-उमेश पंत
"...फिल्म जब अपने आंखिरी मोड़ पर पहुंचती है तो समान्था, थियोडोर के साथ अपने रिश्ते के बारे में बताते हुए कहती है – “ये ऐसा है जैसे मैं एक किताब पढ़ रही हूं। और ये एक ऐसी किताब है जिसे मैं बहुत प्यार करती हूं। लेकिन अब मैं इसे बहुत धीमे पढ़ रही हूं। इसीलिये शब्द बहुत दूर दूर हैं और इन शब्दों के बीच का अन्तराल अनन्त है।..."
स्पाइक जोन्ज (Spike Jonze) निर्देशित फिल्म ‘हर‘ आपको टूटे हुए रिश्तों से उपजे अकेलेपन, इन्तजार, विछोह जैसी भावनाओं के रास्ते उस खालीपन की तरफ ले जाती जिसे भरा जाना ज़रुरी सा लगने लगता है।
थियोडोर (जैकिन फीनिक्स/ Joaquin Phoenix) एक लेखक है जो रिश्तों को जोड़ने के लिये लोगों की चिट्ठियां लिखता है। उसके शब्दों में रिश्तों की गहरी समझ है। लेकिन उसके अपने रिश्तों की दुनिया में एक असमंजस है जो उसे अपनी पुरानी प्रेमिका और पत्नी से तलाक की दहलीज़ पर ले आया है। तलाक के पेपर अभी साइन होने बांकी है। पर वो अब अकेले रह रहा है। और उस अकेले फ्लैट में उसके इर्द गिर्द अब अकेलापन है, अपनी प्रेमिका से बिछड़ने का दर्द है, एक आत्मीय रिश्ते के टूट जाने की तड़प है। इन भावनाओं से मिलकर जो एक नई किस्म की भावना बन रही है उसका कोई नाम नहीं है। वो कुछ है पर क्या ये उसे नहीं मालूम है। बस इतना मालूम है कि उस भावना से उपजी खाली जगह में एक खास किस्म की आत्मीयता की ज़रुरत है जो महज शारीरिक नहीं हो सकती।
थियोडोरकी उस आत्मीयता की तलाश के दौरान उसे एक दोस्त मिलती है। लेकिन वो दोस्त शरीर से परे है। एक आॅपरेटिंग सिस्टम जो इन्सानों की तरह सोच सकता है, बात कर सकता है, प्रतिक्रिया दे सकता है, यहां तक कि सेक्स भी कर सकता है। उसमें वो हर इन्सानी भावनाएं हैं जो बेशरीर होती हैं। समान्था नाम की यह दोस्त जो दरअसल एक कम्प्यूटर प्रोग्राम है धीरे धीरे थियोडोर के जीवन में मौजूद खालीपन को भर रही है। या फिर उस खालीपन को भरे जाने का एक आभासी अहसास दे रही है। थियोडोर खुद इस बात से अचम्भित है कि कोई कंप्यूटर प्रोग्राम किसी को इतनी अच्छी तरह कैसे समझ सकता है। कैसे हर उस ज़रुरत को भांप सकता है जो एक आम संवाद से परे जाकर ही समझी जा सकती है। वो किसी सुलझे हुए इन्सान की तरह संवेदनशील है, उसके पास जिन्दगी की दार्शनिक व्याख्या है और ज़रुरत पड़़ने पर उसे हंसाना और गुदगुदाना भी आता है। एक गर्लफ्रेंड जो कभी ये अहसास ही नहीं होने देती कि वो दरअसल महज एक कम्प्यूटर डिवाइस भर है। समान्था थियोडोर की जिन्दगी में इस हद तक शामिल हो चुकी है कि वो उसे प्यार करने लगता है।
एकतकनीक होने के बावजूद समान्था का दावा है कि वो हर रोज थियोडोर के साथ खुद के ही बारे में नई बातें जान रही है। वो उसके साथ हर रोज एक नये इन्सान के रुप में बदलता हुआ महसूस कर रही है। थियोडोर को भी उसकी लत लगती जा रही है। फिल्म में समान्था को एक बिम्ब के तौर पर लें तो वो दरअसल हमारी उन अनकही भावनाओं का प्रतिबिम्ब है जो किसी न किसी वजह से कभी बयां ही नहीं हो पाती। डिजिटल तकनीक के दौर में हम अपने कम्प्यूटरों और आॅपरेटिंग सिस्टम्स और अपने गैजेट्स के जितने नज़दीक हैं अपने असल रिश्तों से हम उतने ही दूर हैं। आंखिर तक जाते जाते फिल्म समान्था यानी एक तकनीक की सीमाओं को भी जाहिर कर देती है। एक मशीन की प्रवृत्तियां भले ही कितनी ही इन्सानी क्यों न लगती हों लेकिन वो आभासी ही रहेंगी। आप उनके जितने तलबगार होते रहेंगे वो आंखिर में आपको उतना ही मजबूर करके छोड़ देंगी।
पूरी फिल्म में नरेशन अहम भूमिका निभाता है। उसकी लिखावट बेहद खूबसूरत है। छोटी छोटी भावनाओं की खूबसूरती फिल्म के तमाम हिस्सों में बिखरी पड़ी है। मसलन समान्था एक बारगी कहती है कि “हम दोनों की साथ में कोई तस्वीर नहीं है। और ये गाना एक तस्वीर की तरह हो सकता है जो हमें जिन्दगी के इस लमहे में एक साथ उकेरता है।“ ये एक खूबसूरत बात है क्योंकि साथ होने का अहसास कई बार बिना शारीरिक रुप से एक साथ हुए भी हो सकता है अगरचे आप मन से एक साथ हों।
समान्थाएक बेहद खूबसूरत बात तब कहती है जब वो अतीत के बारे में अपनी राय देतीहुई कहती है- “अतीत दरअसल वो कहानियां जो हम खुद के लिये गढ़ते हैं..
