-मोहम्म्द आरिफ
"...मुसलमानों में अपनी छवि सुधारने के लिए तो भाजपा ने बाकायदा एक इकाई का भी निर्माण कर रखा है| इस क्रम में राजनाथ सिंह की माफ़ी और हाल में शाहनवाज हुसैन के सच्चर समिति की सिफारिशों को लागू करने जैसे बयानो को देखा जा सकता है| भाजपा के इन दावों की हकीकत को समझ लेना जरुरी है कि कल तक मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाने वाली भाजपा आज खुद मुसलमानों पर इतनी मेहरबान क्यों है ?..."
http://indiaopines.com/ से साभार |
पिछले कुछ दिनों से भारतीय जनता पार्टी के नेता मुस्लिम मतदाताओं में अपनी उदारवादी और सकारात्मक छवि बनाने का प्रयास कर रहे हैं| भाजपा केनेता अल्पसंख्यकों को सेक्युलर पार्टियों से सावधान रहने की नसीहत भी देते नजर आ रहे हैं उनके अनुसार ये सेक्युलर पार्टियाँ सच्चे अर्थों में सेक्युलर नहीं हैं बल्कि अवसरवादी हैं| मुसलमानों में अपनी छवि सुधारने के लिए तो भाजपा ने बाकायदा एक इकाई का भी निर्माण कर रखा है| इस क्रममें राजनाथ सिंह की माफ़ी और हाल में शाहनवाज हुसैन के सच्चर समिति कीसिफारिशों को लागू करने जैसे बयानो को देखा जा सकता है| भाजपा के इनदावों की हकीकत को समझ लेना जरुरी है कि कल तक मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोपलगाने वाली भाजपा आज खुद मुसलमानों पर इतनी मेहरबान क्यों है ?
अगरपिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम पर नजर डालें तो यह स्पष्ट हो जाता है की लोकसभा चुनावों के ठीक पहले भाजपा के नेताओं के सुर बदले हुए हैं| इस बार भाजपा नेता बहुत ही कूटनीतिक और सोच समझकर बयान दे रहे हैं| भाजपाअध्यक्ष राजनाथ सिंह ने तो यहाँ तक कह दिया कि हम मुसलमानों से माफ़ीमांगने को तैयार हैं लेकिन दूसरे ही दिन भाजपा प्रवक्तामुख़्तार अब्बासने इसका खंडन करते हुए कहा कि जब कोई गलती ही नहींकी तो माफ़ी किस बातकी ? अगर इन बयानों का निहितार्थ देखें तो साफ़ पता चलता है कि गुजरातदंगों को लेकर भाजपा नेतृत्व न ही शर्मिंदा है नही उसे गलती मानने कोतैयार है| यह नरेन्द्र मोदी के उस बयान का ही मुख़्तार अब्बास वर्जन हैजिसमे मोदी ने कहा था कि प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है| इससेसाफ़ पता चलता है की भाजपा ने अल्पसंख्यकों को लेकर न अपनी रणनीति बदली हैऔर न ही उनके पास संघ की विचारधारा से स्वतंत्र कोई राजनैतिककार्यक्रमहै|
भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने एक साक्षात्कार में मुसलमानों को इंसाफ देने की बात कही है, उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा कि 60सालों में कांग्रेस ने मुसलमानों को छला है, भाजपा अब सच्चर समिति के आधार पर मुस्लिमों के विकास के लिए कार्यक्रम बनायेगी| इसमें सबसेरोचकतथ्य ये है कि भाजपा शुरुआत से ही सच्चर समिति की सिफारिशोंका विरोधकरती रही है और इसे पूर्वाग्रहग्रस्त और मुस्लिम-तुष्टिकरण करार देती है| सवाल ये है कि भाजपा लोकसभा चुनावों के ठीक पहले मुसलमानों पर इतनामेहरबान क्यों है? गुजरात दंगों के बाद से ही भाजपा के चरित्र और संघीविचारधारा को लागू करने के एजेंडे ने देश के तमाम बुद्धिजीवियों और धर्मनिरपेक्ष इंसाफपसंद आवाम को इस सांप्रदायिक जहर से निपटने के लिए सोचने पर मजबूर