"...1990 के बाद पैदा हुए इन कुकुरमुत्ता संतों की तुलना में इनसे पाँच सौ साल पहले हुए धार्मिक आंदोलन कई बेहतर और विचारवान थे। मसलन आशाराम ने दिल्ली में हुए बलात्कार के बारे में राय दी कि पीड़िता ने अगर को अपराधियों को भाई पुकारा होता और उन्हें भगवान का वास्ता दिया होता तो शायद वो बलात्कार से बच जाती।..."
बड़ा अजीब संयोग है। नव-उदरवाद उस समय देश मे आता है जब देश सांप्रदायिकता की आग में झुलस रहा था। राम जन्म भूमि ने जो जमीन तैयार की उस पर तमाम तरीके के बाबा कुकुरमुत्तों की तरह उग आए। आशाराम, सुधांशु महाराज,मुरारी बापू,रामदेव,जैसे बाबा अचानक राष्ट्रीय फ़लक पर पसरते चले गए। निर्मल बाबा का उरुज तो अभी कल-परसो की ही बात है। आप इसे महज एक संयोग मान सकते हैं पर आप इस बात पर तो शायद ही असहमत होंगे की इन तमाम बाबाओं ने सत्ता की गला-घोंटू नीतियो के खिलाफ उपजने वाले गुस्से और राजनैतिक चेतना को भोंथरा कर दिया।
भारतके इतिहास मे धार्मिक क्षत्रपों का राजनैतिक दखल कोई नयी बात नहीं। ये लोकतन्त्र से पहले और बाद मुसलसल चलता रहा है। चंद्रा स्वामी को शायद ही आप भूले होंगे। पर व्यवसाय के रूप मे कथा वाचन जिस तेजी से पिछले बीस साल मे उभरा है उसका सानी पूरे इतिहास मे नहीं मिलता। देश-विदेश मे हजारों एकड़ जमीन,सैकड़ों आश्रम,करोड़ो की वार्षिक आमदनी, लाखों-करोड़ों अंधे भक्त,राजनैतिक गलियारों मे मजबूत हस्तक्षेप,ये सब कुछ कॉरपोरेट घरानों का धार्मिक संस्करण ही तो है।
रामदेव - $202,503,000, 3 दर्जन कंपनी,400 आश्रम,एक टीवी चैनलसत्या साईं-98 किग्रा सोना, 307 किग्रा चाँदी,38 करोड़ के अन्य समान, 11.59 करोड़ कैश ,राम रहीम – 700 एकड़ जमीन सिरसा मे, 250 आश्रम,हॉस्पिटल,कई शिक्षण संस्थानआनंदमायी माता – $273,257,000कुल संपत्ति,एक टीवी चैनल आशाराम – 350 आश्रम, 17000 बाल संस्कार गृह, 350 करोड़ सालाना आमदनीरवि शंकर - $184,094,000कुल संपत्ति,देश-विदेश मे आश्रम
आनंदमायी माता – $273,257,000कुल संपत्ति,एक टीवी चैनल
रवि शंकर - $184,094,000कुल संपत्ति,देश-विदेश मे आश्रम
आशारामपर तांत्रिक क्रियाओं,हत्या,जालसाजी,बलात्कार,जमीन हड़पने,जैसे गंभीर अपराधो के 23 मामले न्यायालय मे लंबित हैं। नवासरी मे जमीन हड़पने का मामला उन पर वर्ष 2000 मे लगा था जो की आज भी कोर्ट मे लंबित है। उसे गिरफ्तार करने मे जोधपुर पुलिस को कई बार मिर्गी के दौरे आए। इसी तरह डेरा सौदा के गुरमीत राम रहीम पर हत्या,बलात्कार,जैसे कई मामले लंबित हैं। तहलका ने सितंबर 2007 मे खुलासा किया था की गुरमीत राम रहीम के पास उनकी हथियारबंद सेना है। बाबा को हरियाणा-पंजाब उच्च न्यायालय ने जमानत दे रक्खी है। वो कल सुबह भी अपने भक्तो को परमात्मा से मिलन के तरीको पर प्रवचन देगा। संत कृपालु जी महाराज,कांचीकामकोटी के शंकराचार्य,सत्य साईं,शनि महाराज आदि पर भी यौन शोषण के कई आरोप लग चुके हैं। सुधांशु महाराज सहित अनेक “संत” कुछ साल एक स्ट्रिंग ऑपरेशन मे पहले काले धन पर सफेदी पोतते पाये गए थे।
