कृष्णा पोफले |
"..पहले दिन सीरी फोर्ट चिल्ड्रेन पार्क के भीतर मौजूद भारतीय पुरातत्व के विशाल संग्रह से कुछ महत्वपूर्ण मूर्तियों की प्रतिकृति के एक संग्रहालय से इस सफ़र की शुरुआत हुई. यहाँ भू-धूसरित हो चुके बटेश्वर मंदिर के पुनर्निर्माण की कहानी पर बनी एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'रिबर्थ ऑफ़ अ फोर्गोटन टेम्पल कॉम्प्लेक्स'की स्क्रीनिंग का एक छोटा सा आयोजन किया गया था. (यह फिल्म आप यहाँ praxis में देख भी सकते हैं.) इसके बाद इस म्यूजियम और उससे जुडी मूर्तियों के इतिहास की यात्रा हमने के.के. मुहम्मद की जुबानी की..."
इतिहास और धरोहरोंका पुलिंदा है भारत और खास कर दिल्ली शहर।दिल्ली आठवीं शताब्दी से किसी न किसी राजघराने की राजधानी रही है और हर घराने ने दिल्ली में अपने राजपाट के लिए अलग-अलग इमारतेंबनायी जो आज दिल्ली की विरासत का एक हिस्सा है।दिल्ली के पहले राजघराने तोमर से लेकर अंग्रेज़ो तक, हर किसी ने दिल्ली की वास्तुकला पर अपनी छाप छोड़ी है।
पिछलेदिनों दो दिन इतिहास की इन परतों के भीतर झांकने का मौका मिला, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के जानेमाने पुरातत्वविद्के.के. मुहम्मद और इतिहास को लेकर संवेदित कुछ और नए पुराने लोगों के साथ जिनमें युवाओं की भी बढ़ चढ़ कर भागीदारी थी.के. के. मुहम्मद पुरातत्व विभाग से दो साल पहले दिल्ली सर्किल हेड के पद सेरिटायर हुए हैं।उन्हेंनालंदा, फतेहपुर सिक्री , खजुराहो और मध्य प्रदेश के बटेश्वरमंदिरोंको दोबारा से पुनर्जीवित करने के लिए जाना जाता है।
पहलेदिन सीरी फोर्ट चिल्ड्रेन पार्क के भीतर मौजूद भारतीय पुरातत्व के विशाल संग्रह से कुछ महत्वपूर्ण मूर्तियों की प्रतिकृति के एक संग्रहालय से इस सफ़र की शुरुआत हुई. यहाँ भू-धूसरित हो चुके बटेश्वर मंदिर के पुनर्निर्माण की कहानी पर बनी एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'रिबर्थ ऑफ़ अ फोर्गोटन टेम्पल कॉम्प्लेक्स'की स्क्रीनिंग का एक छोटा सा आयोजन किया गया था. (यह फिल्म आप यहाँ praxis में देख भी सकते हैं.) इसके बाद इस म्यूजियम और उससे जुडी मूर्तियों के इतिहास की यात्रा हमने के.के. मुहम्मद की जुबानी की.
मुहम्मदइस म्यूजियम को एक मिनी एशिया म्यूजियम के रूप में बनाना चाहते थे जिसमें भारत की 150 मूर्तियों की प्रतिकृतियाँऔर बाकी एशिया की 100 मूर्तियों की प्रतिकृतियाँरखने का विचार था। लेकिन सरकारी लाल फीताशाही के कारण मुहम्मद का ये सपना पूरा नहीं हो सका और वे इसमें कुछ ही मूर्तियों कि प्रतिकृतियांरख पाये।
म्यूजियमके बाद सीरी किले की तरफ यह दल बढ़ा जहाँ मुहम्मद ने सीरी किले के इतिहास की जानकारी दी.
म्यूजियमके बाद सीरी किले की तरफ यह दल बढ़ा जहाँ मुहम्मद ने सीरी किले के इतिहास की जानकारी दी.