कर दिया था| जिस से भाजपा की छवि उग्र हिंदुत्व की पैरोकार के रूप में बनी है| वस्तुतः वर्तमान में इस तरह की बयानबाजी का मकसद गुजरात दंगों के दाग को मिटाने का प्रयास है और नरेन्द्र मोदी को पूरे भारत के नेता के रूप में प्रस्तुत करने के एजेंडे का हिस्सा है| ये निर्विवाद रूप से सत्य है कि बौद्धिक चेतना के लोग और तमाम धर्मनिरपेक्ष लोग संघ की इस भेड़चाल को अच्छी तरह से समझते हैं| उनके मुखरविरोध को कमकरने के लिए भाजपा इस तरह की बयानबाज़ी कर रही हैऔर यह ड्रामा कर रही हैकि वह विकास पर आधारित राजनीति करती है|
सच्चरसमिति की रिपोर्ट की ही तरह भाजपा सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम एवं लक्षित हिंसा (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक को भी नकारती है और इसे हिन्दू समुदाय के विरुद्ध विद्वेषपूर्ण बताकर दुष्प्रचारित करती है|राष्ट्रीय एकता परिषद की सोलहवीं बैठक जो सांप्रदायिक दंगों से निपटने कीरणनीति पर आयोजित की गयी थी उसमे नरेन्द्र मोदी ने न तो हिस्सा लिया और न ही अपना प्रतिनधि भेजना उचित समझा, ये उपेक्षा मोदी के संघी विचारों को ही पुष्ट करती है कि सांप्रदायिक हिंसा ‘क्रिया की प्रतिक्रिया’ कापरिणाम है|
वास्तवमें भाजपा मुसलमानों को लेकर केवल एक भ्रम पैदा कर रही है|भाजपा की सदैव रणनीति रहती है कि मुसलमानों के विरुद्ध हिंदुत्व के नाम पर वोटों का ध्रुवीकरण किया जाये और यह संघ की पुरानी वैचारिकरणनीतिका हिस्सा रहा है| यहाँ मुसलमानों के संबंध में संघ के विचारों को जानलेना उचित होगा संघ यह स्पष्ट घोषणा करता है कि हिंदुस्तान में राष्ट्र का अर्थ ही हिन्दू है| गुरु गोलवलकर के शब्दों में “ विदेशी तत्वों केलिए सिर्फ दो रास्ते खुले हैं, या तो वे राष्ट्रीय जाति के साथ मिल जाएँऔरउसकी दया पर रहें...... यही अल्पसंख्यकों की समस्या के बारे मेंआजमाया हुआ विचार है| यही एकमात्र तर्कसंगत और सही समाधान है| जाति और संस्कृति की प्रशंसा के अलावा मन में कोई और विचार न लाना होगा अर्थात हिन्दू राष्ट्रीय बन जाना होगा और हिन्दू जाति में मिलकर अपने स्वतंत्र अस्तित्व को गँवा देना होगा, या इस देश में पूरी तरह से हिन्दू राष्ट्र की गुलामी करते हुए,बिना किसी प्रकार का विषेशाधिकार मांगे,विशेष व्यव्हार की कामना करने की तो उम्मीद ही न करे,यहाँ तक कि बिना नागरिकताके अधिकार के रहना होगा | उनके लिए इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं छोड़नाचाहिए| हम एक प्राचीन राष्ट्र हैं और हमे उन विदेशियों सेउसी प्रकारनिपटना चाहिए जैसे की प्राचीन राष्ट्र विदेशी नस्लों से निपटाकरते हैं| ”(गोलवलकर,’वी’ पृष्ठ 47-48) गोलवलकर राष्ट्र को परिभाषित करते हुए कहतेहैं,“सिर्फ वे लोग ही राष्ट्रवादी देशभक्त हैं जो अपने ह्रदय में हिन्दू जाति और राष्ट्र की शान बढ़ने की आकांक्षा रखते हुए इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील होते हैं अन्य सभी या तो राष्ट्रीय हित के लिए विश्वासघाती और शत्रु हैं या नरम शब्दों में कहें तो मूर्ख हैं|”(वहीपृष्ठ 44 ) फासीवादी विचारों का विरोध करने वाली सभी पार्टियों को आरएसएससदैव ‘नकली राष्ट्रवादी’ कहता रहा है | इसीतरह वर्तमान में भी आरएसएसने सभी पार्टियों को धर्मनिरपेक्षता