आज तक इन मे से एक भी सलाखों के पीछे नहीं गया। किसी को सजा नहीं हुई। इनका खुला घूमना आपको तब और ज्यादा कचोटता है, जब आपका एक साथी जो संस्कृतिकर्मी था बिना वजह,बिना किसी अपराध पुलिस हिरासत मे नरक से बदतर हालातों से जूझ रहा हो। नरेंद्र दाभोलकर को सरेराह गोलियो से भूना जा रहा हो। सवाल सिर्फ हेम या नरेंद्र का नहीं है उनके जैसे कितने ही राजनैतिक,सांस्कृतिक कार्यकर्ता जिनके नाम हमे मालूम भी नहीं हैं,दमन के पाटो के बीच पीस रहे हैं।
इतिहासके दो दौर धार्मिक और समाज सुधार की दृष्टि से महत्व रखते हैं। पहला 14वीं- 15वीं शताब्दी का और दूसरा 19वीं-20वीं शताब्दी का। आज से पाँच सौ साल पहले जिस दौर मे कबीर,बुल्लेशाह,नानक,पिम्पा,रैदास हुए उस समय विज्ञान इतना ही विकसित था की धर्म की कोई वैज्ञानिक व्याख्या संभव हो पाती। फिर भी वह आंदोलन तत्कालीन समाज के हिसाब से बहुत प्रगतिशील और क्रांतिकारी था। जाति और धर्म पर जो मारक प्रहार उस समय हुए उसने ब्राह्मणवाद को स्पष्ट चुनौती दी। दूसरा दौर ईश्वर चंद विद्यासागर,राम मोहन राय,आदि का दौर था। इसमे आधुनिक शिक्षा और धर्म की सहिष्णु व्याख्या के रास्ते खोले। महिलाओं को कई तरह के शोषण से मुक्त करने के लिए मजबूत हस्तक्षेप किए।
1990के बाद पैदा हुए इन कुकुरमुत्ता संतों की तुलना में इनसे पाँच सौ साल पहले हुए धार्मिक आंदोलन कई बेहतर और विचारवान थे। मसलन आशाराम ने दिल्ली में हुए बलात्कार के बारे में राय दी कि पीड़िता ने अगर को अपराधियों को भाई पुकारा होता और उन्हें भगवान का वास्ता दिया होता तो शायद वो बलात्कार से बच जाती। यही आशाराम बच्चों में एक पुस्तक का मुफ्त वितरण करते हैं “तू गुलाब बन कर महक”। इस पुस्तक को मैंने बचपन में पढ़ा था। इसमें बताया गया है कि पता नहीं कितने मण भोजन से एक बूंद रक्त बनता और कितनी ही बूंदे रक्त की मिल कर एक बूंद वीर्य बनती हैं। शेर जीवन मे सिर्फ एक बार संभोग करता है (हालांकि बापू की दो संतान हैं)। पृथ्वीराज चौहान गौरी से इस लिए हार गया क्योकि वो युद्ध मे जाने से पहले संभोग कर के गया था। और भी इस प्रकार की अनेक अनर्गल बाते थी। इस प्रकार की अवैज्ञानिक बातों से बाल मन पर क्या प्रभाव पड़ा होगा आप अंदाजा सकते हैं? ये लोग समाज को क्या दे रहे हैं। आप निर्मल बाबा का ही उदाहरण ले लीजिये। आदमी को अकर्मठ और भाग्यवादी बना कर उसे और गर्त में धकेला जा रहा है। क्या ये लोग जनता को शुद्ध अफीम की खुराक नहीं दे रहे?