अगलेदिन इसी कड़ी में दिल्ली के पहले किले को घूमने की योजना थी जो आज तक वक्त के थपेड़ो से अपनी बाहरी दीवारों को बचा पाया है और इसके आसपास के जंगल ने इसे बचाये रखने में मदद कि है।ये है'किला लाल कोट' जिसकी नीव रखीथीतोमरों ने। ऐतिहासिक कागजातों के अनुसार इस किले को पूरा किया था मुग़ल पूर्व भारत के सबसे चर्चित राजापृथ्वीराज चौहान ने। पृथ्वीराज चौहान के दूसरे नाम राय पिथौरासे इस किले को किला-ए-राय पिथौरा नाम से भी जाना जाता है। जो आज भी मालवीय नगर मेट्रो स्टेशन से बाहर निकलकर देखा जा सकता है।
ये किला आज दक्षिणी दिल्ली स्थित मेहरौली के संजय वन में है जो काफी बड़ा जंगल है, जिसका दिल्ली जैसे एक बड़े महानगर में बचके रहना एक बड़े ताज्जुब की बात है।
दिल्लीमें इस इतिहास को संजोकर रखने में भारतीय पुरातत्व विभाग के अलावा, युवाओं के कुछ ऐसे ग्रुपभी है जो लोगों को इन धरोहरों की पहचान करातेहैं और उन्हें वहा ले जाकर उसके इतिहास से भी उसका परिचय करवाते हैं। पिछले सप्ताह मुझे ऐसे ही दो युवकोंसे मिलने मौका मिला जो अपने इतिहास के प्रति गंभीरहै और इसे संजो कर रखने में अपनी छोटी सी भूमिका निभा रहे हैं।ये हैं विक्रमजीत सिंह रूपराय और आसिफ खान देहलवी।
विक्रमजीतदिल्ली हेरिटेज फोटोग्राफी क्लबचलाते है जिसका उद्देश दिल्ली की धरोहरों की पहचान करवाना और साथ ही साथ फोटोग्राफी के शौकीनों कोइन धरोहरों की फ़ोटोग्राफीकरने का एक सुनहरा मौका भी देना है। आसिफ, 'दिल्ली कारवां'नाम से एक ग्रुप चलाते हैं जो हर सप्ताहांत में दिल्ली के धरोहरों कि पैदल सैर कराता है और इन धरोहरो कि जानकारी देता है।
तो इससुबह की शुरुवात हुई क़ुतुब मीनार के पास स्थित योगमाया मंदिर से। ये मंदिर दिल्ली का सबसे पुराना मंदिर माना जाता है और मान्यता है कि पांडवोंने इसकी स्थापना अज्ञातवास के समय की थी।हम इस मंदिर के दर्शन कर के निकले जंगल के अंदर पहुंचे।
जंगलके थोडाअंदर जाते ही हमारी मुलाक़ात अंगद ताल से हुई जो दिल्ली का पहला कृत्रिम तालाब है जिसे तोमर राजघराने ने किले के साथ-साथ बनवाया था ताकि किले में रहने वाले लोगों की पीने के पानी कि आपूर्ति हो सके। इसे के. के. मुहम्मद ने दिल्ली सर्किल में रहते हुए खुदाई करके खोज निकाला था।जब खुदाई हुई थी ये एक काफी बड़ा तालाब था लेकिन ६ साल में यहाँ एक घना जंगल उग आया है।ये पूरा जंगल होना तो चाहिए पुरातत्व विभाग के पास लेकिन डी. डी. ए. के कुछ लोगों ने ये होने नहीं दिया जबकि दिल्ली के राज्यपाल इसके लिए तैयार हो गए थे, मुहम्मद ने बताया। आज केवल किले कि दीवार पुरातत्व विभाग द्वारा सरंक्षित है।
अंगदताल से आगे बढ़कर जंगल से बढ़ते हुए हम धीरे-धीरे किले की दीवार की ओर बढ़ने लगे।किले की दीवार के पास विक्रमजीत ने हमें किले के कमरों के अवशेष दिखाए। कमरे देखकर हमकिले की मुख्य दीवार पर पहुचे।मुख्य दीवार पर भी हमें विक्रम ने कुछ कहानिया बताई। मुख्य दीवार दो बाहरी दीवारों के अंदर है। यहीं पर किले मुख्य द्वार 'फ़तेह बुर्ज'था। किले के मुख्य द्वार के पास हाजी अली रोज़ और बी की दो मजार है। हाजी अली रोज के बारे जानकारी मिलती है कि वो दिल्ली कि सरजमीं पर कदम रखने वाले पहले सूफी काफिले के साथ दिल्ली आये थे। उन्ही के साथएक और मजार है। ये मजार किसकी है इसके बारे में ठीक जानकारी नहीं मिलती पर कहा जाता है कि ये मजार पृथ्वीराज चौहान की बेटी की है जो हाजी अली रोज़ को गुरु मानती थी और सूफी परंपरा में शिष्य को गुरु के बाजू में दफ़नाने कि परंपरा है। जिन्होंने ये मज़ारे कुछ साल पहले खोज के निकली थी वो सय्यद कासिम भी हमारे साथ थे। वो मजारों का नाम लेते हुए रोज़ और बी का उच्चारण एक साथ कर रहे थे, इससे वहां का गार्डथोड़ासा नाराज़ हो गया और उसने थोड़े से गुस्से से ही कहा कि आपको नाम ऐसे नहीं लेना चाहिए। गार्ड के मुताबिक चौहान की दोनों बेटियों ने इस्लाम कबूलकर लिया था और इससे चौहान काफी नाराज़ हो गया था और उसने अपने दोनों बेटियों को मारने का आदेश दिया।
इसपूरे इलाके से क़ुतुब मीनार का भी एक बेहतरीन नज़ारा दिखता है.
