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कॉरपोरेट लूट और सरकारी गठजोड़ ही तबाही का कारण है:आनंद स्वरूप वर्मा

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-प्रैक्सिस प्रतिनिधि

तीसरे हेम चन्द्र पांडे स्मृति व्याख्यान का आयोजन

"...श्री वर्मा ने कहा कि कॉरपोरेटों की इस घुसपैठ और प्राकृतिक संसाधनों की लूट के खिलाफ संभावित आंदोलनों के दमन के लिए माहौल बनाने के लिए इसके ठीक बाद देशभर में माओवाद का हल्ला खड़ा किया गया। अचानक से देश के 18 राज्यों को माओवाद प्रभावित घोषित कर दिया गया। इसी कॉरपोरेट लूट के खिलाफ प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न राज्यों के स्थानीय जन को लगातार निशाना बनाया गया और प्राकृतिक संसाधनों की भयंकर लूटपाट मची। उन्होंने कहा कि वर्तमान उत्तराखंड की आपदा भी इसी कॉरपोरेटी लूट का परिणाम रही है। जिसमें उत्तराखंड की नदियों, पहाड़ों को जलविद्युत परियोजनाओं, खनन और संवेदनशील हिमालय में चैड़ी सड़कों के निर्माण आदि के लिए गैरजिम्मेदार कॉरपोरेटों को सौंप दिया गया है।..."

"गंभीरता पूर्वक यह सोचने की जरूरत है कि क्यों आज राज्य वही कर रहा है जो कॉरपोरेट घराने चाह रहे हैं और कॉरपोरेट घराने अपने मुनाफे के लिए सारी प्राकृतिक संपदाओं को बेतहाशा लूट रहे हैं। इस लूट के प्रतिकार के लिए जब स्थानीय समुदाय आंदोलित हो रहा है तो उसके दमन के लिए राज्य का सैन्यीकरण किया जा रहा है। देशभर में जनआंदोलनों के लोगों को माओवादी और आतंकवादी बताकर उन्हें जेलों में ठूसा जा रहा है या फर्जी एनकाउंटरों में मार दिया जा रहा है।" उक्त बातें वरिष्ठ पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा ने तीसरे हेम चंद्र पांडे स्मृति व्याख्यान में कॉरपोरेट लूट, तबाही और पत्रकारिता के उत्तरदायित्व विषय पर बोलते हुए कही। उन्होंने कहा कि राज्य 1990 में जारी जोसेफ स्टैग्लिट्ज के डॉक्यूमेंट ‘री डिफाइनिंग दि रोल ऑफ द स्टेट’ के अनुसार अपनी सारी ही लोककल्याणकारी भूमिकाओं को समेटते हुए अपने सारे उपक्रमों को कारपोरेटों को सौंप रहा है।

उन्होंने कहा कि स्टैग्लिट्ज के इस दस्तावेज को लागू करने के लिए बाजपेई सरकार के दौरान अगस्त 1998 में पीएमस् काउंसिल ऑन ट्रेड एण्ड इंडस्ट्री बनाई गई। इसमें देश के सारे बड़े कॉरपोरेट घरानों के मालिकों को शामिल किया गया और मूलतः राज्य के शिक्षा, स्वास्थ, ग्राम विकास आदि उत्तरदायित्वों की अलग-अलग जिम्मेदारियां इन्हें सौंपी गई। मीडिया में इतने महत्वपूर्ण लोगों की यह मीटिंग कहीं रिपोर्ट नहीं की गई। कई सरोकारी जनसंगठनों के दखल से उस बार यह गठजोड़ संभव नहीं हो सका लेकिन वर्तमान मनमोहन सरकार ने फिर इसे चालू कर दिया है। 

श्री वर्मा ने कहा कि कॉरपोरेटों की इस घुसपैठ और प्राकृतिक संसाधनों की लूट के खिलाफ संभावित आंदोलनों के दमन के लिए माहौल बनाने के लिए इसके ठीक बाद देशभर में माओवाद का हल्ला खड़ा किया गया। अचानक से देश के 18 राज्यों को माओवाद प्रभावित घोषित कर दिया गया। कईयों की फर्जी गिरफ्तारियां की गई इसी कॉरपोरेट लूट के खिलाफ प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न राज्यों के स्थानीय जन को लगातार निशाना बनाया गया और प्राकृतिक संसाधनों की भयंकर लूटपाट मची। उन्होंने कहा कि वर्तमान उत्तराखंड की आपदा भी इसी कॉरपोरेट लूट का परिणाम रही है। जिसमें उत्तराखंड की नदियों, पहाड़ों को जलविद्युत परियोजनाओं, खनन और संवेदनशील हिमालय में चैड़ी सड़कों के निर्माण आदि के लिए गैरजिम्मेदार कॉरपोरेटों को सौंप दिया गया है। 

उन्होंने आगे बोलते हुए पत्रकारिता के उत्तरदायित्वों पर बात की। उन्होंने कहा कि तकरीबन सारे ही मीडिया में कॉरपोरेट निवेश ने मीडियाकर्मीयों की चुनौतियों को बढ़ा दिया है। सरकार और कॉरपोरेटों का गठजोड़ जनता के बीच में जो गलत सूचनाओं के प्रसार से भ्रामक स्थिति बना रहा है, सरोकारी पत्रकारिता का यह उत्तरदायित्व है कि वह सही सूचनाओं से लोगों को वाकिफ कराने के प्रयत्नों में शामिल रहे।

इससे पहले हेमचंद्र पांडे मेमोरियल कमेटी की ओर से पत्रकार भूपेन सिंह ने हेम पांडे को याद करते हुए कहा कि हेम सतही पत्रकारिता के इतर प्रतिबद्ध पत्रकारों की उस परंपरा से आते थे जो कारपोरेट लूट और तबाही के खिलाफ मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद की विचारधारात्मक पत्रकारिता करते हैं। उन्होंने अपनी इसी प्रतिबद्धता के चलते अपनी जान भी कुरबान कर दी। 

कार्यक्रमकी अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार पीसी जोशी ने की। कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार डॉ शमशेर सिंह बिष्ट, राजीव लोचन साह, साहित्यकार बटरोही, कपिलेश भोज, दिवा भट्ट, हयात सिंह रावत, चंद्रशेखर भट्ट, भास्कर उप्रेती, शंभू राणा, जेएस मेहता, कुंडल चैहान, कौशल पंत, दीप पाठक, पान सिंह, रमाशंकर नैलवाल, पूजा भट्ट, कुंदन सिंह आदि मौजूद थे। यह व्याख्यान अल्मोड़ा के सेवॉय होटल के सभागार में आयोजित कराया गया।   


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