का ढोंग करने वाला घोषित कर रखा है|भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने कहा है कि वे दीनदयाल उपाध्याय केअन्त्योदयदर्शन का पालन करते हुए अंतिम पंक्ति के हर व्यक्ति (मुसलमानों को भी) को विकास से जोड़ेंगे | दीनदयाल उपाध्याय एकात्म मानववाद औरजनसंघके सिद्धान्तकर रहे हैं | उनके विचारों पर आरएसएस ने 7 खण्डों में एकपुस्तक माला प्रकाशित की है जिसमे केंद्रीय सूत्र के रूप में मुसलमानोंको राजनीतिक तौर पर पराजित करने का प्रमुख लक्ष्य छाया हुआ है| वे यहमानते हैं कि जब तक मुसलमानों की राजनीतिक हैसियत को पूरी तरह से रौंदनहीं दिया जाता है तब तक उनके हिंदुत्व पर आधारित राष्ट्र की स्थापनानहीं हो सकती है गोलवलकर की तरह वे भी मुसलमानों को हिन्दू राष्ट्र के‘आतंरिक संकट’ मानते थे |
दरअसलभाजपा अपने पितृ-संगठन की वैचारिक कार्यक्रमों को लागू करने काही एक राजनैतिक उपक्रम है जिसे संघ से ही प्राणवायु मिलती है | वस्तुतःसंघ का उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्ति नहीं है बल्कि वह इसके माध्यम से अपने एकात्मवादी हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना चाहता है जो अपने मूल वैचारिक स्वरुप में घोर सांप्रदायिक,प्रतिक्रियावादी,जनतंत्र विरोधी है|संघ का राष्ट्रवाद असमानता पर आधारित राष्ट्र के निर्माण की बात करता है| “हमारे दर्शन के अनुसार ब्रह्माण्ड का उदय ही सत्व,रजस ,और तमस के तीन गुणों के बीच संतुलन बिगड़ने के कारन हुआ है और इन तीनो में यदिबिलकुलसही ‘गुणसाम्य’ स्थापित हो जाये तो ये ब्रह्मांड फिर शून्य में विलीन होजायेगा | इस लिए असमानता इस प्रकृति का अविभाज्य अंग है| इसलिएऐसी कोईभी व्यवस्था जो इस अन्तर्निहित असमानता को पूरी तरह समाप्त करना चाहतीहै,वह विफल होने के लिए बाध्य है |”(एम एस गोलवलकर,बंचऑफ़ थॉट्स,1960पृष्ठ31) इस प्रकार संघ वैचारिक स्तर पर न केवलअल्पसंख्यक विरोधी हैअपितु दलित और पिछड़ा विरोधी भी है और सामाजिक न्याय को नकारता है | संघभारत के वैविध्यपूर्ण स्वरुप को एकात्मवादी बनाना चाहता है | गोलवलकर केही शब्दों में “ इस लक्ष्य कोहासिल करने का सबसे महत्वपूर्ण औरप्रभावशाली कदम हमारे संविधान केसंघीय ढांचे की तमाम बैटन को भगवान केलिए बहुत गहरे दफना देनाहोगा, एक भारत के अन्दर सभी स्वायत्त याअर्धस्वायत्त राज्यों के अस्तित्वको समाप्त कर देना होगा और ‘एक देश,एकराज्य,एक विधायिका और एककार्यपालिका’ की घोषणा करनी होगी .....संविधानका पुनर्निरीक्षण किया जाना चाहिए तथा इस प्रकार की एकात्म सरकार कीस्थापना के लिए उसका पुनर्लेखन किया जाना चाहिए| (एम एस गोलवलकर,बंच ऑफ़ थॉट्स,1966 पृष्ठ 435- 436)
इससेस्पष्ट हो जाता है कि भाजपा नेतृत्व द्वारा दिए जा रहे बयान केवल एक दिखावा मात्र है जबकि संघ के आगे भाजपा पूरी तरह से नतमस्तक हैयह बात शीशे की तरह साफ़ है चाहे वह मोदी को प्रधानमत्री पद का उम्मीदवारबनाया जाना हो या फिर मुरली मनोहर जोशी और लालजी टंडन को लोकसभा सीटेंछोड़ने का निर्देश,भाजपा नेतृत्व आज्ञाकारीबच्चे की तरह उसका पालन करताहै| ऐसे में भाजपा का मुसलमानों के प्रतियह उदारवादी मुखौटा किसी कोदिग्भ्रमित नहीं कर सकता है क्योंकि हमारेयहाँ एक कहावत है कि दूध काजला छाछ भी फूंक कर पीता है|