फिल्मजब अपने आंखिरी मोड़ पर पहुंचती है तो समान्था, थियोडोर के साथ अपने रिश्ते के बारे में बताते हुए कहती है – “ये ऐसा है जैसे मैं एक किताब पढ़ रही हूं। और ये एक ऐसी किताब है जिसे मैं बहुत प्यार करती हूं। लेकिन अब मैं इसे बहुत धीमे पढ़ रही हूं। इसीलिये शब्द बहुत दूर दूर हैं और इन शब्दों के बीच का अन्तराल अनन्त है। मैं अब भी तुम्हें और हमारी कहानी के शब्दों को महसूस कर सकती हूं। लेकिन अब मैं अपने आप को शब्दों के बीच के इस कभी खत्म न होने वाले रिक्त स्थान में पा रही हूं। ये एक ऐसी जगह है जो भौतिक संसार में नहीं पाई जाती। ये एक कहीं और ऐसी जगह है जिसके बारे में मुझे पता भी नहीं था कि उसका अस्तित्व भी है। मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूं। लेकिन अब मैं इस जगह पर हूं। और मैं अब यही हूं। और मैं चाहती हूं कि तुम मुझे जाने दो। बहुत चाहने के बावजूद अब मैं तुम्हारी इस किताब को और नहीं जी सकती। “
फिल्मका धीमा संगीत हर वक्त आपको ऐसा अहसास कराता है जैसे आप किसी शान्त और गुनगुनी नदी की लहरों में लेटे हुए हों और लहरें आपको धीमे धीमे ऊपर नीचे ले जा रही हों। उसी ख़ूबसूरती से फिल्म में फ्लेशबैक को बिना संवादों के दिखाया गया है जो फिल्म के बहाव से अच्छी तरह मेल खाते हैं.
थियोडोरके रुप में जेकिन फीनिक्स (Joaquin Phoenix) की अदाकारी कमाल की है। समान्था से बात करते हुए उनके चेहरे के हावभाव जिस खूबी से बदलते हैं वो काबिले तारीफ है। खास बात ये है कि उनके बिल्कुल अव्यावहारिक से प्यार के बावजूद आप एक दर्शक के रुप में उस प्यार के समर्थन में न केवल खड़े होते हैं बल्कि उसे उसी गहराई से महसूस भी कर पाते हैं। समान्था के रुप में स्कारलेट जोहान्सन की आवाज़ कहानी में एक अलग किरदार है जो अपना प्रभाव पूरी तरह से छोड़ती है।
अच्छीलिखावट को उतनी ही अच्छी तरह से कैसे फिल्माया जा सकता है ‘हर’ उसका बेहतरीन उदाहरण है। स्पाइक जोन्ज (Spike Jonze) ने ये फिल्म लिखी भी है और उसका निर्देशन भी खुद ही किया है। जिन्हें बिना बहुत ज्यादा ड्रामा और एक्शन के बिना भी फिल्म देखने में मज़ा आता है उन्हें ये फिल्म ज़रुर देखनी चाहिये। ये फिल्म उन कुछ फिल्मों में से है जो आपसे आपकी जिन्दगी के बारे में वो सभी बातें करती है जिन्हें अपनी व्यस्त जिन्दगी में आप पूरी तरह नकार देते हैं।
उमेश'लेखक हैं. कविता-कहानी से लेकरपत्रकारीय लेखन तक विस्तार.
सिनेमा को देखते, सुनते और पढ़ते रहे हैं.
mshpant@gmail.com पर इनसे संपर्क किया जा सकता है.