा पैसा भी नही मिला तो ये लोग वहीँ पास के ही जगह को साफ़-सूफ़ कर के रहने लगे. वे बताते है पहले यह पूरा जगह वीरान था और तमाम हत्याएं और अपराध हुआ करते थे.
परधीरे-धीरे बम्बई शहर के बढ़ने से मानखुर्द के उन जंगलों मतलब जमीनों की जरुरत और कीमत बढ़ने लगी, तो भूमि माफियाओं की नजर यहाँ पड़ना लाजमी था तो अचानक से ये लोग गैरकानूनी हो गये और जहाँ घर बना के रहते थे वहां से 2005 में खदेड़ दिए गये और सामने के फुटपाथ पे आ के रहने लगे और फिर वहां से भी उनको स्वाभाविक रूप से हटा दिया गया क्यूंकि एक साहब वहीँ पीछे ही शादी का हाल बनवा रहे है.
अबऐसे में उस शादी के हाल की शोभा में ये लोग किरकिरी बनने लगे तो बृहनमुंबई महानगर पालिका (BMC ) ने महात्मा गांधी के नाम वाली किसी योजना के तहत उस फुटपाथ पे एक उद्यान बना के उसे बाड़ों से घेर दिया | फिर ये लोग सड़क के इस पार आ गये और फिर 27अगस्त 2013को लोक निर्माण विभाग (PWD) ने भी उन्हें बिना किसी लिखित नोटिस के वहां से मार-पीट कर सामान फेंक कर भगा दिया तो ये मजदूर दुनिया भर का घर बनाने के बाद सड़क पे आ गये.
अबऐसे में उस शादी के हाल की शोभा में ये लोग किरकिरी बनने लगे तो बृहनमुंबई महानगर पालिका (BMC ) ने महात्मा गांधी के नाम वाली किसी योजना के तहत उस फुटपाथ पे एक उद्यान बना के उसे बाड़ों से घेर दिया | फिर ये लोग सड़क के इस पार आ गये और फिर 27अगस्त 2013को लोक निर्माण विभाग (PWD) ने भी उन्हें बिना किसी लिखित नोटिस के वहां से मार-पीट कर सामान फेंक कर भगा दिया तो ये मजदूर दुनिया भर का घर बनाने के बाद सड़क पे आ गये.
बीते28 नवम्बर को BMC ने करीब बारह बजे मुंबई पुलिस के साथ आ कर उनके सामानों को जबरदस्ती ट्रक में फेंकने लगे और थोड़ी सी मोहलत भी नही दी और उनके बने बनाये खाने तक को फेंक दिया, महिलाओं बच्चों के साथ बदसुलूकी की और जब टाटा सामाजिक संस्थान के बारह छात्र-छात्राओं ने मजदूर महिलाओं के साथ इंसानियत का हवाला देते हुए इसका विरोध किया तो उनको भी मारा-पीटा गया और गिरफ्तार कर के करीब दस घंटों तक ट्राम्बे पुलिस स्टेशन में रखा गया. संस्थान के डायरेक्टर के आने पर सारे लोगों को छोड़ा गया और अब ये सारे 130 लोग संस्थान में ही पिछले दो दिनों से रह रहे हैं. बाद में यह भी पता चला कि इनके बचे हुए सामानों को भी जला दिया गया जिसमे राशन कार्ड थे ताकि उनके यहाँ पे होने का नामो-निशान तक मिट जाये.
ऐसीघटनाएँ रोज की हैं और ये बताती हैं कि हमारा पूरा तंत्र पुलिस से ले के तमाम संस्थाएं किसके हित के लिए काम करती हैं और देश का कानून किसके हितों के लिए प्रयोग में लाया जाता है, टीवी मीडिया के लिए यह कैम्पा-कोला जैसी बड़ी खबर नहीं है क्यूंकि ये तो रोजमर्रा की बाते हैं.
अबसवाल ये उठता है कि आगे क्या ? क्या यह सिर्फ इन 130लोगों का मामला है या फिर उन ढेर सारे मजदूरों का ?जिस तरह से पिछले सालों से जैसे जैसे लोग सड़कों पे धकेले गये हैं और वहां से पता नहीं कहाँ? इनके लिए उतने ही एनजीओ भी पैदा हुए हैं और फूले-फले भी हैं पर इन मजदूरों को हक़ नहीं मिलता है और कुछ तो हो रहा है के नाम पे बुनियादी मुद्दा पूरे परिदृश्य से गायब हो जाता है, जिन घरों-इमारतों को ये बनाते हैं वो क़ानूनी होते हैं और ये खुद बेघर और गैर-क़ानूनी करार दे दिए जाते हैं.
एकअनुमान के मुताबिक दुनिया भर में आठ में से एक आदमी तथाकथित स्लम मतलब झुग्गी- झोपड़ियों में रहता है, और हम अपने आस-पास फैली असीम असमानता के प्रति उदासीन हो जाते हैं और आज जरुरत है की हम अपने आस-पास की गरीबी-बदहाली को बुनियादी तौर पे देखें कि ये हमारा सामजिक-आर्थिक ढांचा कैसा है जो सैकड़ों मील दूर से लोगों को काम करने के लिए बड़े-बड़े शहरों में आने के लिए मजबूर करता है और फिर उनकी ऐसी हालत हो जाती है. एक तरफ दुनिया का सबसे अमीर आदमी इसी शहर में अट्ठाईस मंजिला इमारत में अपने छोटे से परिवार के साथ रहता है और दूसरी तरफ अगर उसी इमारत की मंजिल से देखा जाये तो दूर तक फैली झुग्गी-झोपड़ियाँ दिखेंगी जिनका जीवन स्तर दुनिया भर में सबसे निम्न है और उसी के बीच ऐसे सैकड़ों लोग महिलाएं बच्चे जो सड़कों पे सोते हैं और ऐसे ही रोज उन्हें इधर से उधर भगाया जाता है.
हमऐसे देश में रहते हैं जहाँ रामलला अपना केश खुद लड़ते हैं और देश की राजनीति तय होती है और ना जाने कितने रामचन्द्र रोज दर-दर की ठोकरें खाते हैं.