बचपन में जब मैं स्कूल के लिए तैयार हो रहा होता तो मेरे दादा जी अलसुबह सोनी टीवी पर आशाराम का प्रवचन सुन रहे होते थे। ये स्मृति मेरे दिमाग में मजबूती से अंकित है। इसके बाद आशाराम कि लोकप्रियता तेजी से बढ़ी। आशाराम का मामला जिस तेजी से मीडिया ने उठाया वो इन बाबाओं को खड़ा करने में उसकी भूमिका को पार्श्व नहीं धकेल सकता। मीडिया का दोहरा चरित्र दिन में ज्यादा नहीं तो एक दर्जन से ज्यादा मौको पर नंगा होता है। जो IBN7 निर्मल बाबा के खिलाफ अभियान छेड़े हुए था उस पर आज एक घंटे का निर्मल दरबार प्रसारित हो रहा है। हर चैनल चाहे वो समाचार हो या मनोरंजन (वैसे सामग्री के आधार पर भेद करना जटिल काम है।) अलसुबह किसी न किसी बाबा को पकड़ कर बैठा देता है। इसके अलाव विशेष धार्मिक पर्व के मौके पर आज तक,ज़ी न्यूज़,P7 आदि कई चैनल स्टुडियो मे पूजा आयोजित करते हैं।
निर्मलबाबा को जो लोकप्रियता मिली है उसके पीछे खबरिया चैनलों का हाथ होने से कौन इनकार कर सकता है। हिन्दी मे आज 18 धार्मिक चैनल ,अँग्रेजी मे 8,तमिल मे 7 तेलगु मे 2,प्रसारित हो रहे हैं। हमारा समाज विकास कैसे सोपान पर चढ़ रहा है,जहां अंधविश्वास टूटने की जगह हर दिन मजबूत हो रहे हैं। अंधविश्वासों और उनके प्रसारण के खिलाफ एक दर्जन से ज्यादा कानून और आचार संहिता इस देश मे उपलब्ध है। लेकिन नज़र सुरक्षा कवच,महा लक्ष्मी यंत्र,एकमुखी रुद्राक्ष,हनुमान,कुबेर यंत्र,जादुई लाल किताब जैसे ऊल-जलूल उत्पादो का प्रचार धड़ल्ले से समाचार चैनलों पर दिखाया जा रहा है।
आशारामप्रकरण के बाद स्व-घोषित प्रधानमंत्री,उर्फ विकास-पुरुष भाई नरेंद्र मोदी ने कहा की आशाराम यदि दोषी पाये जाते हैं तो सजा होनी चाहिए। साथ ही ये भी कहा की भाजपा नेताओं को बापू के समर्थन मे नहीं उतरना चाहिए। वही भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह आशाराम का शुरुवाती दौर में बचाव करते नज़र आए थे। मोदी के बयान के पीछे 'ऐपको'का फील्डवर्क दिखाई देता है जिसने मोदी को बताया होगा की अभी बलात्कार जैसे मामलों मे किसी का साथ देना घाटे का सौदा हो सकता है। गौरतलब है की ये वही भाजपा है जिसने कांचीकमकोटी के शंकराचार्य पर लगे यौन शोषण के आरोपो को हिन्दू धर्म पर हमला बताते हुए जिला और ब्लॉक स्तर पर जनसभा और रैली की थी।
इसकेअलावा आशाराम के धार्मिक साम्राज्य का केंद्र अहमदाबाद है। नवसारी का भूमि अधिग्रहण मामला पिछले 13 साल से लंबित है। उनके राज्य गुजरात के साबरमती आश्रम में दो बच्चो की लाश मिली थी। इस मामले में अंदेशा जताया गया था की आशाराम के तांत्रिक प्रयोगो के चलते बच्चों को जान गवानी पड़ी थी । गुजरात में धार्मिक नेता राजनीत में पर्याप्त दाखल रखते हैं। नरेंद्र भाई मोदी कई बार आशाराम के आश्रम पर आयोजित कार्यक्रमों में शिरकत करते पाये गए हैं। इतना ही नही उनकी सरकार ने आशाराम को कई जगह आश्रम बनाने के लिए सस्ती जमीन आवंटित की है। अब विकास पुरुष का ये राजनैतिक सर्कस समझ से परे है।
देश में अजीब राजनैतिक घटघोप है। भाजपा का आशाराम या अन्य किसी संत का समर्थन करना समझ में आता है। पर खुद को अंबेडकर,फुले और कबीर की विरासत का झड़बदार बताने वाले कई दलित चिंतक उस समय आश्चर्यचकित कर देते है जब वो निर्मल बाबा जैसे पाखंडी का समर्थन सिर्फ इस लिए कर देते है क्योंकि निर्मल बाबा पिछड़े वर्ग से आते आते हैं। ये बौद्धिक दिवलियेपन कि पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है। आज के राजनैतिक संदर्भों में यदि आप धर्म और इसके सामंतों के खिलाफ खड़ा होने में यदि हिचकिचाहट महसूस कर रहे हैं तो आपकी राजनीति में बुनियादी रूप कोई गड़बड़ी घुस गई है।
विनय स्वतंत्र पत्रकार हैं.
इनसे vinaysultan88@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.