वहांसे आगे निकल कर हम जाना चाहते थे आशिक अल्लाह की मजार पर जो थोड़ी दूर बनी है। लेकिन इस जंगल में आज भी एक संत रहते है जो इन मज़ारों का रखरखाव भी करते हैं, वो रास्ते में ध्यानलगाकर बैठे हुए थे। हम उन्हें परेशाननहीं करना चाहते थे इसलिए हम आशिक अल्लाह की मजार पर नहीं गए। आशिक़ अल्लाह के बारे में भी कहा जाता है कि वो एक सूफी संत थे लेकिन उनके बारे में भी कोई ठोस जानकारी नहीं मिलती।
यहाँसे हम जंगल से बाहर निकले और गए आदम खान के मकबरे में गए जो मेहरौली गाव में स्थित है। आदम खान अकबर की दाई माँ महामंगा का बेटा था और अकबर की एक सैन्य टुकड़ी का सरदार।अकबर के एक दूसरी दाई माँ जीजी अंगा का पति, शम्सुद्दीन अत्गा खान, अकबर का वज़ीर हुआ करता था।एक बार उसे शक हुआ कि आदम खान कुछ पैसे इधर उधर कर रहा है और अपनी टुकड़ी का हिसाब ठीक सेनहीं दे रहा है तो उसने आदम खान से जवाब तलब किया लेकिन आदम खान ने जवाब तो दिया नहीं पर उसका खून कर दिया। इस कारण अकबर आदम खान से बहुत नाराज़ हुआ और उसने उसे सजा-ए-मौत दी। उसे आगरा के किले कि दिवार से निचे फेंका गया लेकिन क्योंकिआदम खान एक हट्टा कट्टा इंसान था वो मरा नहीं। इसलिए उसे दोबारा फेंका गया। इस बार उसकी मौत हुई। लेकिन अकबर को उसकी मौत की पक्के से इतलाह करनी थी इसलिए उसने उसे दोबारा फेकने का हुक्म दिया। उसके मृतदेह को फिर फेका गया। इस के बाद उसके मृतदेह को दिल्ली भेजा गया और मेहरौली में उसे दफनाकर यहाँ उसका मकबरा बनाया गया। इस मकबरे का इस्तमाल, ब्रिटिश काल से पोस्ट ऑफिस के रूप में हो रहा था और कुछ साल पहले इस वास्तु को पुरातत्व विभाग ने अपने कब्जे में लेकर इसे सरंक्षित घोषित किया।
यहाँसे हम गए बाबा बंदा बहादर के शहीदी स्थान पर जहाँ आज एक गुरुद्वारा बना हुआ है। बाबा बंदा बहादर को गुरु गोविन्द सिंह जी ने प्रशिक्षण देकर एक वन मैन आर्मी के तौर पर तैयार किया। और बाबा बंदा बहादर अकेले औरंगजेब से लड़ने दिल्ली कि तरफ निकल पड़े। उन्होंने मुग़ल सेना का काफी नुकसान किया जब तक उन्हें पकड़ा गया और मेहरौली में शहीद किया गया।
इस तरह ये मेरा दिल्ली के इतिहास का पहला वॉक ख़त्म हुआ और ये एक बहुत अच्छाऔर अलग अनुभव था।
'कृष्णा'स्वतंत्र पत्रकार हैं.
आईआईएमसी से अंग्रेजी पत्रकारिता की पढ़ाई.
मुंबई में Financial Express और Business Standerd में नौकरी.
आईआईएमसी से अंग्रेजी पत्रकारिता की पढ़ाई.
मुंबई में Financial Express और Business Standerd में नौकरी.
इनसे krrishjune@gmail.comपर संपर्क किया जा सकता है.